कश्मीरियों ने पर्यावरण-ट्रैक्स की ओर रुख किया
महामारी के प्रभाव से चिंतन का अर्थ है कि ज्यादा कश्मीरी, कभी जिन पहाड़ियों को देख भर कर संतोष कर लेते थे, अब पर्यावरण ट्रैकिंग को अपनाकर वापिस पहाड़ों का रुख कर रहे हैं।
महामारी के प्रभाव से चिंतन का अर्थ है कि ज्यादा कश्मीरी, कभी जिन पहाड़ियों को देख भर कर संतोष कर लेते थे, अब पर्यावरण ट्रैकिंग को अपनाकर वापिस पहाड़ों का रुख कर रहे हैं।
कुछ साल पहले तक, कश्मीर की पहाड़ियों और चट्टानों के बीच के ट्रैक (यात्रा-पथ) स्थानीय लोगों को आकर्षित नहीं करते थे। ज्यादातर लोग बर्फ से ढकी चोटियों को अपनी शाश्वत पृष्ठभूमि के रूप में देखकर ही संतुष्ट थे।
अब और नहीं।
पिछले दो वर्षों में, कश्मीर के मनोहर पर्वतीय क्षेत्रों के ट्रैकों की संख्या में बड़ी बढ़ोत्तरी हुई है। ऐसा लगता है कि COVID-19 महामारी ने कई कश्मीरियों में न केवल फिटनेस के प्रति जागरूकता को उभारा है, बल्कि प्रकृति की सुंदरता और कोमलता के प्रति एक भावपूर्ण संजीदगी भी पैदा की है।
बशीर अहमद उत्तरी कश्मीर के सोपोर शहर के एक उत्साही पर्वतारोही और साइकिल चालक हैं, जो पिछले 12 वर्षों से ट्रैकिंग करते रहे हैं। हाल ही में उन्होंने ज्यादा संख्या में युवाओं को पहाड़ों पर आते देखा है, जिसे वे इसके स्वास्थ्य और फिटनेस संबंधी फायदों के बारे में बढ़ती जागरूकता से जोड़ते हैं।
बशीर अहमद ने ‘विलेज स्क्वायर’ को बताया – “चार या पांच साल पहले ट्रैक करते हुए शायद ही कोई और समूह मिलता था, लेकिन अब हमें कई और मिलते हैं।”
यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि सैग (Sagg), एक संगठन जो पर्यावरण-पर्यटन और पर्यावरण के अनुकूल दूसरी गतिविधियों को बढ़ावा देता है, ने पिछले तीन वर्षों में ज्यादा ट्रैक आयोजित करने शुरू कर दिए हैं।
सैग के संस्थापक, फैयाज अहमद का कहना था कि आजकल उन्हें बहुत से उद्यमियों, शिक्षाविदों, युवाओं और यहां तक कि ज्यादा महिलाएं मिल रही हैं, जो ट्रैकिंग के लिए उत्सुक हैं।
वह कहते हैं – “जब आप जंगल में जाते हैं और वहां की सुंदरता और शांति को देखते हैं, तो आप जंगलों और स्वच्छ पर्यावरण का महत्व समझने लगते हैं।”
और इस शुरुआत का एक बेहतरीन प्रभाव है।
प्रकृति की दस्तक का प्रभाव
फैयाज अहमद कहते हैं – “हम अपने आयोजित किए गए ट्रैकिंग कार्यक्रमों के लिए लोगों की प्रतिक्रिया से बेहद खुश थे। यदि यह रुझान जारी रहा, तो इससे स्वतः ही पर्यावरण-पर्यटन और पर्यावरणवाद को बढ़ावा मिलेगा।”
‘वर्मुल ट्रैकिंग क्लब’ के सदस्य, इश्फाक़ तांत्रे इससे सहमत हैं।
वह कहते हैं – “पीर पंजाल रेंज के ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों में हमारी ट्रैकिंग के दौरान, हमें युवाओं के कई समूह मिले, जिन्होंने रात के ठहरने के लिए अपने तंबू लगा रखे थे। एक दूसरे समूह ने पहाड़ी चरागाहों में पांच रातें बिताईं।”
जिन पहाड़ों पर पहले वे अकेले होते थे, वहां ज्यादा लोगों के आने से निराश होने की बजाय, बशीर अहमद ट्रैकरों की संख्या में वृद्धि से खुश हैं।
