पहले लड़कियां नौ साल की उम्र से ही टैटू बनवाना शुरू कर देती थी। जैसे-जैसे वे बड़ी होती हैं, उनके हाथों, पैरों, जांघों, पीठ पर और बच्चा पैदा होने के बाद छाती पर टैटू बनवाए जाते हैं।
प्रत्येक चरण में बने टैटू का अपना अर्थ होता है। वे आग, फसल, अनाज, मोर, मछली, मधुमक्खी के छत्ते, फूल और बहुत कुछ का प्रतीक होते हैं।
अफसोस की बात है कि अब वे टैटू को अपने जीवन का अभिशाप मानते हैं। बैगा जनजाति के ज्यादातर लोग टैटू गुदवाने की इस प्राचीन परम्परा को छोड़ रहे हैं।
इसके अलावा वे आधुनिक टैटू डिजाइन पसंद करते हैं, न कि प्राचीन प्रतीकों को, जिनका बहुत अधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है।
आधुनिक टैटू रासायनिक स्याही से बनाए जाते हैं। इसलिए कलाकार रंगों और डिजाइनों में अधिक विविधता लाने में सक्षम होते हैं।
यही कारण है कि आजकल बहुत लोग आदिवासी टैटू का विकल्प नहीं चुनते।