एक शिक्षक और कुछ अलग उनका ग्रामीण स्कूल
इस युवा विकास पेशेवर का कहना है कि वकील से शिक्षक बने व्यक्ति जैसे लोग, जो ग्रामीण बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते है और ग्रामीण विकास के लिए काम करते हैं, समाज की प्रगति के लिए प्रेरणा हैं।
इस युवा विकास पेशेवर का कहना है कि वकील से शिक्षक बने व्यक्ति जैसे लोग, जो ग्रामीण बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते है और ग्रामीण विकास के लिए काम करते हैं, समाज की प्रगति के लिए प्रेरणा हैं।
महामारी के समय में, जब अन्य निजी स्कूल फीस वसूल रहे थे, तो राजीव गुलाटी अपने छात्रों की फीस माफ करने वाले बलरामपुर जिले के पहले व्यक्ति थे। लेकिन धरमपुर गांव की आईएसजी कॉन्वेंट अकादमी के संस्थापक गुलाटी कोई नियमित शिक्षक नहीं हैं।
बलरामपुर के जिला मजिस्ट्रेट ने इसका विशेष उल्लेख किया, तो दूसरे स्कूलों ने भी इसका अनुसरण किया और छात्रों की लॉकडाउन के बाद स्कूल फिर से शुरू होने तक की फीस माफ कर दी।
कई तरह से, वह ग्रामीण शिक्षा में एक पथ प्रदर्शक हैं।
गुलाटी ने आसपास के गांवों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने के लिए आईएसजी स्कूल शुरू किया।
बाल श्रम और स्कूल छोड़ने की खबरों ने उन्हें स्कूल शुरू करने के लिए प्रेरित किया।
जो माता पिता अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना चाहते थे, लेकिन बुनियादी ढांचे के अभाव और शिक्षकों की अनुपस्थिति के कारण उन्हें सरकारी स्कूलों में दाखिल नहीं कराना चाहते थे, उनके लिए गुलाटी एक विकल्प प्रदान करना चाहते थे।
गुलाटी कहते हैं – “हमारा लक्ष्य ऐसे छात्रों को दाखिला देकर, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ उनकी जिज्ञासा को बढ़ावा देना था, जिसका एक माध्यम अंग्रेजी है।”
एक छात्र की माँ, हेमा खुश हैं कि उनका बेटा अंग्रेजी बोलता है। उन्होंने कहा – “आजकल आप कहीं भी जाएं, तो आपको अंग्रेजी आना जरूरी है। मेरे बेटे ने स्कूल में बहुत कुछ सीखा है। मुझे उम्मीद है कि सर (गुलाटी) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना जारी रखेंगे।”
गुलाटी सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों के माध्यम से बच्चों के समग्र विकास में विश्वास करते हैं।
वह कहते हैं – “हम आत्मरक्षा के लिए और उन्हें आत्मविश्वासी व्यक्तियों में विकसित करने के लिए ताइक्वांडो सिखाते हैं। अबेकस उपकरण देखने, सुनने और गति संबंधी इंद्रियों के विकास में मदद करता है।”
गुलाटी का मानना है कि समग्र विकास से छात्रों को सोच-समझ कर निर्णय लेने में मदद मिलेगी और यहां तक कि उनके परिवार और मित्रों को भी सशक्त बनाया जा सकेगा।
व्यावहारिक शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध, हाल ही में वह छात्रों को अग्नि सुरक्षा जागरूकता और प्रदर्शन के लिए फायर स्टेशन के दौरे पर ले गए।
जैसे-जैसे कई सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों और स्कूल में योग्य शिक्षकों के बारे में बात फैली, बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को अन्य निजी स्कूलों से आईएसजी में ले आए।
तीन साल पहले स्कूल में दाखिल हुई पाँचवीं कक्षा की छात्रा, अंजनी कहती है – “मैंने अपने दोस्तों से इस स्कूल में सीखी जा रही नई-नई चीजों के बारे में सुनने के बाद आईएसजी में दाखिला लिया था। यह मेरे घर के नजदीक भी है।”
एक शिक्षक के रूप में गुलाटी का दृढ़ विश्वास है कि वह अपने जिले के लिए जिस बदलाव की कल्पना करते हैं, वह सभी बच्चों को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाकर लाया जा सकता है।
इसलिए वह किंडरगार्टन से पाँचवीं कक्षा तक के 20 बच्चों की शिक्षा और संबंधित खर्चों का वहन करते हैं। उनमें से ज्यादातर अनाथ हैं या उनके एकल माता या पिता हैं।
