‘एक्सपोजर ट्रिप’ की शक्ति
चार साल पहले, कार्यक्रम अधिकारी, अंकिता गोयल आदिवासी महिलाओं के एक समूह की, गाँव से बाहर पहली यात्रा में उनके साथ गई थीं। उसे यह नहीं पता था कि यह "एक्सपोज़र विजिट" उसके लिए जीवन बदलने वाला अनुभव साबित होगी।
चार साल पहले, कार्यक्रम अधिकारी, अंकिता गोयल आदिवासी महिलाओं के एक समूह की, गाँव से बाहर पहली यात्रा में उनके साथ गई थीं। उसे यह नहीं पता था कि यह "एक्सपोज़र विजिट" उसके लिए जीवन बदलने वाला अनुभव साबित होगी।
यह कहानी विकास क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवर कार्यकर्ताओं पर, सीखने के उद्देश्य से की गई यात्राओं की ताकत के बारे में है।
हम दिसंबर के एक हल्की ठण्ड वाले दिन, एक बड़े वाहन में निकल पड़े। यह वर्ष 2018 था और मैं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के दूरदराज के गांवों की आदिवासी महिला किसानों के एक समूह के साथ, यात्रा पर जा रही थी, जो उनकी उनके जिले से बाहर पहली यात्रा थी।
असल में उनमें से ज्यादातर अपने गांव से बाहर पहली बार जा रही थी।
रेलगाड़ी की यात्रा से लेकर, पड़ोसी राज्य ओडिशा के अन्य गांवों में जाने तक, मैं महिलाओं की एक अलग तरीके से जीवन को अनुभव के लिए मिली, नई आज़ादी के प्रति प्रतिक्रिया से अभिभूत थी।
ऐसा लगा जैसे वे धीरे-धीरे अपनी नई मिली, समयबद्ध ही सही, स्वतंत्रता को स्वीकार कर रही थी, फिर उसे अपनाना शुरू कर रही थी, और आखिर में पूरे दिल से इसका जश्न मना रही थी।
मैं सोच रही थी कि कैसे मैंने स्वतंत्र रूप से यात्रा करने की अपनी क्षमता को हमेशा हल्के में लिया था।
एक महिला होने के नाते, मैं दूसरी महिलाओं के साथ एक मजबूत संबंध महसूस करती हूँ। मैं उन बाधाओं के बारे में जानती हूँ, जिन्हें मैं कई अनुकूल अवसरों के माध्यम से पार कर पाई, जिन्होंने मुझे, आज मैं जो हूँ, वो बनने में मार्ग प्रशस्त किया। लेकिन मैं भारत की राजधानी में रहने वाली एक शिक्षित, मध्यम वर्गीय महिला के रूप में अपने विशेषाधिकारों से भी अच्छी तरह वाकिफ हूँ।
इन मूलभूत अंतरों के बावजूद, मुझे इन महिलाओं के प्रति गहरी सहानुभूति और करुणा महसूस हुई। मुझे लगा कि मैं उन्हें और उनकी अधूरी आकांक्षाओं को समझ गई हूँ। क्या मेरे सपनों का उनके साथ घनिष्ठ संबंध नहीं था? मैंने स्वीकार किया कि हमारे परिणाम अलग होंगे, लेकिन हमारे सपने जुड़े हुए महसूस होते थे।
मैंने अपने जीवन में अब तक का सबसे अच्छा संगीत, अपने जीवन में पहली बार अपने गांव से बाहर आई इन महिलाओं से सुना, जो नई आशा और सपनों की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक के हमारे सफर में, अपने दिल के गीत गा रही थी। आज़ादी और जाँच-पड़ताल के उनके सुरीले आनंद ने, मुझे तब भी जकड़ लिया था और आज भी।
उनकी भाषा मेरी भाषा से बहुत कम मेल खा रही थी, लेकिन इससे हमारे संवाद में कोई बाधा नहीं आई। अनुभवों के एक ईमानदार आदान-प्रदान ने हमारे संबंध को गहरा और पोषित किया। हमने अपने जीवन की कहानियां सुनाईं और समानताएं और जुड़ाव तलाश किए।
