लगातार बारिश के कारण आई भावनाओं की बाढ़
भारत में जैसे-जैसे मानसून में तेजी आती है, थोड़ी सी बारिश तक से चिंता और भय पैदा होना आम बात है। जबकि हर किसी की प्रतिक्रिया अलग होती है, इससे निपटने के लिए पेशेवर लोग के सुझाव हैं।
भारत में जैसे-जैसे मानसून में तेजी आती है, थोड़ी सी बारिश तक से चिंता और भय पैदा होना आम बात है। जबकि हर किसी की प्रतिक्रिया अलग होती है, इससे निपटने के लिए पेशेवर लोग के सुझाव हैं।
अपने पड़ोसी के छोटे से बरामदे में पानी भरता देख, करपगम बी. ने सुबह 6:30 बजे उन्हें फोन करने का फैसला किया, क्योंकि वह जानती थी कि उनके पड़ोसी काफी समय बाद सो कर उठेंगे।
चेन्नई में पिछली रात से ही बारिश हो रही थी और वह चौकन्ना थी। वह नहीं चाहती थी कि उनके पड़ोसी की किताबें और कंप्यूटर बेकार हो जाएं, जैसा कि 2015 की बाढ़ में उनके साथ हुआ था।
उस साल लगातार बारिश होने के बावजूद, दिसंबर के आखिरी सप्ताह में, हजारों निवासी हैरत में पड़ गए, जब चेम्बरमबक्कम जलाशय के पानी से शहर में बाढ़ आ गई। चेन्नई पानी से घिर गया और तीन दिनों तक और कई इलाकों में पांच दिनों तक बिजली न आने के कारण ठप रहा।
अब थोड़ी सी बौछार भी बहुत से निवासियों में भय पैदा कर देती है।
जब देश के कई हिस्सों में बढ़ती मात्रा में बारिश देखी जा रही है, तो सामाजिक और शैक्षिक पृष्ठभूमि से हटकर भय और मानसिक पीड़ा आम होती जा रही है।
कुछ लोगों में बूंदाबांदी से भी दहशत पैदा हो जाती है
जब से चेन्नई के बीचों-बीच स्थित उनका मकान 2015 में बाढ़ ग्रस्त हुआ था, विमला शंकर बूंदाबांदी मात्र से भी बेचैन हो जाती हैं।
वह कहती हैं – “यह सिर्फ सामान का नुकसान था, जिसमें फर्नीचर बदलना पड़ा और लकड़ी का काम करवाना पड़ा, और कुछ कपड़े फेंकने पड़े। लेकिन उस बाढ़ का असर यह है कि अब जब भी बारिश होती है, मैं डर जाती हूँ।”
दिसंबर 2020 के मानसून के दौरान, जब चेम्बरमबक्कम जलाशय से पानी छोड़ा गया, तो रात को एक और बाढ़ के डर से वह एक पल के लिए भी नहीं सोई। वही स्थिति अब सामने आ रही है, क्योंकि चेन्नई की बाढ़ में कोई कमी नहीं हुई है।
क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र (IMD) के अनुसार, तमिलनाडु में इस साल 1 अक्टूबर से 15 नवंबर तक, पूर्वोत्तर मानसून में सामान्य वर्षा के मुकाबले 54% अंतर था। लेकिन यह बारिश की मात्रा नहीं है, बल्कि बाढ़ की यादें हैं, जो अब बहुत से लोगों को डराती हैं, चाहे वे बाढ़ से प्रभावित हुए हों या नहीं।
करपगम एक अपार्टमेंट में रहती हैं, जो 2015 की बाढ़ से बच गया था। लेकिन वह सबसे ज्यादा डरती हैं।
वह कहती हैं – “तीन दिनों तक बिजली गुल रहने और पीने के पानी के लिए पड़ोसियों पर निर्भर रहने के अलावा, मुझे किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा था। फिर भी मुझे बारिश से डर लगने लगा है।”
क्या ऐसा डर बेमतलम है?
चेन्नई स्थित एक मनोचिकित्सक, डेनियल जे. कहते हैं – “आम तौर पर लोगों में बाढ़, सांप और भूकंप जैसे प्रकृति से पैदा होने वाले खतरों के प्रति बेचैनी विकसित कर सकते हैं।”
वह इसे प्राकृतिक विकास की प्रक्रिया से जोड़ते हैं। उदाहरण के लिए, एक वाहन से भी खतरा होता है, लेकिन हम उस तरह से नहीं डरते। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह के खतरों के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया अलग-अलग होती हैं।
एक मनोवैज्ञानिक और व्यावसायिक चिकित्सक, हरिणी श्रीराम इस बात से सहमत हैं कि आम तौर पर केवल वही लोग होते हैं, जिन्हें 2015 की बाढ़ या 2016 के चक्रवात जैसे दर्दनाक अनुभव होते हैं, जिनके कारण उनमें गहरा भय विकसित होता है।
श्रीराम ने समझाया – “जहाँ ऐसे लोग, जिन पर इस घटना का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा था, लेकिन आमतौर पर बेचैनी का शिकार हुए थे, वे “अपनी सामान्य दिनचर्या से मामूली भटकाव पर भी” घबरा सकते हैं।”
शंकर ने मानसून शुरू होते ही, अपनी अलमारियों के नीचले खानों से चीजें हटानी शुरू कर दी, हालांकि उनके परिवार को लगता था कि इस मानसून के मौसम में उनका डर निराधार था।
डैनियल कहते हैं – “भावनात्मक प्रतिक्रियाओं और व्यवहार की एक श्रृंखला होती है, जिसमें पूरी तरह से उदासीन होने से लेकर, पूरी तरह से घबराए हुए लोग हो सकते हैं। उनका डर सही हो भी सकता है और नहीं भी। हमारी प्रतिक्रिया व्यक्ति पर और पिछले अनुभव पर निर्भर करती है।”
सही है या नहीं, लेकिन यह जानते हुए कि भारी बारिश या बाढ़ की आशंका आम हो रही हैं, कोई इस स्थिति से कैसे निपटे?
