ग्रामीण पंजाब के इस समलैंगिक जोड़े का प्यार मजबूत है, लेकिन उन के लिए जीवन एक संघर्ष है। समान-सेक्स विवाह को मान्यता देने वाले कानून के अभाव में, बहुत से लोगों की तरह उन्हें किराए पर घर लेने में परेशानी होती है और अक्सर वे अपनी पहचान छिपाते हैं।
लवली राणा और बी जसप्रीत के लिए यह पहली नजर का प्यार था, जब वे आठवीं कक्षा में पहली बार अपने कोचिंग सेंटर के बाहर मिले थे। वे तब तक एक दूसरे से मिलते रहे और साथ समय बिताते रहे, जब तक कि उन्होंने एक-दूसरे के लिए अपने प्यार का इजहार नहीं कर लिया।
यह न केवल उनकी प्रेम कहानी की शुरुआत थी, बल्कि राणा और उनकी मां के बीच दरार भी थी।
राणा बताती हैं – “मेरी माँ ने मुझसे कहा कि यदि मैं किसी लड़की के साथ रहना चाहती हूँ, तो मैं घर से निकल जाऊं। क्योंकि यह उसके अनुसार गलत था। इसलिए मेरे पास घर छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था।”
शहरों में समलैंगिक संबंध वाले लोगों को कुछ हद तक स्वीकार कर लिया जाता है। लेकिन कस्बों और गांवों में रहने वाले राणा और जसप्रीत जैसे लोगों को नहीं। खासकर तब, जब समलैंगिक विवाह की अनुमति देने वाला कोई कानून नहीं है।
छुपी हुई पहचान
अपनी 21-वर्षीय साथी जसप्रीत की तरह, 19-वर्षीय राणा ने भी नौवीं कक्षा तक पढ़ाई की है।
राणा को लंबे बालों, लाल चूड़ियों और चमकदार मेकअप के साथ, एक नवविवाहित पंजाबी महिला की तरह सजना-संवरना पसंद है। जसप्रीत के बाल छोटे हैं और वह राणा के शब्दों में ‘मर्दाना कपड़े’ पहनती हैं।
घर चलाने के लिए जसप्रीत भटिंडा जिले के एक पेट्रोल पंप पर 10,000 रुपए महीना पर काम करती हैं।
जसप्रीत कहती हैं – “समाज में शांति से जीने के लिए मुझे एक पुरुष की तरह जीना और दिखना है।”
अन्यथा दोनों को ही आलोचनाओं का सामना करने का डर है और यहां तक कि उन्हें अपने किराए के घर से भी बाहर निकाला जा सकता है।
राणा ने फुसफुसाते हुए कहा – “हमारे ज्यादातर पड़ोसी और जसप्रीत के साथ काम करने वाले लोग जानते तक नहीं कि वह पुरुष नहीं है।”
क्या परिवारों में समलैंगिकों की स्वीकार्यता है?
जिस दिन से जसप्रीत के साथ रहने के लिए राणा ने घर छोड़ा, उन्होंने अपनी माँ से कुछ नहीं सुना है, हालाँकि वह अपनी बड़ी बहनों के संपर्क में हैं।
राणा के पिता का तपेदिक के कारण निधन हो गया था, जब वह सिर्फ 42 वर्ष के थे।
इस साल जून में उनकी पुण्यतिथि पर पूजा के लिए, उनकी मां ने राणा की बहनों को आमंत्रित किया, लेकिन राणा को नहीं।
वह कहती हैं – “मैंने अपनी बहनों से बात की। मैंने अपनी मां से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरे फोन का जवाब नहीं दिया। जब मैंने पापा की बरसी (पुण्यतिथि) पर उनसे मिलने जाने की कोशिश की, तो उन्होंने मुझे घर के अंदर कदम नहीं रखने दिया।”
राणा के घर छोड़ने पर, जसप्रीत के माता-पिता ने उन्हें आश्रय दिया।
राणा ने कहा – “जसप्रीत के माता-पिता बहुत स्वागत करने वाले और गर्मजोशी से भरे हुए थे। उन्होंने मुझे ऐसा महसूस कराया कि मैं उनकी अपनी बेटी हूँ। वास्तव में वे इस बात का उदाहरण हैं कि समलैंगिक जोड़ों के माता-पिता कैसे होने चाहिएं। अपने बच्चों के लिए शक्ति-स्तंभ।”
राणा स्वीकार करती हैं कि जब उन्होंने घर छोड़ा, तो वह बहुत डरी हुई थी, लेकिन अब नहीं, क्योंकि जसप्रीत के माता-पिता बहुत सहायक रहे हैं।
गाँवों में समलैंगिक युगल होना कठिन
भारत में समलैंगिकता पर अपने लेख में, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की अनुराधा पाराशर कहती हैं – “भारत में समलैंगिक संबंध अनसुने नहीं हैं, लेकिन वे आमतौर पर देश के बड़े शहरों में होते हैं, जहां लोग अपनी लैंगिकता के बारे में अधिक खुले हो सकते हैं।”
