1 अरब लोगों का टीकाकरण
नौ महीनों में COVID-19 के एक अरब टीके लग चुके हैं - जो एक ऐसा कारनामा है, जो विकास-समुदाय द्वारा स्थानीय प्रभावशाली लोगों को मदद के लिए साथ लाए बिना संभव नहीं हो सकता था।
नौ महीनों में COVID-19 के एक अरब टीके लग चुके हैं - जो एक ऐसा कारनामा है, जो विकास-समुदाय द्वारा स्थानीय प्रभावशाली लोगों को मदद के लिए साथ लाए बिना संभव नहीं हो सकता था।
अपने COVID-19 टीकाकरण अभियान की धीमी और ढीली शुरुआत के बाद, भारत ने एक अरब टीके लगाने का एक प्रमुख मील का पत्थर हासिल किया।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर कहा – “भारत ने इतिहास लिखा है। हम (1.3 अरब) भारतीयों की विज्ञान, उद्यम और सामूहिक भावना की विजय देख रहे हैं।”
यह विशाल उपलब्धि भारत के विकास-समुदाय के काम के बिना संभव नहीं होती, जो देश के सबसे दूरदराज और हाशिए के लोगों तक पहुंचने में मदद करने में महत्वपूर्ण था।
झारखंड और उत्तर प्रदेश में स्थानीय प्रभावशाली लोगों को जुटाने में मदद करने वाले, ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) की एक वरिष्ठ प्रबंधक, अलीवा दास कहती हैं – “यह एक अपनी तरह का, अलग अनुभव रहा। हम समुदायों के साथ पांच साल के काम के आधार पर पहले से बने विश्वास का लाभ उठाने में सक्षम हुए।”
टीकाकरण अभियान जनवरी के मध्य में धीरे-धीरे शुरू हुआ, जब भारत के ज्यादातर लोगों को लग रहा था कि महामारी का सबसे बुरा दौर खत्म हो गया है। लेकिन दूसरी लहर ने पूरे देश में तेजी से और उग्र रूप से बढ़ते संक्रमणों के साथ जोरदार वार किया। अप्रैल और मई में प्रतिदिन 400,000 से ज्यादा लोगों के वायरस से संक्रमित होने और 4,000 लोगों की मृत्यु होने की जानकारी मिल रही थी, क्योंकि देश का स्वास्थ्य ढांचा चरमरा गया था।
लेकिन अब, टीकाकरण अभियान शुरू होने के नौ महीने बाद, भारत ने अपने 94.4 करोड़ वयस्कों के तीन-चौथाई को पहला टीका और 31% को दोनों टीके प्रदान किये हैं।
टीकों के प्रति झिझक पर काबू पाना
ऐसे देश में यह कोई आसान काम नहीं था, जहां दूर-दराज के इलाकों के लोग और हाशिए पर रहने वाले समुदाय, संचार और स्वास्थ्य नेटवर्क से कटे हुए हों।
टीके के प्रति हिचकिचाहट आगे बढ़ने में एक और बाधा थी, क्योंकि शुरुआती दिनों में टीके के प्रभावों के बारे में गलत अफवाहें बेतहाशा फैल गई थीं।
बहुत से लोगों का मानना था कि टीका उन्हें नपुंसक बना देगा और उनके जीवन को छोटा कर देगा। कुछ लोगों ने सोचा कि टीकाकरण अभियान जनसंख्या नियंत्रण का एक साधन है। और आदिवासी इलाकों के बहुत से लोगों का मानना था कि उन्हें टीके की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे कुदरती वातावरण में रहते हैं और अगर वे संक्रमित हो भी गए, तो उनकी जड़ी-बूटियां और औषधीय पौधे उन्हें ठीक कर देंगे।
‘प्रदान’ (प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन) की टीम समन्वयक, बंदना देवी कहती हैं – “शुरू में टीकाकरण प्रक्रिया असंभव लग रही थी। नपुंसक होने का डर, मौत का डर जैसे कई भ्रम थे। लेकिन प्रमुख बाधा टीकाकरण के प्रति अनुकूल व्यवहार की कमी थी।”
