कलेर डाबी – एक आदर्श ‘बदलाव दीदी’
कलेर डाबी ने बदलाव दीदी के रूप में, कल्याण योजनाओं का लाभ ग्रामीण वंचित वर्ग तक प्रभावी रूप से पहुंचा कर एक अनुकरणीय मिसाल स्थापित की है।
कलेर डाबी ने बदलाव दीदी के रूप में, कल्याण योजनाओं का लाभ ग्रामीण वंचित वर्ग तक प्रभावी रूप से पहुंचा कर एक अनुकरणीय मिसाल स्थापित की है।
‘बदलाव दीदी’ की भूमिका सरकार की कल्याण योजनाओं, संविधान, पंचायती राज व्यवस्था, ग्रामसभा, मतदाता और नागरिकता के सम्बन्ध में जागरूकता पैदा करना है। वह ग्राम संगठन, सहयोगी संस्थाओं और सरकारी विभाग के साथ तालमेल बैठाते हुए, ग्रामीण वंचित वर्ग के लिए कल्याण प्रयासों की सफलता सुनिश्चित करती है।
कलेर डाबी झाबुआ जिले की तहसील थांदला से लगभग 15 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत कोटडा की रहने वाली हैं। लगभग 2200 आबादी वाले इस गांव में लगभग 750 परिवार रहते हैं और सभी भील जाति से सम्बन्ध रखते हैं। इनमें 70 प्रतिशत परिवार मजदूरी करते हैं तथा 30 प्रतिशत खेती करते है।
कलेर डाबी पिछले 6 साल से ग्राम संगठन में जुड़ी हैंl ग्राम संगठन से जुड़ने के बाद से, ऋण लेकर अपनी आजीविका बेहतर बनाने के साथ-साथ, समाज विकास के लिये भी निरंतर प्रयासरत हैं। इनका मुख्य उद्देश्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ पात्र हितग्राहियों तक पहुंचाना है।
2018 में ‘समर्थन’ एवं ट्रांसफार्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF) नामक संस्थाएं ग्राम संगठन के साथ जुड़ीl इन्होने 6 महिलाओं का चयन किया और उनको नाम दिया ‘बदलाव दीदी’। इन्हें प्रशिक्षणों के माध्यम से सरकार द्वारा चलायी जा रही जन कल्याणकारी योजनाओं, पंचायती राज व्यवस्था, ग्रामसभा, संविधान, मतदाता और नागरिकता के बारे में जानकारी दी गई।
योजनाओं के प्रभावी संचालन के लिए, बदलाव दीदियों ने, कलेर डाबी के नेतृत्व में निम्नलिखित कदम उठाए –
इनके प्रयास से गाँव के 42 व्यक्तियों को पेंशन, 118 आयुष्मान कार्ड बनवाने, 13 किसानों को किसान सम्मान निधि, 4 परिवारों को राशनपर्ची और 16 नए जॉब कार्ड बनवाने में सफलता मिली।
पहले कोटडा गांव में राशन वितरण माह में एक दिन किया जाता था। कलेर डाबी के नेतृत्व में ग्राम संगठन की महिलाओं के निरंतर प्रयास से अब राशन वितरण कार्यक्रम सप्ताह में एक दिन होने लगा है, जो ग्रामवासियों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है।
इसके अतिरिक्त, जब कोरोना महामारी के दौरान लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था, तब कलेर डाबी के नेतृत्व में सरपंच और सचिव से मनरेगा के कार्यों के लिए प्रयास किए गए। इसके परिणामस्वरूप, कोरोना के नियमों का पालन करते हुए पंचायत द्वारा तालाब निर्माण का कार्य शुरू करवाया गया l
यह काम पहले ट्रेक्टर एवं जेसीबी के द्वारा करवाया जा रहा था। समुदाय एवं ग्राम संगठन की महिलाओं के साथ मिलकर इसका विरोध किया गया। इससे ट्रेक्टर एवं जेसीबी की जगह समुदाय के माध्यम से तालाब का काम पूरा किया गया।
इस प्रकार कोटड़ा गांव उचित हितग्राहियों तक कल्याणकारी योजनाओं के लाभ और ग्रामवासियों की समस्याओं के सामूहिक प्रयास से निदान का एक मॉडल बन गया है। झाबुआ के दूरदराज के गांव में आदिवासी समुदाय के लिए यह उपलब्धि और भी उल्लेखनीय है।
कलेर डाबी कहती हैं – “ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की दिनचर्या घर के कार्यों से शुरू होकर,घर के कार्यों पर ही समाप्त हो जाती है। इसीलिए मैं उन सभी महिलाओं को आवहान करना चाहती हूँ कि वे आगे आयें और घर के साथ-साथ बाहरी व्यवस्थाओं के बारे में भी जाने, जिससे वह स्वयं, परिवार और समुदाय को शासन की योजनाओ का लाभ दिलाने में भूमिका निभा सके।”
गार्गी देशमुख भोपाल स्थित ‘समर्थन’ (Centre for Development Support) में मानव संसाधन एवं प्रशासन विभाग में सहायक प्रबंधक हैं।
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