जब सरकारी जल योजनाएं राजस्थान के दो आदिवासी गांवों में नहीं पहुँच पाई, तो चित्तौड़गढ़ के इन गाँवों की महिलाएं मामले को अपने हाथों में लेती हैं और एक ट्रीटमेंट-प्लांट और पाइप आधारित जलापूर्ति प्रणाली स्थापित करती हैं।
राजस्थान में चित्तौड़गढ़ के रूपपुरा और गणपत खेड़ा गांवों की आदिवासी महिलाएं दशकों से गंदा, सेहत के लिए ख़राब पानी लाने के लिए रोज दो किलोमीटर पैदल चलती थी।
रूपपुरा गांव के रमेश गोस्वामी कहते हैं – “अब हमें पीने का साफ पानी मिलता है और इससे हमारी उम्र 10 साल बढ़ जाएगी।”
जिला मुख्यालय चित्तौड़गढ़ शहर से सिर्फ 25 कि.मी. दूर होने के बावजूद, दोनों गांवों में विकास की गति धीमी है।
गणपत खेड़ा में सभी लोग अनुसूचित जनजाति (एसटी) के हैं, जबकि रूपपुरा में आधी आबादी एसटी की है और आधी आबादी अन्य पिछड़ी जातियों की है। ज्यादातर परिवार अपने और आसपास के गांवों के खेतों में मजदूरी करते हैं, जबकि कुछ बकरियां पालते हैं और कुछ पलायन कर जाते हैं।
ग्रामवासी 1780 टीडीएस (कुल घुलनशील ठोस पदार्थ) वाले पानी का इस्तेमाल कर रहे थे, जबकि इसकी अधिकतम सीमा 500 से कम होनी चाहिए। पानी में कैल्शियम 244 मिलीग्राम/लीटर थी, जबकि इसकी अधिकतम सीमा 75 मिलीग्राम/लीटर है। मैग्नीशियम और क्लोराइड का स्तर भी बहुत ज्यादा था। स्वाभाविक है कि इसका असर ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर पड़ता था।
हाल के समय तक स्वच्छ पेयजल ग्रामीणों के सपनों से परे था।
विकास लक्ष्यों के आसपास भी नहीं
स्वच्छ जल की आपूर्ति एक स्वस्थ राष्ट्र की रीढ़ है। फिर भी संयुक्त राष्ट्र का एक सतत विकास लक्ष्य होने के बावजूद, इसे बेहद अत्यधिक कम प्राथमिकता दी गई है।
अपने हिस्से के रूप में राजस्थान ने 2021-22 में ग्रामीण क्षेत्रों में 30 लाख नल कनेक्शन प्रदान करने की योजना बनाई है। लेकिन रूपपुरा और गणपत खेड़ा जैसे गांव वित्तीय वर्ष समाप्त होने पर भी साफ पानी मिलने का इंतजार कर रहे थे।
साफ पानी मिलने की सम्भावना दूर दूर तक न होने के कारण, रूपपुरा और गणपत खेड़ा की महिलाओं ने आसपास के स्रोतों से पानी लाने के लिए मीलों पैदल चलना जारी रखा।
महिलाओं द्वारा पहल
एक विकास संगठन, ‘मंजरी फाउंडेशन’ 2016 से इन गांवों में महिलाओं को आजीविका में मदद के लिए स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए काम कर रहा है।
एक बैठक में महिलाओं ने अपने गांव में पीने के पानी का मुद्दा उठाया।
मंजरी फाउंडेशन ने एक व्यापक सर्वे किया, जिसमें उपयुक्त जल स्रोत और पानी की टंकी के लिए जगह, पशुओं के लिए पीने के पानी की सुविधा और हर घर में पानी की आपूर्ति के लिए आवश्यक उपकरणों की पहचान की गई।
पेयजल मानकों को पूरा करने और पानी से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के लिए, एक जल ट्रीटमेंट प्रणाली का भी सुझाव दिया गया।
एसएचजी महिलाओं ने जल आपूर्ति प्रणाली के प्रबंधन के लिए 15 सदस्यों, जिनमें 70% महिलाएं थीं, की एक ‘पानी पंचायत’ का गठन किया।
पानी पंचायत ने परियोजना की योजना, कार्यान्वयन और निगरानी में सक्रिय भूमिका निभाई।
हालाँकि यह परियोजना पीएनबी हाउसिंग के सहयोग से लागू हुई, लेकिन सामुदायिक स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिए, प्रति परिवार 2,200 रुपये इकट्ठे करने का प्रस्ताव रखा।
पानी के लिए पाइप
एक सर्वेक्षण में लोगों की प्रतिदिन 60 लीटर पानी की जरूरत पाए जाने के बाद, रूपपुरा में 32,000 लीटर और गणपत खेड़ा में 25,000 लीटर की पानी की टंकियाँ बनाई गई।
इस सिद्धांत के आधार पर कि सभी का जीवन मायने रखता है, चाहे इंसान हो या जानवर, पानी पंचायत ने छह जल कुंड बनाने का जोरदार सुझाव दिया, जहां सभी जानवरों और पक्षियों को भी पानी मिल सके।
