लॉकडाउन में सामाजिक उद्यम को बनाए रखना

हाशिये पर जीवन जीने वाली आदिवासी महिलाओं को लेकर, भोजन परोसने के पर्यावरण-अनुकूल बर्तन बनाने वाली एक कंपनी, लॉकडाउन के समय में उनकी आजीविका बनाए रखने के लिए, आर्थिक सहायता के अलग-अलग तरीके अपनाती है।

COVID-19 लॉकडाउन और अवरोध सभी के लिए कठिन थे। हम में से कुछ के लिए, यह नुकसान सिर्फ काम के स्वरूप के तौर पर और घर में ही रहने की ऊब के रूप में था। बड़ी संख्या में लोगों के लिए, इसमें रोजगार और आमदनी का नुकसान और उसके कारण हुई तकलीफ शामिल थी।

और गरीब लोगों की आय बढ़ाने की कोशिश में लगे अच्छे इंसानों के लिए, इसकी मार दोहरी थी: न सिर्फ उनके ग्राहकों को झेलना पड़ा, बल्कि उनकी स्वयं की आय का नुकसान भी हुआ। उनमें से कुछ ने कैसे इसका मुकाबला किया, यहां इसकी जानकारी प्रस्तुत है। 

‘तमुल प्लेट्स मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड’ (TPMPL) असम के बारपेटा में स्थित एक सामाजिक उद्यम है। यह उद्यम उन लोगों के लाभ के लिए सुपारी की छाल से डिस्पोजेबल डिनर, नाश्ता प्लेटें और कटोरियां बनाता और प्रोत्साहित करता है, जो स्वादिष्ट भोजन का आनंद प्रदान करने के साथ, पर्यावरण की रक्षा के लिए भी योगदान देना चाहते हैं।

TPMPL ने एक बहुत ही असामान्य सामाजिक उद्यम के प्रारूप में काम किया है। यह पंजीकृत तो एक लाभकारी कंपनी के रूप में है, लेकिन यह मुख्य रूप से गरीब बोडो, राभा और अन्य आदिवासी परिवारों को, एक ऐसे संसाधन के इस्तेमाल से अपनी आय बढ़ाने में मदद करता है, जिसके इस्तेमाल के लिए अब तक कोई प्रतिस्पर्धा नहीं थी।

टीपीएमपीएल ने काम करने के दो अलग-अलग मॉडल विकसित किए हैं। पहले मॉडल में, बोडो आदिवासी तमूल पत्ता (सुपारी के पेड़ों द्वारा छोड़ी गई छाल) को इकट्ठा करते हैं, उन्हें साफ करते हैं और कंपनी की केंद्रीय निर्माण सुविधा को सौंपने के लिए उन्हें स्टोर करते हैं।

ने सुपारी पेड़ की छाल खरीदना और पर्यावरण के अनुकूल टेबलवेयर (भोजन के लिए बर्तन) का उत्पादन जारी रखा (फोटो – TPMPL के सौजन्य से)

दूसरे मॉडल में, उनके द्वारा अच्छी तरह प्रशिक्षित 30 महिलाएं न सिर्फ अपने आसपास के इलाके की सुपारी पेड़ की छाल इकट्ठा करती हैं, बल्कि कंपनी द्वारा उन्हें दी गई व्यक्तिगत मशीनों पर उच्च गुणवत्ता वाले भोजन परोसने के बर्तन भी बनाती हैं।

कई और महिलाएं भी हैं, जो जरूरी नहीं कि किसी समूह में हों, उनके लिए प्लेट बनाने के लिए प्रशिक्षित हैं। ऊपर की गतिविधियों में मुख्य काम यह हैं कि कंपनी अपनी निर्माण सुविधा से या फिर इन महिलाओं से डिनरवेयर लेती है, गुणवत्ता का आंकलन करती है, पैक करती है और उन्हें बेच देती है। 

(पढ़ें: पर्यावरण-अनुकूल बनी तमूल प्लेटों ने महिलाओं के जीवन में कैसे बदलाव किया)

