उत्तर प्रदेश के युवा जल-प्रचारक
एक युवा महिला को अपने काम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश के 22 गाँवों में स्वच्छ, सुरक्षित पानी उपलब्ध कराया और उन्हें दूषण से लड़ना सिखाया और यह संख्या बढ़ ही रही है।
एक युवा महिला को अपने काम के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश के 22 गाँवों में स्वच्छ, सुरक्षित पानी उपलब्ध कराया और उन्हें दूषण से लड़ना सिखाया और यह संख्या बढ़ ही रही है।
मिलिए, जल-प्रचारक रमनदीप कौर से
लोगों द्वारा पानी को बर्बाद करते हुए देखना, चाहे यह आसानी से उपलब्ध ही क्यों न हो, रमनदीप कौर को इतनी गहरी तकलीफ देता है कि वह चुप नहीं रह सकती।
कौर कहती हैं – “मैं पानी को पवित्र मानती हूँ और हमारे हर काम में इसकी भूमिका को पहचानती हूँ। जब मैं नल पर बर्तन या कपड़े धोते हुए पानी को चालू रखते हुए देखती हूँ, तो उन्हें इसे बर्बाद न करने के लिए कहती हूँ।”
पानी को दूषित या प्रदूषित होते देखना भी उन्हें उतना ही परेशान करता है।
वह केवल 29 वर्ष की हैं, लेकिन वह अपना जीवन लोगों को स्वच्छ पानी उपलब्ध कराने में मदद के लिए समर्पित कर रही हैं।
जुलाई 2021 में, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने कौर को उत्तर प्रदेश की 41 अन्य महिलाओं के साथ, ‘वाटर चैंपियन’ के रूप में सम्मानित किया।
ऐसा नहीं है कि लगभग तीन हजार की आबादी वाले कौर के गांव में पानी की कमी है।
असल में, लखीमपुर खीरी जिले की पलिया तहसील, हिमालय की तलहटी के तराई क्षेत्र में स्थित है। शारदा नदी का बेसिन, भूजल को समृद्ध करता है, जिसका न सिर्फ ग्रामीणों के पीने के लिए, बल्कि उनके खेतों को भी सींचने के लिए भी उपयोग किया जाता है।
प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद, लोगों द्वारा इस बहुमूल्य संसाधन को बर्बाद करने के दृश्यों ने कौर को एक जल प्रचारक बना दिया।
वह कहती हैं – “मैं पानी को जीवन के प्रदाता के रूप में देखती हूँ और इसका दुरुपयोग बर्दाश्त नहीं कर सकती।”
जो पड़ोसियों को पानी बर्बाद न करने के अनुरोध के रूप में शुरू हुआ, वह कौर के लिए एक अधिक नियोजित मिशन बन गया, जिससे उन्होंने अपने क्षेत्र में बेहतर जल प्रशासन के लिए अभियान चलाया।
अपने किसान पिता के सहयोग से, उन्होंने कम उम्र किशोरी के रूप में शादी करने के दबाव का विरोध किया।
उन्होंने एक प्राइवेट छात्र के रूप में एक स्थानीय कॉलेज में दाखिला ले लिया और सामाजिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की।
अपनी फीस का भुगतान खुद करने के लिए कौर, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले एक गैर सरकारी संगठन में काम करने के लिए रोजाना साइकिल से 14 कि.मी. जाती थी। इस काम से उन्हें शिक्षा के महत्व को समझने का मौका मिला, जिसका उपयोग बाद में उन्होंने ग्रामीणों के बीच अपने काम में किया।
2019 के शुरू में, कौर ऑक्सफैम की ‘ट्रांसबाउंड्री रिवर ऑफ साउथ एशिया’ (TROSA) परियोजना में शामिल हो गई। TROSA शारदा नदी बेसिन के सबसे गरीब समुदायों को गरीबी कम करने और उनके जल संसाधनों के प्रबंधन में मदद करती है।
TROSA ने पानी के मुद्दों पर काम करने के लिए, आजीविका के लिए शारदा नदी पर निर्भर समुदायों के साथ काम करने वाले गैर सरकारी संगठन, ‘ग्रामीण डेवलपमेंट सर्विसेज’ के साथ भागीदारी की।
दुर्भाग्य से जिले में भूजल में न सिर्फ जहरीले आर्सेनिक का स्तर ऊँचा है, बल्कि फ्लोराइड जैसे दूसरे दूषित करने वाले तत्व स्वीकार्य सीमा से ज्यादा पाए जाते हैं, जो ज्यादा मात्रा में होने पर लोगों को जीवन के लिए पंगु बना सकते हैं।
बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड के आसपास के छह गांवों में, त्वचा की बीमारियों, मवेशियों की अकाल मृत्यु और फसल के झुलसने के मामले सामने आए हैं।
फिर भी स्थानीय लोग पानी के दूषित होने पर चर्चा करने से कतराते हैं, क्योंकि उनमें से ज्यादातर गन्ना किसान हैं, जिनकी आजीविका चीनी मिलों पर निर्भर है।
लेकिन यह कौर को रोक नहीं सका।
कौर कहती हैं – “हमने घर-घर अभियान से शुरुआत की और महिलाओं को सुरक्षित पेयजल के महत्व को समझाया।”
