मध्य प्रदेश में महिला समूहों द्वारा खाद्य सुरक्षा में सुधार
ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन के एक विकास कार्यकर्ता के अनुसार, मध्य प्रदेश में भोजन के सार्वजनिक वितरण में महिला स्वयं सहायता समूहों को शामिल करने से खाद्य सुरक्षा मजबूत हो रही है।
ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन के एक विकास कार्यकर्ता के अनुसार, मध्य प्रदेश में भोजन के सार्वजनिक वितरण में महिला स्वयं सहायता समूहों को शामिल करने से खाद्य सुरक्षा मजबूत हो रही है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लाभार्थियों के चेहरों पर खुशी है। धार जिले के गणपुर और बीदपुरा गांवों में लाभार्थियों ने साक्षात्कार में कहा – “वे उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) हमारे गांव में ले आए। पहले हमें अपना अनाज खरीदने के लिए 5 किलोमीटर चलना पड़ता था।”
लाभार्थियों की एफपीएस तक पहुँच अब बेहतर है, क्योंकि इसे एक स्थानीय महिला समूह चलाता है। एफपीएस ज्यादा समय तक खुला भी रहता है। एफपीएस चलाना आसान नहीं है और इसके लिए गहन समय, धन और प्रबंधन की जरूरत होती है।
ये बदलाव कैसे हुआ? स्थानीय एसएचजी ने यह पहल क्यों की? वे कार्यों का प्रबंधन कैसे कर रहे हैं?
ये वे प्रश्न थे, जिनका सामना मुझे अपने फील्ड वर्क में करना पड़ा था।
मध्य प्रदेश सरकार ने, 2015 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के अंतर्गत पीडीएस नियंत्रण आदेश जारी किया। यह एफपीएस के सार्वजनिक स्वामित्व में निजी संस्थाओं की भागीदारी को विनियमित करने के लिए था।
इसके अंतर्गत दो-तिहाई उचित मूल्य दुकानों पर सहकारी समितियों का स्वामित्व हो सकता है, जबकि बाकी एक-तिहाई दुकानें अनिवार्य रूप से एसएचजी या किसी अन्य महिला संगठन को आवंटित किया जाना था।
नीति में यह समावेश स्थानीय समूहों के लिए पहल करने का साधन बन जाएगा।
मध्य प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (MPSRLM) द्वारा बढ़ावा दिए जा रहे 13 सिद्धांत यानि सूत्र इन समूहों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाते हुए, इस पद्धति को और तेज करते हैं। इन सिद्धांतों में एसएचजी की नियमित साप्ताहिक बैठक, स्वास्थ्य, स्वच्छता और शिक्षा के सर्वोत्तम व्यवहार अपनाना, पंचायत राज संस्थानों में भागीदारी और लाभार्थियों तक पहुँचना शामिल है।
राज्य की इस पहल से बड़े पैमाने पर महिलाओं और समाज में अन्य सकारात्मक बदलाव भी लाए हैं। मैं बीदपुरा और गणपुर गांवों में कुछ प्रत्यक्ष परिणाम देख रहा हूँ। ये दुकानें धार जिले में एसएचजी द्वारा संचालित 198 ऐसी एफपीएस में शामिल हैं।
एसएचजी द्वारा गांव में अब तक का पहला एफपीएस लाया गया।
पिछले 4 वर्षों से अपने एफपीएस के माध्यम से, स्वयं सहायता समूहों ने बिना किसी व्यवधान के समुदाय की सेवा की है। कोविड-19 महामारी के दौरान, एसएचजी महिलाओं ने लाभार्थियों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के रूप में काम किया।
एफपीएस के बुनियादी कार्यों के लिए बुनियादी ढांचे और सामान की जरूरत होती है। सहकारी समितियों के मामले में, इन्हें सेल्स के लोगों को पहले ही दिया जाता है। एसएचजी के मामले में ऐसा नहीं है।