अव्यवस्था के बीच शांत रहना
जो लोग आसानी से बेचैन हो जाते हैं, उनके लिए श्रीराम ने नियमित रूप से सांस लेने के व्यायाम का सुझाव दिया। लेकिन थेरेपी लेना एक और विकल्प हो सकता है।
वह कहती हैं – “यदि लोग इसी तरह के पिछले दर्दनाक अनुभव से उबर नहीं पाए हैं, तो वे परामर्श ले सकते हैं।”
ध्यान बांटना भी एक शक्तिशाली उपकरण है।
वह कहती हैं – “स्थिति पर सोचते रहने की बजाय, आप पूजा-भजन करके, कहानी की किताबें पढ़कर, सिलाई करके या संगीत सुनते हुए अपना ध्यान उससे हटा सकते हैं।”
मीडिया के तूफान से बचें
डैनियल ने यह देखने के लिए तर्क और पुनर्मूल्यांकन करने का सुझाव दिया कि वो जोखिम जिससे वे डरते हैं, क्या वह वास्तविक है। लेकिन दोनों पेशेवरों ने सुझाव दिया कि मीडिया से बचना, चाहे वह टीवी हो, समाचार पत्र या सोशल मीडिया हो, उन लोगों के लिए बहुत सहायक हो सकता है, जिनकी बेचैनी आसानी से बढ़ जाती है।
लोगों को शांत रहने में मदद करने में सरकार भी भूमिका निभा सकती है।
डैनियल कहते हैं – “प्रशासन बैकअप योजनाओं से नागरिकों को आश्वस्त कर सकता है और आपातकालीन संपर्क जानकारियां साझा कर सकता है।”
नागेश पी. और उनका परिवार, 2015 की बाढ़ में फंस गए थे, जब उनके घर में पानी भर जाने के कारण सिर्फ एक मेज और चारपाई ही उनके लिए सूखा स्थान था। उनका मानना है कि जब ऐसी आपात स्थिति आती है तो सरकार बेहतर कर सकती है, जैसे कि बिजली न होने पर फोन पर वॉयस और टेक्स्ट संदेश भेजे जा सकते हैं।
उनकी पत्नी मंजुला कहती हैं – “मैं जानती हूँ कि बारिश और बाढ़ मेरे नियंत्रण से बाहर हैं। मैं वह तय कर लेती हूँ, जो मुझे बाढ़ की स्थिति में करना चाहिए यानि चिंता न करने की कोशिश करना।”
तैयारी की शक्ति को अपनाना
तैयारी एक और सशक्त उपकरण हो सकता है।
अलमारियों को साफ करके वस्तुओं को नुकसान की पहुँच से दूर करना, तैयार होने की स्थिति महसूस करा सकता है और नियंत्रण की भावना पैदा कर सकता है। कुछ लोगों के लिए एक दूसरा विकल्प, उन क्षेत्रों से दूर चले जाना है, जहां तूफान शुरु होने पर बाढ़ की संभावना ज्यादा होगा।
श्रीराम कहते हैं – “यदि आप निचले इलाके में रहते हैं, और जहाँ बाढ़ की संभावना है, तो आप एहतियात के तौर पर पहले ही दुसरे स्थान पर जा सकते हैं।”
परिशिष्ट भाग
गली में बारिश का पानी कर्पगम के पड़ोसी के साथ कई दिनों तक लुका छिपी करने के बाद, आखिरकार पानी उसके घर में घुस गया।
स्वाभाविक है कि बिजली गुल हो गई।
जहाँ दिन का समय गुजारना आसान था, वहीं रात में वहां एक भयानक ख़ामोशी छा जाती थी। लेकिन मानवता सामने आई और कई पड़ोसियों ने अंधेरे में शब्द-खेल के द्वारा और गाने तक गा कर, यह साबित किया कि समुदाय और मैत्रीपूर्ण पड़ोस भय और बेचैनी से निपटने का एक और शक्तिशाली उपकरण हो सकते हैं।
जेंसी सैमुअल चेन्नई में स्थित एक सिविल इंजीनियर और स्वतंत्र पत्रकार हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
यह पूर्वोत्तर राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां कई ऐसे स्थान हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए।