धागे से लटकता कालबेलिया मणकों का काम
अपने 'सपेरा' (स्नेक चार्मर) नृत्य के लिए प्रसिद्ध, कालबेलिया जनजातियों की एक और कीमती विरासत है, जिसे वे संरक्षित करने और आजीविका कमाने के लिए बेताब हैं। यह है मणकों के अनोखे आभूषण, जो उनकी पोशाक का हिस्सा है।
अपने 'सपेरा' (स्नेक चार्मर) नृत्य के लिए प्रसिद्ध, कालबेलिया जनजातियों की एक और कीमती विरासत है, जिसे वे संरक्षित करने और आजीविका कमाने के लिए बेताब हैं। यह है मणकों के अनोखे आभूषण, जो उनकी पोशाक का हिस्सा है।
छोटे, चमकीले रंग-बिरंगे मणकों को आपस में बेहतरीन गहनों के रूप में बांधा जाता है। यदि आप सोचते हैं कि केवल महिलाएं ही इन मणकों से बने आभूषण पहनती हैं, तो आप गलत हैं। पुरुष भी अपनी कलाइयों को मणकों से बने कंगन से सुशोभित करते हैं।
इन रंग-बिरंगे आभूषणों को बनाने वाली कालबेलिया महिलाएं हैं, जो राजस्थान की खानाबदोश जनजाति से हैं, जो सपेरों के रूप में प्रसिद्ध हैं।
कुछ ही दुकानें इस आभूषण को बेचती हैं। एक बड़े उपभोक्ता आधार तक माल ले जाने से, न सिर्फ कालबेलिया महिलाओं को आजीविका मिलेंगी, बल्कि उनकी कला को जिन्दा रखना भी सुनिश्चित होगा।
राजस्थान के कालबेलिया
कालबेलिया अपने प्रसिद्ध ‘सपेरा’ नृत्य के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं।
महिलाएं साँप की नकल करते हुए, संगीत वाद्ययंत्रों और गीतों पर थिरकती हैं, क्योंकि ये पारम्परिक रूप से साँप पकड़ने वाली जनजातियां थीं। इस नृत्य विधा को यूनेस्को द्वारा एक ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ (intangible cultural heritage) के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है।
लेकिन जो बात कम प्रसिद्ध है, वह है कालबेलिया लोगों का मणकों का काम।
कालबेलिया मणकों का काम क्या है?
गुजरात में कच्छ क्षेत्र के समुदायों द्वारा बनाए गए मणके जड़े आभूषणों की तरह, यह एक कला है, जो कालबेलिया समुदाय को परिभाषित करती है।
एक कलबेलिया कलाकार, सुशीला नाथ कहती हैं – “यह आभूषण हमारी पहचान हैं। लोग हमें इन धागे में पिरोए मणकों से पहचानते हैं। मूल सूप से हम इन्हें अपने स्वयं के उपयोग के लिए बनाते थे।”
महिलाएं मणकों को धागों में पिरो कर हार, झुमके, कंगन, कमरबंद और बालों में लगाने वाले सामान बनाती हैं।
मणकों से बने ये आभूषण, आमतौर पर कालबेलिया महिलाओं द्वारा नृत्य प्रदर्शन के समय पहने जाते हैं, हालांकि पहले ये महिलाओं की रोजमर्रा की पोशाक का हिस्सा होते थे।
कला और गणित का मिलन
जब आप महिलाओं को काम करते देखते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह कला और गणित का मेल है। सटीकता और समरूपता के साथ, महिलाएं त्रिकोणीय या चतुर्भुज नमूनों का निर्माण करती हैं।
वे डिज़ाइन के अनुसार धागों को गिनती हैं और फिर छोटे मणकों को एक-एक करके पिरोती हैं, जिनका पैटर्न रेखागणित के आधार पर होता है। आश्चर्यजनक रूप से, वे सुई का उपयोग किए बिना ऐसा करती हैं।
नाथ के पड़ोस की एक कला शिक्षिका और लेखिका, अनाहिता ली कहती हैं – “हैरानी होती है कि वे धागों की गिनती करके और उन्हें एक विशेष संख्या में पिरो कर एक जैसा, जटिल पैटर्न बनाने के लिए, अपनी वस्तुओं में इतनी सटीकता कैसे लाती हैं।”
बचपन से पिरोने का काम
सटीकता का यह काम, कालबेलियों के बीच एक अंतर्निहित विशेषता लगती है।
30-वर्षीय नाथ, जिन्होंने यह काम अपनी मां से सीखा था बताती हैं – “मैंने अपना पहला हार आठ साल की उम्र में बनाया था। इतने वर्षों बाद भी मुझे याद है कि मैंने अपना पहला हार बनाने के लिए लाल, नीले और सफेद मणके इस्तेमाल किए थे।”
नाथ चाहती हैं कि उनकी 12 साल की बेटी भी यह कला सीखे।
