बांस को बढ़ावा देते पर्यावरण-कार्यकर्ता

सैकड़ों पौधे लगाने वाले और इसके प्रसार को बढ़ाने के लिए गीत गाने वाले, उत्साही पर्यावरणविदों का कहना है कि बांस केरल में लगातार होने वाले मिट्टी के कटाव और घातक भूस्खलन का जवाब हो सकता है।

जब केरल लगातार बारिश और घातक भूस्खलन के हालिया दौर से जूझ रहा है, और जब परिवार अपने घरों को बहते हुए देखते हैं और दूसरे लोग बैकवाटर हमेशा के लिए छोड़ने के लिए अपना थोड़ा सा सामान बांधते हैं, तब 17 वर्षीय नैना फ़ेबिन अपना सिर हिलाते हुए एक गीत गाती हैं।

अपने गृह राज्य के कुछ हिस्सों को बहता हुए देखकर, वह अपने अंदर उमड़ती भावनाओं को रोकने के लिए, बस इतना ही कर सकती है।

लेकिन जो मलयालम शब्द वह गाती हैं, वे आशा और इरादों से भरे हुए हैं। एक समाधान विशेष रूप से उसकी जुबान पर आता रहता है, वह है बांस की शक्ति।

आठ साल की उम्र से बाँस लगा रही, फेबिन का कहना है – “क्या आप जानते हैं कि बांस अन्य पेड़ों के मुकाबले 35% ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है? या बांस ही एकमात्र पौधा था, जो हिरोशिमा बमबारी से बच गया था और शहर को फिर से हरा-भरा करने के लिए इस्तेमाल किया गया था? इसके पोषण और औषधीय लाभ भी हैं। इसलिए मैं बाँस लगाते रहना चाहती हूँ।”

युवा संगीतकार और कार्यकर्ता उन पर्यावरणविदों की बढ़ती संख्या में से एक हैं, जो उन क्षेत्रों में बांस लगाने के लिए कह रहे हैं, जहां जलवायु परिवर्तन और गहन मौसम मिट्टी के कटाव को घातक स्तर तक तेज कर रहे हैं।

एक गैर-सरकारी संगठन,‘अभयम’ के निदेशक, अभयम कृष्णन कहते हैं – “बांस की जड़ें मिट्टी के कटाव और भूस्खलन को रोक सकती हैं। हमें उन्हें रोपने की जरूरत है, क्योंकि केरल में मूसलाधार बारिश और भूस्खलन आम होता जा रहा है।”

अपने राज्य में बांस लगाने के लिए, कृष्णन और अन्य पर्यावरणविदों ने फेबिन से हाथ मिलाया है।

जब पिछले साल लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर लोग बेखबर थे, तो वह और उसकी सहेलियाँ केरल के लगभग एक हज़ार पंचायत-नेताओं से अपने गांवों में बांस लगाने में मदद के लिए संपर्क कर रही थीं। उनकी योजना पंचायत-नेताओं, पर्यावरण-क्लबों, पर्यावरणविदों और मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के माध्यम से काम कर रहे कार्यकर्ताओं की मदद से, बांस-अनुकूल गांवों को विकसित करना है।

बांस उपनाम वाली लड़की

बचपन में जब भी फेबीन को चोट लगती या वह परेशान होती या रूठती, तो उसकी माँ उससे कहती – “आओ नैना, बांस की यह कहानी सुनो।” उसकी माँ के ये शब्द उसे हमेशा वापिस खुश कर देते थे।

एक बच्चे के रूप में बांस के प्रति बने आकर्षण ने नैना फ़ेबिन को बांस की एक पैरवीकार बना दिया है (छायाकार – सुबिन कोप्पम)

यह हैरानी की बात नहीं है कि उसने अपने घर के पिछवाड़े में बांस का पहला पौधा तब लगाया था, जब वह चौथी कक्षा में थी।

वह कहती है – “मैंने इसे एक झाड़ी और फिर एक झुरमुट में विकसित होते देखा है, जो पक्षियों को आकर्षित करता है। मेरे लिए, उनमें से बहने वाली हवा और पत्तों की सरसराहट एक संगीत हैं।”

