जलवायु कार्रवाई का लाभ उठाकर ग्रामीण गरीबों की मदद
यदि जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए विकेंद्रीकृत, समुदाय-केंद्रित कार्यक्रमों का उपयोग किया जाए, तो यह भारत के सबसे ज्यादा हाशिए पर रहने वाले ग्रामीण गरीबों के जीवन को बदल सकता है।
यदि जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए विकेंद्रीकृत, समुदाय-केंद्रित कार्यक्रमों का उपयोग किया जाए, तो यह भारत के सबसे ज्यादा हाशिए पर रहने वाले ग्रामीण गरीबों के जीवन को बदल सकता है।
ज्यादातर लोग सहमत हैं कि दुनिया को जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कदम उठाने की जरूरत है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि ऐसा करने से बेहद गरीबी में रहने वाले भारत के सबसे हाशिए पर रहने वाले ग्रामीण समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
लेकिन विकेंद्रीकरण इसकी कुंजी है।
स्थानीय तरीकों से जीवन के अनेक गुणवत्ता सूचकों में सुधार किया जा सकता है, जैसे कि आसपास का वातावरण, स्वास्थ्य और पोषण, कठिन परिश्रम में कमी, आय में वृद्धि, लैंगिक समानता, सहनशील समुदाय और पड़ोस में ही रोजगार के अवसर।
आइए, हाशिए के समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अपनाए गए कुछ सबसे जाने माने उपायों के वास्तविक, व्यावहारिक परिणामों के बारे में विचार करें। यदि स्थानीय स्तर पर और एकीकृत तरीके से लागू किया जाए, तो यह हो सकता है।
मौजूद पर्यावरण
सब जानते हैं कि दुनिया भर में सबसे गरीब ग्रामीण समुदाय, पहाड़ी और खराब स्थानों में रहते हैं।
भारत के आदिवासी समुदायों को परिभाषित करने वाले लोकप्रिय शब्द, केंद्रीय भारतीय आदिवासी पट्टी (सेंट्रल इंडियन ट्राइबल बेल्ट) को ले लीजिए। पानी की सूखी धाराएं, पेड़ों का पतला आवरण, कम हो गई जंगली प्रजातियों की विविधता, धूल भरी आंधी और मिट्टी का बहुत ज्यादा कटाव इन बस्तियों की सामान्य विशेषताओं में से हैं। सूखे और बढ़ी हुई गर्मी ने इन समुदायों के हालात को और ज्यादा खराब कर दिया है।
लेकिन यदि इन भूदृश्यों को राहत उपायों के द्वारा व्यापक रूप से ठीक किया जाता – जैसे कि बेहतर और विविध वृक्षों का आवरण, सुधारे गए घास के मैदान, मिट्टी संरक्षण गतिविधियाँ, भूमि स्थिरीकरण, जल श्रोतों का पुनरुद्धार और बेहतर कचरा प्रबंधन – तो वे फिर से जीवंत हो सकते थे और सबसे गरीब समुदायों के लिए ज्यादा रहने योग्य और उपयोगी बन सकते थे।
यदि यह बदलाव हो जाते, तो हो सकता है आने वाली पीढ़ियां भीड़-भाड़ वाले शहरों में जाकर रहने की बजाय इन ताज़गी भरी बस्तियों में रहना चाहती?
