सरकारी कार्यालयों के बुनियादी ढांचे का संकट

and बलरामपुर, उत्तर प्रदेश

हालांकि सरकार शानदार प्रशासनिक कार्यालय बनाने के लिए भारी मात्रा में धन खर्च करती है, लेकिन उनके रखरखाव और कार्यों के अनुकूल माहौल के लिए जरूरी बुनियादी सुविधाओं के बारे में कोई सोचता नजर नहीं आता।

जब पूरा देश बिजली कटौती की चपेट में था, हम उत्तर प्रदेश के जिला केंद्र में 40 डिग्री की चिलचिलाती गर्मी में खुद को ठंडा रखने की कोशिश में, पुरानी रिपोर्टों को हाथ के पंखे की तरह इस्तेमाल करते हुए बैठकर, विचार कर रहे थे कि सरकारी बाबू, 25 लाख की आबादी वाले जिले की जरूरतों को, जहाँ बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं, कैसे पूरा करते हैं।

एक अलग मौके पर देश के एक अन्य हिस्से में, हमसे बात करते हुए एक वरिष्ठ अधिकारी हैरानी व्यक्त कर रहे थे कि जब दफ्तर में पानी नहीं आता तो एक कूलर का क्या उपयोग है। “क्यों” के सवाल पर तुरंत जवाब आया कि 15 दिन से “मोटर खरब” पड़ी है। हम हैरान थे। एक मोटर की मरम्मत में 15 दिन क्यों लगने चाहियें, खासतौर पर जब 100 से ज्यादा कर्मचारी और सैकड़ों आगंतुक पानी के लिए इस पर निर्भर हैं।

भारतीय समाज में सरकारी कर्मचारियों की छवि को अक्सर सकारात्मक रूप से नहीं देखा जाता और आमतौर पर काम में रुचि की कमी के लिए उनका मज़ाक उड़ाया जाता है। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं या नहीं? कुशलता से काम करने के लिए एक व्यक्ति की कुछ बुनियादी जरूरतें होती हैं, जैसे बिजली, पानी और चालू शौचालय, वगैरह।

अनियमित बिजली

कुछ दिन ऐसे भी होते हैं, जब हम पूरा दिन, फाइलों के ढेर के बीच, बैठकों और चर्चाओं में पंखा झलते हुए गुजारते हैं।

पानी की मशीन अक्सर काम नहीं करती हैं

गर्मियों में बिजली की कटौती महत्वपूर्ण काम होने से रोक सकती है, जैसा कि सरकारी दफ्तरों में देखा जाता है, क्योंकि इन्वर्टर भी खत्म हो जाता है। काम को स्थगित करने का यह एक बेहतरीन कारण बनता है। जरूरी बात है कि काम में देरी हो जाती है।

कभी-कभी दफ्तर में, सिर्फ कुछ राजपत्रित अधिकारियों को छोड़ कर, कोई इन्वर्टर नहीं होता, जिस कारण परिसर के ज्यादातर लोग हांफते और पसीना बहाते हैं और बिजली कटौती को कोसते हैं।

पीने का पर्याप्त पानी? मुश्किल से!

पानी की उपलब्धता अनियमित होती है। यदि मोटर ख़राब हो जाती है, तो उसे ठीक करवाने में अनंत काल लग सकता है, क्योंकि फाइलों को पास करने के लिए कई जरूरी हस्ताक्षरों, लंबी प्रक्रियाओं और “पैसे कहां से आएंगे” के हमेशा के सवाल से गुजरना पड़ता है।

अधिकारियों और आगंतुकों के इस्तेमाल के लिए लगाया गया वाटर फिल्टर भी महीनों से खराब है। इस कारण बहुत से लोगों को, जिनमें हम भी शामिल हैं, घर से पानी लाना पड़ता है, जो पूरे दिन के लिए काफी नहीं होता या हमें पानी खरीदना पड़ता है।

