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“वे सभी मेरे बच्चे हैं”

छोड़ दिए गए बच्चों की देखभाल के मिशन पर काम करने वाली विधवा माँ द्वारा पाली गई, नेबानुओ अंगामी ने अपनी माँ की इच्छा पर, कोहिमा, नागालैंड में अपना अनाथालय चलाना जारी रखा। एक बच्चे के रूप में भोजन की भीख माँगने से लेकर अपनी माँ द्वारा अपनी एकमात्र सोने की चेन बेचने तक, अंगामी ने बच्चों का पालन-पोषण करने में अपनी माँ की मदद की। यहाँ नेबानुओ अंगामी अपने शब्दों में अपने सफर के बारे में बता रही हैं।

नेबानुओ अंगामी अपने केंद्र के हर बच्चे को अपना मानती है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

मुझे आज भी वो दिन याद हैं, जब मैं घर-घर जाकर अपने अनाथालय के बच्चों के लिए खाना और पैसे मांगती थी। मैं सिर्फ 10 साल की थी। मैं अपने थके हुए पैरों से, दूरदराज के स्थानों पर मीलों चली।

मेरे शरीर में दर्द होता था, लेकिन मैंने अपनी मां के सपने को पूरा करने के लिए दर्द सहा। उनकी इकलौती संतान होने के नाते, मुझे लगा कि यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं हर उस बेसहारा बच्चे को भोजन और आश्रय प्रदान करूँ, जिसकी वह मदद करना चाहती थी।

मुझे मेरे पिता की याद नहीं है, जब मैं छोटी थी तब उनका निधन हो गया था। मेरी मां एक नर्स थीं और हम बेहद गरीबी में जीवन जीते थे। लेकिन यह सब उन्हें उन लोगों की सेवा करने से नहीं रोक सका, जिनका इस दुनिया में अपना कहने वाला कोई नहीं था।

बहुत छोटी उम्र से ही, नेबानुओ अंगामी अपनी मां द्वारा स्थापित अनाथालय के बच्चों की देखभाल कर रही हैं (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

यह सब तब शुरू हुआ, जब प्रसव के दौरान एक युवती की मौत हो गई और परिवार ने नवजात बच्चे को छोड़ दिया। मेरी मां बच्चे को घर ले आई। इसके बाद जल्दी ही दूसरे अनाथ और बेसहारा बच्चे एक के बाद एक हमारे घर आ गए। मैं सिर्फ एक बच्ची थी, जब मेरी माँ ने 1973 में “कोहिमा अनाथालय और बेसहारा घर” शुरू किया।

बच्चों को खिलाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे। एक दिन वह मेरी सोने की चेन हाथ में लिए मेरे पास आई और उसे बेचने की अनुमति मांगी, ताकि वह बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था कर सके। मैं फौरन राजी हो गई। मैंने बच्चों के लिए ब्लेज़र भी बुन लिए, ताकि हमें वे खरीदने पर पैसे खर्च न करने पड़ें।

हमने अपने सफर में काफी संघर्ष किया। हमें तीन बार जगह बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि लोग सोचते थे कि एक अनाथालय से उनके पड़ोस का माहौल बर्बाद हो जाएगा।

लेकिन हमारे दृढ़ निश्चय और सर्वशक्तिमान में विश्वास ने हमें आगे बढ़ने में मदद की।

अंगामी का केंद्र पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ खेल और संगीत के माध्यम से समग्र विकास सुनिश्चित करता है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

मेरी माँ, ज़ापुतुओ अंगामी को इस दुनिया को छोड़े लगभग एक दशक हो गया है। तब से मैं जरूरतमंद बच्चों को भोजन, आश्रय और शिक्षा देने के उनके सपने को पूरा कर रही हूँ। मैंने सरकार द्वारा अनुमोदित, नवजात शिशुओं के गोद लेने का कार्यक्रम भी शुरू किया।

इस समय हमारे पास भारत और बर्मा से 93 बच्चे हैं। हम उन्हें सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा तक पढ़ाते हैं और फिर उन्हें अन्य ऐसे संस्थानों में भेजते हैं, जो कम या बिल्कुल भी शुल्क नहीं लेते।

हम बच्चों के सर्वांगीण विकास में विश्वास करते हैं। इसलिए हम उन्हें खेल और संगीत का प्रशिक्षण देते हैं, जिसे जाने-माने संगीतकार ए.आर. रहमान प्रायोजित करते हैं। 

अंगामी को अपने बच्चों की खुशी और उपलब्धियों पर गर्व होता है (छायाकार – गुरविंदर सिंह)

यह गर्व की बात है कि हमारे बच्चे सेना में सेवारत हैं और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरी पाते हैं। और हाँ, भारत सरकार द्वारा मुझे 2016 में भारत की 100 सफल (अचीवर) महिलाओं में से एक के रूप में सम्मानित करना मेरे दिल को छू गया।

हालाँकि मैं उनकी सगी माँ नहीं हूँ, लेकिन मैं उन्हें अपने बच्चों के रूप में देखती हूँ।

मैं अपनी आखिरी सांस तक अपने बच्चों के लिए काम करना चाहती हूँ। जब मैं उन्हें मुस्कुराते, खेलते और आनंद लेते हुए देखती हूँ, तो मुझे वो खुशी मिलती है, जिसे मैं शब्दों में नहीं बता सकती। आखिरकार उन बच्चों का केवल एक ही बचपन है।

कोलकाता स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार, गुरविंदर सिंह द्वारा प्रस्तुत। विचार व्यक्तिगत हैं।