अपनी संस्कृति तराशती नागा जनजातियाँ
नागा गांवों के सलीके से तराशे लकड़ी के प्रवेश द्वार कभी पूर्वजों को प्रसन्न करते थे। आज जो थोड़े से बचे हैं, वे प्राचीन उम्मीदों और आकांक्षाओं के प्रतीक हैं। एक विरासत, जिसे कई कारीगर संरक्षित करने के इच्छुक हैं।
नागा गांवों के सलीके से तराशे लकड़ी के प्रवेश द्वार कभी पूर्वजों को प्रसन्न करते थे। आज जो थोड़े से बचे हैं, वे प्राचीन उम्मीदों और आकांक्षाओं के प्रतीक हैं। एक विरासत, जिसे कई कारीगर संरक्षित करने के इच्छुक हैं।
क्या गांव के द्वार गांव की सीमा से ज्यादा मायने रखते हैं? नागालैंड में रखते हैं।
तराशे हुए लकड़ी के डिजाइन केवल कलात्मक और आकर्षक ही नहीं हैं, उनके गहरे अर्थ हैं।
“प्रतीक चिन्ह” और “ब्रांडिंग” शब्दों के शब्दकोष में आने से बहुत पहले, नागालैंड के आदिवासी ग्रामीण अपने पूर्वजों को खुश करने के एक तरीके के रूप में, आबादी, परिपूर्णता और शक्ति के तराशे गए प्रतीकों से अपने क्षेत्र की ब्रांडिंग कर रहे थे।
कोहिमा गाँव में लकड़ी का विशाल द्वार, 78-वर्षीय मेगुओ मेचुल्हो के चेहरे पर हर बार एक मुस्कान ला देता है। उनके लिए द्वार की मूलभूत नक्काशी नागालैंड की समृद्ध संस्कृति को दर्शाती है।
मेचुल्हो, जो एक किसान हैं, कहते हैं – “कोई नई बस्ती बसाते समय, हमारे पूर्वजों ने अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गांव के बाहर ऐसे द्वार बनाए।”
नागालैंड में गांवों के प्रवेश और निकास पर बहुत से नक्काशीदार द्वार पाए जाते हैं, जो आमतौर पर अंगामी और चाखेसांग जनजातियों द्वारा बनाए गए हैं।
तराशी गुप्त-भाषा को समझना
ऊपर कई सिर दर्शाते हैं कि गांव में बहुत से निवासी रहते हैं, जबकि भाले के साथ खड़े एक योद्धा की आकृति मार्गदर्शक व्यक्ति की द्योतक है। गोल आकार सूर्य और चंद्रमा को दर्शाते हैं।
मेचुल्हो बताते हैं – “सांड का सिर पशुओं के स्वास्थ्य का प्रतीक है। दो उभरी हुई आकृतियां दर्शाती हैं कि गांव में बहुत सारी स्तनपान कराने वाली माताएं होनी चाहिए। धान और भैंस की आकृतियां गांव में भरपूर भोजन और पशुधन की उपस्थिति का प्रतीक हैं।”
मेचुल्हो के अनुसार, कोहिमा का द्वार कोहिमा जिले के सबसे पुराने द्वारों में से एक है, जो मूल दरवाजे को नुकसान पहुँचने के बाद, 1969 में बनाई गई नक़ल है।
हालांकि राज्य सरकार नागालैंड में कला और संस्कृति को बहाल करने का दावा करती है, लेकिन अधिकारियों के अनुसार इन द्वारों का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है। माना जाता है कि यह प्रथा 18वीं शताब्दी में शुरू हुई थी।
राज्य के कला और संस्कृति निदेशालय की निदेशक, एडेला मोआ कहती हैं – “जब भी हमें टूटे हुए दरवाजे मिलते हैं, हम उनकी मरम्मत करते हैं। लेकिन धन की कमी एक बाधा है। लोग संस्कृति को जीवित रखने के लिए अब भी उनका निर्माण करते हैं, लेकिन लोहा लकड़ी की जगह ले रहा है।”
सांस्कृतिक जिज्ञासाओं से जुड़ना
बदलते समय के साथ, इन पुराने दरवाजों को तराशने की प्रथा कम हुई है। लेकिन लोगों का अपनी परम्पराओं से अब भी एक मजबूत जुड़ाव है और बहुत से लोग उन्हें संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
