जब अधिक जल-खपत वाली फ़सलों की जगह अंगूर उगाने से सूखा-संभावित मनेराजुरी के किसानों की समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो खेत में तालाब खोदकर और वर्षा जल-संचयन करके उन्हें एक स्थायी जल स्रोत प्राप्त हुआ।
सांगली जिले की तासगांव तालुक के मनेराजुरी गाँव में, अंगूर की बेलों की पंक्तियों से घिरे खेत-तालाब आने आगंतुक का स्वागत करते हैं।
गाँव का नाम मणि नामक एक पौराणिक दैत्य से लिया गया हो सकता है, लेकिन आज मनेराजुरी अपने अंगूर के बागों के कारण लोकप्रिय है।
महाराष्ट्र का नासिक अंगूर, किशमिश और शराब के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन तासगांव का अंगूर केंद्र, मनेराजुरी जिसका एक अभिन्न अंग है, भारत के सर्वोत्तम गुणवत्ता वाले अंगूरों का उत्पादन करता है। असल में यह नासिक से दोगुने से भी ज्यादा अंगूरों का उत्पादन करता है।
क्या आप विश्वास करेंगे कि खेत के तालाबों के प्रसार और तासगांव के अंगूर उत्पादन का केंद्र बनने का कारण, सूखा था?
मनेराजुरी देश के सर्वोत्तम अंगूर पैदा करता है
मनेराजुरी के अंगूर किसान सोनाका, थॉम्पसन सीडलेस, माणिक चमन, शरद सीडलेस, अनुष्का और ताज गणेश जैसे टेबल अंगूरों की किस्में उगाते हैं। सर्वोत्तम गुणवत्ता वाली इन सभी किस्मों में कीटनाशक का अंश न्यूनतम रहता है और हानिकारक नहीं है।
हालाँकि फसल का एक बड़ा हिस्सा ताजे फल व्यापारियों को बेचा जाता है, लेकिन एक छोटा हिस्सा किशमिश बनाने में उपयोग होता है।
प्रत्येक एकड़ में सालाना 10 से 12 टन की पैदावार होती है। एक किसान 18% जीएसटी सहित अपनी सामग्री और मजदूरी का खर्च निकाल कर, प्रति एकड़ 2 से 5 लाख रुपये कमाता है।
स्वाभाविक है कि अंगूरों के बागों का क्षेत्र हर साल बढ़ रहा है, जो 80 के दशक की शुरुआत में 1,500 एकड़ से बढ़कर आज 3,500 एकड़ हो गया है।
मनेराजुरी के अंगूर किसान सामूहिक रूप से इन 3,500 एकड़ में 3.5 लाख क्विंटल से ज्यादा अंगूर का उत्पादन करते हैं।
मनेराजुरी के गन्ने के खेत अंगूर के बाग बने
60 के दशक के अंत तक, मनेराजुरी के किसान गन्ना, हल्दी और पान के पत्ते उगाते थे, जिनमें पानी की ज्यादा खपत होती है।
इसलिए किसानों ने अन्य फसलों की ओर रुख करना शुरू कर दिया। उनमें से कुछेक लोगों ने कुछ कलमें लगाकर, अंगूर उगाने का प्रयोग किया।
चंद्रकांत लांडगे कहते हैं – “1970 के दशक में किसी समय मेरे पिता और दादा सहित कुछ किसानों ने अंगूर की कलमें लगाई।”
जल्द ही दूसरे भी ऐसा ही करने लगे।
लेकिन मनेराजुरी के अंगूर किसानों को तत्काल सफलता का स्वाद चखने को नहीं मिला।
पानी के टैंकरों से बागों की सिंचाई
इस क्षेत्र में सूखा एक प्राकृतिक चक्र के रूप में आता है, जिससे लगभग हर तीसरे साल गर्मियों में खेत सूख जाते हैं।
तासगांव तालुक में वर्षा कुल 27 दिनों तक सीमित होने के कारण, मनेराजुरी के अंगूर किसान पूरी तरह से बोरवेल पर निर्भर थे। बोरवेल का पानी अंगूर की बेलों की सिंचाई और पेयजल जरूरत को पूरा करने के लिए काफ़ी नहीं था।
किसान अपने खेतों की सिंचाई के लिए पानी लाने को मजबूर थे।
वर्ष 1993 से खेती कर रहे लांडगे याद करते हैं – “1980 से 2000 तक हमें अपने खेतों की सिंचाई के लिए पूरी तरह से पानी के टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता था। टैंकर 15 किमी दूर से पानी लाते थे।”
पानी लाने का मतलब मुनाफा कम होना भी था।
13 एकड़ में अंगूर उगाने वाले किसान, लांडगे ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “10,000 लीटर के टैंकर की कीमत 1,200 रुपये होती थी, जो आज के हिसाब से लगभग 3,500 रुपये होगी। गर्मियों में एक एकड़ में लगभग 55 से 60 टैंकर पानी की जरूरत होती है। यह क्षमता से बाहर था।”
