ग्रामीण भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच की कमी है, विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए। यही कारण है कि ‘द बॅनियन’ मानसिक स्वास्थ्य सेवा संगठन, जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए, स्थानीय समुदाय की महिलाओं का सहयोग प्राप्त करता है।
जहां तक सेतु को याद है, वह उस सामाजिक सन्दर्भ में अपने दौरे पड़ने की समस्या से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे थे, जहां मर्दानगी शारीरिक ताकत की सीमाओं तक सीमित है, सेतु की मिर्गी उसके परिवार और साथियों के उपहास और तिरस्कार का कारण बन गई थी।
लगातार सामाजिक बहिष्कार के कारण, सेतु ने काम और परिवार से दूरी बना ली और अलग थलग रह कर अपने दिन बिताने लगे।
आख़िरकार, सेतु ग्रामीण भारत के कुछ मानसिक स्वास्थ्य अस्पतालों में से एक में चले गए। फिर उन्हें और उनकी पत्नी को अस्पताल और घर पर व्यक्तिगत रूप से और दोनों को एक साथ परामर्श दिया गया। उनके बच्चों को दोबारा स्कूल जाने के लिए आर्थिक और शैक्षणिक सहायता प्रदान की गई।
लगातार जुड़ाव और अन्य सहायता सेवाओं के साथ, सेतु का अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रिश्ता स्पष्ट रूप से मजबूत और स्नेहपूर्ण हो गया। सबसे बड़ी बात यह कि वह इस बात से राहत महसूस कर रहे हैं कि जीवन में पहली बार उन्हें पूरे एक साल तक दौरे पड़ने से मुक्ति मिल गई है।
हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना हैं कि प्रत्येक 1,00,000 व्यक्तियों पर कम से कम एक मनोचिकित्सक होना चाहिए। लेकिन कुछ राज्यों को छोड़कर, उस तरह की बुनियादी मानसिक स्वास्थ्य सहायता मौजूद नहीं है।
यही कारण है कि ‘द बॅनियन’ ने 30 साल पहले अपने दरवाजे और दिल खोल दिए।
हम भारत के ग्रामीण तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र में बेघर और अति-वंचित आबादी के लिए एक मानसिक स्वास्थ्य सेवा संगठन हैं।
सेतु जैसे लोगों के साथ काम करना ही हमारा काम है।
भारत का मानसिक-स्वास्थ्य अंतर
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) ने ग्रामीण भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और किफायती बनाने के लिए संघर्ष किया है। लंबी दूरी की यात्रा, एक दिन की मजदूरी का नुकसान और जेब से खर्च, लोगों को सार्वजनिक या निजी स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुँच में बाधक है। भारत में, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में खाई बहुत बड़ी हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 2018 के अनुसार, मानसिक बीमारियों का शीघ्र पता लगाने और ईलाज के लिए, एक गैर-विशेषज्ञ स्थानीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यबल महत्वपूर्ण है।
यह सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो सामाजिक देखभाल की कमी और कल्याण योजनाओं के पहुँच के बाहर होने से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
महिला-नेतृत्व में स्वास्थ्य प्रयास
स्वास्थ्य के लिए तमिल शब्द है ‘नलम’।
इसलिए 2012 में हमने स्थानीय सामुदायिक कार्यकर्ताओं, जिनमें ज्यादातर महिलाएँ थी, को लेकर ‘नलम’ कार्यक्रम शुरू किया।
वे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक जरूरतों को पूरा करने के लिए उनके स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसमें संवेदनशील आबादी की पहचान, उपचार के लिए अस्पताल भेजना, अस्पताल सेवाएं, ईलाज के बाद देखभाल, प्रशिक्षण, सामुदायिक जागरूकता और पैरवी शामिल है।
बच्चों की शिक्षा, सरकारी लाभों तक पहुँच, रोजगार और आजीविका जैसी सामाजिक जरूरतों पर भी ध्यान दिया जाता है।
‘नलम’ संगठक, जैसा कि हम उन्हें पुकारते हैं, जरूरतमंदों के साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति, उपचार अनुपालन, सामाजिक-आर्थिक समस्याओं और सामाजिक देखभाल की उपलब्धता को समझने के लिए, गहनता से बातचीत करते हैं। उन्हें सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में ‘बॅनियन एकेडमी ऑफ लीडरशिप इन मेंटल हेल्थ’ (BALM) द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है।
