हमारा जल, हमारा प्रबंधन
जल जीवन मिशन (जेजेएम) के माध्यम से पाइप द्वारा जल आपूर्ति योजना को लागू करने में स्थानीय समुदाय को शामिल करना महत्वपूर्ण है, जैसा कि मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की सीख से साबित होता है।
जल जीवन मिशन (जेजेएम) के माध्यम से पाइप द्वारा जल आपूर्ति योजना को लागू करने में स्थानीय समुदाय को शामिल करना महत्वपूर्ण है, जैसा कि मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की सीख से साबित होता है।
भारत सरकार के जल जीवन मिशन (जेजेएम) का लक्ष्य है – 2021 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को सुरक्षित एवं पर्याप्त जल उपलब्ध कराना।
भारत में जल प्रबंधन की समुदाय-प्रबंधित स्थानीय व्यवस्थाएं कई सदियों से मौजूद हैं। ये व्यवस्थाएं समुदाय की सिंचाई, पीने और घरेलू पानी की जरूरतों को पूरा करती हैं। गुजरात में अब भी कुछ सफल मॉडल देखे जा सकते हैं।
जेजेएम एक समुदाय-आधारित दृष्टिकोण है, जिसके व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार मुख्य घटक हैं।
लेकिन मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर में स्थित पन्ना जिले में जल प्रबंधन का अनुभव, जेएमएम पेयजल योजनाओं को लागू करने की चुनौतियों के बारे में महत्वपूर्ण सबक प्रदान करता है।
विंध्यांचल की खूबसूरत पर्वत श्रृंखला के पास, पन्ना जिले में लगभग 85% ग्रामीण आबादी है, जिसमें से आधी अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) से सम्बन्ध रखती है।
इलाके की जमीन ढलानदार होने के कारण, काफी बारिश होने के बावजूद, भूजल बहुत कम है। इसलिए सतही जल पर निर्भरता बहुत ज्यादा है।
ज्यादातर लोग अब भी अपने जीवन और आजीविका के लिए वन उपज पर निर्भर हैं। आपस में बांटने और संसाधनों के सामुदायिक रूप से प्रबंधन की संस्कृति उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
तो जब समुदाय को शामिल किए बिना जल आपूर्ति योजना की योजना बनाई जाती है, तो क्या होता है?
पाइप द्वारा जल आपूर्ति योजना (PWSS) की योजना में, लोगों और जानवरों की पानी की मांग का आंकलन करना, मांग-आपूर्ति के अंतर को समझना, PWSS के स्रोतों की पहचान करना और एक समग्र जल सुरक्षा योजना शामिल हैं।
योजना तैयार करने में समुदाय को शामिल करना महत्वपूर्ण है। लेकिन सरकारी विभाग का तर्क है कि समुदाय के पास PWSS के काम को समझने की तकनीकी क्षमता नहीं है।
पन्ना में PWSS के प्रमुख हितधारक, ग्राम जल स्वच्छता समिति (VWSC) और पंचायत शामिल नहीं थे। पंचायत को VWSC का गठन करना होता है और समिति जेजेएम की योजना और कार्यान्वयन में मदद करती है। पिछली बार, एक व्यक्ति ने अपने दफ्तर में बैठकर सदस्यों के नामों की एक सूची बना दी थी और 42 गाँवों की VWSC के ज्यादातर सदस्यों को यह भी नहीं पता था कि वे ऐसी समिति के सदस्य हैं।
ऐसा जेजेएम द्वारा स्पष्ट रूप से उल्लेख किए जाने के बावजूद है कि सुपुर्दगी के बाद इन दोनों संस्थाओं को योजना का प्रबंधन करना है। इस परियोजना की सफलता में इनकी मौलिक भूमिका है।
योजना निर्माण के स्तर पर उन्हें शामिल नहीं करने से, संचालन और रखरखाव, विशेष रूप से निगरानी और शुल्क इकट्ठा करने में, उनकी भूमिका के बारे में स्पष्टता की कमी होती है।
इसी प्रकार, पंचायतों को योजना के बारे में केवल तब पता चला, जब ‘जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के इंजीनियर और प्राइवेट ठेकेदार उन्हें इसे सुपुर्द करने के लिए आए। काम कर रही आठ ग्राम योजनाओं में से सात के प्रतिनिधियों को PWSS के बारे में काम के अंतिम चरण में ही पता चला।