दोनों गांवों में ट्यूबवेल खोदे गए। टिकाऊपन और लागत को ध्यान में रखते हुए, समुदाय के बिजली की खपत और समय-समय पर होने वाले खर्चों को कम करने के लिए, पंप सौर ऊर्जा से संचालित होते हैं।
पानी बहता रहे
अब जल प्रबंधन की देखभाल पानी पंचायत करती है। यह प्रत्येक परिवार से जल शुल्क एकत्र करती है, ताकि भविष्य में प्रबंधन और रखरखाव को स्थायी रूप से किया जा सके।
पानी पंचायत व्यवहार परिवर्तन के पहलुओं का भी नेतृत्व कर रही है, ताकि ग्रामवासी जल-ढांचे के प्रबंधन और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता की आदतों का पालन करें।
“मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अपने दरवाजे पर पानी मिलेगा। इससे मेरे गांव की सभी महिलाओं में बदलाव आया है।“
कमला
जल आपूर्ति व्यवस्था ने मनोवैज्ञानिक दबाव और झगड़ों को कम करने के अलावा, पानी लाने के कठिन परिश्रम को कम कर दिया है, जिससे रोज 2-3 घंटे की बचत होती है। इससे उन्हें अपनी दिहाड़ी कमाने में मदद मिलती है, जो वे पहले पानी लाने में लम्बा समय खर्च करने के कारण खो देती थी। समुदाय-स्तर पर ऐसे कई अन्य परिवर्तन हैं, जिन्हें पारम्परिक उपकरणों से नहीं मापा जा सकता।
जैसा गणपत खेड़ा गांव की कमला कहती हैं – ”मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे अपने दरवाजे पर पानी मिलेगा। अब मेरे पास ज्यादा समय है, जिससे मैं दूसरे काम कर लेती हूँ। इससे मेरे गांव की सभी महिलाओं में बदलाव आया है।”
राजस्थान में पानी की कितनी किल्लत है?
राजस्थान की वार्षिक औसत वर्षा 525 मि.मी. है, जो राष्ट्रीय औसत 1,114.5 मि.मी. की लगभग आधा है। राजस्थान के 1.01 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से सिर्फ 19.61 लाख (19.3%) को पाइप से पानी मिलता है।
नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक 2021 के अनुसार, सूचीबद्ध 27 राज्यों में राजस्थान 16वें स्थान पर है। राष्ट्रीय स्तर पर 47% की तुलना में, राजस्थान में केवल 35% घरों में शौचालय की सुविधा है और ग्रामीण राजस्थान में 30.7% की तुलना में यह मात्र 19.6% घरों में है।
स्वच्छ पेयजल एवं शौचालय सुविधाओं के अभाव के कारण लोग बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। राजस्थान में 2016 में दस्त और आंतों के संक्रमण से 47,000 से ज्यादा मौतें हुईं, जो कि ‘ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज – 2016’ के अनुसार राज्य में होने वाली सभी मौतों का 8.7% है।
इस जाहिर होता है कि पेयजल का अभाव चिंता का एक प्रमुख कारण है और ग्रामीण भारत में पाइप से पानी पहुंचाने वाली योजनाओं की शक्ति पर बल देता है।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो से पता चलता है कि महिलाएं खुश हैं कि उन्हें पानी लाने के लिए हर दिन मीलों पैदल चलना नहीं पड़ता है (छायाकार – नरेश नैन)
एक विकास पेशेवर नरेश नैन ‘मंजरी फाउंडेशन’ में कार्यक्रम निदेशक हैं, जिनका 15 वर्ष से ज्यादा अनुभव है। उन्होंने अपनी विकास की पढ़ाई दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया और नीदरलैंड के वैगनिंगेन से पूरी की।
मंजरी फाउंडेशन के साथ काम करने वाले सत्य नारायण टेलर का CSR और विकास क्षेत्र में 20 वर्षों से ज्यादा का अनुभव है।
हरेंद्र शर्मा मंजरी फाउंडेशन के साथ काम करते हैं और चित्तौड़गढ़ में स्थित हैं। उनका गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य सहित विभिन्न विकास कार्यक्रमों में 23 वर्षों का अनुभव है।
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