स्वास्थ्य और पोषण
जलवायु परिवर्तन को कम करने का एक और तरीका है, कृषि भूमि को बेहतर और ज्यादा टिकाऊ तरीके से इस्तेमाल करते हुए फसल विविधता का।
कुपोषण दूरदराज के समुदायों में सबसे ज्यादा स्थाई विकास-चुनौतियों में से एक है। कुछ हद तक यह एकल-फसल, खतरनाक रसायनों के अंधाधुंध उपयोग और फसल प्रणालियों से गायब हो रहे बाजरे के कारण है, जो अब सबसे सुदूर गांवों में भी आम बात है।
लेकिन विविध प्रकार के पौष्टिक भोजन, जो स्थानीय खेतों में टिकाऊ तरीकों का उपयोग करके उगाए जाते हैं, लोगों के पोषण और स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं। रसायनों के बिना पैदा किया प्राकृतिक भोजन कई जानलेवा बीमारियों के जोखिम को भी कम कर सकता है। बाजरे के स्थानीय तौर पर उत्पादन और खपत से माताओं और बच्चों के आहार और स्वास्थ्य में सुधार होता है।
बेहतर पोषण की पशुओं को भी जरूरत होती है। डेयरी पशुओं के चारा प्रबंधन में सुधार से, मीथेन गैस का उत्सर्जन तो कम होता ही है, दूध उत्पादकता में सुधार भी होता है। इसका मतलब है कि लोगों के लिए ज्यादा दूध उपलब्ध है, जो कुपोषित समुदायों के लिए पोषक तत्वों का एक महत्वपूर्ण स्रोत प्रदान करता है।
कठोर परिश्रम में कमी
अपनी फसलों की सिंचाई के लिए अंधेरी रातों में किसानों का काम करना पूरे भारत में आम बात है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि उनमें से बड़ी संख्या बिजली ग्रिड की अविश्वसनीय बिजली आपूर्ति की दया पर निर्भर है और अक्सर डीजल पंपों पर निर्भर रहती है।
छोटे जलाशय सिंचाई, मछली पकड़ने और मनोरंजन के लिए पानी के उपयोग से गांवों को लाभ पहुंचाते हैं, जैसा कि इस गुजराती गांव में होता है (छायाकार – नवीन पाटीदार)
यह अस्थिर बिजली आपूर्ति और पानी के पंपों को चलाने के लिए तेल की व्यवस्था, जो अक्सर ख़राब हो जाती है, कृषक समुदायों के लिए कठोर परिश्रम का कारण बनती है।
यदि इन पंपों की जगह सौर ऊर्जा से चलने वाले सिंचाई पंप लगाए जाएं, तो यह न सिर्फ बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम करने में, बल्कि किसान के कठिन परिश्रम को कम करने में भी मदद करेगा।
लैंगिक समानता
प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास के कारण ग्रामीण महिलाओं ने बहुत तकलीफ सही है। हाल के वर्षों में, कृषि में काम करने वाली महिलाओं में भी भारी वृद्धि हुई है, जिसका मतलब है कि वे घरेलू और खेती के कामों के दोहरे बोझ तले दबी हैं।
महिलाओं को ईंधन की लकड़ी, पानी और घास इकट्ठा करने में काफी समय लगाना पड़ता है। खाना पकाने के पारम्परिक चूल्हों से निकलने वाला धुआं उनकी आंखों और फेफड़ों को प्रभावित करता है।
मध्य भारतीय आदिवासी बेल्ट के एक हिस्से, पश्चिमी मध्य प्रदेश की तरह, खराब जमीन का पुनरुद्धार, जलवायु और सामाजिक आर्थिक लचीलापन बढ़ा सकता है (छायाकार – नवीन पाटीदार)
प्राकृतिक संसाधनों का पुनरुद्धार महिलाओं के लिए कठिन परिश्रम में कमी कर सकता है, जबकि प्रकाश व्यवस्था मात्र से आगे सौर ऊर्जा का उपयोग, ग्रामीण महिलाओं के लिए नए आर्थिक अवसर पैदा कर सकता है।
व्यक्तिगत आय और सामुदायिक भावना पर तुरंत प्रभाव
इस तरह के बदलावों के साथ-साथ दूसरे विचार, जैसे सौर कोल्ड स्टोरेज, ज्यादा आईटी और यहां तक कि किसी इलाके में पर्यावरण-पर्यटन को आमंत्रित करना, ग्रामीण समुदायों, विशेष रूप से युवाओं के लिए आजीविका के ज्यादा अवसर प्रदान कर सकता है।
जलवायु परिवर्तन कम करने वाली ये गतिविधियाँ भी सामुदायिक भावना को पुनर्जीवित करने का एक शानदार तरीका हो सकती हैं, क्योंकि लोगों को पहल करने के समय योजना बनाने, उन्हें लागू करने और झगड़ों को निपटाने के लिए एक साथ आने की जरूरत होगी।
यदि हमें भारत के सबसे ज्यादा हाशिए पर रहने वाले लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है, तो एक दीर्घकालिक, एकीकृत, समुदाय-केंद्रित जलवायु परिवर्तन योजना की जरूरत है। एक कार्य योजना, जिसमें दूरदराज इलाकों में रहने वाले ग्रामीण समुदाय, महत्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों के लाभार्थी मात्र होने की बजाय परिवर्तन के संवाहक हो सकते हैं।
ऐसा करने से यह सुनिश्चित होगा कि ग्रामीण समुदायों में अनिश्चित भविष्य के लिए, आर्थिक और सामाजिक रूप से सहनशक्ति अधिक हो।
नवीन कुमार पाटीदार ‘आगा खान रूरल सपोर्ट प्रोग्राम (इंडिया)’ में चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हैं।
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