चुनौतियों के बीच काम

TPMPL ने देश में होटल-रेस्तरां-कैटरिंग (HORECA) वर्ग के अलावा, ऑस्ट्रेलिया और पश्चिमी देशों के निर्यात बाजारों में जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत की थी।

2019 तक सब कुछ अच्छा चल रहा था। उस साल, TPMPL ने व्यवसाय को ज्यादा व्यापक बनाने पर अपनी नजरें टिकाई थी। बाजार में जगह बनाने के लिए, उन्होंने दक्षिण भारत से तैयार माल मंगवाया, उसकी फिर से ब्रांडिंग की और उन्हें निर्यात कर दिया। इस प्रक्रिया में उन्हें नुकसान हुआ। एक फरिश्ता निवेशक TPMPL के व्यवसाय प्रसार में 2.5 करोड़ रुपये का निवेश करने पर सहमत था और जब समझौते पर दस्तख़त होने ही वाले थे, कि COVID​​-19 शुरू हो गई और मार्च 2020 के अंत तक देश में लॉकडाउन हो गया।

न सिर्फ फरिश्ता-निवेश अटक गया, बल्कि लॉकडाउन के कारण TPMPL को भारी समस्या का सामना करना पड़ा। एक सामाजिक उद्यम होने के नाते, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध था कि न तो तमूल-छाल इकठ्ठा करने वाले गरीब बोडो को और न ही किसी कर्मचारी या विकेंद्रीकृत निर्माण इकाई की किसी महिला को नुकसान हो। या ऐसा कहें कि छह सप्ताह से ज्यादा समय तक लॉकडाउन और सभी व्यवसायों के ठप होने के कारण पहुंची चोट को देखते हुए, उनके नुकसान को कम से कम किया गया था।

केंद्रीय उत्पादन इकाई के सभी कर्मचारियों ने लॉकडाउन में काम करना जारी रखा (फोटो – TPMPL के सौजन्य से)

एक भी कर्मचारी को जाने नहीं दिया गया। TPMPL ने छाल इकठ्ठा करने वालों को तमूल छाल इकठ्ठा करते रहने और विकेंद्रीकृत महिला उत्पादकों को उत्पादन जारी रखने के लिए कहा। कंपनी ने तब तक तैयार माल स्टॉक करना जारी रखा, जब तक कि गोदाम और शीर्ष अधिकारियों के घर में उपलब्ध स्थान तैयार माल के स्टॉक से भर नहीं गए।

बहुआयामी वित्तीय प्रबंधन

लेकिन, 2019 में व्यवसाय में पहले से ही आ रहे कुछ वित्तीय संकट में फंसने और व्यवसाय के पूरी तरह रुक जाने के कारण, इन ऊंचे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए उनके स्वयं के पास नकदी की उपलब्धता निराशाजनक रूप से अपर्याप्त थी। तो वे इससे कैसे निपटे?

उन्होंने सबसे पहला काम यह किया कि तीन मुख्य प्रबंधकों ने वेतन लेना बंद कर दिया। अपना घर चलाने के लिए, उन्होंने विकास क्षेत्र में जो काम वे कर सकते थे, ढूंढे और किए।

उन्होंने जन सहयोग (क्राउड-फंडिंग) के मंच, केट्टो (Ketto) का उपयोग करके, रिटेल फंडिंग के माध्यम से पैसा जुटाया और छोटे दानदाताओं से लगभग 25 लाख रुपये इकठ्ठा किए। उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई खरीदार को भी गरीब आदिवासी महिलाओं की मदद के लिए उन्हें ज्यादा अग्रिम भुगतान देने के लिए राजी किया। TPMPL के साथ पिछले बेहतरीन अनुभव और गरीब उत्पादकों को लगे झटके की गंभीरता, दोनों को देखते हुए खरीदार सहमत हो गए।

