माहवारी यानि मासिक धर्म के बारे में खुलकर बात करना चाहते हैं? माहवारी संबंधी स्वास्थ्य समूह,‘अनइन्हिबिटेड’ की क्रन्तिकारी योजना, "हैलो साथी " हेल्पलाइन आज़माएं। उसके दो चिकित्सकों की रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना ने दो साल से भी कम समय में 150,000 लोगों की मदद की है।
सुरेखा हामरे अक्सर नदियों और पहाड़ियों से होते हुए, सुदूर आदिवासी बस्तियों तक पहुँचने के लिए, रोज पाँच से आठ किलोमीटर पैदल चलती हैं।
वह एक मिशन पर हैं।
वह लड़कियों और महिलाओं से माहवारी से जुड़ी उनकी जिज्ञासाओं और चुनौतियों के बारे में बिना शर्म या आंकलन के बात करना चाहती हैं।
हामरे कहती हैं – “यदि मैं महिलाओं से प्यार और देखभाल के साथ बात करती हूँ, तो महिलाएं उन मुद्दों के बारे में खुलकर बात करती हैं, जिन्हें वे अपने परिवारों के साथ भी साझा नहीं कर सकती हैं। कुछ महिलाएं सफेद-स्राव, संक्रमण, गर्भावस्था और माहवारी के दर्द सम्बन्धी बार बार होने वाली उन समस्याओं की कहानियों को साझा करते हुए रो पड़ती हैं, जिनसे वे वर्षों से जूझ रही हैं।”
हामरे उन कई सामुदायिक चैंपियंस में से एक हैं, जो “हैलो साथी” हेल्पलाइन सेवा के हिस्से के रूप में, हमारे माहवारी स्वास्थ्य संगठन, अनइन्हिबिटेड के लिए जमीनी स्तर पर सहायता और देखभाल प्रदान करते हैं ।
“हैलो साथी” लड़कियों और महिलाओं को माहवारी स्वास्थ्य और यौन प्रजनन के सभी पहलुओं के बारे में जानकारी और चिकित्सा मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह मुख्य रूप से जरूरी जानकारी एवं चिकित्सा मार्गदर्शन प्रदान करने वाली एक टेलीमेडिसिन हेल्पलाइन है।
माहवारी वर्जना
भारत में 35.5 करोड़ मासिक धर्म वाली महिलाएं और लड़कियां हैं, लेकिन उनमें से ज्यादातर अब भी सम्मान के साथ जीने के लिए संघर्ष कर रही हैं, क्योंकि उनका मानना है कि माहवारी का रक्त “अशुद्ध और गंदा” होता है।
माहवारी सम्बन्धी यह वर्जना महिलाओं और लड़कियों को सूचना, स्वास्थ्य देखभाल और सेनेटरी उत्पादों तक पहुंचने से रोकता है। इसका यह भी मतलब है कि बहुत सी महिलाएं शर्म और दमन के साथ जीती हैं, जो केवल स्वास्थ्य और लैंगिक असमानता की खाई को चौड़ा करता है।
लॉकडाउन के दौरान ये समस्याएं और बढ़ गईं।
‘जर्नल ऑफ़ ग्लोबल हेल्थ’ के 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 24.3 करोड़ किशोरियों में से 93% हर महीने माहवारी के दौरान स्कूल नहीं जाती हैं, क्योंकि उनके लिए स्कूल में माहवारी का प्रबंधन मुश्किल होता है।
स्कूल में उन की अनुपस्थिति कितनी होती है?
गैर-लाभकारी संगठनों को सहयोग प्रदान करने वाली ‘दसरा’ के एक अध्ययन ‘स्पॉट ऑन’ के अनुसार, महीने में औसतन छह दिन!
