केरल में बाढ़ के कारण शुरू हुआ पलायन
अनिश्चित और भारी बारिश के कारण, केरल में हाल के वर्षों में ज्यादा घातक बाढ़ और भूस्खलन हो रहा है, जिसके कारण संवेदनशील क्षेत्रों से लोगों का पलायन हो रहा है।
अनिश्चित और भारी बारिश के कारण, केरल में हाल के वर्षों में ज्यादा घातक बाढ़ और भूस्खलन हो रहा है, जिसके कारण संवेदनशील क्षेत्रों से लोगों का पलायन हो रहा है।
पश्चिमी घाट के पास मुंडकायम के सुन्दर गांव में, जीवन इत्मीनान से चलता है। कोट्टायम जिले के इस गांव में अच्छी खासी संख्या में पर्यटक आते हैं।
मुंडकायम के एक बस ड्राइवर, के. पी. जेबी लॉकडाउन शुरू होने के बाद से ही बेरोजगार थे। जैसे ही सरकार ने पर्यटन खोला, जेबी को फिर से काम मिलने और कमाई की उम्मीद थी।
लेकिन आज वह केरल की हाल की बारिश और घातक भूस्खलन से सबसे बुरी तरह प्रभावित होने वाले पीड़ितों में से एक हैं। उनका दो मंजिला घर भीषण बाढ़ से गिर गया और कुछ ही सेकंड में गायब हो गया। अब उनके घर के वहां होने के कोई निशान नहीं बचे हैं।
बेहद खराब मौसम की घटनाओं में वृद्धि के साथ, संवेदनशील क्षेत्रों के निवासियों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया है। इस समय मुंडकायम और आसपास के गांवों के लोग अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं। लेकिन लम्बे समय में, बहुत से लोग पलायन को एकमात्र सुरक्षित विकल्प के रूप में देखते हैं।
बेहद खराब मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं
हालांकि अभी पूर्वोत्तर मानसून शुरू नहीं हुआ है, लेकिन भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, अक्टूबर के पहले 18 दिनों में केरल में 142% ज्यादा बारिश हुई है। हालांकि अब बरसात के दिनों की संख्या कम है, लेकिन बारिश को जोर बढ़ गया है। 16 अक्टूबर की लगातार बारिश, कम से कम पांच जिलों में भूस्खलन और बाढ़ का कारण बन गई।
लेकिन यह पहली बार नहीं है, जब केरल में इतनी भारी बारिश हो रही है। 2018 में केरल में असामान्य रूप से भारी बारिश हुई, जिसके कारण विनाशकारी बाढ़ आई, जिसमें आजीविकाओं और संपत्ति की छोड़िये, लगभग 500 लोगों की जान चली गई। यह सदी की सबसे भीषण बाढ़ बन गई, क्योंकि 1924 से इतनी भारी बाढ़ दर्ज नहीं की गई थी।
वह कहते हैं – “केरल में जो हुआ, वह एक छोटी बादल फटने की घटना है। यह तब होता है, जब किसी क्षेत्र में दो घंटे में 2 सेमी से ज्यादा लगातार बारिश होती है। ये बादल अरब सागर में बढ़ते तापमान के कारण बनते हैं। पिछली सदी में, अरब सागर के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि हुई है।”
वर्ष 2018 से, भारत में 28 चक्रवाती तूफान आए, जिनमें से 11 अरब सागर में पैदा हुए।
‘नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज’ (CESS), तिरुवनंतपुरम के सलाहकार वैज्ञानिक, के के रामचंद्रन कहते हैं – “भारी बारिश के साथ, बार-बार आए चक्रवाती तूफान, जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को दर्शाते हैं, जैसा कि अब केरल में हो रहा है।”
जलवायु-प्रभावित आपदाओं से पलायन होगा
जहां 2018 और 2019 की बाढ़ ने कहर बरपाया, वहीं मुंडाकायम में जेबी का घर और परिवार सुरक्षित थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
जेबी कहते हैं – “यह मेरे जीवन में पहली बार है, जब मैंने इस तरह की आपदा देखी है। अब मैं अपने गांव में नहीं रह सकता। मुझे नहीं पता कि कहाँ जाऊं। लेकिन मुझे कहीं और जाना पड़ेगा।”
पड़ोसी गाँव, कुट्टिकल सबसे बुरी तरह प्रभावित है, जहां कम से कम 12 लोग हताहत हुए हैं। लगभग 100 घर पूरी तरह और 500 घर आंशिक रूप से हो गए हैं। ज्यादातर ग्रामवासी अब अस्थायी शिविरों में या रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ रह रहे हैं।