अंगूर किसानों को बचाया खेत-तालाबों ने
लागत कम करने और पानी की कमी को दूर करने के लिए, सुरेश गणपति एकुंडे ने एक स्थायी समाधान निकाला, तालाब खोदना। उनका तर्क था कि अंगूर की बेलों को जीवित रखने के लिए वह तालाबों में बारिश का पानी संचित कर सकते हैं।
याद करते हुए एकुंडे कहते हैं – “1999 में मैंने एक खेत तालाब खोदा। मैंने तालाब की लाइनिंग के लिए एचडीपीई (उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन) शीट स्पेन से मंगाई।”
एक एकड़ के तालाब पर उनके लगभग 4 लाख रुपये खर्च हुए। हालांकि उनका अनुसरण करने वाले अन्य लोगों का खर्च कम हुआ।
एकुंडे ने कहा – “क्योंकि तब तक, तात्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के हस्तक्षेप की बदौलत, आयात की जाने वाली चादरों को टैक्स-मुक्त घोषित कर दिया गया था।”
सरकार का सहयोग
वर्ष 2004 के सूखे के बाद, मनेराजुरी में खेत तालाबों की संख्या में तेजी से वृद्धि देखी गई।
ज्यादातर तालाब सूखे के बाद मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार प्रदान करने के लिए खोदा गया था। और लोग समझ गए कि वे बारिश के पानी का संचयन किया जा सकता है।
वर्ष 2009 से 2012 के बीच ‘राष्ट्रीय कृषि विकास योजना’ (RKVY) और मनरेगा योजनाओं के अंतर्गत खेत तालाबों का निर्माण किया गया था।
2016 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘मांग पर खेत तालाब’ योजना के अंतर्गत किसानों को आर्थिक सहायता शुरू करने के बाद, खेत तालाबों की संख्या में और ज्यादा तेजी से वृद्धि हो रही है। इस योजना के अंतर्गत, किसान को 50,000 रुपये या तालाब की लागत का 70 से 75%, जो भी कम हो, की सब्सिडी मिलती है।
लांडगे ने कहा – “हमें हर छठे या सातवें साल एचडीपीई शीट बदलनी पड़ती है। क्योंकि अब इनका निर्माण भारत में होता है, इसलिए हमने नई शीट खरीदने के लिए सब्सिडी की अपील की है।”
पानी की जरूरतों का टिकाऊ समाधान
ग्रामीणों द्वारा कृष्णा नदी से 30 किमी लंबी पाइपलाइन बिछाने जैसी अन्य पहलों के बावजूद, खेत-तालाब एक वरदान साबित हुआ है।
खेत तालाब अंगूर के बागों को निर्बाध सिंचाई प्रदान करते हैं। ग्रामीणों को इस बात का गर्व है कि उनके पंक्तिबद्ध तालाब, ‘गूगल अर्थ’ पर भी काले चौकोर के रूप में दिखाई देते हैं।
जल-संचय संरचनाओं के रूप में कार्य करते हुए, तालाबों ने खेती, पशुओं के चारे, मछली पालन, आदि की पानी की जरूरतों को पूरा किया है।
इस प्रकार मनेराजुरी गाँव की 15,000 आबादी के 1,150 खेत तालाब हैं।
तालुक के कृषि अधिकारी, सरेजराव कहते हैं – “1,150 खेत तालाबों में से 435 निजी खर्च से बनाए गए हैं। बाकी के लिए सब्सिडी दी गई। यह सरकार की योजनाओं से लाभ लेने की किसानों की इच्छा को दर्शाता है।”
इतने खेत-तालाब खोदकर, मनेराजुरी के अंगूर किसानों ने अपने सूखा-संभावित क्षेत्र को पर्याप्त पानी वाले क्षेत्र में बदल दिया है।
खेत तालाबों ने ग्रामीणों को समृद्ध भी बनाया है, जो अब बेहतर घर, कार, कृषि उपकरण और उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
किसानों के लिए समृद्धि लाने के अलावा, खेत तालाबों ने मनेराजुरी को एक और विशेषता प्रदान की है। यह राज्य में सबसे अधिक खेत तालाबों वाला गाँव है।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में मनेराजुरी गांव दिखाया गया है, जो अपने खेत तालाबों और अंगूर के बागों के लिए प्रसिद्ध है (छायाकार – आकाश पवार)
हिरेन कुमार बोस महाराष्ट्र के ठाणे में स्थित एक पत्रकार हैं। वह सप्ताहांत में किसान की भूमिका में होते हैं।
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