एक तमिल शोधकर्ता का प्यारे साही से लेकर उपेक्षित चूहों तक के छोटे स्तनधारियों के लिए प्रेम ने उन्हें ग्रामीणों, विशेष रूप से बच्चों को, अपने गुलेल छोड़ कर, इन छोटे स्तनधारियों की रक्षा में मदद करने का एक मिशन दे दिया है।
हम में से ज्यादातर लोग जब चूहे या चुहिया को देखते हैं, तो ज्यादा से ज्यादा हम उसे दूर भगा देते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा संभावना यह है कि हम ज़हर या शायद, एक पिंजरा इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन अलग ही डफली बजाने वाले एक संरक्षणवादी, ब्रवीण कुमार ऐसा नहीं करते।
भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER), तिरुपति के शोधकर्ता, छोटे स्तनधारियों को बचाने के मिशन पर हैं। भले ही यह उनके दोस्तों और परिवार को असमंजस में डालता हो।
मुझसे हर कोई पूछता है कि मैं चूहों और कुतरने वाले जीवों पर काम क्यों करता हूँ और क्या शोध करने के लिए कोई अन्य प्रजाति नहीं है
हँसते हुए कुमार कहते हैं – “मुझसे हर कोई पूछता है कि मैं चूहों और कुतरने वाले (चूहों, साही, गिलहरी आदि) जीवों पर काम क्यों करता हूँ और क्या शोध करने के लिए कोई अन्य प्रजाति नहीं है।”
लेकिन कुमार, जिन्होंने चीन में ‘ताकलामाकन रेगिस्तान’ के स्थानीय दुर्लभ जीव ‘यारकंद खरगोश’ (Lepus yarkandensis) पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और अब कच्छ के चट्टानी चूहे और एलविरा चूहे पर शोध कर रहे हैं, जानते हैं कि ये छोटे जीव जलवायु तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उनका मानना है कि उनके बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है।
इसलिए जब वह चूहों का अध्ययन करने के लिए फील्ड में नहीं होते, तो वे गांवों में जाते हैं और उन छोटे स्तनधारियों के बारे में जागरूकता पैदा करते हैं, जो तमिलनाडु के पूर्वी घाटों के आसपास घूमते हैं।
कॉमिक पुस्तकें और कठपुतली शो
कुमार जानते हैं कि उन्हें बच्चों तक उनके ही स्तर पर पहुंचने की जरूरत है।
छोटे बच्चों को स्थानीय मद्रास हेजहोग के बारे में और ज्यादा सिखाने के लिए, उन्होंने स्थानीय भाषा तमिल में कांटेदार प्राणियों के बारे में एक 20-पृष्ठ की कॉमिक पुस्तक बनाई। वह राज्य भर के स्कूलों में कठपुतली शो भी आयोजित करते हैं।
तमिलनाडु के सेलम जिले के ‘सेत्तुकाडू सरकारी प्राथमिक विद्यालय’ के छात्र जब कठपुतली शो शुरू होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, तो बिजली चली गई।
चिंता की कोई बात नहीं। कुमार ऐसी स्थिति से निपटने में माहिर हैं।
उन्होंने पूछा – “आपका पसंदीदा जानवर कौन सा है? आप अपने घर के पास कौन से जानवर देखते हैं?”
बिजली आने और कठपुतली शो शुरू होने तक, एक जीवंत चर्चा हुई।
पूर्वी घाट की प्रजातियों के जीवों, उनके सामने आने वाले खतरों, उनके भोजन और आवास को दर्शाने वाले शो के दौरान बच्चे मंत्रमुग्ध हो गए।
कठपुतली शो समाप्त होने पर कुमार ने पूछा – “आप में से कितने लोगों के पास गुलेल है?” हर नन्हा हाथ ऊपर उठ गया।
कुमार ने ‘विलेज स्क्वेयर’ को बताया – “एक दो साल तक के बच्चे में भी शिकार की प्रवृत्ति होती है। आदिवासी बच्चों में यह प्रवृत्ति स्वाभाविक होती है।”
उन्होंने बच्चों को समझाया कि क्यों उन्हें छोटे जानवरों का शिकार नहीं करना चाहिए। दिन के अंत तक, बच्चों ने पर्यावरण की देखभाल करने और प्रकृति के साथ सामंजस्य से रहने की शपथ ली।
स्कूल की एक शिक्षिका, वसंती एम इस शो से खुश थीं। उन्होंने कहा कि इस तरह के दिलचस्प कार्यक्रम छात्रों को संरक्षण की ओर ले जाएंगे।
लेकिन यह एक लम्बा रास्ता है।
कुमार कहते हैं – “इन कम ज्ञात प्रजातियों पर शोध करने वाले लोग बहुत कम हैं, खासकर पूर्वी घाट में।”
क्या छोटे प्राणी करिश्माई नहीं होते?
