देवदासी प्रथा से लड़ती युवा लड़की
एक अग्रणी महिला अधिकार कार्यकर्ता सुनाती हैं एक युवा लड़की की कहानी, जो वंचित समुदायों की लड़कियों को सीधे समर्पण या नकली शादी के माध्यम से देह व्यापार में धकेलने वाली देवदासी प्रथा से लड़ रही है।
एक अग्रणी महिला अधिकार कार्यकर्ता सुनाती हैं एक युवा लड़की की कहानी, जो वंचित समुदायों की लड़कियों को सीधे समर्पण या नकली शादी के माध्यम से देह व्यापार में धकेलने वाली देवदासी प्रथा से लड़ रही है।
मैंने 1981 में देवदासियों पर एक अध्ययन किया था, जिसके फलस्वरूप कर्नाटक सरकार ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाला एक कानून बनाया।
लेकिन इतने दशकों के बाद भी, देवदासी प्रथा कुछ इलाकों में जारी है, जो लड़कियों को शोषण का शिकार बनाती।
स्कूल में अपने अंतिम वर्ष की एक आदिवासी लड़की, राधा स्पष्ट करती हैं कि एक देवदासी माँ से जन्मी लड़की होना कैसा होता है – “लोग मेरी देवदासी पृष्ठभूमि की बात करते हैं, जो एक लांछन है, क्योंकि मैं नहीं जानती कि मेरे पिता कौन हैं।”
प्राचीन काल से ही देवदासी प्रथा भारत के विभिन्न हिस्सों में फली-फूली है।
पुराने वक्तों में देवदासियों को एक सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त थी, क्योंकि वे राजघराने और पुजारियों को सेवा प्रदान करती थी। वे आराम का जीवन व्यतीत करती थी, क्योंकि उन्हें उनकी कला-प्रतिभा के लिए पहचान और सम्मान प्राप्त होता था। वे गायक और नर्तक होती थी, जो प्रदर्शन भी करती थी और उन्हें मंदिर के देवताओं की देखभाल का काम भी सौंपा जाता था।
पहले मंदिरों में सेवा के लिए समर्पित देवदासियाँ अपने नृत्य और गायन की कलात्मक प्रतिभा के लिए जानी जाती थी (फोटो – सक्षम गंगवार, ‘अनस्प्लैश’ से साभार)
लेकिन बदलते समय के साथ, यह प्रथा कमजोर होती गई और एक ऐसे स्तर पर पहुँच गई, जहां यह वेश्यावृति क्षेत्रों के लिए आपूर्ति की एक श्रृंखला बन गई है।
यह मुंबई के कमाटीपुरा और फोरास रोड के लिए विशेष रूप से सच है, क्योंकि यह प्रथा कर्नाटक और महाराष्ट्र में अब भी जारी है।
राधा की माँ और दादी देवदासियाँ हैं।
इन दोनों को कर्नाटक सरकार के पुनर्वास प्रयासों के हिस्से के रूप में देवदासी पेंशन मिलती है। उन्हें जल्द ही आय के साधन के रूप में कुछ शुरू करने के लिए 1 लाख रुपये का ऋण मिलेगा।
राधा की माँ राधा को भी देवदासी के रूप में समर्पित करना चाहती थी।
लेकिन एक नागरिक समाज संगठन (CSO) की एक पहल परिवार तक पहुँची और उन्हें राधा को अपने किशोरी समूह (KG) का सदस्य बनने की अनुमति देने के लिए राजी किया, जो एक ग्राम सहायता समूह है, जिसने राधा को देवदासी प्रथा की बुराइयों के बारे में जागरूक होने में मदद की थी। .