हितधारकों को शामिल नहीं करने का नतीजा यह हुआ कि 11 गांवों में से चार में PWSS बोरवेल सूख गए।
स्वाभाविक रूप से, योजना निर्माण की प्रक्रिया में समुदाय की इस तरह की गैर-भागीदारी के कारण PWSS का सामूहिक स्वामित्व कम होगा या नहीं होगा।
पीएचईडी के इंजीनियर द्वारा तैयार की गई परियोजना रिपोर्ट में पूरा विवरण तकनीकी है। लेकिन जब यह रिपोर्ट पंचायत के साथ साझा नहीं की जाती है, तो यह खर्च और जल शुल्क इकट्ठा करने में बाधा उत्पन्न करती है।
मुफ्त में पानी देना सरकार की जिम्मेदारी है, लोगों के ऐसा सोचने की व्यावहारिक समस्या एक और चुनौती है।
इसके अलावा, जटिल सामाजिक तानाबाना आर्थिक मामलों में एक दूसरे पर और पंचायत पर भरोसा न करने का कारण बनता है।
लेकिन जैसा कि गुजरात ने दिखाया, सामुदायिक भागीदारी के परिणामस्वरूप बेहतर जल प्रबंधन हुआ।
‘जल एवं स्वच्छता प्रबंधन संगठन’ (WASMO) की स्थापना, गुजरात में गांवों को पानी उपलब्ध कराने और प्रक्रिया में सामुदायिक भागीदारी के लिए की गई थी। WASMO ने सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए पंचायत, ग्रामवासियों और PHED के साथ मिलकर काम किया।
पूरे गुजरात में पीने का पानी WASMO के माध्यम से उपलब्ध कराया गया और इसके परिणाम बहुत उत्साहजनक रहे हैं, बावजूद इसके कि WASMO की भूमिका असल में केवल एक सहयोगी की रही।
जहां पहले ट्रेन और टैंकर से पानी की सप्लाई होती थी, अब लगभग हर घर में पाइप से पानी की सप्लाई हो रही है।
सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि ग्रामीण स्वयं समितियां बना सके। ग्रामीण संगठनों की मदद से उन्होंने जल प्रबंधन, पीने का पानी उपलब्ध कराने और गंदे पानी का निपटान बेहतर तरीके से किया।
जैसा कि ज्ञात है, पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता का अभाव देश भर के ग्रामीण समुदायों के लिए मुख्य मुद्दों में से एक है। और समस्या समय के साथ बढ़ती ही जा रही है। जेजेएम जैसी समुदाय आधारित जल प्रबंधन योजना, इस समस्या के व्यावहारिक समाधान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
समुदाय आधारित पेयजल प्रबंधन के पीछे का विचार यह स्वीकार करना है कि पानी एक दुर्लभ संसाधन है, जिसे स्थानीय समुदाय से बेहतर कोई नहीं समझता। इसलिए समान हालात में, समुदाय आधारित जल प्रबंधन अपनाने के कई विशिष्ट लाभ हैं।
जल संसाधनों, जरूरतों और पानी के उपयोग में ऐतिहासिक परिवर्तनों से संबंधित स्वदेशी ज्ञान, अक्सर समुदायों के पास होता है। वे यह भी समझते हैं कि पानी उनके गुजारा-आधारित आजीविका के लिए एक मूलभूत जरूरत है।
वे अपनी दैनिक गतिविधियों के हिस्से के रूप में दैनिक आधार पर, तय किए गए जल उपयोग की निगरानी करने में सक्षम हैं।
साथ ही उनके पास अक्सर संघर्ष समाधान की व्यवस्था होती हैं, जिन्हें वर्तमान समय की चुनौतियों से निपटने के लिए नियमित सहयोग की जरूरत हो सकती है।
समस्याओं की पहचान और उनके संभावित समाधान एक बड़ा कदम है। जेजेएम की सफलता हितधारकों, सबसे महत्वपूर्ण रूप से समुदाय की भागीदारी पर निर्भर करती है।
इसीलिए पन्ना से मिले सबक, समुदाय आधारित जल प्रबंधन कार्यक्रमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए दिशा-निर्देश प्रदान कर सकते हैं।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में ‘जल जीवन मिशन’ की योजना और कार्यान्वयन के लिए, ग्राम जल स्वच्छता समिति (VWSC) की एक बैठक को दिखाया गया है (फोटो – अंकुर पांडेय के सौजन्य से)
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