अपने पौधों को शत्रु तत्वों से बचाने वाली ढकी हुई नीची सुरंगों, खाइयों और अनूठे ग्रीनहाउस में सब्जियों की फसल उगा कर, लद्दाख के चांगथांग की महिला किसान भारी लाभ के लिए, आधुनिक खेती अपनाती हैं।
जब हड्डियाँ कंपा देने वाली हवा, बर्फ से ढके पहाड़ों से नीचे लद्दाख घाटी में आती है, तो यह एक भयंकर गर्जना पैदा करती है, जो डेचन चोगडोल के लिए और भी ज्यादा भयावह लगती है, लेकिन आधुनिक कृषि तकनीकों की बदौलत इसके उत्साह को नहीं हरा सकती।
हवा और शोर के बावजूद, वह पॉलीयुरेथेन से लिपटी नीची सुरंगों की पंक्तियों में उगने वाले अपने सब्जी पौधों की देखभाल कर रही हैं।
बर्फीली-ठंडी हवाएं और महीन पहाड़ी हवा से आती तेज धूप, उसके पौधों को बुरी तरह जला सकते हैं।
लेकिन उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है।
अपनी चित्र-पोस्टकार्ड स्तर की भरपूर खूबसूरती के बावजूद, लद्दाख के न्योमा गाँव में प्रकृति हर कदम पर जीवन के हर रूप को चुनौती देती है। 35-वर्षीय डेचन का घर, यह गांव दक्षिणी लद्दाख के सुदूर कोने चांगथांग में, समुद्र तल से 13,710 फीट (4,180 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है।
इस शीत हवा से प्रभावित, अर्द्ध-शुष्क भूमि में रहना कठिन है। गर्मियों के चन्द महीनों के अलावा, खेती करना “असंभव” है।
महिला किसानों के लिए बदलाव की बयार
लेकिन दुनिया के सबसे ऊंचे गांवों में से एक, न्योमा में बदलाव की बयार बह रही है।
यह परिदृश्य अब कृषि सुरंगों, खाइयों और ग्रीनहाउस से भरा हुआ है, जहां डेचन जैसे किसान विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ उगाते हैं।
कुछ साल पहले तक, न्योमा के ग्रामवासी केवल जौ और शलजम जैसी कुछ शुष्क क्षेत्र की फसलें ही उगा सकते थे। लेकिन आधुनिक कृषि पद्धतियां खेती के तरीके को बदल रही हैं।
डेचन को हवा अब परेशान नहीं करती, क्योंकि वह जालियों पर उगने वाली अपनी खीरे की लताओं की देखभाल करती रहती है।
रास्ते से थोड़ा हटकर, हल्के लेकिन मजबूत पॉलीयुरेथेन शीट से ढके एक धनुषाकार, संकरे ग्रीनहाउस में, सैकड़ों खीरों से लदी लताएँ एक कुंज का निर्माण करती हैं। यह डेचन की पुश्तैनी जमीन पर बाहर साजिश रचने वाले तत्वों से सुरक्षित है।
यह मंगल ग्रह पर आलू उगाने जैसा है।
हॉलीवुड की 2015 में आई अंतरिक्ष भ्रमण की फिल्म, ‘द मार्शियन’ में मैट डेमन द्वारा निभाए गए किरदार के बारे में सोचिये, जो ऐसा ही करता है।
कुछ भी नहीं उगता। सचमुच?