यह कई कारणों से आसान नहीं था। पहला, पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं का घर से बाहर निकलना वर्जित है। लेकिन साथ ही ज्यादातर महिलाएं कभी स्कूल नहीं गई थी और वे 20 से आगे तक गिनती नहीं जानती थी। लखीमपुर खीरी की 48.39% की निराशाजनक साक्षरता दर का बदनुमा सूचक।
कौर ने कहा – “उनका जागरूकता का स्तर इतना कम था।”
लेकिन वह डटी रही और अंततः महिलाओं ने स्वच्छ पानी और इस महत्वपूर्ण संसाधन के बेहतर रखरखाव के महत्व को समझना शुरू कर दिया।
उन्होंने न सिर्फ महिलाओं को, बल्कि पूरे समुदाय को शिक्षित किया।
जल्दी ही कौर और उनकी टीम 40 किमी के दायरे में 20 और गाँवों के लोगों तक पहुंच गई।
प्रत्येक गाँव ने महिलाओं और पुरुषों, दोनों को शामिल करते हुए अपनी ‘जल सतर्कता समिति’ बनाई।
ये समितियां हर तीन महीने में एक बार बैठक करती थी और नल के पानी की गुणवत्ता से त्वचा रोगों की बढ़ती घटनाओं तक, शारदा नदी में मछलियों की मौत और दूषित भूजल के कारण फसल के झुलसने जैसे मुद्दों पर चर्चा करती थी।
वे इन मुद्दों को साप्ताहिक तहसील दिवस पर अधिकारियों को पेश करते थे, जो एक शिकायत निवारण व्यवस्था थी।
कौर और उनकी टीम ने तब ‘ग्राम जल प्रबंधन समिति’ (VWMC) बनाने में मदद की, जिसने आगे चलकर स्थानीय जल श्रोतों पर निजी कंपनियों के प्रभाव को इंगित किया।
VWMC द्वारा साल भर किए गए अवलोकन और जानकारी से पता चला कि मानसून के दौरान बहुत ज्यादा दूषण हुआ। यह तब हुआ, जब चीनी मिल ने अपना बिना शोधित किया तरल शारदा नदी में जा कर मिलने वाली नहर में छोड़ा था।
अब कई ग्रामीणों को दूषण के स्तर की जांच के लिए जल परीक्षण किट दी जाती हैं, जिससे वे सशक्त महसूस करते हैं।
ग्रामवासी उर्मिला प्रजापति कहती हैं – “हम नियमित रूप से मानसून से पहले और बाद में, तीन स्थानों पर भूजल और सतही जल, दोनों की गुणवत्ता की जांच करते हैं।”
फरीद अहमद, जिन्होंने बिजोरिया गांव के खेतों में पानी को दूषित पाया, इस तरह के जहरीले पदार्थों के खतरों को समझते हैं। लेकिन वह इस जानकारी के लिए आभारी हैं कि इस तरह के संदूषण को रोकने की कोशिश के लिए क्या किया जा सकता है।
उन्होंने कहा – “अब हम ज्यादा जागरूक हैं। हम यह भी जानते हैं कि ग्रामीण गरीबों के लिए सरकार की विभिन्न नीतियां और पहल क्या हैं।”
अगस्त 2019 में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की उस रिपोर्ट के बाद, ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ ने चीनी मिल की खिंचाई की और 58 लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसमें कहा गया था कि चीनी मिल की डिस्टिलरी “प्रदूषण नियंत्रण मानदंडों का पूरी तरह से अनुपालन नहीं कर रही थी।”
कौर और उनकी टीम, जल प्रदूषण को दूर करने के लिए अपने काम को अगले स्तर पर ले गई है। उन्होंने सभी ग्रामीण जल प्रबंधन समितियों को एकजुट करके, ‘शारदा नदी नागरिक समिति’ का गठन किया।
जल प्रदूषण के बारे में ‘शारदा नदी नागरिक समिति’ (SRCC) की चिंताओं पर ध्यान देते हुए, जिला अधिकारियों ने नहर की सफाई की। लेकिन उन्होंने रिसाव के नियंत्रण और भूजल प्रदूषण को रोकने के लिए इसे पक्का नहीं किया, जिसके लिए नागरिकों ने याचिका दायर की थी।
लेकिन 2020 में राहत मिली, जब राष्ट्रीय जल आयोग ने पीने के पानी की आपूर्ति के लिए, 16 पंचायतों में पानी के 21 ओवरहेड टैंक बनाए।
कई गांवों को जलवायु परिवर्तन भी प्रभावित कर रहा है, जिससे शारदा नदी के किनारे टूट रहे हैं और भूमि का कटाव हो रहा है। पिछले साल भारी बाढ़ के बाद, फसलें नष्ट हो गईं और घर बह गए।
भोजन और पशुओं के नुकसान से बचने के लिए, नदी के करीब रहने वालों को, VWMC पूर्व चेतावनी संदेश जारी करती है।
VWMC को जल स्तर में वृद्धि के बारे में जानकारी, उत्तराखंड में बनबसा बैराज की देखरेख करने वाले अधिकारियों से प्राप्त होती है।
शारदा नदी नागरिक समिति के संदीप निषाद कहते हैं – “ग्रामीणों को बैराज से पानी छोड़ने से लगभग 10 घंटे पहले संदेश मिल जाता है। ग्रामीणों के लिए अपने क़ीमती सामान को बचाने और ऊंचाई वाले स्थानों पर जाने के लिए यह समय काफी है।”
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