एक शिक्षा सहायता कार्यक्रम सरकारी स्कूलों के छात्रों को एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जिससे उन्हें व्यावहारिक और प्रयोगिक सीख में मदद मिलती है, और सहपाठियों में आपसी सीख के माध्यम से उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
बहुत अच्छी छात्र से शिक्षिका बनीं, उर्मिला सुथार ने मुझे बताया – “अनुभव के माध्यम से सीखना महत्वपूर्ण है।”
शिक्षा संबल (SS) नामक एक शिक्षा सहायता कार्यक्रम की बारीकियों को समझने के लिए किए गए हाल ही के एक दौरे में, राजस्थान के चित्तौड़गढ़ शहर के पास ‘अजोलिया का खेड़ा’ गाँव की इस 20-वर्षीय शिक्षिका ने मुझ पर बहुत प्रभाव डाला। उनमें पढ़ाने के लिए पाठ्यपुस्तकों से परे का जुनून था।
वह कहती हैं – “यदि मैं चित्तौड़ के किले के बारे में पढ़ूं, तो शायद मैं उसके इतिहास या महत्व को ठीक से नहीं समझ पाऊंगी। लेकिन यदि मैं वहां जाऊं और सैर करूं और गाइड की कहानियां सुनूं, तो मैं न सिर्फ इतिहास को बेहतर तरीके से समझ पाऊंगी, बल्कि सीखने की प्रक्रिया का भी आनंद ले सकूंगी।”
शिक्षा सम्बल राजस्थान सरकार, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड और विद्या भवन सोसायटी की एक संयुक्त पहल है। यह राजस्थान के पांच जिलों के 64 सरकारी माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों में, 14,000 से ज्यादा बच्चों को विज्ञान, गणित और अंग्रेजी में शैक्षिक सहायता प्रदान करता है। प्रत्यक्ष रूप से यह कार्यक्रम, वैचारिक ज्ञान को मजबूत करना और बोर्ड परीक्षाओं के परिणामों को बेहतर बनाने में मदद करने पर केंद्रित है।
हालाँकि, जैसा कि जल्दी ही उर्मिला के साथ मेरी बातचीत से स्पष्ट हो जाता है, यह इससे कहीं अधिक करता है – सीखने और अध्यापन के प्रश्नों के साथ गहराई से जुड़ना। वर्तमान में विज्ञान और शिक्षा में दोहरी स्नातक की पढ़ाई कर रही छात्रा, उर्मिला शिक्षा पर अपने दृष्टिकोण के विस्तार के लिए शिक्षा संबल को श्रेय देती हैं।
सीखने का एक वैकल्पिक माहौल
इस कार्यक्रम में कई घटक हैं, जिनमें शिक्षा सम्बल द्वारा प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा सरकारी स्कूलों में नियमित रूप से पढ़ाना, गहन शिक्षण के लिए शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन शिविर और फील्ड स्टाफ द्वारा घरों का दौरा शामिल हैं।
उदयपुर में 35-40 दिनों तक चलने वाले मुफ्त आवासीय शिविर लोकप्रिय हैं। इन ग्रीष्मकालीन शिविरों के पीछे उद्देश्य, छात्रों के साथ गहनता से जुड़ कर उन्हें शैक्षिक जानकारी प्रदान करना और उन्हें सीखने के वैकल्पिक माहौल का अनुभव करने में मदद करना है।
उर्मिला ने जब 2016 के ग्रीष्मकालीन शिविर के बारे में सुना, उस समय वह 15 साल की थी और दसवीं कक्षा में दाखिल हुई थी। वह स्वीकार करती है कि इस विचार ने उसे लुभा लिया था, लेकिन असल में ही वह अकेले अपने घर से दूर रहने की संभावना से डरी हुई थी।
ऐसी जगह, जहां लड़कियों के लिए लंबे समय तक अपने अभिभावकों की निगरानी से दूर रहना असामान्य बात है, उनके स्कूल के कई सहपाठियों और उनके माता-पिता भी इस बारे में संदेह रखते थे।
फिर भी उर्मिला की माँ, 40-वर्षीय रज्जू, जिन्हें स्वयं कभी स्कूल जाने का मौका नहीं मिला, ने उन्हें जाने के लिए प्रोत्साहित किया।
रज्जू ने अपने घर पर मुझे बताया – “मुझे इस बात की परवाह नहीं थी कि लोग क्या सोचेंगे या कहेंगे। मैं चाहती थी कि मेरी बेटी पढ़ाई करे और स्वतंत्र हो। यह उसके लिए सीखने, दुनिया को देखने और तरक्की करने का अवसर था।”
इसलिए, 2016 में उर्मिला ग्रीष्मकालीन शिविर में शामिल होने वाली अपने गांव की इकलौती लड़की बनीं।
साथियों के साथ परस्पर सीखने का प्रभाव
एक शर्मीली लड़की, उर्मिला कहती है कि शिविर में सीखने के सुरक्षित माहौल ने उसके लिए अद्भुत काम किया। चार से पांच साथियों के छोटे समूहों में काम करने से उसे अपनी झिझक पर काबू पाने और सवाल पूछने में अधिक सहज होने में मदद मिली।
शिक्षा सम्बल की एक विषय-समन्वयक, पारुल शर्मा बताती हैं कि पीयर लर्निंग (साथियों में परस्पर सीख प्रक्रिया), कार्यक्रम के डिजाइन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
