हिमाचल के जल अभाव वाले गांव में आधुनिक सुविधाएं
फागू, शिमला की एक भविष्य-परक विला, सौंदर्य और उपयोगिता की पुनर्कल्पना प्रस्तुत करता है। जल अभाव वाले क्षेत्र में, यह व्यावहारिक परख प्रदान कर रहा है कि बढ़ते जल संकट से कैसे निपटा जा सकता है।
फागू, शिमला की एक भविष्य-परक विला, सौंदर्य और उपयोगिता की पुनर्कल्पना प्रस्तुत करता है। जल अभाव वाले क्षेत्र में, यह व्यावहारिक परख प्रदान कर रहा है कि बढ़ते जल संकट से कैसे निपटा जा सकता है।
इस साल बारिश के देवता विशेष रूप से अन्यायपूर्ण रहे हैं और या तो बहुत ज्यादा बारिश हुई या बहुत कम।
क्योंकि जलवायु परिवर्तन के इन अप्रत्याशित और चरम प्रभावों के और भी ख़राब होने की आशंका है, हिमालय की तलहटी में एक भविष्य का घर, अपनी चतुर वर्षा जल संरक्षण प्रणाली की बदौलत कुछ हद तक इससे बचे रहने में कामयाब रहा।
शिमला के नजदीक, फागू की एक मोहक चोटी के ऊपर बना, जिसके नीचे अक्सर बादल भी मंडराते रहते हैं, न केवल सुंदर है, बल्कि अद्भुत भी है।
फिर भी भले ही इस इमारत का सिर बादलों के ऊपर हो, लेकिन डिज़ाइन मजबूती से जमीन में जमा हुआ है।
यह पहली गर्मी नहीं है, जब फागू और आसपास के इलाकों को पानी की कमी का सामना करना पड़ा है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला और पड़ोसी शहर लगातार सात वर्षों से जल संकट से जूझ रहा है, जिसमें 2018 की गर्मियों का संकट सबसे बड़ा था।
हालांकि इससे निपटने के लिए सतलज नदी को एक प्रमुख श्रोत बनाने जैसे राज्य सरकार के प्रमुख प्रयास, राहत प्रदान करते हैं, लेकिन वे महंगे हैं और उन्हें शुरू करने में समय लगता है। यह जल जीवन मिशन के अंतर्गत, स्थानीय लोगों को पेयजल के लिए बफर स्टोरेज टैंक बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही है। लेकिन इसके लिए हर कोई उत्सुक नहीं है।
वर्षा जल के संग्रहण के लिए उनकी योजना के बारे में पूछे जाने पर, एक स्थानीय निवासी, राकेश वर्मा कहते हैं – “मैंने अभी तक टैंक बनाने के बारे में सोचा नहीं है। इसमें पैसा लगेगा।” स्पष्ट रूप से इसके बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन के लिए और ज्यादा रोल मॉडल और समय चाहिए।
और हालांकि 2014 से राज्य के शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन प्रणाली बनाना जरूरी है, लेकिन फागू जैसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह जरूरी नहीं है।
‘विला फागू’ के वास्तुकार को कोई और रास्ता नहीं दिखा।
‘अंडर दि मैंगो ट्री’ के संस्थापक, वास्तुकार गौरव राज शर्मा जब पहली बार विला बनाने के लिए जगह का सर्वेक्षण कर रहे थे, तो बारिश हो रही थी – मूसलाधार बारिश। उन्हें सिर्फ पानी ही पानी दिखाई दे रहा था।
एक ऐसा डिज़ाइन बनाना, जो सूखे दिनों में उपयोग करने के लिए पानी को संरक्षित करता हो, स्पष्ट रूप से जरूरी प्रतीत हो रहा था।
शर्मा कहते हैं – “प्रचुरता के बावजूद, मानसून के महीनों के अलावा दक्षिण एशिया में पानी की कमी होती है।”
विला की वर्षा जल संग्रहण व्यवस्था, तालाब और एक भूमिगत टैंक में 55,000 लीटर तक वर्षा जल एकत्र, फ़िल्टर और रिसाईकल कर सकती है।
