सौर आधारित कीट-जाल, रसायन मुक्त खेती की ओर एक कदम

कई अन्य किसानों की तरह, कर्नाटक के कोप्पल जिले में हुनासिहाल गाँव के, शिवपुत्रप्पा कुम्बार, कीट प्रकोप से निपटने के लिए, रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे। इसमें उनके न सिर्फ 5,200 रूपए प्रति फसल खर्च होते थे, बल्कि उससे उनकी जमीन की मिट्टी की गुणवत्ता भी खराब होती थी।

एचडीएफसी बैंक के सहयोग से BAIF द्वारा कार्यान्वित, “समग्र ग्रामीण विकास परियोजना” (HRDP) के अंतर्गत सौर आधारित कीट-जाल की मदद से उन्हें रासायनिक कीटनाशकों का एक अच्छा विकल्प प्राप्त हुआ। अब उनका खर्च बहुत कम हो गया है और उनकी भूमि और ख़राब नहीं हो रही।

समग्र ग्रामीण विकास परियोजना

वर्ष 2021-22 में शुरू हुई एचडीएफसी बैंक की इस परियोजना के अंतर्गत 178 किसानों को सौर कीट-जाल स्थापित करने में सहायता की। इस हस्तक्षेप का कार्य कोप्पल जिले के येलबुर्गा तालुक के 10 गांवों में किया गया। परियोजना की मुख्य विशेषता किसानों को सौर कीट-जाल से परिचित कराना है।

क्योंकि यह इन किसानों के लिए नई तकनीक की शुरुआत थी, इसलिए उन्हें 5,400 रुपए कीमत वाले जाल मुफ्त दिए गए। शिवपुत्रप्पा सौर कीट-जाल लगाने के लिए आगे आए। परियोजना का मूल उद्देश्य रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग और इस पर होने वाले खर्च को कम करके, गरीब किसानों की आजीविका में सुधार करना है। इसका उद्देश्य मानव और जलवायु के स्वास्थ्य की रक्षा करना भी है।

कीट-जाल लगाना और उसके उपयोग

सौर कीट-जाल मिलने के बाद, उन्होंने इसे उन खेतों में लगाया, जिनमें वे सब्जियाँ उगाते थे। अपनी चार एकड़ ज़मीन में उन्होंने खरीफ़ के मौसम में मिर्च, फूलगोभी और टमाटर उगाए; जबकि रबी में टमाटर और गोभी की खेती की।

BAIF ने सौर कीट-जाल लगाने में सहयोग के अलावा, उपकरण कैसे काम करता है इसके बारे में जानकारी प्रदान की। इस बात पर जोर दिया गया कि कीड़ों के मरने से होने वाली दुर्गंध से बचने के लिए, बर्तन की रोजाना सफाई जरूरी है।

परिणाम

शिवपुत्रप्पा बर्तन में सैकड़ों कीट गिरते देख हैरान रह गए। वह नियमित रूप से बर्तन की सफाई करते और उसकी जगह ताजा पानी भर देते थे। वह मृत कीटों को एक गड्ढे में दबा देते थे। 

ज्यादा स्वस्थ सब्जियाँ

उन्होंने सब्जियों में उनके स्वस्थ विकास के मामले में, विशेष रूप से रासायनिक कीटनाशक के छिड़काव की तुलना में, भारी बदलाव भी देखा। 

रासायनिक कीटनाशक प्रयोग में कमी 

महत्वपूर्ण रूप से, कीट हमले में कमी होने से, उनके रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग धीरे धीरे लगभग 50% तक कम हो गया।

बचत

उन्हें कीटनाशकों पर होने वाले खर्च से प्रत्येक फसल के लिए 4,000 रुपए की बचत हुई। उन्हें प्रत्येक फसल पर, छिड़काव के लिए मजदूरी के खर्च से 1,200 रुपए की बचत के अलावा, छिड़काव करने के लिए मजदूरों की तलाश में लगने वाले समय की भी बचत हुई। कुल मिलाकर उन्होंने खरीफ और रबी मौसम में उगाई जाने वाली पाँच सब्जियों पर 26,000 रु. बचाए। 

स्वभाविक रूप से, रासायनिक कीटनाशकों के कम उपयोग के कारण, मिट्टी, जल, वनस्पति और अन्य जीव कम दूषित होंगे, जिससे जलवायु सुरक्षा होगी। इससे किसानों का जोखिम कम होगा और पैदा हुए भोजन में अवशेष और कम होंगे।

शिवपुत्रप्पा की सरल और प्रभावशाली सौर आधारित कीट-जाल के उपयोग की पहल, किसानों के लिए फायदेमंद साबित हुई है। इसने रासायनिक-आधारित कीटनाशकों के उपयोग को कम किया है, जो स्वास्थ्य, मिट्टी की उर्वरता और लागत के मामले में हानिकारक है।

उनके जैसे किसानों की सफलता को देखकर, ज्यादा से ज्यादा किसान इस नए उपकरण को अपनाने के इच्छुक हैं। इसके अलावा, सौर कीट-जाल के बाजार मूल्य में काफी कमी आने से, गरीब किसानों के लिए बिना किसी बाहरी आर्थिक सहायता के इसे खरीदना आसान हो जाएगा।

लेख के शीर्ष पर फोटो में शिवपुत्रप्पा एवं उनकी पत्नी को उपकरण में फंसे कीट प्रदर्शित करते दिखाया गया है |

लेख संपादन – ललिता जोशी, छायाकार – सुनीता कुसुगा