प्रकृति-प्रेमियों की एक टीम की बदौलत, ‘खुशाल सर’ झील का दशकों से जमा कचरा साफ़ हुआ है, जिससे प्रेरित होकर श्रीनगर की प्रसिद्ध झीलों की और ज्यादा बहाली और झील-आधारित आजीविकाओं के दोबारा पैदा होने को बढ़ावा मिला है।
लोगों के एक समूह ने श्रीनगर की खुशाल सर झील में अपनी नावों से भरे हुए बैग उतारे, तो सफ़ेद दाढ़ी वाले एक वृद्ध व्यक्ति ने उनकी पीठ थपथपाई।
मछली से भरे बैग?
नहीं।
बैग प्लास्टिक की बोतलों, किराना सामान में इस्तेमाल पॉलीथिन बैग और झील से निकाले गए दूसरे कचरे से भरे हुए थे।
एक प्रमुख प्रकृति प्रेमी, साठ वर्ष से अधिक आयु के मंजूर अहमद वांगनू और स्वयंसेवकों की उनकी टीम, श्रीनगर शहर के सबसे प्रदूषित जल स्रोतों में से एक की सफाई कर रहे थे। हालाँकि ‘डल’ झील श्रीनगर की सबसे प्रसिद्ध झील है, लेकिन घनी आबादी वाले इस शहर में खुशाल सर, गिलसर, निगीन और अंचार जैसी अन्य झीलें हैं और उन सभी के जीर्णोद्धार की जरूरत है।
कभी शहर की शान रही ये झीलें, सचमुच कूड़ेदान में बदल गई हैं।
अपने अंदरूनी एहसास को टटोलें
स्थानीय दूरदर्शन टीवी शो, हालात-ए-हाज़िरा (सामयिकी या तात्कालिक मुद्दे) ने श्रीनगर की झीलों की सफाई की प्रेरणा दी।
स्थानीय जल स्रोतों की दयनीय स्थिति पर चर्चा करते हुए, टीवी एंकर ने पैनलिस्टों से शहर की झीलों को बहाल करने के तरीके सुझाने को कहा।
थोड़ी ख़ामोशी के बाद पैनलिस्ट मंजूर अहमद वांगनू की ओर से जवाब आया, ‘एहसास’, यानि जिम्मेदारी की भावना। और इसी के साथ उन्होंने महसूस किया कि वक्त आ गया है, जब उन्हें अपने स्वयं के एहसास को टटोलना चाहिए।
टीवी शो के एकदम बाद, प्रकृति प्रेमी वांगनू और उनके दो चचेरे भाई खुशाल सर झील के लिए रवाना हो गए।
तेजी से बढ़ते शहरीकरण, अतिक्रमण और फेंके गए कचरे ने झील को कूड़ेदान और संडास (मलकुंड) में बदल दिया था।
खुशाल सर की सफाई
वांगनू ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “पुनरुद्धार के काम में हमें कई बातों का ध्यान रखना पड़ा। इसलिए हमने एक बहु-आयामी रणनीति तैयार की।”
वर्ष 2021 के वसंत के शुरू में, वांगनू के नेतृत्व में 20 स्वयंसेवकों के एक समूह ने, लगभग 100 दिनों तक हाथों से झील से कचरा निकाला।
मुश्ताक अहमद ने कहा, एक स्वयंसेवक जो इकठ्ठा किए गए कचरे को श्रीनगर के बाहरी इलाके के एक डंपयार्ड में डालने के काम की देखरेख करने वाले एक स्वयंसेवक, मुश्ताक़ अहमद कहते हैं – “हम रोज झील से इकठ्ठा किए गए कचरे से कई बोरे भरते थे। मृत जानवरों और पॉलिथीन की थैलियों से लेकर, मानव मल तक, झील हर तरह के कचरे से भरी हुई थी।”
झील उस फालतू तैरते पौधों से भी पटी हुई थी, जो 2014 में नजदीकी डल झील से बाढ़ के पानी के साथ बह कर आ गए थे।
वांगनू कहते हैं – “पौधों को हाथों से नहीं निकाला जा सकता था। लेकिन जम्मू और कश्मीर झील संरक्षण एवं प्रबंधन प्राधिकरण और श्रीनगर नगर निगम द्वारा प्रदान की गई मशीनरी की बदौलत हम उन्हें बाहर निकाल पाए।”
स्थानीय समुदाय को शामिल करना
