कारगिल का खुबानी से बना “चमत्कारी पेय” – फटसींगु
लद्दाख के कारगिल क्षेत्र के लोगों का मानना है कि खुबानी से बना पेय ‘फटसींगु’ न सिर्फ उन्हें स्वस्थ, लम्बा जीवन प्रदान करने वाला एक पेय है, बल्कि सभी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए "इलाज" भी है।
लद्दाख के कारगिल क्षेत्र के लोगों का मानना है कि खुबानी से बना पेय ‘फटसींगु’ न सिर्फ उन्हें स्वस्थ, लम्बा जीवन प्रदान करने वाला एक पेय है, बल्कि सभी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए "इलाज" भी है।
एक धूप वाले दिन का पारा जैसे जैसे बढ़ता है, एक वृद्ध लद्दाखी किसान अपनी प्यास बुझाने के लिए जल्दी जल्दी अपने घर वापस आता है। वह एक छोटे मटके से नारंगी-पीला तरल पदार्थ एक गिलास में भरता है और आखिरी बूंद तक पी जाता है।
कारगिल शहर के बाहरी इलाके में एक नदी के किनारे बसे गाँव, हरदास के 65 वर्षीय किसान, हाजी अब्दुल्ला खुबानी से बने इस स्थानीय शर्बत के बहुत शौकीन हैं। स्थानीय भाषा में फटसींगु कहे जाने वाले खूबानी से बना पेय एक लोकप्रिय पेय पदार्थ है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका लोगों के स्वास्थ्य पर चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।
मुट्ठी भर सूखी मीठी खुबानी को एक निश्चित मात्रा में पानी में तब तक उबाला जाता है, जब तक कि फल गुठली से अलग न हो जाए और तरल नारंगी-पीला न हो जाए। फिर इसे मिट्टी के बर्तन में छान लिया जाता है, जिसमें इसे घर के ठंडे हिस्से में कई दिनों तक रखा जा सकता है।
शरबत पीते हुए अब्दुल्ला कहते हैं – “मैं बचपन से ही यह शर्बत पीता आ रहा हूँ। मेरे पूर्वज इसे पीते थे। इसके कई फायदे हैं। इस उम्र तक मुझे कभी भी जोड़ों में दर्द या पाचन समस्या नहीं हुई। यह सब इस खट्टे-मीठे पेय के कारण है। जब भी मैं थका हुआ महसूस करता हूँ, तो इसका एक गिलास मुझे तरोताजा महसूस कराने के लिए काफी है।”
पाचन-समस्या से लेकर मूत्र-संक्रमण और भूख न लगने की समस्या तक, कारगिल के ठंडे रेगिस्तान का यह खुबानी पेय पारम्परिक रूप बीमारी के लिए रामबाण माना जाता है।
‘एक सेब रोज, डॉक्टर को रखे दूर’ वाली कहावत को यहां भूल जाइए। इस क्षेत्र के लोगों के लिए एक खुबानी रोज का अर्थ है डॉक्टर की जरूरत ख़त्म।
लेकिन यह इतना ही नहीं है।
मजेदार बात यह है कि कारगिल के प्रमुख खुबानी उत्पादक क्षेत्र हरदास और शिलाकचाय के गांवों में बुजुर्गों की अच्छी खासी संख्या है। बहुत से लोग लंबे जीवन और अच्छे स्वास्थ्य का श्रेय इस स्थानीय पेय को भी देते हैं।
हरदास के मुस्तफा अहमद विलेज स्क्वेयर को बताया – “हमारे गाँव में ऐसे लोगों की काफी संख्या है, जो 60 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं। मेरे गांव में भी कई लोग ऐसे भी हैं, जो अस्सी और नब्बे से ऊपर आयु के हैं। मेरे दादाजी, जिनकी उम्र लगभग 90 वर्ष है, की सेहत अच्छी है। ये सभी ग्रामीण फटसींगु पीते हैं।”
शिलाकचाय निवासी 85 वर्षीय मोहम्मद हुसैन थांगचो अब भी कारगिल शहर में अपनी दुकान चलाते हैं। अपनी उम्र को नकारते हुए वह सुबह कारगिल के लिए निकलते हैं और पूरा दिन दुकान में काम करने के बाद शाम को लौटते हैं।