बढ़ती संख्या में आने वाले पर्यटकों को सेवा प्रदान करने वाले क्षेत्र के लिए, यह एक बड़ी लाभ की स्थिति है। लेकिन शर्मा का दृढ़ विश्वास है कि वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता के मामले में सिर्फ विला और इलाके के लिए ही अच्छा नहीं है, बल्कि पूरे समुदाय की सहनशीलता बढ़ाता है।
शर्मा ने कहा – “वर्षा जल संचयन क्षेत्र में रहने वाले लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।”
वर्षा जल तालाब विभिन्न प्रकार के क्षेत्रीय जानवरों और पक्षियों को भी आकर्षित करते हैं, जो विला की खूबसूरती को बढ़ाते हैं।
लेकिन बात बस इतनी ही नहीं है।
इसमें भू-राजनीतिक रंगों के साथ एक अनोखी डिजाइन विशेषता है।
‘विला फागू’ के पास पानी दो धाराओं में विभाजित होता है, जिसमें से एक चोटी के एक तरफ से सिंधु नदी में गिरती है और दूसरी तरफ गंगा नदी की एक सहायक नदी में विलीन हो जाती है। इसका मतलब यह है कि एक धारा भारत में और एक पाकिस्तान में जाती है।
यह डिज़ाइन हिमाचल प्रदेश की स्थानीय वास्तुकला के कई पहलुओं को भी प्रदर्शित करता है।
उदाहरण के लिए, घर के दो हिस्सों में से एक में, लिविंग एरिया में सेंट्रल स्टोव के चारों ओर फर्श पर बैठने की व्यवस्था है।
हैरानी की बात नहीं है कि शर्मा के इस डिज़ाइन ने हलचल मचा दी है और 2021 का “क्यूरियस डिज़ाइन अवार्ड फॉर आर्किटेक्चर’ जीता है।
लेकिन बहुत से लोगों के लिए, स्थानीय कारीगरों को रोजगार देने वाली और साथ ही क्षेत्र की पारम्परिक जड़ों को भी प्रदर्शित करने वाली, ‘विला फागू’ की टिकाऊ वास्तुकला बनाने की क्षमता एक ऐसा मॉडल है, जिसे दोहराया जा सकता है।
मानवशास्त्र पुरातत्वविद् और ‘हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ कल्चरल एंड हेरिटेज स्टडीज’ (HICHS) की संस्थापक, डॉ. सोनाली गुप्ता के लिए “प्राचीन ज्ञान” को आधुनिक डिजाइन के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है।
जब वह किसी जलधारा को सूखते हुए देखती हैं, तो वह तुरंत उस जलस्रोत के आसपास की वास्तुकला, लोक कथाओं, गीतों और इतिहास के उन हिस्सों पर ध्यान देती हैं, जो साथ-साथ गायब हो जाते हैं।
गुप्ता कहती हैं – “जितनी जल्दी लोग प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करने वाले प्रतिमान, ‘पुराणों’ के प्राचीन ज्ञान को वापस लाने की तात्कालिकता को समझेंगे, उतनी ही जल्दी हम समाधान तक पहुंच पाएंगे।”
प्राचीन ज्ञान किसी स्थान के भूगोल और जलवायु के साथ दृढ़ता से मेल खाता है, इस विश्वास के साथ गुप्ता के लिए बावड़ी और छपड़ी (दो पहाड़ियों के बीच तालाब) जैसी स्वदेशी परम्पराओं को पुनर्जीवित करने का नवाचार भविष्य-परक है।
निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बारे में प्रलय के दिन की बहुत सी चेतावनियाँ हैं।
पर्यावरण-क्षति में ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान सबसे कम होने के बावजूद, जलवायु संबंधी विभिन्न मुद्दों पर उनके अभिनव समाधान सराहनीय हैं।
शर्मा कहते हैं – “परियोजना ‘विला फागू’ दिखाती है कि कैसे पानी का उपयोग, पहुँच, प्रबंधन और इस का आनंद लिया जा सकता है।”
स्वदेशी ज्ञान में अपनाए जा सकने वाले वर्तमान समय के समाधान और नवाचार भविष्य हो सकते हैं।
स्वाति सिंह चौहान नई दिल्ली स्थित एक फोटोग्राफर और फिल्म निर्माता हैं।
शीर्ष की मुख्य फोटो में ‘विला फागू’ को दिखाया गया है।
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