कतार में लंबी प्रतीक्षा कर रहे कुछ लोग अक्सर इमारत के अंदर और बाहर जाते हुए, पीने के पानी के बारे में पूछते देखे जाते हैं।

आगंतुकों के लिए बैठने का स्थान नहीं

हम ऐसे ही एक आगंतुक के पास पहुंचे, जो फर्श पर पालथी मारकर बैठा था। हमने उनसे पूछा कि उनके आने का उद्देश्य क्या है और वे जिला मुख्यालय में कितनी दूर से आए थे। वह एक घंटे से ज्यादा समय में 34 कि.मी. साइकिल चला कर आए थे।

उन्होंने कहा – “मैं श्रम विभाग में अपना आवेदन जमा करने आया हूँ। बाबू मेरा आवेदन पूरा कर रहे हैं, इसलिए मैं फर्श पर बैठा हूँ। मैं थक गया हूँ और हमारे बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है। बहुत से लोग फर्श पर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं, यह कोई असामान्य बात नहीं है।”

बिल्डिंग के बाहर एक महिला अपने बच्चे को गोद में लिए बैठी थी। यह पूछे जाने पर कि विकास भवन आने में उन्हें किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा, उन्होंने कहा, “यदि हमें बैठने के लिए जगह और पीने का पानी मिल जाए, तो इस चिलचिलाती गर्मी में हमारे लिए अच्छी राहत होगी।”

अफ़सोस! रोजाना जिला मुख्यालय आने-जाने वाले इतने लोगों के लिए न तो पानी है और न ही बैठने की जगह। कई बार अनुरोध और फ़ॉलो-अप के बावजूद, हमें अब भी नहीं पता कि देरी का कारण क्या है। 

शौचालय की समस्या

जहां तक शौचालय का सवाल है तो हम उसकी भयानक बदबू के बारे में सही शब्द नहीं खोज पा रहे, जिससे आसपास का क्षेत्र इतना भर जाता है कि उसके पास से गुजरने की हिम्मत नहीं होती, उसका इस्तेमाल करना तो दूर की बात है।

बैठने की जगह या सीट नहीं होने के कारण, आगंतुक अक्सर फर्श पर बैठते हैं

शौचालय में अक्सर पानी नहीं होता और इसकी सफाई शायद दो महीने में एक बार होती है। तीन मंजिला इमारत में महिलाओं की अनुपस्थिति के कारण, महिलाओं के शौचालय को पुरुषों के शौचालय में बदल दिया गया है।

शौचालयों की दशा पर महिला अधिकारियों में से एक की पहली प्रतिक्रिया थी – “बार-बार मुझे यही ख्याल आता था कि पूरे दिन इस्तेमाल करने के बाद मैं अपने सैनिटरी नैपकिन को कैसे निपटाऊँ। क्योंकि कोई डस्टबिन नहीं था। साथ ही कई मौकों पर पानी उपलब्ध ने होने पर, भवन की सभी महिलाओं के लिए शौचालय का उपयोग करना बहुत मुश्किल होता है। शुरुआत में मुझे दो बार यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (मूत्र प्रणाली संक्रमण) हुआ। अब हमने शौचालय को जनता के उपयोग के लिए बंद कर दिया है, इसलिए यह साफ है। अन्यथा शौचालय के आगंतुकों द्वारा इस्तेमाल करने पर, महिला अधिकारियों के लिए इसे उपयोग करना मुश्किल होता।”

एक अधिकारी ने कहा – “जब मैं पहली बार आया था, तो मैं जानता था कि मुझे इमारत के ढांचागत मुद्दों को ठीक करके अपना काम शुरू करना है। मैंने अपने कमरे और कुछ अन्य कमरों के बाहर फूलों के गमले रख दिए। शौचालय का उपयोग सीमित है, ताकि स्वच्छता बनी रहे। मैं आवंटित धन से अपने कमरे में एक नया वाटर प्यूरीफायर लगाने की भी योजना बना रहा हूँ।”

