स्थानीय शासन में महिलाएँ कहाँ हैं?

and छतरपुर, मध्य प्रदेश

जिला-स्तरीय शासन में बहुत कम महिलाओं को देखकर निराश दो युवा विकास पेशेवर, इसका कारण जानने के लिए प्रेरित हुए।

छतरपुर जिले के प्रशासन के बारे में सबसे पहली बात जो हमारे सामने आई, वह थी महिलाओं की नामौजूदगी।

थोड़ी देर के लिए हमें लगा कि शायद हमने पूरा ऑफिस नहीं देखा है। हमने मान लिया कि महिलाएं अपने कमरे में काम कर रही हैं और इसीलिए हमने उन्हें नहीं देखा। लेकिन वे हमें मीटिंग में भी दिखाई नहीं दी। 

पुरुषों के समुद्र जैसे दिखने होने वाले स्थान में, शायद ही कोई महिला थी।

पहली कुछ मीटिंगों में सिर्फ हम दो ही महिलाएँ थी। हमें हमेशा यह बात हैरान करती थी कि पूरे जिले के प्रशासन के एक कार्यालय में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद कम क्यों है?

ग्रामीण-शहरी लैंगिक विभाजन 

शहरी लैंगिक असमानता, STEM में महिलाओं की अनुपस्थिति, कंपनियों में तरक्की के लिए महिलाओं का संघर्ष, बोर्डों पर महिलाओं की कमी और महिला उद्यमियों की अनुपस्थिति ऐसे मुद्दे हैं, जो धीरे-धीरे, लेकिन लगातार शहरी भारत में उजागर हो रहे हैं।

लेकिन हमें कम ही सुनने को मिलता है कि महिला ग्राम रोजगार सहायक या सचिव या सरपंच, आदि रोजगार गारंटी सहायक, पंचायत सचिव या पंचायत अध्यक्ष के रूप में कम हैं।

पुरुषों के गढ़ों की चर्चा में, अक्सर दूरदराज या तथाकथित पिछड़े इलाकों और जिला प्रशासन या पंचायत जैसे सरकारी कार्यालयों में, रोजगार के बारे में कोई चर्चा नहीं होती है।

फिर भी, ये कार्यालय उन सभी नीतियों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करते हैं, जो प्रशासक जमीनी स्तर पर सभी पुरुषों और महिलाओं के लिए योजना बनाते हैं। लेकिन फैसले लेने में कुछ ही महिलाएं शामिल होती हैं।

जेंडर संबंधी खराब वैश्विक रैंकिंग

राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में निर्णय लेने के सभी स्तरों पर नेतृत्व के समान अवसर की बात तो दूर, ‘संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य-5’ (SDG) राज्यों को महिलाओं की पूर्ण और प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। 

एक और बात, राज्यों को लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और सभी स्तरों पर सभी महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए ठोस नीतियों और लागू करने योग्य कानून अपनाने और मजबूत करने के लिए प्रेरित करता है।

https://www.villagesquare.in/wp-content/uploads/2022/08/women-02.jpg जमीनी स्तर के प्रशासन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बेहद कम है (छायाकार – ईशान अग्रवाल)

लेकिन विश्व आर्थिक मंच (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) द्वारा प्रकाशित, ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2021’ के अनुसार भारत 156 देशों में 140वें स्थान पर है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या 121.06 करोड़ थी, जिसमें महिलाएँ 48.5% थीं।

इतनी अधिक महिलाओं वाले देश में, सत्ता के पदों पर उनकी संख्या निराशाजनक है।

जिला प्रशासन में लैंगिक अंतर

इसका कारण जानने के लिए, हम सूक्ष्म स्तर तक गहराई में जाना चाहते थे।

जिला, जो भारत में 600 से ज्यादा हैं और प्रत्येक जिला कलेक्टर या मजिस्ट्रेट द्वारा शासित होता है, पूरे विकास का आधार है।

