इसलिए स्नातकोत्तर डिग्री के बाद मैंने पीएचडी के लिए देहरादून के भारतीय वन्यजीव संस्थान में दाखिला ले लिया। सोचिए मुझे कितनी हैरानी हुई होगी, जब मुझे पता चला कि चुने गए छह उम्मीदवारों में मैं अकेली लड़की थी।
हालांकि मैं अभी-अभी पीलिया से ठीक हुई थी, फिर भी मैंने अपना शोधकार्य शुरू करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया।
मेरा शोध महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश के मध्य भारतीय परिदृश्य में पक्षियों के सामुदायिक अध्ययन पर केंद्रित रही। वर्ष 2000 में मैंने पीएचडी पूरी की और अपने पति से मिली, जो उस समय वन अधिकारी थे।
उन्होंने मुझे विवाह-प्रस्ताव दिया। जंगल में, बेशक जंगल में।
भारत में वन्यजीव संरक्षण धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा था।
इसलिए शादी के बाद मैंने और मेरे पति ने कुछ ऐसा करने का फैसला किया, जो हमारे दिल के करीब था। हमने 2005 में पुणे में अपना स्वयं का संगठन, ‘वाइल्डलाइफ रिसर्च एंड कंजर्वेशन सोसाइटी’ शुरू किया।
शादी के बाद भी फील्ड के कामों में ज्यादा बदलाव नहीं आया। मैंने पक्षियों का अध्ययन जारी रखा। मैं अपने पति के साथ जंगलों में जाती थी। मैं अपनी बेटी अंतरा को साथ ले जाती थी। मेरी नौकरानी भी बच्चे की देखभाल के लिए मेरे साथ यात्राओं पर जाती थी।