ऑफ-रोड जीप प्रतियोगिताओं को जीतने से लेकर बीमारों को एम्बुलेंस में अस्पताल ले जाने तक - केरल की पहली महिला एम्बुलेंस पायलट ने ड्राइविंग और सेवा के अपने जुनून को जोड़ा, जबकि युवा महिलाओं को अपने सपनों का पालन करने के लिए एक रोल मॉडल भी बनाया।
पी. जी. दीपमोल बचपन से ही ड्राइवर बनना चाहती थी।
18 साल की उम्र में उन्होंने अपने गृहनगर में दोपहिया वाहन चलाना सीख लिया। जल्द ही वह कार चलाने लगी।
उन्हें कमर्शियल टैक्सी चलाने का लाइसेंस मिलने में ज्यादा समय नहीं लगा। और फिर भारी ट्रक चलाने का भी।
2021 में उनकी एक और बड़ी महत्वाकांक्षा पूरी हुई, जब उन्होंने एक चुनौतीपूर्ण मोटरबाइक यात्रा पूरी की, जो दक्षिण में कोट्टायम से लेकर, उत्तर में लद्दाख तक पूरे भारत से गुजरती थी। उन्होंने केवल 16 दिनों में भारत की 3,700 किलोमीटर सड़कों को पार किया, जो हमेशा चिकनी और तेज नहीं होती।
फिर बारी आई कच्ची सडकों पर गाड़ी चलाने की। एक और उपलब्धि हासिल करते हुए, दीपामोल ने ‘कुन्नमकुलम ऑफ-रोड जीप ड्राइविंग प्रतियोगिता’ में प्रथम पुरस्कार जीता।
ऐसे देश में ऐसी ड्राइविंग करना कोई मामूली बात नहीं है, जहां अभी भी ज्यादातर राज्यों में महिलाओं को स्टीयरिंग व्हील के पीछे देखना दुर्लभ है।
अब दीपामोल अपनी ड्राइविंग से आजीविका चलाती हैं।
लेकिन बात बस इतनी नहीं है।
अपने परिवार की आवश्यकता-पूर्ती के लिए ड्राइविंग
दीपामोल को बचपन से ही हमेशा आर्थिक रूप से संघर्ष करना पड़ा।
फिर कुछ साल पहले उनका पति बीमार पड़ गया।
वह हाथ पर हाथ धरे बैठने वाली कहां थी, अपने एक दोस्त की इत्तेफाक से मिली सलाह पर वह एक टैक्सी ड्राइवर बन गई।
अपने दृढ़ संकल्प और ड्राइविंग कौशल के कारण, अपने दोस्त की कार में अपनी पहली व्यावसायिक यात्रा के बाद से उनके पास ग्राहकों की कमी नहीं रही।
लेकिन महामारी के कारण हुए लॉकडाउन ने काम में रोड़ा अटका दिया। बिना काम के गुजारा करना मुश्किल था।
महामारी में अनिश्चितता
दीपामोल ने हमेशा अपने समुदाय के लोगों की मदद करने की जरूरत महसूस की है। और हालांकि वह अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए संघर्ष कर रही थी, फिर भी वह किसी भी तरह से सेवा करना चाहती थी।
वह COVID-19 रोगियों को अस्पतालों तक पहुँचाना चाहती थी, लेकिन सिर्फ सरकारी एम्बुलेंस को ही ऐसा करने की अनुमति थी।
वह याद करते हुए कहती हैं – “तो मैंने घर-घर जा कर अपने ग्रामवासियों को सहायता की पेशकश की।” उन्होंने सामुदायिक रसोई से मरीजों को खाना पहुँचाया और आपातकालीन राहत के काम का समन्वय किया।
उनकी करुणा पुरस्कृत की जाने वाली थी।
पहली महिला एम्बुलेंस चालक
इस बीच उन्होंने राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग में एक एम्बुलेंस चालक की नौकरी के लिए आवेदन किया, हालाँकि उन्हें असल में नौकरी मिलने की बहुत कम उम्मीद थी।
लेकिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, दीपामोल केरल की पहली महिला एम्बुलेंस चालक बनीं और उन्हें कोट्टायम जिले के थलयोलापरम्बु पब्लिक हेल्थ सेंटर (PHC) के लिए काम मिला।
केरल की अपनी स्वास्थ्य मंत्री, वीना जॉर्ज ने दीपामोल को कनिवु 108 एम्बुलेंस की चाबी सौंपी।
जॉर्ज ने कहा – “दीपामोल की वीरता और परोपकार के साथ, केरल ने महिला मुक्ति में एक नए युग की शुरुआत की है।”
हालांकि एम्बुलेंस चालक को बहुत धैर्य और सहनशीलता की जरूरत होती है, लेकिन अपने छोटे से कार्यकाल में दीपामोल युवा महिलाओं के लिए, एक आदर्श के रूप में अपनी योग्यता और सेवा साबित कर रही हैं।
सरकारी नौकरी पाने का मतलब एक स्थिर आय और अधिक सामाजिक सुरक्षा भी है, जो टैक्सी ड्राइवर के रूप में उनके पास नहीं थी।
नौकरी की पहली ‘ट्रिप’
नौकरी शुरू करने के तीन दिन बाद, दीपामोल को सुबह करीब 11 बजे पहला फोन आया। उन्हें एक मरीज को अस्पताल ले जाना था।