उनके बेटे कासिम हुसैन, जो अपने पिता के साथ दुकान में काम करते हैं, कहते हैं – “भगवान का शुक्र है, मेरे पिता का स्वास्थ्य इस उम्र में भी अच्छा है। मुझे लगता है कि उनकी कड़ी मेहनत के अलावा, इसका एक कारण खुबानी पेय भी हो सकता है, जिसे वह शायद ही कभी पीना भूलते हों।”
कारगिल के बाहरी इलाके में एक खूबसूरत सीमावर्ती गांव, हुंदरमन के 72-वर्षीय हाजी गुलाम मोहम्मद अपनी एसिडिटी की समस्याओं के लिए फटसींगु का सेवन करते हैं।
मोहम्मद ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “जब भी मुझे एसिडिटी होती है, मैं बस इस खुबानी पेय का एक गिलास पी लेता हूँ। यह कुछ ही घंटों में निश्चित राहत प्रदान करता है।”
कारगिल के खुबानी उत्पादक इलाकों की महिलाएं भी नियमित रूप से इस स्थानीय पेय को पीती हैं।
हरदास की 70 वर्षीय महिला हाजी मरियम कहती हैं – “कुछ साल पहले, मुझे गंभीर मूत्र संक्रमण की समस्या हुई थी। लगभग एक महीने तक नियमित रूप से सुबह इस खुबानी पेय का सेवन करने के बाद, मैं संक्रमण से ठीक हो गई।”
कारगिल के ठंडे रेगिस्तान में बुजुर्ग लोग जहां विशेष खुबानी पेय को कई बीमारियों और विकारों से लड़ने के लिए फायदेमंद मानते हैं, वहीं युवा पीढ़ी का मानना है कि यह पेय तुरंत ऊर्जा बढ़ाने वाला है। हरदास के बारहवीं कक्षा के छात्र, मोहम्मद इरफान का कहना था कि यह पेय अक्सर मूड ठीक करता है।
हालांकि ज्यादातर कारगिल वासी स्वस्थ रहने और बिमारियों से बचने के लिए फटसींगु पीते हैं, लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रथा की जड़ें समाज की आस्था और संस्कृति से जुडी हैं।
कारगिल के एक प्रसिद्ध चिकित्सक मोहम्मद इशाक के अनुसार, हालांकि खुबानी के कई स्वास्थ्य लाभ हैं और फटसींगु पीना एक सदियों पुरानी परम्परा है, लेकिन पेय से जुड़े उपचार प्रभाव शोध का विषय हैं।
ज्यादातर लोग मीठे स्वाद वाला पेय ठंडा करके पीना पसंद करते हैं। आमतौर पर इसे ऐसे ही पीया जाता है, लेकिन बहुत से लोग इसे जौ की रोटी, ‘पफा’ के साथ भी खाना पसंद करते हैं।
क्योंकि कारगिल में प्रमुख आबादी मुस्लिम है, इसलिए वे इस्लामी कैलेंडर में उपवास के महीने रमजान में खुबानी पेय का भारी मात्रा में सेवन करते हैं।
क्योंकि रमज़ान के महीने में फटसींगु की खपत कई गुना बढ़ जाती है, सूखी मीठी खुबानी की कीमत भी बढ़ जाती है। कारगिल के ड्राई फ्रूट का कारोबार करने वाले एक दुकानदार, मोहम्मद अब्बास कहते हैं कि आमतौर पर रमजान में दाम 100-150 रुपये बढ़ जाते हैं।
रमज़ान में प्यास बुझाने वाला
आम धारणा है कि सुबह-सुबह फटसींगु पीने से पूरे दिन की पानी की प्यास बुझ जाती है।
स्वास्थ्य विभाग की कार्यकर्ता ज़ैनब खातून कहती हैं – “लोग आमतौर पर भोर से पहले के भोजन में एक गिलास फटसींगु पीते हैं और बाकी पूरे दिन आपको प्यास नहीं लगती। इस खुबानी पेय का ऐसा प्रभाव है।”
लेख की मुख्य फोटो में मिट्टी के बर्तन में रखा और गिलास में परोसा गया खुबानी पेय फटसींगु दिखाया गया है। (छायाकार – नासिर यूसुफी)
नासिर यूसुफी श्रीनगर स्थित एक पत्रकार हैं।
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