प्रोसेस्ड फास्ट फूड के प्रति आकर्षण सिर्फ शहरी भारत की समस्या नहीं है, ‘डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट’ के एक हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि ग्रामीण भारतीयों को आसानी से उपलब्ध जंक फूड से बचना मुश्किल होता जा रहा है।
हम में से बहुत को रूहअफ़्ज़ा पीने और घर का बने फ्रायम्स खाने के आनंद की सुखद यादें हैं।
ठीक है कि फ्रायम्स एक तला हुआ आलू का नाश्ता है और रूहअफ़्ज़ा में फल और जड़ी-बूटियाँ हो सकती हैं, लेकिन यह मीठे से भरपूर होता है।
फिर भी, घर का बना होने का मतलब था कि उनमें थोक उत्पादन वाले उत्पादों की तरह रसायन नहीं होते। लेकिन घर पर बनाए जाने का मतलब यह भी है कि वे आसानी से उपलब्ध होने वाले जंक फूड के विपरीत कभी-कभार ही परोसे जाते हैं, जो हमारे शहरों में सर्वव्यापी हो गया है।
अब नमकीन की नई किस्मों की एक अंतहीन श्रृंखला है – आलू या मकई के चिप्स से लेकर चावल, दाल और मकई से बने “पफकॉर्न” स्नैक्स तक।
लेकिन प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ ही नहीं हैं, जो आसानी से उपलब्ध हैं और भूख लगने पर हमें लुभाते हैं।
सूप के साथ नूडल्स की तो बात ही क्या, इसमें मीठे और नमकीन दोनों तरह के बिस्कुट हैं और हमें कैंडी और मिठाइयों की बेतहाशा श्रृंखला को नहीं भूलना चाहिए, जो अब स्थानीय दुकानों से लेकर सड़क के किनारों पर फेरीवालों तक आसानी से उपलब्ध हैं।
जहां ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ पर भारत दुनिया के 119 देशों में 103 नंबर पर है, ‘यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल’ के अनुसार, भारत में सिर्फ छह साल (2012 से 2018) में पैकेज्ड और प्रोसेस्ड फ़ूड की बिक्री दोगुनी हो गई।
लेकिन यह एक आम ग़लतफ़हमी है कि इस प्रोसेस्ड और पैकेज्ड भोजन का सेवन ज्यादातर शहरी भारतीयों द्वारा किया जा रहा है।
थोक-उत्पादन नमकीन और फ़ास्ट फ़ूड ग्रामीण भारतीयों को आकर्षित करते हैं।
नव गठित ‘डेवलपमेंट इंटेलिजेंस यूनिट’ (DIU) ने पाया है कि ग्रामीण भारत भी बड़ी मात्रा में प्रोसेस्ड फास्ट फूड खाता है।
क्योंकि खपत का एक प्रमुख बिंदु घर है, इसलिए माता-पिता पर लक्षित, एक केंद्रित जागरूकता अभियान आगे बढ़ने का संभावित तरीका है।
‘सम्बोधि’ और ‘ट्रांसफॉर्मिंग रूरल इंडिया फाउंडेशन’ के तालमेल से कार्यरत DIU ने भारत भर के 10-19 वर्ष के 4,174 किशोर लड़कों और लड़कियों का टेलीफोन से सर्वेक्षण किया (10-14 वर्ष के 2,117, 15-19 वर्ष के 2057).
अध्ययन के उद्देश्य से, खाद्य पदार्थों को सात श्रेणियों में विभाजित किया गया था:
बिस्कुट
इंस्टेंट नूडल्स
स्लाइस ब्रेड
चिप्स और नये नमकीन
शीतल पेय पदार्थ
चॉकलेट और आइसक्रीम
अन्य मिठाइयाँ
ये पदार्थ मुख्य रूप से चीनी, सैचुरेटेड वसा, नमक से बने होते हैं, जबकि जरूरी रेशा, विटामिन, आयरन और अन्य पोषक तत्वों की मात्रा लगभग शून्य होती है। अध्ययनों से बार-बार यह पता चलता है कि परिष्कृत खाद्य पदार्थों के नियमित और ज्यादा सेवन से जीवनशैली संबंधी बीमारियों में वृद्धि हो रही है।
पांचवें ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ (NFHS) से पता चलता है कि 2015-16 की तुलना में 5 वर्ष से कम आयु के मोटे बच्चों की संख्या अधिक है।
भारतीयों को कुपोषण से बचाने के लिए, यह पता लगाना महत्वपूर्ण है कि सिर्फ शहरी लोग ही नहीं, बल्कि सभी भारतीय क्या खा रहे हैं और वे इस भोजन को कहाँ से प्राप्त करते हैं और उपभोग करते हैं।
फिर भारतीयों को बेहतर भोजन खाने में मदद करने के लिए बेहतर नीतियां बनाई जाएं।
ग्रामीण भारत का सबसे पसंदीदा परिष्कृत खाद्य पदार्थ क्या था?