दीपामोल अस्पताल पहुंचने के लिए शहर में से तेजी से निकली। भारी ट्रैफिक के बावजूद, उन्होंने 22 मिनट में 30 किलोमीटर की दूरी तय की।
पहली यात्रा को याद कर वह खुश हो जाती हैं।
स्पष्ट संतोष के साथ वह कहती हैं – “हम समय पर चिकित्सा सहायता के लिए रोगी को अस्पताल ले जाने में कामयाब रहे। रोगी अब ठीक है।”
(यह भी पढ़ें: दूरदराज के इलाकों में मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में कैसे मदद करती है बाइक एंबुलेंस)
एम्बुलेंस चालक बनने के लिए क्या करना पड़ता है
हालांकि एम्बुलेंस में दीपामोल के साथ एक नर्स भी होती है, लेकिन शांत और संयमित रहना जरूरी है।
हफ्ते में तीन दिन काम करते हुए, उन्हें बुलावा मिलने के तीन मिनट के भीतर तैयार होना होता है।
यह तलवार की धार पर होने जैसा है। हमें सभी यातायात नियमों का पालन करना पड़ता है, फिर भी गति बनाए रखनी है, क्योंकि हर सेकेंड महत्वपूर्ण है।
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “यह तलवार की धार पर होने जैसा है। हमें सभी यातायात नियमों का पालन करना पड़ता है, फिर भी गति बनाए रखनी है, क्योंकि हर सेकेंड महत्वपूर्ण है।”
वह कहती हैं – “रोगी के आँसू बह रहे हो सकते हैं या वह दर्द से चिल्ला रहा हो सकता है। उनके साथ जाने वाले लोग बेचैन हो सकते हैं। लेकिन हमें तनाव नहीं लेना चाहिए।”
वह खून और मरीजों की कराहों को देखकर भी बेफिक्र रहती हैं और कम से कम समय में अस्पताल पहुंचने के लिए एकाग्रचित्त होकर गाड़ी चलाती हैं।
क्या महिलाएं बेहतर एम्बुलेंस चालक होती हैं?
लगभग 20 साल तक एम्बुलेंस चालक के रूप में काम करने के बाद सेवानिवृत होने वाले, तिरुवनंतपुरम-स्थित ए. सहदेवन कहते हैं कि यह एक बेहद तनावपूर्ण काम है, जिसे महिलाएँ बेहतर तरीके से संभालती हैं।
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मुझे दृढ़ता से लगता है कि महिलाएं एम्बुलेंस चालक बनने के लिए ज्यादा अनुकूल हैं। वे ज्यादा अनुशासित होती हैं। और वे दर्दनाक स्थितियों से बेहतर तरीके से निपटती हैं।”
उन्होंने स्वीकार किया कि बहुत से पुरुष एम्बुलेंस चालक ऐसे हैं, जो अपने जोखिम भरे काम के तनाव को दूर करने के लिए शराब का सहारा लेते हैं।
“महिलाओं के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है।”
उनका मानना है कि दीपामोल और महिलाओं को इस काम में लाने के लिए एक रास्ता बना रही हैं। वह कहते हैं – “दीपामोल एक प्रकाश स्तम्भ होंगी। और भी महिलाएं उनके नक्शेकदम पर चलेंगी।”
महिलाओं के लिए एक आदर्श
उनकी बातें सच साबित हुई, क्योंकि कई युवा महिलाएं दीपामोल का मार्गदर्शन चाहती हैं।
वह युवा महिलाओं को सलाह देती हैं – “रूढ़ियों और लांछनों के आगे कभी भी न झुकें। साहसी और सेवाभावी बनें। मेरी नौकरी न सिर्फ मेरे लिए, बल्कि हर महिला के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था।”
दीपामोल से प्रेरणा लेते हुए, 24-वर्षीय ड्राइविंग इंस्ट्रक्टर कविता ने भी एम्बुलेंस चालक बनने का फैसला किया है।
कविता कहती हैं – “हर कोई मुझे हतोत्साहित करता है। वे मुझे शादी की संभावनाओं के बारे में सावधान करते हैं।” लेकिन उनका निश्चय दृढ है।
स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने एक प्रेस सम्मलेन में घोषणा की – “सभी जिलों में महिला एम्बुलेंस चालक नियुक्ति के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।”
एम्बुलेंस कर्मचारी ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के प्रसव में मदद कर रहे हैं। पिछले साल ऐसी 53 डिलीवरी हुई थीं। यह एक और कारण है कि अधिकारी ज्यादा महिला एम्बुलेंस चालकों को जोड़ने के इच्छुक हैं।
दीपामोल सहमत हैं – “एक महिला होना कोई कमी या अयोग्यता नहीं है। जहाँ चाह, वहां राह।”
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?