वह कहती हैं – “मेरी भतीजी ने पहले ही सीखना शुरू कर दिया है।”
मणकों का काम आमतौर पर कालबेलिया महिलाएं करती हैं। लेकिन सुशीला नाथ का भाई बुद्ध नाथ भी यह काम करने का इच्छुक है।
बुद्ध नाथ ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “जब मैं छोटा था, तो हमारी माँ ने मुझसे ये काम करवाती थी। अब मैं इसमें महारत हासिल करना चाहता हूँ। मैं यह अपनी बहन से सीखूंगा।”
कालबेलिया कला से अतिरिक्त आय
सुशीला नाथ कहती हैं – “पहले हम इन्हें बेचने के लिए नहीं बनाते थे। एक बार हमने इन्हें जैसलमेर में प्रदर्शित किए जाते देखा। इस तरह मेरे परिवार ने सोचा कि हम यह काम व्यावसायिक रूप से कर सकते हैं।”
पुष्कर शहर के बाहरी इलाके में कालबेलिया बस्ती में रहने वाली सुशीला नाथ कई तरह के छोटे-मोटे काम करती हैं। वह बकरियां पालती हैं, लकड़ी का कोयला बनाती हैं और खेत मजदूर के रूप में काम करती हैं।
इसके अलावा, अब वह स्थानीय बाजार से मणके खरीद कर उनसे बने सामान को बेचकर कमाई करती हैं।
वह कहती हैं – “मेरे हार की कीमत 250 से 500 रुपये के बीच होती है। प्रत्येक वस्तु को बनाने में 3 से 4 दिन लगते हैं।”
आधुनिक शैलियों को अपनाना
मूल शैली में, हार को पीछे सफेद धागे से बांधा जाता था। कला शिक्षिका की सलाह पर, नाथ अब काले धागे का प्रयोग करती हैं।
उन्होंने कहा – “अब हम लंबाई को सही करने के लिए पीछे एक मणका लगाते हैं,” जिससे गले के आभूषणों को ज्यादा आधुनिक आकर्षण प्रदान करता है।
नाथ इसी पैटर्न में कान के गहने, कमरबंद और कंगन भी बनाती हैं।
कालबेलिया मणका-कार्य – बाजारों में नहीं दिखता
लेकिन सुन्दर दिखने के बावजूद, कालबेलिया आभूषणों को राजस्थान के व्यापक आभूषण बाजार में जगह नहीं मिली है।
अजमेर जिले में दूसरी सबसे ज्यादा कालबेलिया आबादी होने के बावजूद, इसके शहरों में मणकों की वस्तुएं नहीं बिकती।
बाजार से अनजान, कालबेलिया अपने मणकों के आभूषण मेलों या सड़क किनारे स्टालों में नहीं बेचते।
नाथ ने कहा – “पहले लॉकडाउन से पहले, कुछ विदेशी आए थे। लेकिन ऐसा लगता है कि स्थानीय स्तर पर कोई खरीदार नहीं है।”
तेज नृत्य के लिए काफ़ी मजबूत
मूल रूप से छोटे कांच के मणकों से बनी वस्तुएं बेहद नाजुक दिखते हैं।
अनाहिता ली कहती हैं – “जिस कुशलता से कालबेलिया मणकों की वस्तुएं बनाते हैं, वह असल में खास है। इस कला को बढ़ावा देने के लिए हमें हर संभव प्रयास करने चाहिएं।”
लेकिन उनकी कोमलता उनकी मजबूती को झुठलाती है।
सुशीला नाथ की ननदों में से एक, ममता कहती हैं – “हमारे नृत्य में गति और ऊर्जा बहुत ज्यादा होती है। क्योंकि यह आभूषण मुख्य रूप से हमारी नृत्य-पोशाकों के साथ पहनने के लिए बनाया जाता है, इसलिए यह काफी मजबूत होता है।”
नाथ को लगता है कि यदि उनकी कला के लिए एक बड़ा बाजार होता, तो उनके समुदाय के ज्यादा लोग मजदूरी की बजाय, मणके का काम जारी रखने में रुचि रखते।
एक ऑर्डर के लिए मणके पिरोते हुए, नाथ पूरे विश्वास से कहती हैं – “हमारी कला को संरक्षित किया जाना चाहिए।”
समुदाय के लोग रंगीन मणकों को ‘मणिये’ कहते हैं, जिसका अर्थ है अनमोल रत्न। कालबेलिया भी ‘मणिये’ हैं – राजस्थान के सांस्कृतिक स्वभाव के रत्न।
लेकिन इन अनमोल रत्नों की विरासत सिर्फ तभी जीवित रहेगी, जब ज्यादा लोग उनमें रुचि लेंगे। उतनी ही रुचि, जितनी वे उनके सपेरा-नृत्य में लेते रहे हैं।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो, राजस्थान की कालबेलिया जनजातियों के मणकों से बने आभूषण दर्शाती है (छायाकार – शेफाली मार्टिंस)
शेफाली मार्टिंस अजमेर, राजस्थान स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। साभार: ‘चरखा फीचर्स’।
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