हम में से बहुत से लोगों के लिए शेर, बाघ और हाथी भारत के करिश्माई जानवर हैं। हम उनसे अभिभूत हैं। लेकिन छोटे जानवरों को लेकर यह जरूरी नहीं है।
पूर्वी घाट में लुप्तप्राय पक्षी के शोधकर्ता, राहुल चव्हाण ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “लोग विशालकाय स्तनधारियों को करिश्माई प्रजातियों के रूप में देखते हैं। इसलिए वे पूर्वी घाट के छोटे जीवों को इस तरह से नहीं दर्शाते हैं।”
उस पर, भारत के पूर्वी घाट पश्चिमी घाट की तरह लोकप्रिय नहीं हैं।
चव्हाण कहते हैं – “विश्व-विरासत दर्ज़े ने पश्चिमी घाट को वैश्विक और राष्ट्रीय चर्चाओं में ला दिया है। वहां मूल प्रजातियों की संख्या ज्यादा है। वहां से कई नदियाँ भी निकलती हैं।”
बाघों और हाथियों जैसे बड़े स्तनधारियों का निवास होने के कारण, पश्चिमी घाट शोधकर्ताओं के लिए भी एक पसंदीदा जगह है।
फिर भी, भारत के एक तिहाई से ज्यादा जानवर छोटे स्तनधारी हैं।
स्थानीय मूषकों पर शोध
चूहे – जो विविध और अनूठे हैं – उन छोटे स्तनधारियों में से एक हैं, जो निश्चित रूप से करिश्माई सूची में शामिल नहीं किए गए।
वे चट्टानी जमीन, शोला घास के मैदान, सूखे जंगलों, घनी वनस्पति वाले क्षेत्रों और वर्षावनों में रहते हैं।
कुमार कहते हैं – “लोग सोचते हैं कि चूहे हानिकारक जीव हैं और वे जमीन को खराब कर देते हैं। लेकिन केवल चार तरह के मूषक उस ‘कीट’ श्रेणी में आते हैं।”
छोटे स्तनधारियों के बारे में बुनियादी जानकारी की कमी ने ही, उन्हें उन पर शोध करने के लिए प्रेरित किया। वह एलविरा चूहे के बारे में अधिक जानने के लिए विशेष रूप से उत्सुक हैं, जिसे “बड़ा चट्टानी चूहे” के रूप में भी जाना जाता है, जिसका मूल निवास सेलम है।
लुप्तप्राय चट्टानी चूहा
अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) की ‘लाल सूची’ ने चट्टानी चूहे (Cremnomys elvira) को बेहद संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया है।
वर्ष 2013 में, एक अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण संगठन, ‘जूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ़ लंदन’ (ZSL) के ‘ऐज ऑफ़ एक्ज़िस्टेंस प्रोग्राम’ (EDGE of Existence program) ने एलविरा चूहे को EDGE या ‘इवोल्यूशनली डिस्टिंक्ट और ग्लोबली एनडेंजरड’ (विलुप्ति के कगार पर प्रजाति) के रूप में घोषित किया, क्योंकि इसे कई दशकों देखा नहीं गया है।
कुमार ZSL के ‘सेग्रे एज फेलोशिप’ के माध्यम से, एलविरा चूहे पर शोध कर रहे हैं।
छोटे स्तनधारी खाद्य-श्रृंखला का एक अभिन्न अंग हैं। वे बीजों के विस्तार और परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कुमार कहते हैं – “छोटे स्तनधारी खाद्य श्रृंखला का एक अभिन्न अंग हैं। वे बीज विस्तार और परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।”
जलवायु परिवर्तन भी उनके अस्तित्व को खतरा पैदा कर सकता है। इन्हीं कारणों से छोटे स्तनधारियों के संरक्षण की जरूरत का संकेत मिलता है।
वह कहते हैं – “एक जानवर की रक्षा के लिए, हमें उनकी संख्या पता होनी चाहिए, उनकी तस्वीर होनी चाहिए और पता होना चाहिए कि वे कहाँ पाए जाते हैं।”
चट्टानी (एल्विरा) चूहे के फैलाव, पर्यावरण और संरक्षण के बारे में कोई प्रारंभिक जानकारी नहीं है। यही वजह है कि कुमार उनका अध्ययन करने के लिए प्रेरित हुए।
संरक्षण के लिए सतत जागरूकता
कुमार का जागरूकता अभियान एक बार का प्रयास नहीं है।
उनका मानना है कि केवल सतत जागरूकता प्रयास ही काम करते हैं।
उन्होंने उत्साहपूर्वक कहा – “केवल तभी बच्चे अपनी गुलेलों को छोड़ेंगे। वे अपने माता-पिता को भी ऐसा नहीं करने के लिए कहेंगे, और इसी से बड़ा फर्क पड़ेगा।”
वह एक समन्वित संरक्षण प्रयास में भी विश्वास करते हैं। वह स्थानीय लोगों की मदद से इकठ्ठा की गई जानकारी को संकलित कर रहे हैं और इसे जिला कलेक्टर और वन विभाग के साथ साझा करने की योजना बना रहे हैं।
“स्थानीय लोगों की भागीदारी होना महत्वपूर्ण है। ग्रामीणों और स्थानीय नीति निर्माताओं में जागरूकता, एलविरा चूहों जैसे छोटे स्तनधारियों के संरक्षण में मदद करेगी।”
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य तस्वीर में शोधकर्ता ब्रवीण कुमार द्वारा हेजहोग को पकड़े दिखाया गया है, जो उन छोटे प्राणियों में से एक है, जिन पर उन्होंने शोध किया है। (छायाकार – शारदा बालासुब्रमण्यम)
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?