तीखे भोजन का जुनून – अप्पेमिडी मैंगो अचार
तटीय कर्नाटक में जरूर खाने की चीज - छोटे, लेकिन सुगंधित अप्पेमिडी आमों से बने अचार इतने लोकप्रिय और मांग में हैं कि और ज्यादा किसान ये कठोर आम उगा रहे हैं।
तटीय कर्नाटक में जरूर खाने की चीज - छोटे, लेकिन सुगंधित अप्पेमिडी आमों से बने अचार इतने लोकप्रिय और मांग में हैं कि और ज्यादा किसान ये कठोर आम उगा रहे हैं।
खट्टे, कुरकुरे, मसालेदार अप्पेमिडी आम का अचार – अचार पारखी लोगों का नवीनतम पसंदीदा।
भारत के हर इलाके में अचार की एक किस्म होती है, जिसे वहां की अपनी कहा जाता है। कर्नाटक के कुछ हिस्सों में छोटे और साबुत अप्पेमिडी आम से बना अचार वहां का अपना है।
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ और शिवमोग्गा जिलों के घरों में, अप्पेमिडी अचार के जार होना गर्व की बात है । यहाँ छोटे, सुगंधित आम से बने अचार को खुले दिल से पेश किए बिना भोजन अधूरा माना जाता है।
अचार के प्रशंसक इसकी जोरदार और मोहक सुगंध की गवाही देते हैं। बेंगलुरू स्थित एक सरकारी शोध संस्थान, ‘भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान’ (IIHR) की विवरण पुस्तिका के अनुसार इसकी इसकी सुगंध इतनी तेज है कि एक साधारण अचार में अप्पेमिडी के कुछ ही टुकड़े मिला देने से, इसका स्वाद और गंध बदल जाएगा।
अचार के शौकीन इससे सहमत हैं।
कुछ ही समय पहले तक खुशबूदार अप्पेमिडी आम के अचार के बारे में कर्नाटक के तटीय इलाकों के बाहर लगभग बिलकुल नहीं सुना जाता था। लेकिन वे इतने लोकप्रिय कैसे हो गए कि अब आप उन्हें लोकप्रिय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर पा सकते हैं?
अप्पेमिडी (मुलायम के लिए कन्नड़ शब्द) मलेनाडु क्षेत्र का मूल पैदावार है, जहां बहुत अधिक बारिश होती है। हालांकि यह कर्नाटक के तटीय इलाकों में लोकप्रिय था, लेकिन दूसरे स्थानों के लिए यह काफी हद तक अनजान बना रहा।
लेकिन सोशल मीडिया की बदौलत, अप्पेमिडी अचार बेंगलुरु, मैसूरु, हुबली, बेलगावी और मंगलुरु जैसी जगहों पर लोकप्रिय हो गया है ।
अप्पेमिडी आम के अचार की बोतलें जिस दिन आती हैं, उसी दिन दुकान की अलमारियों से गायब हो जाती हैं।
इसका एक कारण अप्पेमिडी की अनूठी सुगंध और स्वाद है।
‘अप्पेमिडी’ शब्द में छोटे अचार वाले आम की कई किस्में शामिल हैं।
इन अप्पेमिडी आमों की प्रत्येक किस्म फल के रूप में अनोखी है और इनकी पत्तियों में अलग-अलग सुगंध होती है। उदाहरण के लिए सादे मिडी सादा किस्म है, जीरीगे मिडी में जीरे की सुगंध और कर्पूर मिडी में कपूर की सुगंध है।
इसकी लोकप्रियता का दूसरा कारण यह है कि बिना किसी प्रेज़रवेटिव के बना होने के बावजूद, यह पांच से छह साल तक चलता है।
ऐसा माना जाता है कि यह आम की एकमात्र किस्म है, जिसका उपयोग सिर्फ अचार के लिए किया जाता है और फल के रूप में कभी नहीं खाया जाता है। क्योंकि यह कोमल होता है, इसमें कोई गुठली नहीं है और साबुत आम का अचार बनाया जाता है।
अचार इतने लोकप्रिय हैं कि नाम्मोरू ब्रांड का अचार बनाने वाले तिरुमलेश्वर हेगड़े जैसे लोगों का कहना है कि मांग आपूर्ति से कहीं अधिक है।
वर्ष 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार, अकेले कर्नाटक में अप्पेमिडी का बाजार लगभग 12 करोड़ रूपए सालाना है। लेकिन IIHR के के. रविशंकर के अनुसार, असंगठित उद्योग का कुल मूल्य 100 से 150 करोड़ रुपए के बीच हो सकती है।
हेगड़े, जिनके मंचुकेरी गाँव के अपने खेत में 60 अप्पेमिडी पेड़ हैं, कहते हैं – “हर साल मार्च में मैं बेलगावी के खानापुर से शिवमोग्गा तक जंगलों में उगने वाले आम इकट्ठा करने के लिए यात्रा करता हूं।”
हेगड़े ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम लगभग 80 टन अप्पेमिडी आम का अचार बेचते हैं। लेकिन हम अब भी बढ़ती मांग को पूरा नहीं कर पाते हैं।”
अचार को प्रवासी, मुख्य रूप से मध्य पूर्वी देशों में रहने वाले भारतीयों को निर्यात भी किया जाता है।
अचार के लिए संभावित बाजार को देखते हुए, अधिक किसानों ने आम के पेड़ उगाने शुरू कर दिए हैं।