एक महिला स्टाफ सदस्य ने शौचालय के उपयोग की अपनी शुरुआती परेशानी के बारे में भी बात की। वह कहती हैं – “मैं और दो महिला सहकर्मी बिल्डिंग के बाहर एक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि विकास भवन के अंदर शौचालय में कुंडी नहीं है। क्यों कि मैं नई थी, इसलिए मुझे शौचालय का रास्ता पूछने में बहुत शर्म आती थी और मैं ऑफिस के घंटों में शौचालय का इस्तेमाल नहीं करती थी, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो गई। दो दिन पहले मैंने देखा कि बिल्डिंग के अंदर शौचालय की मरम्मत की जा रही है, तो शायद हम इसका इस्तेमाल कर पाएंगे।”

ओह, बुनियादी सुविधाओं का रखरखाव

स्वाभाविक रूप से हालात ने हमें इस बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया कि यदि हमें शौचालय का इस्तेमाल करना है, तो हम उसकी सफाई और स्वच्छता कैसे बनाए रख सकते हैं। इस तरह हमें अपने हित में एक शौचालय को बंद करना पड़ा, क्योंकि संक्रमण एक बड़ा खतरा है। शौचालय को नियमित रूप से साफ करने और साफ-सफाई बनाए रखने के लिए एक व्यक्ति को पैसा देते हैं। लेकिन अपने विचार को प्रभारी अधिकारी को समझाने से पहले ही हमारा प्रयास धराशायी हो गया।

रखरखाव की कमी के कारण शौचालय और पानी की सुविधा तक पहुंच एक बड़ी समस्या है

शौचालय की दीवारें पान की पीक और तंबाकू के थूकने से सना हुआ है, जो स्थाई रूप से इमारत के बुनियादी ढांचे के साथ रच बस चुका है। आमतौर पर शौचालय एक दिन में 20 से ज्यादा लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसे स्वच्छ बनाए रखना हर किसी की कल्पना से दूर है।

यह काफी बड़ा विरोधाभास है। जहां हम गांवों में जाते हैं और आंगनवाड़ी कर्मचारियों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता के महत्व पर भाषण देते हैं, हम स्वयं विकास भवन में हास्यास्पद स्थिति के बीच बैठे हैं।

शानदार इमारतों के निर्माण के लिए सरकार भारी मात्रा में पैसा खर्च करती है। आप किसी वीआईपी को एक के बाद एक इमारतों का उद्घाटन करते हुए देख सकते हैं, जिन पर उनका नाम और पद बड़े बड़े अक्षरों में लिखा होता है। लेकिन क्या कोई इन बुनियादी ढांचे के रखरखाव के बारे में सोचता है? उन लोगों का क्या, जो इन जगहों पर काम करेंगे? एक छोटा सा काम करने में मुद्दत और फाइल का टनों काम करना पड़ता है। लेकिन जब कोई वीआईपी आता है, तो चीजें ठीक हो जाती हैं।

एक बड़ी चुनौती यह है कि सरकारें दोबारा होने वाले खर्चों से बचती हैं, जो अक्सर इन बुनियादी ढांचे की उस जर्जरता का कारण बनती हैं, जो हम देखते हैं। ऐसा क्यों होता है यह अभी भी हमारे लिए एक रहस्य है और हो सकता है आने वाले कुछ सालों में हमारे पास इसका जवाब हो।

तब तक हमेशा यह याद रखें – “कभी भी किसी किताब को उसकी जिल्द देखकर न परखें”। उन आलीशान नए सरकारी दफ्तरों के पीछे, घर से पानी लाने को मजबूर कोई कर्मचारी होगा या कोई पूरा दिन पसीने में लथपथ फाइलों को पूरा करता होगा।

इस लेख के शीर्ष की मुख्य फोटो में विकास भवन में काम कर रहे लेखकों को दिखाती है। 

पीयूष भिलेगांवकर और श्रेया सरकार बलरामपुर में ‘एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो’ हैं।