महिला किसानों के लिए तरबूज लाया मीठी सफलता
आजीविका अवसरों की कमी वाले दूरदराज के गांवों में, उत्पाद को बाजार तक ले जाने के लिए परिवहन अभाव की परवाह किए बिना, महिलाएं सफलतापूर्वक तरबूज की खेती अपनाती हैं।
आजीविका अवसरों की कमी वाले दूरदराज के गांवों में, उत्पाद को बाजार तक ले जाने के लिए परिवहन अभाव की परवाह किए बिना, महिलाएं सफलतापूर्वक तरबूज की खेती अपनाती हैं।
रसीले तरबूज का टुकड़ा खाने से निश्चित रूप से गर्मी से एक मीठी राहत मिलेगी। लेकिन क्या आपने रूक कर कभी सोचा है कि ये फल आ कहाँ से रहा है?
ओडिशा के कोरापुट जिले का एक दूरदराज का गाँव, बागुंडीपाड़ा वह जगह है, जहां तरबूज महिलाओं को आजीविका की नई जीवनरेखा दे रहे हैं।
पहाड़ियों और घने जंगलों से घिरे इस गाँव में कोई मोबाइल या इंटरनेट संपर्क नहीं है। वास्तव में कुछ ग्रामवासी सिर्फ अपना फोन इस्तेमाल कर पाने के लिए 5 किलोमीटर की यात्रा करते हैं।
आजीविका के बहुत ही कम अवसर वाला यह एक सुदूर गाँव है। लेकिन भारत में तरबूज की मांग इसे बदल रही है।
सोना मोनीकृष्णा को यह फल उगाने में गर्व महसूस होता है, जो उन्हें एक टिकाऊ आय प्रदान करता है।
मोनीकृष्णा कहती हैं – “इस निर्जन क्षेत्र में, आजीविका के ज्यादा विकल्प नहीं हैं। मेरे पति एक खेत में मजदूर का काम करते हैं और आय बहुत सीमित है। ऐसे में तरबूज उगाने से वास्तव में हमें कमाई में मदद मिल रही है।”
मोनीकृष्णा जैसे किसानों के लिए तरबूज की खेती आर्थिक वरदान है।
लेकिन यह सरकार और एक गैर-सरकारी संगठन का प्रोत्साहन था, जिसने उसे तरबूज के बेलें उगाने के लिए प्रेरित किया।
एक ग्रामीण आजीविकाओं के लिए काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन, प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (‘प्रदान’) ने जनवरी 2020 में कोरापुट जिले के आठ गांवों में महिलाओं के लिए तरबूज की खेती शुरू की।
ग्रामीण लोग पहले सिर्फ मिर्च और फलियां ही उगाते थे।
प्रदान की एक कार्यकारी अधिकारी, रश्मिता शेट्टी कहती हैं – “लेकिन साल के ज्यादातर समय भूमि खाली पड़ी रहती थी।”
“हमें लगा कि किसान तरबूज की खेती कर सकते हैं, क्योंकि इस ढलान वाली भूमि पर पानी आसानी से बह सकता है। क्योंकि रुका हुआ पानी तरबूज की फसल को बर्बाद कर सकता है।”
शुरू में, आठ गांवों की 26 महिला किसानों की 25 एकड़ जमीन में तरबूज की खेती का कार्यक्रम शुरू किया गया।
पहले साल प्रदान ने बीज की व्यवस्था की। अगले साल राज्य सरकार की ‘इंटीग्रल डेवलपमेंट ट्राइबल एसोसिएशन’ (IDTA) ने महिलाओं को बीज दिए।
इनसे तरबूज की अच्छी पैदावार हुई।
शेट्टी ने कहा – “औसत उत्पादन लगभग 5-6 टन प्रति एकड़ है।”
मोनीकृष्णा ने इस साल जनवरी में आधा एकड़ जमीन में तरबूज के बीज बोए थे, जिससे अप्रैल में उन्हें 3 टन फल मिले।
उन्होंने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मैंने बीज और खाद पर लगभग 3,000 रुपये खर्च किए। मैंने नजदीकी बाजार में 12,000 रुपये में फल बेचे।”
अच्छी पैदावार और लाभ के कारण, और ज्यादा महिला किसानों ने तरबूज की खेती शुरू की है।
अब राज्य में 5 लाख से ज्यादा किसान तरबूज उगाते हैं। सरकारी अधिकारियों के अनुसार, उनमें से लगभग 4 लाख महिला किसान हैं।
(यह भी पढ़ें: ओडिशा के भूखमरी वाले इलाकों में तरबूज ने पलायन रोका)
