वर्ष 2022 में दुनिया की आबादी 8 अरब तक पहुंचने की उम्मीद है। दुनिया के लिए और विशेष रूप से भारत के लिए इसके क्या मायने हैं? 11 जुलाई को मनाए जाने वाले विश्व जनसंख्या दिवस पर, भारत में न्यायसंगत विकास और परिवार नियोजन से संबंधित विभिन्न मुद्दों को बेहतर ढंग से समझने के लिए, विलेज स्क्वेयर ने संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए), राजस्थान कार्यालय के राज्य प्रमुख, दीपेश गुप्ता से बात की।
8 अरब का विश्व: सभी के लिए एक सहनशील भविष्य की ओर – अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना।
विलेज स्क्वेयर: विश्व जनसंख्या दिवस का क्या महत्व है? भारत के लिए यह क्यों मायने रखता है?
दीपेश गुप्ता: विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य जनसंख्या से जुड़े मुद्दों के तकाज़े और महत्व पर ध्यान केंद्रित करना है। इसकी स्थापना 11 जुलाई 1987 को मनाए गए ‘पांच अरब दिवस’ से पैदा हुई दिलचस्पी के फलस्वरूप, 1189 में हुई थी।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पर्यावरण और विकास से उनके संबंधों सहित, जनसंख्या के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, विश्व जनसंख्या दिवस मनाना जारी रखने का निर्णय लिया।
इस साल दुनिया की आबादी 8 अरब हो जाएगी। इसलिए इस वर्ष के विश्व जनसंख्या दिवस का विषय है “8 अरब का विश्व: सभी के लिए एक सहनशील भविष्य की ओर – अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना।”
एक आदर्श दुनिया में, 8 अरब लोगों का मतलब है, अधिकारों और विकल्पों द्वारा मजबूत, स्वस्थ समाजों के लिए 8 अरब अवसर। लेकिन खेल का मैदान सब के लिए समान नहीं है। लिंग, जातीयता, वर्ग, धर्म, लैंगिक-अवस्था और विकलांगता के आधार पर, बहुत से लोग अब भी भेदभाव का सामना कर रहे हैं।
कई तरह से प्रगति हुई है, जिससे जीवनकाल में वृद्धि हुई, मातृ एवं बाल मृत्यु दर में कमी आई और रिकॉर्ड समय में टीके तैयार करने को बढ़ावा मिला है। लेकिन यह प्रगति पूरे विश्व में नहीं हुई है। जलवायु परिवर्तन, हिंसा, भेदभाव से संबंधित चिंताएँ और चुनौतियाँ बनी हुई हैं या और भी बदतर हो गई हैं।
भारत की जनसंख्या को देखते हुए, दुनिया में हर छह लोगों में से एक भारतीय है।
वर्ष 2030 तक ‘सतत विकास लक्ष्यों’ को प्राप्त करने के लिए, भारत को अपनी कुल आबादी का लगभग 27%, विशाल युवा (15-29 वर्ष) आबादी की क्षमता का उपयोग करना चाहिए, विशेष रूप से युवा महिलाओं और किशोर लड़कियों का।
विलेज स्क्वायर: भारत और राजस्थान में यूएनएफपीए की गतिविधियां कैसी हैं?
दीपेश गुप्ता: यूएनएफपीए एक ऐसी दुनिया बनाने वाली संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख संस्था है, जिसमें हर गर्भावस्था वांछित हो, हर बच्चे का जन्म सुरक्षित हो, और हर युवा की क्षमता पूरी होती है।
यूएनएफपीए स्वस्थ और उपयोगी जीवन जीने के लिए, महिलाओं और युवाओं के लिए संभावनाओं का विस्तार करता है। यूएनएफपीए 1974 से परिवार नियोजन और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने, प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को आगे बढ़ाने और मातृ स्वास्थ्य में सुधार के लिए भारत सरकार की सहायता कर रहा है।
मातृ स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए, यूएनएफपीए चुने हुए जिलों (बारां, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, जैसलमेर, सिरोही, उदयपुर) में प्रसव स्थानों को मजबूत करने में सहायता करता है, जिससे मातृ मृत्यु दर और निगरानी प्रतिक्रिया कम होती है और दाई सम्बन्धी पहल सुविधाजनक बनती है।
भारत में लगभग 23.3% महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है।
यूएनएफपीए ने राजस्थान के दुर्गम और मीडिया की दिलचस्पी से बाहर के क्षेत्रों में किशोरों, विशेष रूप से किशोरियों की मदद के लिए “नौबत बाजा” (एक क्लाउड-टेलीफोनी आधारित रेडियो चैनल) की शुरुआत की। इस पहल द्वारा संबोधित मुद्दों में, किशोर यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य, मासिक धर्म और लिंग आधारित हिंसा शामिल हैं।