नलम कार्यक्रम आपातकालीन देखभाल और स्वास्थ्य लाभ केंद्रों (ECRC) के साथ मिलकर काम करता है, जो शहरी और ग्रामीण भारत में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले बेघर लोगों के लिए व्यक्ति-केंद्रित, अस्पताल-आधारित देखभाल प्रदान करता है। यह कई प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध कराता है, जो जरूरतमंद व्यक्ति की व्यक्तिगत जरूरतों के लिए सबसे उपयुक्त हैं, जैसे कि क्रिटिकल टाइम इंटरवेंशन (CTI) और द बॅनियन की इन-पेशेंट (आईपी) सेवाओं के प्रवेश, दवा और चिकित्सीय हस्तक्षेप, और मनोरंजक एवं रेफरल सेवाएं।
नलम का जोरदार प्रभाव
2012 से, 9000 से ज्यादा मरीजों ने ‘नलम’ सेवाओं के लिए पंजीकरण कराया है और अक्टूबर 2022 तक, उनमें से 1200 को सक्रिय रूप से सेवा प्रदान की जा रही है।
नलम सेवा प्राप्त करने वाले एक अन्य बॅनियन-उपभोक्ता कहते हैं – “कार्यकर्ता के दौरे ने मुझे आगे देखने के लिए प्रेरित किया। मुझे ख़ुशी थी कि किसी ने मेरी इतनी परवाह की कि उन्होंने मेरे घर तक आकर पूछा कि मैं कैसा हूँ। उन्होंने मुझसे प्यार से बात की। यदि कर्मचारी नियमित रूप से घर नहीं आते और मेरी जाँच नहीं करते, तो शायद मुझमें अपनी चुनौतियों का सामना करने की ताकत नहीं होती।”
इस समय कुल 14 ECRC हैं, जिनमें से चार को सीधे द बॅनियन द्वारा चलाए जा रहे हैं (दो चेन्नई में और एक-एक चेंगलपेट और पोन्नानी में)।
बाकि (सिवगंगई, इरोड, तंजौर, तिरुनेलवेली, नीलगिरि, मदुरै, एनयूएलएम त्रिची, तिरुवल्लूर) को राज्य सरकार (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, तमिलनाडु) और तमिलनाडु एवं कर्नाटक के गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी में चलाया जा रहा है।
ECRC के माध्यम से, अब तक कुल 3023 ग्राहकों की सहायता की गई है और 1975 को पुनः मुख्य धारा से जोड़ा है।
महाराष्ट्र की एक ‘नलम’ कार्यकर्ता, सीता (बदला हुआ नाम) कहती हैं – “कुछ लोग पारम्परिक वैद्य या ‘भगत’ या निजी अस्पतालों पर बहुत पैसा खर्च करते हैं। कुछ समय बाद पैसे ख़त्म हो जाते हैं और फिर उन्हें न चाहते हुए भी इलाज बंद करना पड़ता है। ऐसे कई लोग द बॅनियन के अस्पताल में इलाज के लिए आते हैं। उन्हें मुफ़्त इलाज और दवाएँ मिलती हैं। जब व्यक्ति ठीक हो जाता है, तो उनके रिश्तेदारों की प्रतिक्रियाएँ बेहद संतोषजनक होती हैं।”
संवेदना और देखभाल सीखना
‘नलम’ कार्यक्रम न सिर्फ समुदाय की मानसिक और सामाजिक जरूरतों में मदद करता है, बल्कि टिकाऊ रोजगार, मानसिक स्वास्थ्य लाभ और आत्म-देखभाल और उनके समुदाय से सम्मान प्रदान करके नलम कार्यकर्ताओं को सशक्त भी बनाता है।
तमिलनाडु के चेंगलपट्टू की एक सामुदायिक कार्यकर्ता, गायत्री (बदला हुआ नाम) कहती हैं – “पहले मैं किसी भी नए व्यक्ति से बात करने में झिझकती थी, खासकर जब मुझे अकेले ही बात करनी पड़ती थी। अब मैं बहुत सशक्त हुई हूँ और मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है, चाहे वह घर का दौरा हो या कोई अन्य बातचीत। यहां तक कि मैं अपने नलम कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण प्रदान करने में भी सक्षम हूँ। मैंने लेखन और डेटा प्रबंधन जैसे कई दूसरे कौशल भी हासिल किए हैं।”
ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए, हम स्थानीय हितधारकों, सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों और वैश्विक भागीदारों के साथ तालमेल से, देखभाल के अपने मॉडल को लगातार बढ़ाने की उम्मीद करते हैं।
कैसे?
हम सहभागी कार्यवाही अनुसंधान को जोड़ने की उम्मीद करते हैं, जिसके निष्कर्ष सहयोगी-नेतृत्व और जागरूकता के माध्यम से मानसिक स्वास्थ्य को लांछन-मुक्त करने के साथ साथ, पैरवी कार्य में तब्दील हो सकते हैं।
एम नम्रता राव BALM के ‘सेंटर फॉर ट्रॉमा स्टडीज एंड इनोवेशन’ की सह-प्रमुख हैं।
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