12 ग्राम संगठनों के लिए संसाधन व्यक्ति, गीता दीदी कहती हैं – “भैया, जो दीदी कभी घर से बाहर बात नहीं करती थी, वे पंचायत के सामने अपनी बात रखती हैं।”
बीदपुरा की एफपीएस तीन गांवों को सेवाएं प्रदान करता है। एसएचजी ने प्रति गांव प्रति सप्ताह दो दिन आवंटित किए हैं। इससे एफपीएस पर अनावश्यक भीड़भाड़ कम हो जाती है।
स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित एफपीएस, सहकारी समितियों द्वारा संचालित एफपीएस की तुलना में ज्यादा साफ भी हैं। एसएचजी द्वारा संचालित एफपीएस में अनाज की बर्बादी की मात्रा भी बहुत कम थी। मैंने यह भी देखा कि आवश्यक सामान को वितरित करने में भी एसएचजी द्वारा संचालित एफपीएस ज्यादा सक्रिय हैं।
क्योंकि एसएचजी विक्रेता गांव में ही रहते हैं, इसलिए एफपीएस संचालकों और लाभार्थियों के बीच एक जुड़ाव होता है। बाहरी प्रवास, सामाजिक या निजी समारोह जैसी आपात स्थिति में, लाभार्थियों को प्राथमिकता के आधार पर खाद्यान्न दिया जाता है। इससे लोगों के छूट जाने की संभावना कम हो जाती है।
कुछ लाभार्थियों ने यह भी बताया कि उन्हें उनके काम के घंटों (सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक) के बाद भी खाद्यान्न मिल सकता है, खासकर दिहाड़ीदार मजदूरों के मामले में। बीदपुरा में, एसएचजी ने एक नियम बनाया है कि समूह के किसी भी सदस्य को तब तक अनाज नहीं मिलेगा, जब तक कि गांव के सभी लाभार्थियों को अनाज नहीं मिल जाता। यह नियम स्वयं सहायता समूह में ‘समुदाय पहले’ की भावना का प्रतीक है।
नीतिगत खामियों के कारण एफपीएस के संचालन में विभिन्न चुनौतियाँ बनी हुई हैं। पहली, एसएचजी को एफपीएस प्रबंधन में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिलता। नियंत्रण आदेश किसी भी प्रशिक्षण निर्धारित नहीं करता।
दूसरी, वित्तीय व्यवहार्यता एक और बड़ी बाधा है, खासकर एसएचजी द्वारा संचालित एफपीएस के लिए। उन्हें एफपीएस चलाने के लिए रु. 8,400 का थोड़ा कमीशन मिलता है, जो आमतौर पर एफपीएस के रखरखाव पर ही खर्च हो जाता है।
इस प्रकार एसएचजी के पास मामूली राशि बचती है। एसएचजी को अनाज खरीद के लिए पैसे का पूर्व-भुगतान करना होता है, जबकि नकदी उपलब्ध होने के कारण सहकारी समितियों को यह उधार मिल जाता है। यह नियम-आधारित असमानता एसएचजी को ऋण पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करती है।
आखिरी है लोगों की धारणा। एफपीएस प्रबंधन को अभी भी पुरुष-प्रधान काम माना जाता है। एसएचजी को कभी-कभी समुदाय से भेदभाव का सामना करना पड़ता है। समुदाय में ऐसी विषमता से बचने के लिए प्रचार और जागरूकता गतिविधियाँ अपनाई जा सकती हैं।
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ओमकार तानाजी ने जून-जुलाई 2022 में ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया फाउंडेशन (TRIF), मध्य प्रदेश टीम के साथ इंटर्नशिप की।
लेख के शीर्ष की मुख्य फोटो में जिला धार के मनावर के आजीविका भवन में एसएचजी की क्लस्टर स्तरीय बचत और ऋण बैठक को दिखाया गया है (छायाकार – ओमकार तानाजी देशमुख)
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