कुट्टिकल पंचायत के अध्यक्ष, पी एस शाजिमोन कहते हैं – “पिछले वर्षों में भी भूस्खलन हुए थे, लेकिन इतने गंभीर नहीं थे। गांव की अर्थव्यवस्था और रोजगार पूरी तरह चरमरा गई है। हर कोई एक और आपदा को लेकर डरा हुआ है। इससे पलायन शुरू हो सकता है।”
लेकिन चेरुवल्ली गांव की मणिमालयार नदी के पास रहने वाले,के. सदाशिवन जैसे कुछ लोग हैं, जो पहले से ही अपने प्रवास की योजना बना चुके हैं।
वह कहते हैं – “मुझे कोई जोखिम नहीं चाहिए। मैंने पहले ही कोट्टायम में जमीन खरीद ली है। मैं जल्द ही चला जाऊँगा। कौन जानता है कि अगली बाढ़ कैसी होगी। मैं यहाँ रहने से डरता हूँ।”
रात के प्रवासी और मौसमी प्रवासी
इडुक्की जिले का उप्पुथोडे गांव इस बात का उदाहरण है कि प्राकृतिक आपदाओं से पलायन कैसे शुरू होता है। अगस्त, 2018 में भूस्खलन से छह लोगों की मौत हो गई थी। अब हर पांचवां घर खाली है, क्योंकि उनमें रहने वाले स्थायी रूप से दूसरे स्थानों पर चले गए हैं।
बरसात के मौसम में दूसरे ज्यादातर निवासी भी अस्थायी रूप से दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं। कुछ लोग दिन में घर पर रहते हैं, लेकिन रात के समय पड़ोसी गांव में दोस्तों के घर चले जाते हैं, क्योंकि वे उनके मुकाबले ज्यादा सुरक्षित हैं।
2018 और 2019 की बाढ़ से तबाह हुए लोगों के साथ काम करने वाले मनोचिकित्सक, जो सनी कहते हैं – “ज्यादातर ग्रामीण एक और भूस्खलन को लेकर डर रहे थे, इसलिए वे पलायन कर गए। बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाओं से और ज्यादा डर और ज्यादा पलायन हो सकता है।”
विकास की कीमत
पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच स्थित, केरल का एक अलग ही परिदृश्य है, जिसके क्षेत्र में 44 नदियाँ बहती हैं। तेजी से होते शहरीकरण के कारण, कृषि क्षेत्रों को विकास कार्यों के लिए बदल दिया गया है। ‘बैकवाटर’ और नदियों के कई तटों पर डेवलपर्स ने अवैध रूप से कब्जा कर लिया है।
पिछले अनुभवों को देखते हुए, सरकार ने ज्यादा जोखिम वाले इलाकों में रहने वाले लोगों को स्थानांतरित कर दिया। हालांकि हताहतों की संख्या सीमित है, फिर भी लगभग 9,500 लोग 247 राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। लगभग 10,000 हेक्टेयर में फसलें नष्ट हो गई हैं।
केरल के राजस्व मंत्री, के राजन ने आश्वासन दिया – “समय समय पर बारिश से होने वाली आपदाओं की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण रही हैं, लेकिन ये अप्रत्याशित नहीं हैं। सभी प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया जाएगा।”
‘जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया’ द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, केरल का 43% हिस्सा भूस्खलन और भूमि खिसकने से ग्रस्त है। बहुत से लोग कहते हैं कि सरकार ने इसके लिए पर्याप्त कार्य नहीं किया है।
पर्यावरणविद् और केरल राज्य जैव विविधता बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष, वी एस कहते हैं – “पर्यावरणविदों की चेतावनियों के बावजूद, सरकारों ने उचित कार्रवाई नहीं की। आपदाएं आना एक नियमित बात रहेगी। पूरी आजीविका प्रणाली और विकास पर फिर से काम करना होगा। अधिक जोखिम वाले इलाकों के लोगों का पुनर्वास करना सरकार का कर्तव्य है।”
देर-सबेर, विकास के केरल मॉडल को जलवायु चुनौतियों के अनुसार फिर से आकार देना होगा।
के राजेंद्रन तिरुवनंतपुरम स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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