अपने प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट होने देने की बजाय, असम के दो गाँव शिकार और पेड़ों की कटाई का काम छोड़कर, अपने वन आवास का संरक्षण कर रहे हैं। अपने गांवों के अब इको-टूरिज्म नक़्शे पर होने के साथ, वे वैकल्पिक आजीविका को अपना रहे हैं।
देखिये, कि ग्रामीण असम के नोतून लेइकोल और बोलजांग में, स्थानीय युवाओं की आजीविका में पर्यावरण आधारित पर्यटन ने कैसे योगदान दिया है।
असम का नोतून लेइकोल गांव प्राकृतिक सुंदरता से समृद्ध है, जिसमें हरे भरे पहाड़, चांदी-जैसे झरने, नारंगी बागान और सुन्दर प्राकृतिक परिवेश है।
दीमा हसाओ जिले के इस गाँव में लगभग 900 लोग रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर किसान हैं। वे कुकी जनजाति के हैं, जो परम्परागत रूप से शिकारी थे। वे लकड़ी के लिए जंगल के पेड़ों को भी काटते थे।
ग्राम प्रधान, लेटजहो सिंगसन कहते हैं – “हमारे पूर्वज अपनी आजीविका के लिए पारम्परिक रूप से शिकार और पेड़ काटते थे। हमने भी वैसा ही किया।”
लेकिन उनके शिकार और पेड़ों की कटाई के कारण धीरे-धीरे गाँव की प्राकृतिक संपत्ति नष्ट हो गई, जो युवा पीढ़ी को खतरनाक लगा, क्योंकि यह प्रकृति के लिए बहुत हानिकारक था।
इसकी बजाय उन्होंने अपने गाँव की प्राकृतिक सुंदरता को अपनाने और इसे आजीविका कमाने के तरीके में बदलने का फैसला किया।
युवाओं के नेतृत्व में असम के नोतून लेइकोल गांव का संरक्षण
लगभग एक दशक पहले, गांव के युवाओं ने गांव के बुजुर्गों से मुलाकात की और वन्य जीवन और पेड़ों को बचाने के महत्व के बारे में समझाया।
उनके प्रयासों ने 2014 में जड़ें जमा लीं, जब ग्राम प्रधान ने शिकार और वनों की कटाई को अवैध घोषित कर दिया।
युवाओं ने संरक्षण का काम शुरू किया, जिससे प्रकृति को जीवित रहने और फलने-फूलने का मौका मिला। पुनरुद्धार के लिए कदम उठाने के अलावा, युवा पीढ़ी ने अपने गांव की पर्यावरण आधारित पर्यटन क्षमता का पता लगाना भी शुरू कर दिया।
एक स्थानीय गाइड, जोशुआथांग्गिन सिंगसन, जिनका किराए पर दिया जाने वाला अपना एक घर भी है, कहते हैं – “हमने महसूस किया कि हमारे संतरे के बागानों के साथ-साथ, झरने और पहाड़, शहर के जीवन की गहमागहमी से राहत की तलाश में पर्यटकों को आकर्षित कर सकते हैं।”
ग्रामीण असम में पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा देना
युवा ग्रामवासियों ने क्षेत्र की सुंदरता को लोकप्रिय बनाने और पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करने का फैसला किया।
जोशुआथांग्गिन सिंगसन ने कहा – “हमने झरनों, गांव की तस्वीरों, बागानों और पहाड़ों की तस्वीरें डालना शुरू कर दिया। पहाड़ ट्रेकिंग के लिए पर्याप्त गुंजाइश प्रदान करता है।”
स्वाभाविक रूप से, सोशल मीडिया पर डाली जानकारी के कारण बहुत लोगों ने रुचि दिखाई और जल्द ही ग्रामीणों के पास पूछताछ संबंधी प्रश्न आने लगे।
पर्यावरण-पर्यटन: स्थानीय युवाओं के लिए एक वैकल्पिक आजीविका
गांव के एक युवा, हेनमिनलुन सिंगसन कहते हैं – “हमने संभावित आगंतुकों को नोतून लेइकोल में उपलब्ध होमस्टे (किराए पर रहने के लिए घर), पर्यटन स्थलों और स्थानीय व्यंजनों के बारे में जानकारी दी।”
उन्होंने कहा – “जल्द ही हमें ऐसे आगंतुक मिल गए, जिन्होंने वास्तव में ट्रेकिंग और झरनों का आनंद लिया और हमारे गांव की शांति और सौम्य सुंदरता का मजा लिया।”
इससे निश्चित रूप से, स्थानीय अर्थव्यवस्था को मदद मिली।
सभी आगंतुकों से न सिर्फ एक पंजीकरण शुल्क लिया जाता था, बल्कि कई ग्रामवासियों ने ठहरने और भोजन के लिए पर्यटकों के लिए अपने घर खोल दिए।
बस इतना ही नहीं।
हेनमिनलुन सिंगसन कहते हैं – “स्थानीय युवाओं को भी आजीविका मिली, क्योंकि वे गाइड के रूप में काम करने लगे और ट्रेकिंग मार्गों पर आगंतुकों के साथ भी जाने लगे।”
महामारी के समय कुटीर उद्योग को झटका लगने से पहले, सर्दियों में नोतून लेइकोल में लगभग 1,000 पर्यटक आए।
सौभाग्य से चीजें फिर से उज्जवल दिखने लगी हैं, क्योंकि पिछले दिसंबर में पर्यावरण-पर्यटन के लिए लगभग 400 लोग गांव आए थे।
बोलजंग: आजीविका के बिना एक सुदूर गांव
