आधुनिक विज्ञान द्वारा लंबे समय तक उपचार के रूप में छोड़ने के बावजूद, कश्मीर घाटी में बहुत से लोग अभी भी जोंक को अपना खून चूसने देते हैं, इस उम्मीद में कि इससे सूजन वाले जोड़ों और सिरदर्द से लेकर ठण्ड से आघात और मुँहासे तक, सब ठीक हो जाता है।
पारम्परिक कश्मीरी पोशाक, ‘फेरन’ पहने, मुजफ्फर हाजम और उनका किशोर बेटा सुबह-सुबह मिट्टी का बर्तन, रुमाल और सूती पोंछा लेकर घर से निकल गए।
श्रीनगर के एक बाज़ार में, जैसे ही उन्होंने बर्तन खोला, दर्जनों लोग उन्हें घेर कर अंदर छटपटाती हुई दर्जनों जोंकों को विस्मयकारी नज़र से देखने लगे। क्योंकि उनका मानना है कि ये परभक्षी कीड़े बीमार व्यक्ति के शरीर से अशुद्ध रक्त को चूस सकते हैं।
यह धारणा 21 मार्च के दिन सबसे मजबूत होती है, जब जोंक-उपचार करने वाले चिकित्सक, डल झील के किनारे लोकप्रिय हजरतबल बाजार की अंदरूनी गलियों में दिन भर खुले में “क्लीनिक” स्थापित करते हैं। इस साल सैकड़ों लोग क्लीनिकों पर आए, जैसे यह पता चलता है कि आधुनिक चिकित्सा द्वारा व्यवहार्य इलाज के रूप में नकारने के बावजूद, मध्यकालीन चिकित्सा बहुत से लोगों के बीच लोकप्रिय बनी हुई है।
एक फारसी नव वर्ष परम्परा
21 मार्च को मनाया जाने वाला नोवरूज़, फ़ारसी नव वर्ष है और इस हिमालयी क्षेत्र में इसका प्रतीकात्मक महत्व है।
एक सेवानिवृत्त सांस्कृतिक अधिकारी और कश्मीरी संस्कृति पर विभिन्न पुस्तकों के प्रसिद्ध लेखक, ज़रीफ अहमद ज़रीफ़ ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “नोवरूज़ प्रकृति के पुनर्जन्म का प्रतीक है। इसलिए उस दिन युगों से लोग जोंक-उपचार करवाते हैं। उनका मानना है कि इस प्रथा से नए जीवन का संचार होता है और शरीर से सभी अशुद्धियों निकल जाती हैं।”
घाटी के कई हिस्सों में, नोवरूज़ पर जोंक-उपचार एक आम बात रही है, क्योंकि लोग मानते हैं कि उस दिन किया गया इलाज ज्यादा असरदार होता है।
भारतीय चिकित्सा पद्धति के एक चिकित्सक, परवेज़ कहते हैं – “लेकिन यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं हुआ है कि नोवरूज़ के दिन उपचार ज्यादा प्रभावी होता है।”
वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में जोंक-उपचार
श्रीनगर में यूनानी चिकित्सा की प्रैक्टिस करने वाली एक चिकित्सक महबूबा एजाज के अनुसार, जोंक-उपचार यूनानी की फारसी-अरबी पारम्परिक चिकित्सा में लंबे समय से प्रचलित एक प्रक्रिया है, जिसे दक्षिण एशिया के साथ-साथ, आधुनिक मध्य एशिया में मुस्लिम संस्कृति में प्रैक्टिस किया जाता है।
जोंक की 600 किस्मों में से, हीरुडो मेडिसिनलिस (Hirudo medicinalis) उपचार के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है।