इससे भी बुरी बात यह है कि इसके कारण लगभग 23% लड़कियां युवावस्था में पहुंचने तक स्कूल छोड़ देती हैं। इससे व्यक्तियों और भविष्य के श्रमिकों के रूप में, उनकी क्षमता कम होती है। 20 करोड़ महिलाएं और लड़कियां सुरक्षित माहवारी तरीकों से अनभिज्ञ हैं, जिस कारण रोके जा सकने वाले संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है।
लड़कियां जानकारी और सहयोग के लिए अक्सर अपनी माताओं के पास जाती हैं, लेकिन 70% माताएं माहवारी को “गंदा” मानती हैं, जिससे इसे जुड़ी भ्रांतियां और बढ़ जाती हैं।माहवारी-लांछन का महिलाओं की शिक्षा, कार्यबल में भागीदारी और सम्मान के अधिकार पर गंभीर प्रभाव होता है।
महाराष्ट्र के आदिवासी बहुल जिले, पालघर की 34-वर्षीय साक्षी ने कई वर्षों तक मासिक धर्म के दर्द को नज़रअंदाज़ किया, क्योंकि नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एकमात्र डॉक्टर एक पुरुष था।
साक्षी की कहानी अनोखी नहीं है। इस लांछन का मतलब है कि करोड़ों लड़कियां और महिलाएं अपनी माहवारी, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं देती हैं, जिससे स्वास्थ्य चुनौतियों का खतरा बढ़ जाता है।
‘हैलो साथी’ हेल्पलाइन की शुरुआत
कोविड-19 और लॉकडाउन ने इस सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती को और बढ़ा दिया।
‘अनइन्हिबिटेड’ के संस्थापक, दिलीप पटटूबाला कहते हैं – “महामारी ने माहवारी सम्बन्धी काम के आवागमन को और भी कम कर दिया। अपने शोध में हमने पाया कि हाशिये पर रहने वाले समुदायों की महिलाओं ने स्वास्थ्य सेवा तक जाना स्थगित कर दिया। इससे उनके स्वास्थ्य विकारों और चिकित्सा खर्चों का खतरा बढ़ गया।”
अपने जमीनी स्तर के काम के आधार पर, ‘अनइन्हिबिटेड’ ने मासिक धर्म, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए भारत के एकमात्र मुफ्त टेलीमेडिसिन सहयोग, ‘हैलो साथी’ की शुरुआत की।
“हमने शून्य लागत पर माहवारी सम्बन्धी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल के लिए, हैलो साथी हेल्पलाइन शुरू की। आपके पास सिर्फ 8047104234 पर कॉल करने के लिए फोन में एक रुपये का बैलेंस और अपनी देखभाल करने की इच्छा की जरूरत होती है।”
आप बिना परिवार के किसी पुरुष सदस्य पर निर्भर हुए, हैलो साथी को कॉल कर सकते हैं। माहवारी वाली महिला/लड़की को अस्पताल जाने या काम और मजदूरी छोड़ने की जरूरत नहीं है, न ही जानकारी को समझने के लिए ऊंची शिक्षा की।
टेलीमेडिसिन मॉडल सबसे वंचित की मदद करता है
हेल्पलाइन माहवारी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी, प्रशिक्षित एजेंटों के माध्यम से स्व-देखभाल और कम लागत वाले उपायों के लिए, दूरदराज स्थानों तक 12/7 पहुंच प्रदान करती है। यह मान्यता प्राप्त स्त्री रोग विशेषज्ञों, चिकित्सकों, यौन रोग विशेषज्ञों और परामर्शदाताओं द्वारा टेली-मेडिसिन परामर्श और माहवारी, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी परामर्श उनके अपने राज्यों में प्रदान करता है।
हेल्पलाइन की टीम वंचित समुदायों से है, जिससे भाषाओं में अंतर को पाटने और अति-स्थानीय संदर्भों को समझने में मदद मिलती है। जानकारी हिंदी, मराठी, तमिल और कन्नड़ में उपलब्ध है।
हैलो साथी का रिमोट-सुलभ टेलीमेडिसिन मॉडल सबसे अधिक वंचित तक पहुंचने की कड़ी चुनौतियों से निपटता है। फोन और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच सीमित होने के कारण, जमीनी कार्यकर्ताओं की हैलो साथी की टीम, जिसे प्यार से ‘सामुदायिक चैंपियन’ कहा जाता है, ग्रामीण महिलाओं तक पहुंचती है।
हर रोज, एक सामुदायिक चैंपियन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और बिहार के भारत के कुछ सबसे अविकसित गाँवों में घर-घर जाता है और उपयोगकर्ताओं को अपने फोन से और स्थानीय बोलियों में संदेशों का अनुवाद करके जोड़ता है।
पूरा सहयोग
जब एक उपयोगकर्ता हेल्पलाइन पर कॉल करता है, तो उन्हें ‘स्वास्थ्य-साथी’ नाम के हैलो साथी हेल्पलाइन के एजेंटों से जोड़ दिया जाता है। उन्हें कोई विपरीत टिप्पणी ने करने, गोपनीयता बनाए रखने और चिकित्सा से जुड़े कठिन शब्दों का कम से कम उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