ग्रामीण उत्पादकों के लिए टिकाऊ आजीविका कार्यक्रम संचालित करने वाले संगठन, ‘ओडिशा ग्रामीण विकास एवं विपणन सोसाइटी’ (ORMAS) के डिप्टी सीईओ, मनोज कुमार पात्रा कहते हैं – “ओडिशा में लगभग 90% तरबूज उगाने वाली किसान महिलाएं हैं, क्योंकि वे स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से काम करती हैं।”
राज्य सरकार तरबूजों के लिए एक नया बाजार बनाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए, सक्रिय कदम उठा रही है।
राज्य के बागवानी निदेशालय के अधिकारियों के अनुसार, 2020-21 में ओडिशा में 12,510 हेक्टेयर भूमि में 2,53,448 टन तरबूज की पैदावार हुई।
पात्रा ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम पहले ही अपने पड़ोसी राज्यों, झारखंड, बिहार और छत्तीसगढ़ को तरबूज की आपूर्ति कर रहे हैं।”
पिछले साल दुबई के एक ग्राहक को भी तरबूज बेचे गए थे।
पात्रा कहते हैं – “किसानों से 11-12 रुपये प्रति किलो के हिसाब से तरबूज खरीदे कर ग्राहकों को 14 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचे गए। हमने एक वातानुकूलित कंटेनर में लगभग 40 टन दुबई भेजे।”
लेकिन यह ठीक नहीं रहा। लेकिन ग्राहक को घाटा हो गया, क्योंकि माल पहले मुंबई भेजा गया और वहां से इसे दुबई भेजा गया। इसे पहुंचने में कई दिन लग गए और माल का एक हिस्सा खराब हो गया।
पात्रा ने कहा – “ओडिशा से दुबई तक कोई सीधा हवाई सम्पर्क नहीं है। इसके अलावा हमें अन्य देशों में कम समय में बड़ी मात्रा में तरबूज भेजने के लिए, बड़ी माल-उड़ानों की जरूरत है।”
अच्छी पैदावार के बावजूद, कोरापुट की महिला किसान इस साल फसल को लेकर निराश हैं।
उनका कहना है कि तरबूज चमकदार लाल नहीं हैं, जो मीठे स्वाद की एक पहचान होता है और ग्राहकों द्वारा बहुत पसंद किया जाता है।
पोइबेड़ा गाँव की एक महिला किसान, रमा कृसानी ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “पिछले दो वर्षों के विपरीत, तरबूज काटने पर लाल नहीं होते। वे सफेद और थोड़े लाल हैं। लोग ऐसे तरबूज नहीं खरीदते। वे मानते हैं कि ऐसे तरबूज कच्चे होते हैं और मीठे नहीं होते।”
शेट्टी के मुताबिक, इसका कारण यह है कि उन्होंने इस साल अपनी बुवाई में देरी की, क्योंकि वे मुफ्त बीजों का इंतजार कर रहे थे।
उन्होंने कहा – “उन्होंने जनवरी की बजाय फरवरी में बुआई की और अप्रैल में कटाई। फलों ने विकास का चक्र पूरा नहीं किया, जिससे रंग और स्वाद में नुकसान हुआ।”
महिलाओं ने कहा कि उन्हें पता है कि तरबूज को पकने में कितना समय लगता है। लेकिन उन्होंने यह देखते हुए अप्रैल में इसकी कटाई कर दी, कि यह गर्मी की फसल है। उन्हें लगा कि यदि उन्होंने कटाई में देरी की, तो उनके बाजार का नुकसान होगा।
उपज को बाजार तक ले जाने के लिए परिवहन सुविधाओं का अभाव और लाभ का एक हिस्सा बिचौलियों द्वारा ले जाया जाना, ऐसी समस्याएं हैं, जिन पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
आवारा पशु एक और समस्या पेश करते हैं।
बांगुड़ीपाड़ा गाँव की एक महिला किसान, डालिमा बडनायक अफ़सोस करते हुए कहती हैं – “इस साल पशुओं ने मेरी लगभग एक एकड़ जमीन की पकी हुई फसल खा ली। चारदीवारी न होने से जानवरों का अंदर आना आसान हो जाता है।”
यदि इन छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान कर लिया जाए, तो महिला किसान अपनी मीठी सफलता का और भी ज्यादा आनंद ले सकेंगी।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में बिक्री के लिए तरबूज दिखाई पड़ते हैं (फोटो – पिक्साबे के सौजन्य से)
गुरविंदर सिंह कोलकाता स्थित एक पत्रकार हैं।
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