जब पूछा गया कि पिछले सात दिनों में सात श्रेणियों के कौन से खाद्य पदार्थ खाए गए, तो सर्वेक्षण में शामिल 87.1% लोगों द्वारा चिप्स और कुरकुरे जैसे आसान खाद्य पदार्थों को सबसे अधिक बताया गया, जिसके बाद 74.4% लोगों ने बिस्कुट का सेवन किया।
लगभग पचास प्रतिशत उत्तरदाता मिठाइयां, चॉकलेट, आइसक्रीम या कैंडी जैसी मीठी चीजें भी खा रहे थे। कितना? पिछले 7 दिनों में लगभग दो से तीन बार।
इसके बाद 40.6% ने कहा कि वे सप्ताह में दो बार इंस्टेंट नूडल्स खाते हैं।
लगभग 30% किशोरों द्वारा सप्ताह में लगभग दो बार शीतल पेय का भी सेवन किया जाता है।
हैरानी की बात यह है कि सबसे कम खाया जाने वाला परिष्कृत खाद्य उत्पाद स्लाइस ब्रेड है।
‘न्यूट्रिशन एन्ड कम्युनिटी एक्शन रिसोर्स (NCARe) केंद्र, तेजपुर विश्वविद्यालय की सामुदायिक पोषण प्रैक्टिशनर, सायन देवरी कहती हैं – “हमने देखा है कि परिष्कृत भोजन, विशेष रूप से जंक फूड, गांवों में प्रवेश कर गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह वैश्विक ब्रांड नहीं हैं, जो लोकप्रिय हैं, बल्कि कुछ में गुणवत्ता मानकों का लगभग कोई पालन नहीं होता है। इनमें मीठा, नमक और वसा की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। यह दिखाने वाले काफी सबूत हैं कि ये खाद्य पदार्थ कुपोषण के दोहरे बोझ का कारण बन रहे हैं, जहां हम पारम्परिक कुपोषण के साथ-साथ मोटापे से भी जूझ रहे हैं।”
प्रोसेस्ड फ़ास्ट फ़ूड कब और कहाँ खाया जाता है?
सर्वेक्षण में गहराई से देखने पर पता चला कि 10-19 वर्ष की आयु के युवा लोगों द्वारा खाए जाने वाले सात में से चार फ़ास्ट फ़ूड की खपत का बड़ा हिस्सा घर पर होता था।
हमें इन परिष्कृत खाद्य बाजारों के विनियमन के लिए सख्त नीतियों की जरूरत है
शीतल पेय और मिठाइयाँ, कुछ कम हद तक, किसी मित्र या रिश्तेदार के घर पर दी गई थी।
लेकिन नमकीन लगभग हर जगह खाई जा रही थी, स्कूल के अंदर और बाहर और साथ ही घर पर भी।
देवरी ने आगे कहा – “आहार विविधता और खाद्य प्रणाली मानचित्रण के संबंध में तत्कालीन राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षण यह जानने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं कि उपभोग शैली कैसी और क्या है। हमें इन परिष्कृत खाद्य बाजारों के विनियमन के लिए सख्त नीतियों की भी जरूरत है।”
घर में बने खाने की जगह नुकसानदायक नाश्ते ले रहे हैं
परिष्कृत खाद्य पदार्थों के व्यापक रूप से उपलब्ध होने के कारण, सरकारों को खाद्य और पोषण नीतियों का मसौदा तैयार करते समय ऐसे निष्कर्षों को ध्यान में रखना चाहिए।
विश्व बैंक पहले ही इस बात की वकालत कर चुका है कि शीतल पेय और उच्च वसा वाले खाद्य पदार्थों जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों पर कर ज्यादा लगाया जाना चाहिए और परिष्कृत खाद्य पदार्थों के पैकेज पर अनिवार्य रूप से इस बारे में लेबल लगाना चाहिए।
DIU के टीम लीड, संदीप घोष का मानना है कि अब भारत के नीति निर्माताओं के लिए भी और अधिक प्रयास करने का समय आ गया है।
घोष कहते हैं – “यह देखते हुए कि घर उपभोग का एक प्रमुख बिंदु है, माता-पिता को लक्षित करने वाला एक केंद्रित जागरूकता अभियान आगे बढ़ने का संभावित तरीका है।”
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