चार साल पहले, समीर पाटिल ने लक्कलकट्टी गांव में 500 पौधे लगाए, जहां तटीय इलाकों के विपरीत बहुत कम बारिश होती है।
वह कहते हैं – “शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में फलने-फूलने की इसकी क्षमता ने मुझे इस नई फसल को लगाने के लिए प्रेरित किया।”
तुमकुरु, बेंगलुरु और अन्य स्थानों के अप्पेमिडी उगाने वाले कई किसान भी मांग को भुनाने की उम्मीद कर रहे हैं।
एक अप्पेमिडी नर्सरी के मालिक और एक इंजीनयर, अनंतमूर्ति जावली ने पिछले कुछ वर्षों में लगभग 10,000 पौधे बेचे हैं।
जावली कहते हैं – “आम की अन्य किस्मों के विपरीत, अप्पेमिडी पर किसी भी कीट प्रभाव नहीं पड़ता। और प्रचलित धारणा के विपरीत, यह गुलबर्गा और बीदर जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी पनप सकता है।”
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “यही कारण है कि आंध्र प्रदेश में बहुत से किसानों ने इसे उगाना शुरू कर दिया है।” तमिलनाडु के किसान भी अब यह पेड़ लगा रहे हैं।
अप्पेमिडी आम गुच्छों में लगते हैं, प्रत्येक गुच्छे में 15 से 20 फल होते हैं। तोते की चोंच के आकार का आकर्षक फल, मुश्किल से 3.6 सेमी लंबा होता है और एक आम का वजन सिर्फ 10 ग्राम के करीब होता है।
एक तैयार पेड़ 5,000 से 10,000 फल दे सकता है, जिससे लगभग 15,000 रुपये से 30,000 रुपये के बीच आय हो सकती है।
राजेंद्र हिंदुमाने के होसहल्ली गांव में उनके 2 एकड़ के खेत में 40 अप्पेमिडी के पेड़ हैं। वह हर साल लगभग 20,000 आमों की तुड़ाई करते हैं और प्रत्येक आम से उन्हें 3 रुपये मिलते हैं।
एक अचार निर्माता, गणेश काकल, जिनके 40 किस्मों के अप्पेमिडी आमों के 400 पेड़ हैं, ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “इस साल, सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला अप्पेमिडी 5 रुपये प्रति आम के हिसाब से बेचा गया।”
जैसा कि काकल के खेत में देखा जा सकता है, अप्पेमिडी की कई किस्में हैं। अनंतभट्ट के अप्पेमिडी – शायद एक सदी पहले पहचानी और लोकप्रिय हुई सबसे पुरानी किस्म – का नाम बलुर गांव के अनंत भट के नाम पर रखा गया है। अन्य लोकप्रिय किस्मों में मालंजी अप्पेमिडी और हलाडोटा अप्पेमिडी शामिल हैं।
इसकी बाजार क्षमता को ध्यान में रखते हुए, आमों की अनुवांशिक विशेषताओं को तय करने के उद्देश्य से, IIHR ने शिवमोग्गा, उत्तर कन्नड़ और कूर्ग जिलों से अप्पेमिडी किस्में इकठ्ठा की हैं।
इसके अलावा, IIHR ने स्थानीय अचार की किस्मों का सर्वेक्षण किया, जिसके कारण 62 विभिन्न प्रकार की अप्पेमिडी किस्मों की पहचान हुई है, जिन्हें ग्राफ्टिंग के माध्यम से आगे बढ़ाया जा सकता है।
अप्पेमिडी को लोकप्रिय बनाने में मदद करने के लिए, सिरसी स्थित वानिकी कॉलेज (CoF) 2015 से अप्पेमिडी मेले आयोजित कर रहा है। अब तक आयोजित तीन मेले किसानों में बेहद लोकप्रिय रहे हैं।
CoF ने अब तक उत्तर कन्नड़ के 76 गांवों में किसानों को अधिक उपज देने वाले 20,000 ग्राफ्ट के पौधे वितरित किए हैं।
सीओएफ ने एक कन्नड़-अंग्रेजी द्विभाषी संदर्भ पुस्तक भी प्रकाशित की है।
CoF के प्लांट जेनेटिसिस्ट और प्रोफेसर (फॉरेस्ट बायोलॉजी), आर वासुदेव ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम इस समय अपने मलागी स्थित अनुसंधान केंद्र में अप्पेमिडी की 100 क्लोन किस्मों के जर्मप्लाज्म का संरक्षण कर रहे हैं।”
सागर-स्थित ‘सह्याद्री रेंज अप्पेमिडी ग्रोअर्स फेडरेशन’ अपने 260 सदस्यों के साथ 45 एकड़ में पेड़ उगाते हैं। इसने भारत की 1500 के करीब आम की किस्मों में, अप्पेमिडी को एक भौगोलिक सूचकांक (जीआई) टैग प्राप्त करने में मदद की। पिछले सितंबर में जारी किए गए अप्पेमिडी पर एक विशेष डाक कवर प्राप्त करने में भी इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
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हिरेन कुमार बोस ठाणे, महाराष्ट्र में स्थित एक पत्रकार हैं। वह सप्ताहांत में किसान के रूप में काम करते हैं।
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