चांगथांग में खुले में कुछ भी नहीं उगता। यह एक आम धारणा और परहेज है और इसने डॉ. जिग्मेट यांगचान को बहुत परेशान कर दिया।
कार्यक्रम समन्वयक और कश्मीर के ‘शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विश्वविद्यालय’ (SKUAST-K) की एक ईकाई, ‘कृषि विज्ञान केंद्र’ की प्रमुख एक मीटिंग से बाहर आ रही थी, जब उन्होंने लोगों को यह निराशापूर्ण जुमला कहते सुना।
वह कहती हैं – “मैंने और अन्य अधिकारियों ने यहां कृषि सुधारों के लिए एक योजना तैयार की।” क्षेत्र के लोगों, जिनमें से ज्यादातर खानाबदोश जीवन जीते हैं, के लिए आधुनिक खेती के बारे में जागरूकता अभियान चलाया गया। “उन्हें प्रेरित करना एक चुनौती थी। लेकिन हम सफल हुए।”
उनका प्रयास महेश्वर कँवर के इस क्षेत्र में खीरे की खेती पर का शोध से प्रेरित था। जिग्मेट और उनकी टीम ने इस सूत्र को पकड़ा और टमाटर, बैंगन और मशरूम जैसी दूसरी सब्जियां उगाने में सक्षम हुए।
चांगथांग की खेती की सफलता लद्दाखी शैली के ग्रीनहाउस से सम्बंधित है, जो संरचनात्मक और डिज़ाइन के लिहाज से मैदानी इलाकों से भिन्न हैं।
इनमें यूरोपीय खलिहान-शैली का डिज़ाइन है, जो तीन तरफ से वर्षा आश्रय या बस-स्टॉप की तरह दो-परत वाली मिट्टी की ईंट की दीवारों से घिरा हुआ है। बेहतर इन्सुलेशन के लिए ईंट की परतों को पुआल को दबा कर भरा जाता है। पीछे की दीवार लंबी और ऊंची है, जबकि दो तरफ की दीवारें पतली हो कर अनियमित वक्र बनाती हैं। एक शामियाना जैसी छत पीछे की दीवार को ढकती है, जो विलो और चिनार की छतों द्वारा टिकी होती है। इन पर एक पॉलीयुरेथेन शीट तिकी है।
अधिकतम गर्मी ग्रहण करने के लिए, ग्रीनहाउस का रुख सूर्य की ओर रखते हैं। इन मजबूत संरचनाओं का निर्माण आसान है और स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री का उपयोग लागत को न्यूनतम रखता है। साथ ही, वे माहौल के साथ घुलमिल जाते हैं।
दुनिया के शीर्ष पर खेती
सदियों से इन देहाती पर्वतीय लोगों का मुख्य आधार भेड़, बकरी और याक पालन रहा है। आज भी ऐसा ही है।
पशुओं से उन्हें दूध, पनीर, मांस, ऊन और कम्बल प्राप्त होता है। वे अनाज, नमक, चाय, चीनी और अन्य जरूरी चीजें खरीदने के लिए, पनीर, ऊन और कम्बल बेचते थे।
खेती एक अतिरिक्त गतिविधि थी, जिसमें विशेष रूप से महिलाएँ शामिल थी। इसीलिए इतनी महिलाओं ने ग्रीनहाउस, ढकी हुई नीची सुरंगों और खाइयों में सब्जियां उगाने के जिग्मेट के विचार को अपना लिया।
न्योमा के कृषि विज्ञान केंद्र में उपलब्ध रिकॉर्ड से पता चलता है कि इलाके में लगभग 500 और चांगथांग क्षेत्र में लगभग 2,200 किसान आधुनिक खेती में लगे हुए हैं।
एक 55-वर्षीय महिला, त्सेरिंग एंग्मो कहती हैं – “कुछ साल पहले तक, मैं अपने इस छोटे से खेत में केवल जौ और कभी-कभी शलजम उगाती थी। लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र की बदौलत, मैं अब नकदी फसल उगाने में सक्षम हूँ।” अपनी एक सुरंग में अपने मशरूम की क्यारी दिखाते हुए उनके सुर्ख गाल चमक उठे।
खीरे की खेती के लिए प्रसिद्ध एक मॉडल गाँव मुथ की सोना चुंगडोल, गूदेदार लंबे, हरे छिलके वाले फल में माहिर हैं।
उन्होंने कहा – “खीरे के अलावा, मैं लगभग छह प्रकार के टमाटर और एक किस्म का बैंगन उगाती हूँ।”
और उनके ग्रीनहाउस और खाइयाँ देखने लायक हैं।
जीवन बदलती आधुनिक कृषि पद्धतियाँ
सोना का कहना था कि उनकी जिंदगी बदल गई है। वह अब घरेलू कामकाज करने या पुरुषों को पशु चराने में मदद करने में समय बर्बाद नहीं करती।
उन्होंने कहा – “आधुनिक खेती ने मुझे आर्थिक स्वतंत्रता दी है। मैं अब लाखों में कमाई कर सकती हूँ।”
उन्हें क्षेत्र में तैनात सेना की इकाइयों से ताजा खीरे, टमाटर और अन्य साग-सब्जियों के लिए, ऑर्डर मिलते हैं, जिससे वह सालाना लगभग 2 लाख रुपये कमाती हैं।
जब गौरवशाली लद्दाखी सूरज उनकी जादुई मातृभूमि पर चमक रहा है, चांगथांग की महिला किसान धीरे-धीरे सफलता का आनंद ले रही हैं।
वे तेज़ हवा को अपना कृषि कौशल दिखा रही हैं।
मुख्य फोटो में चांगथांग में महिलाओं को ग्रीनहाउस में खीरे उगाते हुए दिखाया गया है, जो लद्दाख के सबसे ऊंचे और सबसे ठंडे स्थानों में से एक है (छायाकार – नासिर यूसुफी)
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