वर्ष 2018 में अपराध की श्रेणी से हटाने का कानून बनने तक, लखनऊ की रहने वाली 32-वर्षीय दंत चिकित्सक, राशि सिंह ने अपने दोस्तों या परिवार को इसके बारे में नहीं बताया था।
सिंह ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “उसके बाद ही मैंने उन्हें अपनी समलैंगिकता के बारे में बताने की हिम्मत की। मेरे माता-पिता को अब भी उम्मीद है कि मुझे एक दिन ‘अपनी गलती’ का एहसास होगा और किसी लड़के के साथ घर बसा लूंगी। शुक्र है कि उन्होंने मुझे त्यागा नहीं है।”
सिंह का मानना है कि कस्बों की तुलना में, शहरों में लोगों के लिए चीजें आसान होती हैं।
समान-सेक्स संबंधों की वर्जनाओं में बदलाव
एड्स की समाप्ति के लिए काम करने वाले संगठन, UNAIDS के अनुसार, दुनिया के कम से कम 67 देशों और प्रदेशों में, सहमति से बने समलैंगिक संबंध अब भी अपराध हैं।
वर्ष 2018 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया कि समलैंगिक यौन संबंध अब देश में एक कानूनी अपराध नहीं हैं।
भारत एक ऐसे देश के रूप में जाना जाता है, जो अपने साहित्य, कला, पौराणिक कथाओं और मूर्तियों में समलैंगिक संबंधों और लिंग गतिशीलता का जश्न मनाता है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय में पेश सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में कम से कम 25 लाख समलैंगिक हैं, लेकिन बहुत से भारतीय, LGBTQ लोगों के साथ सहानुभूति रखने में विफल रहे हैं।
‘मूड ऑफ द नेशन’, 2019 के एक जनमत सर्वेक्षण के अनुसार, 62% भारतीय समान-सेक्स विवाह को स्वीकार नहीं करते, जो भारत में अब भी गैर-कानूनी है।
सामाजिक चुनौतियां
जसप्रीत और राणा जसप्रीत के माता-पिता के करीब रहते हैं।
दोनों ने कहा – “हम 1,500 रुपये महीना किराए के घर में रहते हैं। हमारे लिए घर ढूंढ़ना एक चुनौती थी, क्योंकि हम जिन मकान मालिकों से संपर्क करते थे, वे हमेशा विवाह प्रमाणपत्र मांगते थे। हमें कुछ सूझ नहीं रहा था, कि क्या करें। शुक्र है कि इस मकान मालिक ने बिना प्रमाण पत्र मांगे जगह दे दी।”
अपने पिता की मृत्यु के बाद परिवार में आर्थिक संकट के कारण, राणा को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। अब बेहतर कमाई और अपने साथी की मदद के लिए, वह वापिस स्कूल जाना चाहती हैं। लेकिन इस के लिए उन्हें दस्तावेजों की जरूरत है, जो केवल उसकी माँ के पास हैं।
आह भरते हुए राणा कहती हैं – “मैं जल्द से जल्द अपनी दसवीं कक्षा पूरी करना चाहती हूँ। दाखिला लेने के लिए मुझे अपना जन्म प्रमाण पत्र और आधार कार्ड चाहिए। लेकिन मेरी माँ ये मुझे नहीं दे रही है। वह मुझसे बात तक करने के लिए तैयार नहीं है।”
यह एक और उदाहरण है कि प्यार की अपनी व्यक्तिगत पसंद के कारण, व्यवस्था उसके खिलाफ कैसे काम कर रही है।
“काश मेरे पिता आज यहां होते। यह देखने के लिए कि मैं कितनी खुश हूँ। केवल वही एक थे, जो मेरी माँ को मुझे स्वीकार करने के लिए राजी कर सकते थे… हमें स्वीकार करने के लिए। यदि मेरे पिता अभी भी जीवित होते, तो मेरा जीवन ज्यादा तनाव मुक्त और शांतिपूर्ण होता।”
इस लेख के शीर्ष पर, कई फोटो की एक समुच्चित तस्वीर है, जिसमें लवली राणा और जसप्रीत को दिखाया गया है (छायाकार – जिज्ञासा मिश्रा)
जिज्ञासा मिश्रा एक पत्रकार हैं, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के महिलाओं के मुद्दों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बारे में लिखती हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?