ऐजाज़ कहती हैं – “जब जोंक रक्त चूसती हैं, तो जोंक की लार से हिरुडिन, प्रोटीन और जैव-सक्रिय अणु, रोगी के रक्त में मिल जाते हैं। क्योंकि हिरुडिन से रक्त पतला होता है, इसलिए यह हृदय रोगों में सहायक होता है। इन पदार्थों में दर्दनाशक, सूजनरोधक, थक्कारोधी और रोगाणुरोधी गुण होते हैं।”
ऐजाज़ ने 2017 में टर्की के मुस्तफा गुनी और एरकन ओज़मेन द्वारा प्रकाशित एक शोध-पत्र का जिक्र करते हुए उपचार के प्रभावी होने के बारे में शोध का हवाला दिया।
परवेज़ ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “परम्परागत रूप से, जोंक का इस्तेमाल ठण्ड से आघात, त्वचा रोगों और अन्य रक्त संक्रमणों को ठीक करने के लिए किया जाता था।”
जोंकों को तैयार करना
जोंक उत्तर प्रदेश के गर्म जलवायु वातावरण से लाई जाती हैं। क्योंकि कश्मीर में अपेक्षाकृत ज्यादा ठण्ड होती है, इसलिए उन्हें मिट्टी के बर्तनों में रखा जाता है।
जोंकों को पानी में अच्छी तरह से धोकर साफ किया जाता है।
दक्षिण कश्मीर के दूरू इलाके के एक चिकित्सक, हाजी वली मोहम्मद शाह ने बताया बताया – “इस्तेमाल करने से पहले 12 घंटे तक उन्हें भूखा रखा जाता है। तब वे संक्रामक स्थल से ज्यादा से ज्यादा मात्रा में रक्त चूसेंगी।”
चिकित्सक
मोहम्मद शाह कहते हैं – “हम खून को साफ करने के लिए विशेष मुलायम पोंछे और रुमाल भी बनाते हैं।”
मुजफ्फर हाजम, जो आमतौर पर नोवरूज के दिन लगभग 500 लोगों का इलाज करते हैं, ने पहले तीन घंटों में सौ से ज्यादा लोगों का इलाज कर चुके थे।
वह कहते हैं – “मैं हर साल इस दिन का इंतजार करता हूँ, क्योंकि यह मेरी अंतरात्मा को तृप्त करने के साथ-साथ, मेरी जेब भी भरता है। इस साल मैंने अपने बेटे दानिश को भी इस इलाज में लगा दिया।”
जोंक-उपचार में विश्वास
राजबाग के एक उद्यमी सोनू नज़ीर, सर्दियों के दौरान शीत-आघात का शिकार हो जाता है।
वह कहते हैं – “मैं तीसरी बार यह जोंक-उपचार करा रहा हूँ। यह बहुत प्रभावी है, क्योंकि अब मुझे दवा लेने की जरूरत नहीं है।”
मध्य कश्मीर के गांदरबल की 12वीं कक्षा की छात्रा, जिया अख्तर ने अपना सिर अपना माँ की गोद में रख लिया था, जब खून चूसने वाली जोंक का एक झुंड उनके मुंह पर चिपटा हुआ था। उनका मुंहासों का इलाज चल रहा था।
उन्होंने कहा – “पिछले दो वर्षों में मैंने कई तरह के मलहम और दवाओं का इस्तेमाल किया, लेकिन सब बेकार। मुझे उम्मीद है कि इस इलाज से मुझे इससे छुटकारा मिल जाएगा। मेरी दोस्त का पहले ही जोंक-उपचार से इस समस्या का इलाज किया जा चुका है।”
भले ही आधुनिक डॉक्टर इस पद्धति का मज़ाक उड़ाते हैं, लेकिन सोनू नज़ीर और ज़िया अख्तर जैसे लोग जोंक-उपचार को ठण्ड से आघात, जोड़ों की सूजन, उच्च रक्तचाप, पिगमेंटेशन, सिरदर्द और इसी तरह की बिमारियों का इलाज मानते हैं।
नासिर यूसुफी श्रीनगर स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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