वह कहते हैं – “लंबे समय में, इससे उन्हें प्रकृति के संरक्षण के महत्व को समझने में मदद मिलेगी।”
संघर्ष काल में शांति और आत्मावलोकन
उनका मानना है कि शांति के लिए प्रकृति की ओर मुड़ना, संघर्ष-प्रभावित कश्मीर जैसी जगह में और भी महत्वपूर्ण है, जहां लोग तीन दशकों से ज्यादा समय से उग्रवाद से हो रही हिंसा झेल रहे हैं।
उन्होंने कहा – “हमें प्रकृति जैसा संतोषजनक व्यवहार प्रदान करने की शक्ति और संसाधन किसी के पास नहीं है।”
सरकार द्वारा ट्रेकिंग को बढ़ावा
शायद यह हैरानी की बात नहीं है कि जम्मू-कश्मीर का वन, पर्यावरण एवं वातावरण विभाग भी ट्रैकिंग को बढ़ावा दे रहा है।
वन संरक्षण के समर्थन में अक्सर सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया देने वाले, जम्मू-कश्मीर के वन विभाग के एक युवा वन संरक्षक, इरफान रसूल कहते हैं – “जंगलों की शांति का आनंद लेने के लिए पहियों की जरूरत नहीं होती। इसका आनंद लेने के लिए आपके पैर जमीन से टकराने चाहिए।”
उनका विभाग विभिन्न वन्यजीव संरक्षण क्षेत्रों के लिए ट्रैकिंग मार्ग बना रहा है। प्रकृतिवादी होने के कारण, वह और उनकी टीम जंगल में मिलने वाले प्राकृतिक संसाधनों का ही इस्तेमाल करते हैं। बढ़ती संख्या में आने वाले पैदल यात्रियों के बैठने के लिए, रास्तों के साथ-साथ, गिरे हुए पेड़ों की लकड़ियों को बेंचों में बदल दिया जाता है।
विभाग ने अब तक कश्मीर और जम्मू के वन क्षेत्रों में, 35 विश्राम गृह और निरीक्षण कक्ष खोले हैं।
रसूल कहते हैं – “ये विश्राम गृह मनोहर स्थानों पर स्थित हैं। अभी तक इनका उपयोग वन विभाग के अधिकारी दौरे के समय करते थे। लेकिन अब वे प्रकृति प्रेमियों और ट्रैकरों के लिए खुले हैं।”
अब पहाड़ पर ऊपर जाने और नीचे आने के एक दिन के ट्रैकिंग से लेकर, खूबसूरत स्थानीय जीव और वनस्पति के बीच कैम्प सहित सप्ताह भर की ट्रैकिंग तक के विकल्प हैं।
गहरे पर्यटन की संभावना
जम्मू-कश्मीर के प्रमुख वन संरक्षक, मोहित गेरा कहते हैं – “ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों में एडवेंचर पर्यटन की बहुत संभावनाएं हैं। इसलिए, हम अपने मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करने और ट्रैक के अंतिम स्थलों के पास स्थानीय समुदायों को शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उनके बुनियादी ढांचे और सेवाओं का उपयोग पर्यटकों और ट्रैकरों द्वारा भी किया जा सके।”
वह इस बात से सहमत हैं कि मौजूदा COVID-19 महामारी में ज्यादा लोगों ने प्रकृति के मूल्य को महसूस किया है।
वह कहते हैं – “लेकिन जब आप वनों में जाते हैं, तो यह पेड़ों से बहुत कुछ ज्यादा होता है। यह एक संपूर्ण पर्यावरण-तंत्र है।”
उनका विभाग स्थानीय समुदायों को शामिल करके, वन संसाधनों के संरक्षण में हिस्सेदारी देने की कोशिश कर रहा है।
वह पाते हैं – “पूरी दुनिया में यह अहसास बढ़ रहा है कि प्रकृति के साथ मानव जाति का रिश्ता टूट रहा है। इसलिए पर्यावरण-तंत्र को बहाल करने पर जोर दिया जा रहा है।”
अतहर परवेज़ श्रीनगर स्थित पत्रकार हैं।
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