चार जिलों के कलेक्टोरेट में कार्यरत अधिकारियों की संख्या का विश्लेषण करने पर पता चला कि जनपद बलरामपुर में महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। लेकिन वे अधिकारियों का सिर्फ 19.15% थी।

गुना में नौ महिलाएं और 91 पुरुष हैं। राजगढ़ में 24 महिलाएं और 216 पुरुष हैं। बड़वानी में 60 पुरुषों के बीच 11 महिलाएं हैं। हमने महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी को स्पष्ट और डरावना पाया।

महिलाओं के विस्तार की और जांच करने के लिए, हमने पूरे छतरपुर जिले के सभी वर्गों में सरकारी अधिकारियों की कुल संख्या के बारे में आंकड़े एकत्र किए।

जिले के कुल 12,521 अधिकारियों में से केवल 23.50% महिलाएं हैं। महिलाओं का सबसे ज्यादा प्रतिशत (25.39%) ग्रुप सी/क्लास 3 श्रेणी में कार्यरत है, जबकि श्रेणी-4 कर्मचारियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सिर्फ 14.28% है। निम्नतम से उच्चतम स्तर तक प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है और सरकार को इसके सुधार के लिए सक्रिय रूप से कदम उठाने की जरूरत है।

पंचायत व्यवस्था कैसे काम करती है?

पंचायत सचिव और रोजगार गारंटी सहायकों के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पहले, हमें यह समझना चाहिए कि विकेंद्रीकृत पंचायत व्यवस्था कैसे काम करती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का पहला स्तर है। पंच या पंचायत सदस्य और पंचायत ग्राम सभा के प्रति जवाबदेह हैं, क्योंकि ग्राम सभा के सदस्य ही उन्हें चुनते हैं।

पंचायती राज व्यवस्था में लोगों की भागीदारी दो अन्य स्तरों तक फैली हुई है, जिनमें से एक ब्लॉक स्तर पर है, जिसे जनपद पंचायत पंचायत समिति कहा जाता है। समिति के अंतर्गत कई पंचायतें आती हैं। पंचायत सचिव ग्राम सभा का सचिव भी होता है। यह सचिव निर्वाचित नहीं होता है, बल्कि सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है और ग्राम सभा की बैठकों, पंचायत और कार्यवाही का रिकॉर्ड रखने के लिए जिम्मेदार होता है।

https://www.villagesquare.in/wp-content/uploads/2022/08/women.jpgग्राफ में सरकारी कार्यालयों में विभिन्न स्तरों पर पुरुषों (लाल) की तुलना में महिलाओं (नीला) की भागीदारी की कमी को दर्शाया गया है (छायाकार – सोहिनी और स्मृति)

रोजगार गारंटी सहायक, मनरेगा कार्यों के कार्यान्वयन में पंचायत की मदद के लिए जिम्मेदार है। दोनों सभी प्रकार के विकास कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अंतिम स्तर के कार्यकर्ता हैं।

पंचायत स्तरीय प्रशासन में महिलाओं की संख्या नगण्य

पंचायत’ पर जारी श्रंखला ने स्थानीय सरकार के विषय पर फोकस बना दिया है और हमें यह समझने में मदद की है कि दूरदराज के गांवों में सरपंच, सहायक और सचिव सरकारी कार्यक्रम को लागू करना कैसे सुनिश्चित करते हैं। शो में सरपंच, सहायक सरपंच, सचिव और सचिव के सहायक, सभी पुरुष हैं और यह वास्तविकता से बहुत दूर नहीं है।

छतरपुर जिले के छह जनपदों की पंचायतों का विश्लेषण, महिला सचिवों और ग्राम रोजगार सहायकों की बेहद कम संख्या पर प्रकाश डालता है। सरपंच पद के लिए महिलाओं के लिए 33% आरक्षण है। इसलिए वे फिर भी दिखाई दे रही हैं, लेकिन प्रशासनिक पदों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

जिले के 394 सचिवों में से, केवल 3.05% (12) महिलाएँ हैं। ग्राम रोजगार सहायकों में महिलाओं का कुल प्रतिशत 7.16% से थोड़ा ज्यादा है, यानि 350 पुरुषों की तुलना में 27 महिलाएँ। राजनगर जनपद में 84 पुरुष सचिव हैं, जबकि केवल दो महिला सचिव हैं। बक्सवाहा जनपद में दोनों पदों पर 0% प्रतिनिधित्व है, कोई महिला सचिव या ग्राम रोजगार सहायक नहीं है।.