वांगनू ने कहा – “स्थानीय लोग असली हितधारक हैं। हमें उनके समर्थन और सहयोग की जरूरत थी। इसलिए हम ‘एहसास’ के अपने साधारण नारे के साथ समुदाय के पास पहुंचे।”
सबसे पहले उन्होंने “प्रकृति की देन” की देखभाल करने की सामूहिक जिम्मेदारी के बारे में बात करके उन्हें आकर्षित किया। फिर उन्होंने इस तरह की देखभाल से होने वाले आर्थिक लाभ की बात की।
“हमने झील के सामाजिक एवं आर्थिक महत्व, विशेष रूप से स्थानीय लोगों के लिए महत्व के बारे में, जलग्रहण और उसके आसपास के क्षेत्र में एक जन जागरूकता अभियान शुरू किया।”
कभी 1.6 वर्ग किलोमीटर में फैली, खुशाल सर सिकुड़ कर सिर्फ 0.6 वर्ग किलोमीटर रह गई थी, जिसका एक कारण अतिक्रमण भी था।
झील की सफाई करते हुए, टीम ने कुछ टिन-शेडों के अतिक्रमण को भी हटाने का फैसला किया। इसके लिए कुछ प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
लेकिन स्थानीय अधिकारियों और मौजूदा मोहल्ला समितियों को शामिल करके, स्वयंसेवक झील के कुछ हिस्से को बहाल करने में सफल रहे।
फिर स्वयंसेवकों ने झील की रक्षा के लिए, स्थानीय निवासियों की एक नई समिति का गठन कर दिया।
जीर्णोद्धार से लौटी आजीविकाएँ
कश्मीर विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले, प्रोफेसर बशीर अहमद कहते हैं – “क्योंकि झील को फिर से नौकायन योग्य बना दिया गया है, इसलिए नावों की आवाजाही पर्यटन के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए भी अच्छी है।”
(यह भी पढ़ें: तालाबों के जीर्णोद्धार से हुआ कृषि का पुनरुद्धार)
परंपरागत रूप से, कमल के तने, जिसे स्थानीय भाषा में नदरू कहते हैं, एकत्र करने वाले मछुआरों और अन्य लोगों का झील से जीवन यापन होता था, क्योंकि यह स्थानीय व्यंजनों में इस्तेमाल की जाने वाली एक बेशकीमती जलीय सब्जी है। लेकिन इसका रंग थोड़ा गहरा हो गया था, क्योंकि पिछले 30 वर्षों से झील प्रदूषण से ग्रस्त थी।
लेकिन अब जब झील की सफाई हो गई है, तो नदरू के रंग में एक स्पष्ट बदलाव आया है। चमकदार रंग अच्छी गुणवत्ता का सूचक है। झील बहाली के कारण, किसानों और मछुआरों में नए सिरे से व्यापार की उम्मीद भर गई है।
स्थानीय निवासी, गुलाम हसन ने ज्यादा साफ़ खुशाल सर में नाव चलाते हुए कहा – “पहले हम चारे के लिए पानी के पौधे इकट्ठा करने के लिए, कचरे से भरे कमर तक गहरे गंदे पानी में चलते थे। लेकिन अब आवाजाही बहुत आसान है।”
झील के जीर्णोद्धार को वरीयता
खुशाल सर बहाली की सफलता से उत्साहित, प्रशासन अब गिलसर और विचारनाग जैसी अन्य झीलों की सफाई कर रहा है।
श्रीनगर के उप-विकास आयुक्त, मोहम्मद एजाज असद के अनुसार, ये जल स्रोत पक्षियों और जलीय जीवन का एक समृद्ध क्षेत्र थे। उम्मीद है कि जैव विविधता वापस आएगी।
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम श्रीनगर के जल स्रोतों को बहाल करने के लिए हर संभव उपाय कर रहे हैं, ताकि उसका प्रभाव जमीन पर दिखाई दे।”
खुशाल सर के सफल जीर्णोद्धार से धूम मचाने के बाद, वांगनू और अन्य प्रकृति प्रेमी खुश हैं कि इससे घाटी में और ज्यादा झीलों की सफाई के लिए प्रेरणा मिल रही है।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?