जिन लोगों को इलाज की जरूरत होती है, उन्हें डॉक्टरों से जोड़ दिया जाता है, जो उन्हें टेलीमेडिसिन परामर्श, ई-नुस्खे और फॉलो-अप प्रदान करते हैं।
जुलाई 2020 में शुरू होने के बाद से, हैलो साथी हेल्पलाइन ने 150,000 से अधिक संवेदनशील महिलाओं, पुरुषों और किशोरों की मदद की है।
यदि किसी समस्या की और जाँच जरूरत होती है, तो हेल्पलाइन द्वारा नजदीकी प्राथमिक या छोटे स्वास्थ्य केंद्रों को रेफर करती है, ताकि उपयोगकर्ता द्वारा शून्य या कम लागत पर अपनी स्वयं की देखभाल को प्राथमिकता देना सुनिश्चित किया जा सके।
हैलो साथी हेल्पलाइन का प्रभाव
इसने लोगों को अन्य विषयों के साथ-साथ, शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाओं, स्वच्छता और सामान्य संक्रमणों के बारे में जानने में मदद की है।
वंचित महिलाओं की सबसे ज्यादा पाई गई चिंताएँ, चाहे वे किसी भी क्षेत्र की महिलाएं हों, माहवारी-पूर्व का डर (premenstrual syndrome), पीड़ादायक माहवारी, श्वेत स्राव और अनियमित माहवारी हैं।
पुरुषों के यौन स्वास्थ्य पर भी मदद
अनइन्हिबिटेड ने 2021 में, गैर माहवारी मुद्दों के लिए भी हिंदी में हैलो साथी लॉन्च किया। पुरुषों के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को लेकर चुप्पी और अलगाव, आकार-सम्बन्धी मर्दानगी और ‘पूर्ण पुरुष’ न होने की सांस्कृतिक दबाव में निहित गहरी शर्म से उपजा है।
पुरुष सामुदायिक चैंपियन घर-घर जाते हैं और पुरुषों को अपने यौन स्वास्थ्य संबंधी प्रश्नों या चिंताओं के बारे में खुलकर बात करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हेल्पलाइन को ग्रामीण भारतीय पुरुषों से लगभग 3,000 कॉल प्राप्त हुई हैं, जो आमतौर पर इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (यौन प्रक्रिया के समय लिंग का ठीक से तैयार न हो पाना), शीघ्रपतन, लिंग के आकार के बारे में असुरक्षा और यौन से होने वाले संक्रमणों से जूझ रहे हैं।
अपने स्वयं के यौन स्वास्थ्य के अलावा, पुरुष माहवारी के बारे में जानकारी के लिए भी हेल्पलाइन पर कॉल करते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण बिहार में एक पिता, पियूष ने अपनी 17-वर्षीय बेटी की मदद के लिए हेल्पलाइन पर कॉल किया, जो अनियमित माहवारी से जूझ रही थी। पीयूष इस बात से खुश थे कि उनकी बेटी बिना किसी खर्च के एक विश्वसनीय व्यवस्था से संपर्क कर सकीय।
सेक्स वर्कर्स तक पहुंचना
तकनीकी पार्टनर ‘स्ट्रॉस हेल्थकेयर’ के साथ मिलकर, हैलो साथी टीम गंभीर लांछन का सामना कर रहे एक और वंचित समुदाय तक हेल्पलाइन ले जाने पर काम कर रही है।
‘सहेली संघ’ और ‘स्वाति महिला संघ’ जैसे समुदाय-आधारित संगठनों के सहयोग से, हैलो साथी अब सेक्स वर्कर्स द्वारा भी इस्तेमाल हो रही है। आने वाले महीनों में, इसकी सेवाओं का विस्तार ट्रांस और समलैंगिक व्यक्तियों तक होगा।
हालाँकि हैलो साथी को महामारी के हालात में काम के लिए लॉन्च किया गया था, लेकिन हमने वंचित समुदायों को मासिक धर्म, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सम्बन्धी गुणवत्तापूर्ण सेवाएं प्रदान करने की इसकी अपार क्षमता को साबित किया है। स्कूल जाने वाली किशोरियों के लिए इसका क्या मतलब है, और आगे जीवन में समान अवसरों तक उनकी पहुंच को लेकर इसके प्रभाव का पैमाना अद्भुत है।
अंत में, हैलो साथी एक ऐसी दुनिया की कल्पना करता है, जहां माहवारी वाली महिलाएं अपने स्वास्थ्य पर नियंत्रण प्राप्त करें। यह सबके लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक बराबर पहुंच के लिए भौगोलिक और सामाजिक-सांस्कृतिक भेदभावपूर्ण बाधाओं को दूर करने की दिशा में एक छोटा, लेकिन ईमानदार कदम है, विशेष रूप से सबसे अधिक वंचितों के लिए।
इस लेख के शीर्ष पर फोटो में एक महिला ‘हैलो साथी’ हेल्पलाइन का इस्तेमाल करते हुए दिखाई गई है (फोटो – अनइन्हिबिटेड से साभार)
रुचा सतूर और मीनल खरे ‘अनइन्हिबिटेड’ में क्रमशः अभियान प्रबंधक एवं चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हैं। बैंगलोर स्थित, ‘अनइन्हिबिटेड’ भारत भर में माहवारी को गैर-मुद्दा बनाने के लिए काम करने वाला एक संगठन है।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?