लैंगिक अंतर ख़त्म करना क्यों महत्वपूर्ण है?

एक देश के रूप में हमारे यहां प्रतिनिधित्व की कमी है और नीतियां संकीर्ण हैं, जो आधी आबादी के लिए काम नहीं करती हैं। महिलाओं का प्रतिनिधित्व हालात को लोकतांत्रिक बनाता है और निर्णय लेने में विविधता लाता है। यदि वे जनसंख्या का 50% हैं, तो उन्हें बराबर आवाज मिलनी चाहिए।

‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ ने पाया कि महिलाओं की भागीदारी निर्णय लेने पर सकारात्मक तरीके से प्रभाव डालती है, जिसके उदाहरणों में नॉर्वे में बेहतर शिशु-देखभाल और भारत में ज्यादा पेयजल परियोजनाएं शामिल हैं, जो महिलाओं के प्रतिनिधित्व के उच्च स्तर से जुड़ी हैं।

अंतर्राष्ट्रीय संसदीय संघ (IPU) ने शोध किया, जिसने साबित किया कि महिलाओं की बढ़ती उपस्थिति ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा और महिलाओं के स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को एजेंडे पर लाने के लिए प्रभावित किया है। दूसरे अध्ययन महिलाओं के काम, वित्त और कानून के अंतर्गत समानता से संबंधित मुद्दों पर सकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डालते हैं।

https://www.villagesquare.in/wp-content/uploads/2022/08/4.jpg स्थानीय स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से प्रशासन को बेहतर बनाने में मदद मिलती है (छायाकार – राहुल रमन)

IPU ने यह भी पाया कि राजनीति में महिलाओं की अधिक संख्या, महिलाओं को अपने प्रतिनिधियों से संपर्क करने और नागरिकों के रूप में अधिक भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ‘लोक प्रशासन में लैंगिक समानता’-2021 के अनुसार, “लैंगिक समानता एक समावेशी और जवाबदेह लोक प्रशासन का सार है।” 

रिपोर्ट में पाया गया कि नौकरशाही एवं सार्वजनिक प्रशासन में महिलाओं का समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से सरकार की कार्यप्रणाली में सुधार होता है, यह व्यापक सार्वजनिक हितों के प्रति अधिक संवेदनशील और जवाबदेह बनती है, सेवाओं की उपलब्धता की गुणवत्ता में वृद्धि होती है और सार्वजनिक संगठनों में भरोसा और विश्वास बढ़ता है।

लैंगिक समानता हासिल करने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है, लेकिन हमें जमीनी स्तर से शुरुआत करने की जरूरत है।

ग्राम पंचायतों और जिला प्रशासनों में, प्रशासन के अंतिम छोर पर महिलाओं को बढ़ावा देने से, हमें उनकी संख्या बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

एक समाज के रूप में हमें अवगत होना चाहिए कि लैंगिक अंतर बहुत ज्यादा है, विशेषकर प्रशासन की सबसे छोटी इकाइयों में। और यह तब तक कम नहीं होगा, जब तक हम इसके बारे में कुछ करते नहीं।

लेख के शीर्ष की फोटो सरकारी कार्यालयों में महिलाओं की भागीदारी की कमी को दर्शाती है, जिससे लैंगिक अंतर स्पष्ट रूप से बढ़ रहा है (छायाकार – राहुल रमन) 

स्मृति गुप्ता और सोहिनी ठाकुरता मध्य प्रदेश के छतरपुर में एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो हैं।