अंजनी ने कहा – “सर मेरी और मेरी बहनों की हर जरूरत में मदद करते हैं। मेरे पिता के निधन के बाद, सर ने मुझे आश्वासन दिया कि जब तक मैं पढ़ना चाहूँ, वह मेरी शिक्षा का ख़र्च उठाएंगे।”
यह बात मानते हुए कि अंजनी एक प्रतिभाशाली और मेहनती छात्रा है, गुलाटी उसे आईएएस अधिकारी बनाने की उनके स्वर्गीय पिता की इच्छा को पूरा करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा – “उम्मीद है कि एक दिन मैं उन्हें एक अधिकारी के रूप में नीली बत्ती वाली कार में देख पाऊंगा।”
गुलाटी और उनकी माँ इंटर-कॉलेज में पढ़ने वाली 11 लड़कियों और हाल ही में कॉलेज में दाखिला लेने वाले दो छात्रों की शिक्षा का खर्च उठाते हैं।
असल में वकील से शिक्षक बने इस व्यक्ति को सेवा की भावना अपनी माँ से मिली है, जो लड़कियों की साक्षरता और किशोर लड़कियों और महिलाओं के प्रशिक्षण के लिए सरकारी परियोजनाओं पर काम करने वाली एक एनजीओ चलाती हैं।
गुलाटी सिर्फ अंजनी जैसे छात्रों की ही नहीं, बल्कि उनके परिवारों और अन्य ग्रामीणों की भी मदद करते हैं।
स्कूल की सहायिका प्रेमकुमारी ने बताया कि गुलाटी ने उनकी छह लड़कियों को रोजगार दिया और वे सभी जीवन में अच्छा कर रही हैं।
उन्होंने आस-पास के गांवों की महिलाओं के लिए, स्कूल में विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जिनका वे लाभ उठा सकती हैं।
उन्होंने निराश्रित एकल महिलाओं को अकुशल मजदूरों के रूप में नियुक्त किया है, जिन्होंने उनसे मदद मांगी थी। उन्होंने कम से कम 10 युवतियों की शादी का पूरा खर्च उठाया है और कई मरीजों की सर्जरी को प्रायोजित किया है।
एक ग्रामीण, गंगाजली याद करती हैं कि कैसे गुलाटी ने भोजन, दवा और यात्रा के लिए पैसे देने के अलावा, उनके मोतियाबिंद के ऑपरेशन और उसके टूटे हुए हाथ की सर्जरी के लिए ईलाज का खर्च उठाया था।
आईएसजी स्कूल की केयरटेकर, रमा ने कहा कि गुलाटी ने उन्हें तब नौकरी दी, जब उनके अपने बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया था।
गुलाटी द्वारा मदद की ऐसी कहानियां धरमपुर और आसपास के गांवों में प्रचलित हैं।
स्कूल के लिए उनके तात्कालिक सपनों में नर्सरी से कॉलेज तक 100 मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति, एक बड़ी लाइब्रेरी और एक कंप्यूटर लैब प्रदान करना शामिल है।
उनके सभी काम ग्रामीण बलरामपुर को विकसित करने का एक प्रयास हैं।
उनका दृष्टिकोण महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में काम करना और युवा दिमाग को समृद्ध करना है।
उन्होंने कहा – “समाज में बदलाव लाने और लोगों के जीवन पर प्रभाव डालने के लिए, किसी को असाधारण चीजें करने की ज़रूरत नहीं है। यदि कोई जिम्मेदारी से और लगन से अपना काम करे, एक-दूसरे का ख्याल रखे, तो हम समाज में बदलाव ला सकते हैं।”
मेरा मानना है कि प्रत्येक ‘एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट’ को ऐसे प्रेरक लोगों की जरूरत है, जो उस समाज के विकास और प्रगति के लिए लगातार काम करें, जिसमें वे रहते हैं।
इस लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में राजीव गुलाटी को उनके स्कूल, आईएसजी कॉन्वेंट अकादमी के कर्मचारियों और छात्रों के साथ दिखाया गया है (फोटो – फेसबुक, आईएसजी से साभार)
श्रेया सरकार उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में एक एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट फेलो के रूप कार्यरत हैं, जहां उन्हें लोगों की प्रेरक कहानियों के बारे में लिखना अच्छा लगता है। वह TISS, मुंबई से सामाजिक कार्य में सनात्कोत्तर हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?
यह पूर्वोत्तर राज्य अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां कई ऐसे स्थान हैं, जिन्हें जरूर देखना चाहिए।