भारत की खान-पान की आदतों पर आश्चर्यजनक निष्कर्ष
‘डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट’ (डीआईयू) का एक नया अध्ययन, ग्रामीण भारत की खान-पान की आदतों पर प्रकाश डालता है और कई मिथकों को नकारता है, जैसे अमीर लोग गरीबों की तुलना में ज्यादा विविध आहार खाते हैं।
‘डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट’ (डीआईयू) का एक नया अध्ययन, ग्रामीण भारत की खान-पान की आदतों पर प्रकाश डालता है और कई मिथकों को नकारता है, जैसे अमीर लोग गरीबों की तुलना में ज्यादा विविध आहार खाते हैं।
विकास के एक निश्चित संकेत के रूप में, भारत की चिंता खाद्य सुरक्षा से हटकर पोषण सुरक्षा पर आ गई है, यानि यह सुनिश्चित करना कि उसके लोगों को ज्यादा पौष्टिक, ज्यादा विविध आहार मिले।
सीधे शब्दों में कहें तो, ज्यादा विविध आहार का अर्थ है ज्यादा पोषण। अधिक पोषण का अर्थ है स्वस्थ लोग और एक स्वस्थ आबादी एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था बनाने में मदद करती है, जिसका अर्थ है एक मजबूत, अधिक समृद्ध भारत।
लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है।
भारत के विभिन्न आहार स्वरूपों को समझने के प्रयास में, नवगठित डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) ने एक अखिल भारतीय सर्वेक्षण, ‘फ़ूड मैपिंग स्टडी’ का आयोजन किया। इसमें ग्रामीण भारत के आहार की विविधता और व्यापक श्रृंखला तक पहुँच को समझना शामिल है।
आमतौर पर, लोग कैसे खाते हैं, की वास्तविक प्रकृति का पता लगाने के लिए इस तरह की जानकारी बहुत बार इकट्ठा नहीं की गई है। इसलिए यह सर्वेक्षणों की श्रृंखला में पहला होगा, जो आहार में कमियों और उन नीतियों की गहराई से जांच करेगा, जो लोगों को बेहतर भोजन में मदद करने का प्रयास करती हैं।
डीआईयू ‘ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन’ (टीआरआईएफ) और सोशल रिसर्च फर्म, ‘संबोधि’ की एक संयुक्त पहल है।
टीआरआईएफ में स्वास्थ्य एवं पोषण प्रमुख, श्यामल संतरा कहती हैं – “कुपोषण के खिलाफ भोजन ही एकमात्र समाधान है। हस्तक्षेपों की रूपरेखा तैयार करने के लिए, यह अध्ययन करना आवश्यक है कि लोग क्या खा रहे हैं। यह अनूठा अध्ययन इस बात पर, कि परिवार के स्तर पर पोषण संबंधी कमियों को कैसे पूरा किया जाता है, महिलाओं के आहार सेवन और क्षेत्र विशिष्ट कार्यक्रम बनाने के लिए जरूरी सांस्कृतिक मानदंड पर प्रकाश डालता है।”
एक आम ग़लतफ़हमी है कि गरीब लोग घटिया खाना खाते हैं और अमीर लोग विविध, स्वस्थ आहार लेते हैं। हालाँकि सबूत बताते हैं कि आहार सामर्थ्य से प्रभावित होता है, डीआईयू के प्रारंभिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि अन्य बड़े कारण भी हैं, जो आहार से संबंधित हैं, जैसे आदतें और संस्कृति।
हालाँकि आमतौर पर ऐसा सोचा जाता है कि भोजन के पाँच भोजन समूह हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार,सूक्षम स्तर पर भोजन को 14 श्रेणियों में बाँटा जा सकता है, जिसका मिश्रण आहार को संतुलित, पौष्टिक बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
हैरानी की बात है, सर्वेक्षण में पाया गया कि उच्चतम और निम्नतम जीवन स्तर वाले समूहों में, आहार विविधता में अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण भारत के दक्षिणी क्षेत्र में, उच्चतम और निम्नतम जीवन स्तर के बीच लोगों के आहार विविधता स्कोर में अंतर 8 में से सिर्फ 0.6 है।
इसका मतलब यह है कि आहार विविधता में कई कारक भूमिका निभाते हैं, सिर्फ यह नहीं कि कोई व्यक्ति संपन्न है या नहीं।
हालाँकि पूरे देश में भोजन की थाली में भोजन की चीजों में समानता दिखाई दी, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट खाद्य पदार्थों में भिन्नताएं थीं। यानि कि आहार विविधता आदत और सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे कई अलग-अलग कारणों से हो सकती है, न कि केवल धन और सामर्थ्य।
हैरानी की बात नहीं कि सभी क्षेत्रों में अनाज प्रमुख खाद्य पदार्थ हैं, इसके बाद तेल और वसा के साथ-साथ अन्य गैर-पत्तेदार सब्जियाँ भी हैं।
अंडे, मछली और समुद्री भोजन सबसे कम खपत वाले खाद्य पदार्थों में से हैं, जिससे पता चलता है कि भारत में अब भी जानवरों से प्राप्त, प्रोटीन-युक्त आहार कम है। इनकी खपत 2% से 41%% तक है, जिसमें सबसे कम पश्चिम और उत्तर में है और सबसे ज्यादा असम, नागालैंड और त्रिपुरा के पूर्वोत्तर क्षेत्र में है।