और TPMPL ने अपनी मूल संस्था, ‘धृति’ को उसके प्राप्त हुए कुछ अनुदानों को ब्याज रहित ऋण के रूप में देने के लिए राजी किया। TPMPL को सामाजिक रूप से जागरूक यूएस-स्थित निवेशक, ‘उपाया सोशल वेंचर्स’ से भी समय पर वित्तीय सहायता मिली, जिसने कंप;नी को कम ब्याज पर ऐसा ऋण दिया, जिसका भुगतान अर्थव्यवस्था के खुलने पर, TPMPL की आय में से अनुपातिक रूप से किया जाना था।

कंपनी को बचाए रखना

मई में जब लॉकडाउन हटा लिया गया और अर्थव्यवस्था वापस सामान्य होने लगी, तो TPMPL टीम ने पाया कि वे कुछ सामान बेच सकते हैं और अपना बकाया चुका सकते हैं। उनका 2020-21 के वित्त-वर्ष का व्यवसाय पिछले साल के मुकाबले बहुत ज्यादा कम नहीं हुआ था, और असल में प्रबंधकों को वेतन का भुगतान न करने के कारण, थोड़ा लाभ ही दर्ज किया गया था।

उन्होंने यह भी पाया कि HORECA (होटल-रेस्टोरेंट-कैटरिंग) उद्योग के बहुत से ग्राहक, COVID-19 के कारण दोबारा इस्तेमाल किए जाने वाले बर्तनों से सुरक्षा को लेकर आशंकित थे, और उनमें तमूल की प्लेटों के उपयोग के कारण इनकी सेवाओं के प्रति भारी स्वीकार्यता थी।

जैसे ही व्यापार में तेजी आनी शुरू हुई और प्रबंधन अधिकारीयों ने सोचा कि वे फिर से अपना वेतन लेना शुरू कर सकते हैं, तो अप्रैल 2021 की दूसरी लहर आ गई। वे फिर से मुश्किल में पड़ गए। दुर्भाग्य से, प्रबंधन टीम के लोगों को दूसरी लहर में अपने परिवार के सदस्यों को खोने की दुखद घटनाओं का सामना करना पड़ा और इसलिए उन्हें काफी समय तक काम से दूर रहना पड़ा।

उन्हें पहले ही एक साल से वेतन नहीं मिला था और उनकी जमा पूँजी भी अपना घर चलाने में ख़त्म हो गई थी। कार्यों को जारी रखने की उनकी गहरी इच्छा को एक गंभीर व्यक्तिगत चुनौती का सामना करना पड़ रहा था। यदि कंपनी को चलाना था, तो टीम को व्यक्तिगत और पारिवारिक रूप से व्यवहार्य होना जरूरी था।

उन्होंने जितना हो सकता था, प्रशिक्षित कर्मचारियों को काम सौंपकर, कंपनी को सिर्फ खास सेवाएं प्रदान करके और अपने शरीर और मन एक साथ रखने में मदद करने वाले कार्यों के द्वारा काम चलाया।

महिलाओं को सुपारी-छाल के बर्तनों का उत्पादन जारी रखने में मदद करने के लिए, प्रबंधन टीम ने धन जुटाने की विभिन्न रणनीतियाँ अपनाई (फोटो – TPMPL के सौजन्य से)

प्रबंधन टीम अब तक डटी हुई है और अच्छे और नेक लोगों ने उनकी मदद की है। जैसे कि पुरानी कहावत है, ‘जहां चाह, वहां राह’। यदि आप उन गरीब परिवारों की कमाई बचाने के लिए कष्ट उठाते हैं और त्याग करते हैं, जिनकी आजीविका बढ़ाने के लिए आप निकले हैं, तो अच्छे लोग आपकी मदद करने के लिए आगे आएंगे। लेकिन इसमें एक संघर्ष है और जैसे कि एक अभिव्यक्ति है, कि यदि आप एक अच्छे रसोइये हैं, तो आप रसोई में ही रहेंगे, चाहे वह कितनी भी गर्म हो जाए।

संजीव फणसळकर ‘विकास अण्वेष फाउंडेशन’, पुणे के निदेशक हैं। वह  ग्रामीण प्रबंधन संस्थान आणंद (IRMA) में प्रोफेसर रहे हैं। फणसळकर भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद से एक फेलो हैं।