हम सास और पति जैसे अन्य हितधारकों को भी शामिल करने की दिशा में काम करते हैं। यदि हम इन सभी पहलुओं को एक साथ नहीं रखेंगे, तो समस्या का समाधान संभव नहीं होगा। परिवार नियोजन के मामले में, सास और पति अब भी निर्णय लेने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। हम मौजूद सामाजिक संरचनाओं को नकार नहीं सकते।
विलेज स्क्वेयर: भारत में परिवार नियोजन और लैंगिक समानता के लिए प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
दीपेश गुप्ता: लैंगिक समानता और महिलाओं एवं लड़कियों को उनके यौन और प्रजनन स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए सशक्तिकरण के बिना टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। वास्तव में, यह गरीबी कम करने के लिए एक प्रमुख निर्धारक है।
कम उम्र में शादी एक बड़ी चुनौती है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, भारत में लगभग 23.3% महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती है। एक किशोर माँ को मातृ और शिशु मृत्यु का 2.2 गुना ज्यादा जोखिम होता है। परिवार नियोजन की जरूरतों की कमी को समाप्त करना बेहद महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से इस आयु वर्ग में।
दूसरी उभरती हुई चुनौती परिवार नियोजन में पुरुषों की कम भागीदारी है। एनएफएचएस-5 के अनुसार, देश में 56.5% योग्य जोड़े गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों का उपयोग कर रहे हैं और जहां 37.9% महिलाएं नसबंदी कराती हैं, उनके मुकाबले सिर्फ 0.3% पुरुष ही नसबंदी कराते हैं।
परिवार नियोजन को अब भी महिला की ही जिम्मेदारी माना जाता है। पुरुष भागीदारी को लेकर हमें वास्तव में अपनी रणनीति का विस्तार करने की जरूरत है। भारत में पुरुषों और युवा लड़कों की भागीदारी बहुत कम है। हमारे पास नीतियां हैं, लेकिन किसी कारण से हमारे कार्यक्रम इस आबादी को शामिल करने में विफल रहते हैं।
इस भारी असमानता पर हमें ध्यान देने की जरूरत है, और परिवार नियोजन में पुरुष भागीदारी में वृद्धि के प्रयास होने चाहिए।
एनएफएचएस-5 के अनुसार, राजस्थान में कुल प्रजनन दर (TFR), यानी एक महिला के जीवनकाल में पैदा हुए बच्चों की औसत संख्या 2.0 है, जो प्रतिस्थापन (रिप्लेसमेंट) प्रजनन स्तर, 2.1 से कम है। राजस्थान के लिए 2015-16 की 2.2 की दर से गिरावट एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
विश्व जनसंख्या दिवस 2022 का विषय “8 अरब का विश्व: सभी के लिए एक सहनशील भविष्य की ओर – अवसरों का दोहन और सभी के लिए अधिकार और विकल्प सुनिश्चित करना” है।
राजस्थान में राज्य का समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और विशेष रूप से परिवार नियोजन सेवाओं की बेहतर पहुँच के कारण यह गिरावट आई है। फिर भी, विभिन्न जिलों में असमानताओं के साथ परिवार नियोजन की अब भी एक अधूरी जरूरत मौजूद है, जिसे संबोधित करने की जरूरत है।
विलेज स्क्वेयर: भारत में समान विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि दर में बदलाव का क्या महत्व है?
दीपेश गुप्ता: एक आदर्श दुनिया में, 8 अरब लोगों का मतलब होगा, स्वस्थ समाजों, अधिकारों और विकल्पों द्वारा सशक्तिकरण के लिए 8 अरब अवसर। लेकिन समस्या यह है कि खेल का मैदान समान नहीं है। लिंग, जातीयता, वर्ग, लैंगिकता, विकलांगता के आधार पर, बहुत से लोग अब भी भेदभाव का सामना कर रहे हैं।
लेकिन भारत ने महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ भी हासिल की हैं। गरीबी में कमी, स्वास्थ्य सेवा में अविश्वसनीय उपलब्धियां, प्रौद्योगिकी में प्रगति, शिशु मृत्यु दर में गिरावट, यहां तक कि टिकाऊ विकास लक्ष्य (SDG) का फ्रेमवर्क भी भारत के बारे में बहुत कुछ कहता है।
यूएनएफपीए के परिवर्तन लक्ष्यों में से एक, परिवार नियोजन और गर्भनिरोधक विकल्प को लेकर अधूरी जरूरत शून्य होना है। जैसे ही आप परिवार नियोजन का नाम लेते हैं, आप बहुत से समूहों को बाहर कर देते हैं। हम सिर्फ विवाहित जोड़ों के बारे में सोचते हैं और दोहरे मापदंडों से परे कभी नहीं जाते हैं। हम इसमें अधिकार आधारित दृष्टिकोण शामिल नहीं करते हैं। इसलिए, वंचित समूहों से जुड़े सबसे कमजोर, हाशिये पर जीने वाले, अविवाहित और युवा छूट जाते हैं।
हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हर कोई अपने अधिकार का प्रयोग करे और गर्भनिरोधक तक उनकी पहुँच हो।
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