हालांकि हम जिन सामाजिक संरचनाओं का हिस्सा थे, उनकी मूलभूत मान्यताएँ समान थीं, लेकिन जो हमारे जीवन को संचालित करती थीं, वह हमारी जाति की पहचान, हमारे परिवारों की शिक्षा, विकास के अवसर और इतना कुछ और भी, कि इसके लिए हमने समाज को दोष देना बेहतर समझा। हमने भिन्नताओं को स्वीकार किया और अपने नारीत्व के आधार पर बंध गए।
लेकिन असल में, हमने यात्रा पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर समझा, जो उनके लिए नए अवसरों और अकल्पनीय संभावनाओं को खोजने का ऐसा पहला मौका था, जो उन्हें सिर्फ उनकी सामाजिक सीमाओं में नहीं बांधता था। क्योंकि यह जाहिर था कि कैसे वे अपने जीवन के अनुभवों को व्यापक बनाने के लिए बाहरी चीजों पर बेहद निर्भर थी।
सबसे शक्तिशाली क्षण तब आया, जब हम एक महिला उत्पादक समूह से मिलने के लिए ओडिशा के कोरापुट जिले के एक सुदूर गाँव में गए, जो एक बाजरा प्रोसेसिंग इकाई का संचालन और प्रबंधन भी कर रहा था। हमने राजनांदगांव और कोरापुट के गांवों के बीच समानता के कारण, विशेष रूप से इस बैठक की योजना बनाई थी।
फिर भी हमें यह देख कर हैरानी हुई कि हमारी औपचारिक चर्चा समाप्त होने के बाद, दोनों समुदायों की महिलाओं ने नृत्य करना और गाना शुरू किया।
बस इतना ही नहीं।
यहां तक कि पुरुष और बच्चे भी अचानक शुरू हुए इस उत्सव में शामिल हो गए। किसी ने ढोल और किसी ने दूसरे वाद्ययंत्र बजाये, जो आदिवासियों के मूल वाद्य थे। फिर ओडिशा की महिलाएं छत्तीसगढ़ की महिलाओं को अपने घरों में ले गईं, उन्हें अपनी रसोई, बाजरा भंडारण के स्थान और अपनी सजावटी साज-सज्जा और चित्रकारी दिखाई। छत्तीसगढ़ की महिलाओं ने अपने मेजबानों को अपने गांवों में आने और उनसे मिलने के लिए आमंत्रित किया। कुछ ने फोन नंबरों का आदान-प्रदान भी किया।
महिलाओं के इन दो समूहों को एक एकीकृत पहचान बनाने के लिए सभी सीमाओं को पार करते हुए देखकर, मुझे बहुत खुशी हुई।
आज तक यह यात्रा मेरे दिल के करीब है, व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों तरह से।
एक युवा विकास पेशेवर के रूप में, इस यात्रा ने मुझे यह समझने में मदद की, कि यदि हम अपने और दूसरों के जीवन में परिवर्तन लाने की इच्छा रखते हैं, तो क्यों जेंडर को मुख्यधारा में लाने पर जोर देने की जरूरत है।
स्थानीय सरकार के कृषि विभाग द्वारा, महिला किसानों के लिए एक्सपोजर ट्रिप आयोजित करने का यह पहला मौका था। इसलिए कर्मचारियों या समुदाय के लिए, महिलाओं का ऐसी यात्रा पर जाने की कल्पना करना आसान नहीं था।
लेकिन इस प्रक्रिया के माध्यम से हम सभी ने जो सीखा, देखा और अनुभव किया, वह शिक्षाप्रद था। यह उस विचार का जीता जागता सबूत है, जो नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक, ‘डेवलपमेंट ऐज़ फ्रीडम’ में व्यक्त किया है – “(यह) स्वतंत्रता की वृद्धि है, जो लोगों को वह जीवन जीने की अनुमति देती है, जिसे जीने का उनके पास कारण है।”
वास्तव में, विकास का सार लोगों की स्वतंत्रता और उन्हें मिलने वाले अवसर, दोनों के विस्तार में निहित है।
अंकिता गोयल ‘ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन’ में राज्य कार्यक्रम अधिकारी (कृषि आधारित आजीविकाएं) हैं।
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