शर्मा कहती हैं – “स्कूलों में पढ़ना एक व्यक्तिगत कार्य है। आप अपने साथियों के बगल में बैठे हो सकते हैं, लेकिन आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप स्वयं अध्ययन करें। शिविर में पीयर लर्निंग छात्रों को खुद के बारे में स्पष्ट होने और अपने को व्यक्त करने, और अपने से अलग जातियों, क्षेत्रों और धर्मों के छात्रों के साथ मेलमिलाप करने के लिए प्रेरित करता है। इससे उनमें दृष्टिकोण और एक-दूसरे के प्रति सम्मान का निर्माण होता है। विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ व्यवहार करना किसी भी करियर में महत्वपूर्ण होता है।”
व्यावहारिक शिक्षा
विभिन्न दृष्टिकोणों और अनुभवों के माध्यम से छात्रों की सोच का विस्तार करने का यह नजरिया, शिक्षा सम्बल के शिक्षा के दृष्टिकोण की आधारशिला है।
व्यावहारिक रूप से सीखने के रोमांच को याद करते हुए, उर्मिला ने कहा – “मैंने विज्ञान की कक्षा में सुना था कि पानी में वायरस होते हैं, लेकिन विश्वास करना मुश्किल था, क्योंकि मैं उन्हें नहीं देख सकती थी। यह विचार उस दिन बदल गया, जब वे हमें उदयपुर में फतेह सागर झील पर ले गए। हमने पानी का एक नमूना इकट्ठा किया, उसे वापस शिविर में लाए और एक सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) के नीचे रखा। मैं वायरस देख सकती थी!”
नृत्य और पेंटिंग जैसी गैर-पाठ्यक्रम गतिविधियों को भी कार्यक्रम में शामिल किया गया है।
शिविर के अंत में, एक सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है, जिसमें छात्र अपने नए कौशल का प्रदर्शन कर सकते हैं। उर्मिला जैसी कम बोलने वाली लड़की के लिए, अपनी झिझक पर काबू पाना और दर्शकों के सामने नृत्य करना एक यादगार अनुभव था।
वह बढ़े हुए आत्मविश्वास की भावना के साथ घर लौटी, यह सीख कर कि “डरने की कोई बात नहीं है, और सवाल पूछने में कुछ भी गलत नहीं है।”
वह कक्षा में सवाल पूछने लगी और सीखने के प्रति इस नए दृष्टिकोण ने उसे अपनी बोर्ड परीक्षा मेंअच्छे अंक लाने में मदद की।
एक प्रेरक शिक्षक
उर्मिला का उदाहरण दूसरों को भी प्रेरणा दे रहा है।
अगले साल उसके गाँव की तीन और लड़कियाँ ग्रीष्मकालीन शिविर में गईं।
उर्मिला को नए भागीदारों के साथी मार्गदर्शक, “कप्तान” के रूप में वापस बुलाया गया, जिससे उनके नेतृत्व कौशल और आत्मविश्वास में और भी वृद्धि हुई।
उर्मिला अब अपने गांव के पास एक सरकारी स्कूल में शिक्षा सम्बल की गणित शिक्षिका के रूप में काम करती हैं। हालाँकि उन्हें एक दिन में सिर्फ दो कक्षाओं को पढ़ाना होता है, लेकिन वह स्वेच्छा से अतिरिक्त कक्षाएं लेती है, क्योंकि इससे न सिर्फ उनके स्नातक शिक्षा के पाठों में वृद्धि होती है, बल्कि इसमें उन्हें बहुत आनंद भी आता है।
वह अपने छात्रों को समूह-अध्ययन में लगा कर सहकर्मी-सीख की भावना को आगे बढ़ाती हैं।
उर्मिला उन्हें बताती हैं – “हमें दूसरों को वह सिखाना चाहिए, जो हम जानते हैं – ज्ञान साझा करने से बढ़ता है।”
उनका दीर्घकालिक सपना भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी बनने का है। हालाँकि पढ़ाई का उनका व्यस्त कार्यक्रम, ज्यादा खाली समय नहीं देता, लेकिन नौकरी मिलने के बाद उनका नृत्य और बैडमिंटन जैसे अपने दूसरे शौक के लिए समय निकालने का इरादा है।
उर्मिला और उनकी माँ को अलविदा कहते हुए, मैं शिक्षा के लिए शिक्षा सम्बल के दृष्टिकोण पर विचार करती हूँ, जो आमतौर पर सम्पन्न निजी स्कूलों के छात्रों के विशेषाधिकार हैं। लेकिन राजस्थान के सरकारी स्कूलों में सीखने के इस अधिक समग्र दृष्टिकोण का विस्तार करके, शिक्षा सम्बल के प्रयास भारत की संपूर्ण शिक्षा व्यवस्था में एक लहर पैदा कर रहे हैं।
इस लेख के शीर्ष पर प्रमुख फोटो अजोलिया का खेड़ा सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के साथ, शिक्षक उर्मिला सुथार की है (छायाकार – कंडाला सिंह)
कंडाला सिंह एक दिल्ली-स्थित लेखक, कवि और गुणात्मक शोधकर्ता हैं।
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