यह संभवतः सामर्थ्य और पहुँच के मुद्दों से लेकर, सांस्कृतिक पसंद तक कई कारणों से है।
उच्च प्रोटीन वाले, जीवों से प्राप्त समृद्ध आहार के लिए पूर्वोत्तर की पसंद और सूखी मछली के प्रति उनके प्रेम को देखते हुए, यह भारत का सबसे विविध आहार प्रतीत होता है। इसमें विटामिन ए और आयरन युक्त भोजन का सेवन करने वाले व्यक्तियों का अनुपात भी सबसे ज्यादा है।
‘सम्बोधि’ के वरिष्ठ प्रबंधक, शुभम गुप्ता कहते हैं – “सर्वेक्षण का उद्देश्य समय-समय पर सर्वेक्षण के माध्यम से ग्रामीण परिवारों की जानकारी समय पर प्राप्त करके, नीति निर्माताओं और विकास कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना है। इससे मौसमी प्रकृति और रुझानों को मैप करने में मदद मिलेगी और समय के साथ, हम पैटर्न का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम होंगे।”
अध्ययन में प्रत्येक क्षेत्र के अंदर आहार विविधता का भी विश्लेषण किया गया। यह उन राज्य सरकारों और गैर सरकारी संगठनों के लिए काफी मददगार होगा, जो पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले क्षेत्र-विशिष्ट कार्यक्रम बनाना चाहते हैं।
उदाहरण के लिए, पश्चिमी क्षेत्र के मामले में, औसत व्यक्तिगत आहार विविधता स्कोर (IDDS) 3.32 है, लेकिन औसत न्यूनतम (1.96 पर) और औसत उच्चतम (4.4 पर) के बीच बहुत बड़ा अंतर था। यह अंतर 2.48 है।
यह इस क्षेत्र में व्यक्तियों के पोषण सेवन में भारी अंतर और वहां खराब पोषण सुरक्षा की संभावित स्थिति की ओर इशारा करता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां न सिर्फ जानवरों का भोजन, बल्कि विटामिन ए से भरपूर फल और पत्तेदार, हरी सब्जियों की भी बेहद कम खपत होती है।
भारत को भोजन कहां से मिलता है, यह भी ज्ञानवर्धक है। क्योंकि कोई भव्य सुपरमार्केट नहीं हैं, तो ग्रामीण भारतीय किराने की खरीदारी के लिए कहां जाते हैं?
डीआईयू सर्वेक्षण से पता चला है कि ग्रामीण भारतीयों द्वारा खाया जाने वाला ज्यादातर अनाज उनके पारिवारिक खेतों से प्राप्त होता है। इसका एकमात्र अपवाद पूर्वोत्तर और दक्षिणी गाँव थे, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की दुकानों पर निर्भर हैं।
भारत में बाकी हर जगह पीडीएस की दुकानों का इस्तेमाल अन्य दुकानों से कम होता है, जिसमें स्थानीय दैनिक बाजार और उसके बाद साप्ताहिक बाजारों को प्राथमिकता दी जाती है।
डीआईयू का ‘ग्रामीण भारत कैसे खाता है – फूड प्लेट मैपिंग’ अध्ययन श्रृंखला उपभोग पक्ष पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिसका लक्ष्य भोजन की पहुँच और सामर्थ्य को समझना है और शायद, श्रृंखला में बाद में उत्पादन पक्ष पर भी चर्चा की जाएगी।
इस पहले अध्ययन में 16 राज्यों के 7,332 ग्रामीण परिवारों को शामिल किया गया, जिन्हें छह भौगोलिक क्षेत्रों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया। इनका संचालन एक महीने के समय में ‘sambodhipanels’ टेक प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया गया।
संयुक्त राष्ट्र के FAO के फ्रेमवर्क का इस्तेमाल करते हुए, सर्वेक्षण में 24 घंटे की अवधि में लोगों की भोजन खपत को शामिल किया गया और खाद्य पदार्थों को 14 श्रेणियों में बांटा गया।
इसके बाद उत्तरदाताओं को 14 में से स्कोर दिया गया, जो इस बात पर निर्भर करता है कि उन्होंने इन श्रेणियों के अंतर्गत खाद्य पदार्थों का सेवन किया है या नहीं, जिसे उनके व्यक्तिगत आहार विविधता स्कोर (IDDS) कहा जाता जाता है।
उत्तरदाता की संपत्ति की स्थिति का आकलन करने के लिए, डीआईयू ने लोगों से टीवी, कार या साइकिल जैसी संपत्ति के स्वामित्व से संबंधित प्रश्न पूछे।
श्रृंखला का अगला अध्ययन इस वर्ष अक्टूबर में जारी होने की संभावना है।
लेख के शीर्ष पर मुख्य फोटो में मेघालय के सड़क किनारे लगी एक सब्जी की दुकान को दिखाया गया है (छायाकार – कंकणा त्रिवेदी)
कंकणा त्रिवेदी डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट (डीआईयू) में प्रबंधक हैं और पर्यावरण एवं सामाजिक न्याय के मुद्दों में रुचि रखती हैं।
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