बहुत से लोग टीका लगवाने से पहले ठीक से खाना नहीं खाते। न ही टीका लगवाने के बाद के की जरूरी सावधानियाँ बरतते हैं, पर्याप्त पानी पीने से लेकर सही आराम करने तक।
देवी कहती हैं – “इसलिए पहला टीका लगवाने के बाद, बहुत से लोग बीमार पड़ गए, जिससे गांवों में अफवाहों की लहर दौड़ गई कि लोग टीके लेने के बाद बीमार हो जाते हैं।”
तालमेल महत्वपूर्ण है
ग्रामीण प्रभावशाली लोगों को परामर्श देने और युवा स्वयंसेवकों को अभियान जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए, पूरे देश में राज्य सरकारों और विकास संगठनों के बीच तालमेलपूर्ण पहल शुरू हो गई।
दास कहते हैं – “अफवाहें फैली थीं, लेकिन एक रणनीति हमारे समुदाय के स्वयंसेवकों और उनके परिवारों को टीका लगवाने की थी। फिर उन्होंने सभी को अपना टीकाकरण का प्रमाण पत्र दिखाया और लोगों ने देखा कि वे ठीक हैं। इसलिए फिर उन्होंने भी टीका लगवा लिया।”
कुछ सबसे सफल ग्रामीण टीकाकरण अभियानों में स्थानीय महिला स्वयंसेवकों की मदद ली। स्वयंसेवकों को “सेतु दीदी” और “सिस्टर” कहा जाता था, जो सरकारी सेवा प्रदान करने वालों और अपने समुदायों के बीच एक पुल का काम करती थी।
सेतु दीदी न सिर्फ बीमारी के लक्षणों वाले लोगों की जाँच और उन्हें अलग-थलग करती थी, बल्कि जरूरी होने पर उन्होंने अपने समुदाय के सभी लोगों को टीकाकरण के स्थानों तक पहुंचाने में भी मदद की।
और मील के पत्थर चाहियें
लेकिन सिर्फ एक तिहाई वयस्क आबादी का पूरी तरह से टीकाकरण हुआ है, इसलिए अब भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। सरकार चाहती है कि इस साल सभी वयस्कों का टीकाकरण हो जाए। जहां हाल में टीकाकरण में कमी ने स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वालों को चिंता में डाल दिया है, बहुत से लोग उम्मीद कर रहे हैं कि टीकाकरण दर में कमी सिर्फ त्योहारों के मौसम के कारण है।
दास कहते हैं – “नवरात्रि त्यौहार के दौरान समय कठिन था, जब बहुत से लोग उपवास (व्रत) रख रहे थे और इसलिए टीका नहीं लगवाना चाहते थे। लेकिन साथ ही, हमें दूसरे टीके के प्रति बहुत अवरोध का सामना करना पड़ा, क्योंकि जिन लोगों को पहला टीका लगवाने पर बुखार हो गया था, उन्हें डर था कि वे दूसरे टीके से और ज्यादा बीमार हो जाएंगे, हालाँकि ऐसा आमतौर पर नहीं होता।”
भारत में अब तक COVID-19 के 3.41 करोड़ मामले और 452,000 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं, जिनमें से ज्यादातर दूसरी लहर में ‘डेल्टा’ वेरिएंट के संक्रमण के कारण हुई।
अब तक सबसे ज्यादा टीकाकरण करने वाले पांच राज्यों में उत्तर प्रदेश है, जिसके बाद महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, गुजरात और मध्य प्रदेश हैं।
भारत के एक अरब टीके लगना, चीन के बाद दूसरे स्थान पर हैं, जहां कुल 2.2 अरब टीके लगाए गए हैं।
लिंडी प्रिकिट ‘Village Square’ की निदेशक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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