बांस के प्रति उनके लगाव को देखते हुए, एक पारिवारिक मित्र, जयकृष्ण साथी ने उन्हें बताया कि ज्यादातर कुदरती आपदाएं हमारे कार्यों का नतीजा हैं और उन्होंने बांस के द्वारा आपदाओं से बचने की सलाह दी। इसलिए फेबिन ने बांस और उसके फायदों के बारे में और जानकारी प्राप्त करना शुरू किया।

जल्द ही उसका अपना बगीचा कम पड़ गया। वह दोस्तों और पड़ोसियों के घरों में पौधे लगाने लगी। फिर उसने सार्वजनिक स्थानों पर भी बारहमासी सदाबहार पौधे उगाए।

कुछ ही समय बाद लोग उसे “मुलयुदेथोझी” कहने लगे, जिसका अर्थ है बांस का मित्र।

बांस की टोकरियों से आगे

बांस के प्रति दीवानगी जंगलों से भी आगे फैलती है। यह तेजी से प्लास्टिक का विकल्प बन रहा है।

जलवायु परिवर्तन के प्रति इसकी सहनशीलता को देखते हुए, घास की इस किस्म को कई एजेंसियों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है। लकड़ी और घरेलू सामानों के अपने पारंपरिक उपयोगों से, यह एक जीवन शैली उत्पाद बन रहा है, जिसका उपयोग अनेक तरह की वस्तुएं बनाने के लिए किया जाता है।

पर्यावरण-कार्यकर्ता निवासियों के बीच बांस के फायदों के बारे में जागरूकता पैदा करते हैं (छायाकार – सुबिन कोप्पम)

अब केवल टोकरियाँ बुनने की सामग्री न रह कर, खेती और प्रोसेसिंग करके प्राप्त किया गए बांस से प्लेटें और कटलरी बन रही हैं, जो कि आधुनिक शहरी कैफे और पिकनिक पार्टियों में तेजी से पाई जा रही हैं।

हैरानी की बात यह है कि इस रेशेदार पौधे से बेडशीट और तकियों के लिए सूत भी बनाया जा रहा है। कुछ लोग इसे लचीले क्रिकेट बैट के विकल्प के रूप में भी आजमा रहे हैं।

कुछ लोगों द्वारा “हरा सोना” पुकारे जाने वाले बांस के कई पोषण और औषधीय उपयोग भी हैं।

सिर्फ एक पौधा लगाएं

लेकिन फेबिन जैसे कार्यकर्ता महसूस करते हैं कि बांस के पर्यावरणीय फायदे, मिट्टी के कटाव की तत्काल समस्या के लिए अधिक महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करते हैं। इसलिए उसने ‘मारुपाचा’ (बांस की हरियाली) पहल की शुरुआत की। इसका उद्देश्य परिवारों को कम से कम एक पौधा लगाने के लिए प्रोत्साहित करके बांस के आवरण को बढ़ाना है।

जब फेबिन ने परिवारों को अपने मारूपाचा उद्देश्य के बारे में बताया, तो उन्होंने पूछा कि इससे उन्हें क्या फायदा होगा।

फेबिन कहती है – “केरल में हर घर में एक नारियल का पेड़ होता है। जिन लोगों को नारियल या उसकी बिक्री से पैसा मिलता है, उनके लिए बांस के पेड़ ज्यादा आकर्षक नहीं थे।”

लेकिन जब कार्यकर्ता समझाते हैं कि इस पेड़नुमा घास द्वारा 35% ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ने के अलावा, कैसे बांस की जड़ संरचना मिट्टी का कटाव और उससे होने वाला भूस्खलन रोकती है, तो लोग आश्वस्त हो जाते हैं।

और कभी-कभी सिर्फ तस्वीरें और सम्मानजनक विनती ही उनका दिल जीत लेती हैं।

जयकृष्णा साथी कहते हैं – “उसके घर के आस-पास के माहौल से प्रभावित होकर, अब लोग बांस को बेकार की चीज नहीं समझते। 