युवा कारीगरों को प्रशिक्षण देने के लिए, ‘द आर्ट विलेज’ (कला ग्राम) चलाने वाली 31-वर्षीय म्हाओ आरोन ओड्यूओ कहती हैं – “हमारा समाज द्वारों को पवित्र मानता है। ये द्वार विरोधियों के प्रवेश को रोकने के लिए रणनीतिक रूप से गांवों के प्रवेश और निकास पर बनाए जाते थे, क्योंकि नागा एक योद्धा जनजाति हैं।”
ओड्यूओ का कहना था कि द्वारों से जुड़े ओर भी जिज्ञासापूर्ण रीति-रिवाज थे, जैसे कि बिजली की चपेट में आए पेड़ से लकड़ी का इस्तेमाल वर्जित था। अंतिम संस्कार के जुलूस के समय अब भी द्वारों का सम्मान रखा जाता है।
वह कहती हैं – “मृतकों को ले जाने के लिए, एक अलग रास्ता लिया जाता है, क्योंकि सम्मान के प्रतीक के रूप में शवों को द्वारों से हो कर ले जाने की अनुमति नहीं है।
नक्काशीदार संस्कृति का संरक्षण
कोहिमा के 34-वर्षीय डोक्युमेंट्री फिल्म निर्माता, टाइटस अंगामी इस कला के संरक्षण के लिए, 15 युवाओं के साथ काम कर रहे हैं।
वह कहते हैं – “हमने इस साल जनवरी में मरम्मत का काम शुरू किया और अब तक दो दरवाजों की मरम्मत हो चुकी है। उनके मूल डिज़ाइन को नुकसान पहुँचाए बिना, उनकी मरम्मत करने में बहुत समय और मेहनत लगती है।”
उनका कहना था कि ग्रामीण इनकी संरचना को लेकर अंधविश्वासी हैं और शुरू में बुजुर्गों ने मरम्मत के लिए छेनी और हथौड़े के इस्तेमाल का विरोध किया।
“ग्रामीण कई पुरानी मान्यताओं पर कायम हैं। उन्होंने हमारे पूर्वजों के कोप के डर से, हमें सख्ती से धान के मौसम में काम नहीं करने के लिए कहा। इसलिए हमने जनवरी से मार्च तक काम किया।”
44-वर्षीय कोहिमा स्थित कारीगर, रोकोवार विहीनूओ भी छोटे-छोटे स्मृति चिन्ह और कलाकृतियां बनाकर कला को संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। वह कहते हैं – “उद्देश्य बाहरी लोगों को हमारी समृद्ध विरासत और संस्कृति के बारे में बताना है। यह पर्यटन को भी बढ़ावा दे सकता है और धन ला सकता है।”
यहां तक कि युवा कारीगर भी द्वारों में मिलने वाले डिजाइनों से शो पीस बना रहे हैं।
27-वर्षीय कारीगर, विकुओलेली केदित्सु कहते हैं – “इन कलाकृतियों की नागालैंड के भीतर और बाहर अब भी भारी मांग है।”
अपनी परम्परा को जारी रखने के लिए, ग्रामीण अपने घरों के सामने द्वारों की नक़ल भी लगाते रहे हैं।
“किकी” गृह-सींग अर्जित करना पड़ता है
द्वारों के अलावा, ग्रामीण अपने घरों के ऊपर सांड के सींग जैसी संरचनाएं लगाते हैं, जिन्हें यहाँ “किकी” कहा जाता है। यह एक गर्व की बात होती है और इसे अर्जित करना पड़ता है।
विहीनूओ कहते हैं – “जिसे किकी चाहिए, उसे पूरे गाँव को भोजन कराना पड़ता है। लेकिन हर कोई पूरे गाँव को भोजन नहीं करा सकता।”
48-वर्षीय अनुभवी कारीगर, लानू पोंगेन, जिनकी कला इंग्लैंड के कैम्ब्रिज संग्रहालय में प्रदर्शित है, का कहना था कि सरकार को कारीगरों के उत्थान के लिए और ज्यादा प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कला को संरक्षित करना है, तो कला और आधुनिक समय के कारीगरों का सहयोग करना महत्वपूर्ण है।
पोंगेन कहते हैं – “घंटों की कड़ी मेहनत के बाद भी कारीगर की कमाई काफी नहीं होती है। उन्हें पीठ और आंखों की समस्या को सहना पड़ता है। और कम फायदे के कारण युवाओं में रुचि घट रही है। संस्कृति तभी जीवित रहेगी, जब कारीगर आर्थिक रूप से टिकाऊ जीवन जी सकेंगे।”
गुरविंदर सिंह कोलकाता-स्थित पत्रकार हैं।
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