नोतून लेइकोल इस विचार को अपनाने वाला अकेला गांव नहीं है।
यहां से लगभग 30 किलोमीटर दूर, बोलजंग एक सुदूर लेकिन सुरम्य गाँव है, जो हरी-भरी पहाड़ियों और पहाड़ों के बीच आड़ी-तिरछी सड़कों से घिरा हुआ है।
बोलजांग में लगभग 300 लोग रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर छोटे किसान हैं, जो फलों और सब्जियों की खेती करते हैं।
लेकिन सार्वजनिक परिवहन दुर्लभ है और गांव तक पहुंचने के लिए निजी वाहनों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस डिजिटल युग में भी बोलजान में संपर्क खराब है। यह इतना ख़राब है कि ग्रामवासी आपस में खुशी और दुःख के समाचार देने के लिए चर्च की घंटी का इस्तेमाल करते हैं।
ग्रामवासियों ने सरकार से आजीविका के लिए मदद करने की गुहार लगाई। लेकिन उनकी गुहार अनसुनी हो गई। वे निराश तो हुए लेकिन विचलित नहीं हुए।
ग्राम प्रधान केसी सिंगसन कहते हैं – “तब हमने सरकार पर निर्भर रहने की बजाय खुद ही कुछ करने का फैसला किया।”
बोलजांग में पर्यावरण-पर्यटन आधारित आजीविका की शुरुआत
वर्ष 2014 में बोलजांग के ग्राम प्रधान ने इसे वन में बदलने की उम्मीद में, 20 एकड़ से ज्यादा बंजर भूमि में लगभग 40,000 पौधे लगाने का फैसला किया।
पेड़ न सिर्फ पर्यावरण-पर्यटन के लिए एक खूबसूरत आकर्षण होंगे और पर्यावरण तंत्र को समृद्ध बनाएँगे, बल्कि ध्यान से चुने गए पेड़ों की शाखाओं को आखिरकार औषधीय उद्देश्यों के लिए काटा जा सकेगा।
केसी सिंगसन ने कहा – “हमने पौधे खरीदने के लिए लगभग 50,000 रुपये की व्यवस्था कर ली। हमने नीम लगाया, जिसमें औषधीय गुण होते हैं। हमने सोचा कि जब पेड़ बड़े होंगे तो ग्रामवासी आजीविका कमा पाएंगे और साथ ही पर्यावरण-पर्यटन से कमाई कर पाएंगे।”
लगभग आठ साल बाद, बंजर भूमि अब ऊंचे पेड़ों का एक घना जंगल है।
एक ग्रामवासी, लेतसत सिमटे ने कहा – “पेड़ों की शाखाओं को औषधीय उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने में 6-7 साल लगेंगे।”
वह कहते हैं – “हम पहले ही पर्यावरण-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होमस्टे और गेस्ट हाउस बनाने की योजना बना रहे हैं। पेड़ हमारी विरासत हैं, जो हमेशा रहेंगे। यदि प्राकृतिक संपदा का सही इस्तेमाल हो, तो कोई भी गरीबी में नहीं रहेगा।”
मछलियों को पनपने और बढ़ने के लिए जगह प्रदान करने के लिए, ग्रामीण एक तालाब को ठीक करने का भी प्रयास कर रहे हैं।
नोतून लेइकोल के लेटजहो सिंगसन ने बताया – “हम बिलकुल नहीं जानते थे कि एक जंगल और जंगली जानवर पर्यटन और आय का स्रोत हो सकते हैं।”
आत्मा के लिए तृप्ति
पर्यावरण-पर्यटन के रूप में सिर्फ आजीविका प्रदान करने से ज्यादा, नया जंगल आत्मा को तृप्ति प्रदान करता है।
बोलजांग के लोग खुश हैं कि पेड़ वन्यजीवों को आकर्षित करते हैं, जिन्हें उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। बहुत से लोग नए जंगल से इतने खुश हैं, खासतौर पर बुजुर्ग ग्रामीण, कि वे कभी-कभी पेड़ों को गले भी लगा लेते हैं।
बंजर भूमि को जंगल में बदलने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हाखोथोंग सिंगसन को इस वन में सुबह की सैर करना पसंद है।
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा – “हम यहां पिछली कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। यह कुछ साल पहले तक बंजर भूमि हुआ करती थी। ऊँचे पेड़ हमें गर्मियों के कठोर मौसम से राहत देते हैं और यहाँ आने वाले पक्षियों के झुंडों को आश्रय देते हैं।”
अनुकरणीय पर्यावरण प्रयास
पर्यावरणविद इन दोनों गांवों की सराहना कर रहे हैं और उनका मानना है कि इस तरह के प्रयास पूरे देश में दोहराए जा सकते हैं।
कोलकाता स्थित पर्यावरणविद्, कुणाल देब कहते हैं – “यह वास्तव में प्रशंसनीय है कि ग्रामीण पर्यावरण को पर्यटन के माध्यम से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। निस्संदेह इसमें उनका निहित स्वार्थ है, लेकिन फिर भी यह वन्यजीवों और जैव विविधता के संरक्षण में मदद कर रहा है, जो जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।”
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