बांस के लिए गीत 

मारूपाचा टीम केरल की 28 में से 10 किस्मों के पौधे उगाते हैं, जिनकी पौध वे केरल वन विभाग के वन अनुसंधान संस्थान और निजी नर्सरी से खरीदते हैं। लेकिन इससे खर्च बढ़ जाता है।

फ़ेबिन की माँ, जो एक शिक्षिका हैं और पिता हनीफ़ा, जो एक लैब तकनीशियन हैं, ने शुरुआत में उसे पौधे खरीदने में मदद की। लेकिन फिर फेबिन ने बांस के लिए अपनी दिव्य आवाज का इस्तेमाल करने का फैसला किया। वह अपने गीतों से न सिर्फ जागरूकता फैलाती है, बल्कि संगीत से होने वाली उसकी सारी कमाई बांस पहल के लिए जाती है।

उनका बैंड, ‘ओछा’, जिसका अर्थ है ध्वनि, 2014 में शुरू किया गया था, जब वह 5वीं कक्षा में थी। अब तक, ‘ओछा’ कसे 200 से ज्यादा शो हो चुके हैं।

फेबिन कहती है – “हम बांस के वाद्य-यंत्रों का उपयोग करके, बांस के महत्व और उसे उगाने की जरूरत के बारे में गाते हैं। लोग उदारता से चंदा देते हैं, जिससे हमें ज्यादा पौधे लगाने में मदद मिलती है।”

उसके मित्र जहाँ भी संभव हो, पौधे खरीदते और लगाते भी हैं।

कृष्णन कहते हैं – “हमने थूथा नदी के किनारे सहित, बहुत सी जगहों पर पौधे लगाए हैं।”

जड़ें और मान्यता

जब फेबिन 15 साल की थी, तब वह केरल वन विभाग से ‘वनमित्र’ पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की व्यक्ति बन गई, क्योंकि उसने 10 वर्षों में 2,000 से अधिक पौधे लगाए थे।

उसकी दृढ़ता संक्रामक है।

मन्नारक्कड के रेंज ऑफिसर, के. अब्दुल रज़ाक का कहना है – “नैना से प्रेरित होकर, बहुत से लोग बांस लगाते हैं, जो सामाजिक वानिकी के लिए एक सही पौधा है। उसका एकमात्र लक्ष्य हमारी धरती की रक्षा करना है।”

यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि फेबिन के पास कालीकट विश्वविद्यालय द्वारा “बैम्बू बैलाड” नाम से उस पर बनाई गई एक डाक्यूमेंट्री भी है।

निदेशक, सजीद नाडुथोडी कहते हैं – “उसकी पर्यावरण पहल बहुत अनोखी है। बांस लगाने के अलावा, वह उन्हें संगीत के माध्यम से बढ़ावा देती है, जो संचार का एक शक्तिशाली औजार है।”

बांस से ढके राज्य की दिशा में काम

फेबिन ज्यादा असर के लिए सामूहिक प्रयास में विश्वास करता है। जिन 941 पंचायतों से पर्यावरणविदों ने अपने बांस-अनुकूल गांवों की परियोजना के लिए संपर्क किया है, उनमें से 250 की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।

प्रदर्शन के लिए वह अपने गांव को इस्तेमाल करना पसंद करती है। जिन घरों में उन्होंने सालों पहले पौधे लगाए थे, वे बहुत से आगंतुकों को आकर्षित करते हैं, जो ज्यादातर ज्यादा पक्षियों के साथ-साथ, बांस के झुरमुट में तापमान कम पाते हैं।

घरों और स्कूलों के पास लगाए गए पौधों के जीवित रहने की दर 100% है, लेकिन यह नदी के किनारे और खाली भूमि के पास घट जाती है, जिसका कोई मालिक नहीं है। लेकिन फेबिन का मानना है कि जिन क्षेत्रों में जिम्मेदारी सामूहिक होगी, वहां पौधों के जीवित रहने की दर में सुधार होगा।

के. राजेंद्रन तिरुवनंतपुरम स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।