मैंने खेती शुरू करने के लिए, 10,000 रुपये सालाना पट्टे पर 2.5 एकड़ जमीन ली। दयालु जमींदार ने मुझे साल के अंत में भुगतान करने की छूट दे दी।
अकेले खेती करना बहुत मुश्किल था, लेकिन मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था।
कई बार मुझे जमीन जोतने के लिए मजदूर नहीं मिलते थे। इसलिए मैंने अपने गहने बेच दिए और खेती जारी रखने के लिए एक मोटर से चलने वाला जुताई यंत्र खरीद लिया। यह मुश्किल था, लेकिन मैंने इसे चलाना सीख लिया।
अब मैं खेती से कमाई करती हूँ और दूसरों पर निर्भर नहीं हूँ।
मैं जुताई करती हूँ, कीटनाशकों का छिड़काव करती हूँ, बुआई करती हूँ और कटाई करती हूँ। मैं कटी हुई सब्जियों को अपनी साइकिल से बाजार ले जाती हूँ।
जिन पुरुष किसानों ने मुझ पर शुरू में ताने कसे थे, अब मेरा सम्मान करते हैं। मुझे खुशी है कि खेती की बदौलत मेरे लिए हालात बदल गए हैं।
मुझे कोई पछतावा नहीं है। जहां नियति ने मुझसे बहुत कुछ छीन लिया, वहीं उसने मुझे बहुत कुछ दिया भी, खासतौर पर साहस और आत्मविश्वास।