KG (किशोरी समूह) सदस्य के रूप में, राधा को बेंगलुरु और हैदराबाद में अधिकारियों के साथ बातचीत करने और उन्हें देवदासी परिवारों और उनके बच्चों के हालात के बारे में बताने का अवसर मिला।
वह देवदासी प्रथा के खिलाफ बाल अधिवक्ता बन गई हैं।
अपनी आवाज में गर्व के साथ राधा ने कहा – “समुदाय के लोग अब KG की गतिविधियों का सहयोग करते हैं, पहले वे इससे नाराज थे।”
लॉकडाउन के दौरान एक बाल विवाह की योजना बनाई जा रही थी। लेकिन KG की लड़कियों ने ‘चाइल्ड लाइन’ को सूचना दे दी और शादी रोक दी गई।
एक अन्य मामले में उन्हें पता चला कि स्कूल छोड़ने वाली एक लड़की को देवदासी बनाया जाने वाला है।
हालाँकि लड़कियों को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन राधा की KG एक एनजीओ के साथ मिलकर देवदासी बनने से रोकने में सफल रही।
लड़की अब आजीविका व्यवसाय सीख रही है, ताकि भविष्य में वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सके।
घर पर राधा अक्सर किशोरी समूह की गतिविधियों और उसने जो सीखा, उसके बारे में बात करती थी। यह सुनने के बाद, उनकी माँ ने राधा को देवदासी बनाने की बात आगे नहीं बढ़ाई।
CSO अब राधा की शिक्षा में मदद करता है और 1,000 रुपये की वार्षिक छात्रवृत्ति प्रदान करता है ।
हालाँकि शुरु में राधा को वो लांछन प्रभावित करते थे, जिनका उसे सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में उसने चिंता करना बंद कर दिया।
राधा कहती है – “किशोरी समूह में शामिल होने से पहले, मुझे देवदासी प्रथा से संबंधित किसी भी नीति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन अब मुझे इस प्रथा के बारे में पता है और यह कि यह अवैध है।”
उन्होंने यह भी कहा कि अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण, देवदासियाँ छेड़छाड़ का आसान शिकार होती हैं।
यदि वे अपने समुदाय या दूसरे किसी पुरुष सदस्य से बात करती हैं, तो लोग उन्हीं को दोष देते हैं। उसने सुना है कि लड़कियों को अश्लील मैसेज और तस्वीरें मिलती हैं, हालांकि उसे इस तरह की शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़ा है।
राधा और कई आदिवासी लड़कियाँ उस जातिगत भेदभाव के बारे में बात करती हैं, जो उन्हें उच्च जाति के लोगों की ओर से तब से झेलना पड़ता है, जब से उन्होंने पढ़ाई शुरू की है।
वे समझती हैं कि ऊँची जाति के लोग इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
किशोरी समूह की एक सक्रिय सदस्य, राधा किशोरी समूह द्वारा संचालित पुस्तकालय में पुस्तकों के लेन देन के रजिस्टर का रखरखाव करती हैं।
उसकी इच्छा पुलिस बल में शामिल होने की है, लेकिन दुख की बात है कि उनकी लम्बाई जरूरी स्तर से कम है। इसलिए उन्होंने अब नर्सिंग की पढ़ाई करने का फैसला किया है।
उन्होंने अपनी माँ को भी मना लिया है कि वह उनकी चिंता न करे और कि वह अपना ख्याल रखेगी।
अपने समुदाय की युवा लड़कियों द्वारा किसी भी प्रकार के भेदभाव और हिंसा के खिलाफ, राधा के नेतृत्व की बदौलत, लिंग-आधारित हिंसा के खिलाफ महिला नेताओं की एक मजबूत ताकत उभर रही है।
जब से मैंने देवदासियों पर अपना पहला अध्ययन किया है, तब से मैं इस प्रथा के उतार-चढ़ाव और इसे रोकने के प्रयासों का अवलोकन कर रही हूँ।
संतोष की बात यह है कि कई राधाओं का उदय हुआ है, जिन्होंने देवदासी प्रथा के खिलाफ खुद को संगठित किया है।
लड़कियाँ सशक्त हैं और अपनी आकांक्षाओं को स्पष्ट करती हैं।
मेरे लिए राधा उस संघर्ष का प्रतीक है, जिसका सामना कई ग्रामीण लड़कियां उन्हें गुलाम बनाने वाली संस्कृति, परम्परा और धार्मिक प्रथाओं के आसान शिकार के रूप में करती हैं जो उन्हें गुलाम बनाती हैं।
जब दुनिया ‘अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस’ मना रही है, यह राधा जैसी साहस की कहानियां हैं, जो हमें गर्वित और आश्वस्त करती हैं कि ये सभी के लिए बेहतर कल के लिए बदलाव के सच्चे एजेंट हैं!
मुख्य छवि में लड़कियों को अपनी देवदासी और आदिवासी पृष्ठभूमि के खिलाफ भेदभाव पर काबू पा कर आगे का रास्ता बनाते हुए दिखाया गया है (फोटो – ‘चिल्ड्रन ऑफ इंडिया फाउंडेशन’ के सौजन्य से)
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