कृषि-उद्यमिता: एक कप लेमनग्रास चाय में प्रेरक पारिवारिक कहानी
पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर ‘साईबाबा गावती चाय सेंटर’ की हस्ताक्षर चाय अपने मालिक की मामूली नौकरी करने वाले लड़के से लेकर सफल कृषि-उद्यमी तक की कहानी कहता है।
पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर ‘साईबाबा गावती चाय सेंटर’ की हस्ताक्षर चाय अपने मालिक की मामूली नौकरी करने वाले लड़के से लेकर सफल कृषि-उद्यमी तक की कहानी कहता है।
भारतीय सड़क पर किसी भी यात्री के लिए पहिये के बाद सबसे अच्छी खोज चाय के लिए विश्राम है। अपने पेय के बारे में रूढ़िवादी दृष्टिकोण रखने वाले लोग केवल चाय की पत्तियां लेना सबसे अच्छा मानते हैं। कुछ लोग दूध और चीनी मिलाना पसंद करते हैं। अन्य लोग मसाले वाली चाय पसंद करते हैं, जबकि कुछ नींबू की बूंदों के साथ काली चाय के बेहतरीन होने का दम भरते हैं।
निश्चिंत रहिये, यदि कोई एक आधिकारिक नारे की तरह कहता है ‘चला गावती चा घेऊ या’ (चलो लेमनग्रास चाय पीते हैं), तो कप में कोई तूफान नहीं आएगा।
लेमनग्रास को मराठी में ‘गावती’ कहते हैं। और जब कोई महाराष्ट्र के पुणे-अहमदनगर राज्य राजमार्ग पर कामरगांव गांव के सड़क किनारे एक दुकान के पास पहुंचता है, तो अक्सर सुनी जाने वाली आवाज का अनुवाद होता है – “आओ, लेमनग्रास चाय पीते हैं।”
अहमदनगर शहर से 20 कि.मी., राज्य राजमार्ग 27 पर, लेमनग्रास साईंबाबा गावती चाय केंद्र की हस्ताक्षर चाय है। और कमरगांव की पवन टरबाइनों और गेंदा के खेतों की तरह, यह 25 साल पुरानी चाय की दुकान एक मील का पत्थर है।
इसे 40-वर्षीय किसान बाबासाहेब ठोकळ और उनका परिवार चलाते हैं। उनकी चाय को अलग बनाने वाली यह तीखी जड़ी, बमुश्किल एक किलोमीटर दूर, उनके परिवार के खेत से आती है।
दिलचस्प बात यह है कि वह अपनी लेमनग्रास चाय को दूध और, यदि आप चाहें तो चीनी के साथ परोसते हैं।
अदरक की महक के साथ हल्के खट्टे स्वाद वाली दूधिया चाय पीते समय, किसी के मन में यह स्पष्ट सवाल आना स्वाभाविक है – ठोकळ को यह विचार कैसे आया?
खैर, हमें पुरानी कहावत नहीं भूलनी चाहिए – ‘आवश्यकता सभी आविष्कारों की जननी है।
अपने बचपन को याद करते हुए, वह कहते हैं – “हम बुरे समय से गुज़र रहे थे और बारिशों की फसल भी मुश्किल से उगा पा रहे थे। हमारी आजीविका का वही एकमात्र साधन था। हम मुश्किल से अपना गुज़ारा कर पाते थे।”
उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और 14 साल की उम्र में आजीविका की तलाश में मंदिर शहर शिरडी चले आए। उन्होंने होटलों और चाय की दुकानों पर छोटे-मोटे काम किए। ऐसी ही एक चाय की दुकान में वह तीर्थयात्रियों के लिए लेमनग्रास चाय बनाते थे।
वह कहते हैं – “वे वह दिन थे, जब मैं अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा घर भेज देता था और थोड़ा-सा हिस्सा अपने गुजारे के लिए रख लेता था। दस साल के लंबे समय के बाद, मैं शिरडी से वापिस घर लौट आया।”
1996 में घर वापस आकर, उन्होंने वही किया जो उन्हें सबसे अच्छा करना जानते थे – बर्तन को आग पर चढ़ाना और चाय बनाना।
“जैसे ही आप चाय की चुस्की लेते हैं, तो आपको चमकीले फूलों और ठंडक देने वाली पुदीने की कोमल पत्तियों का स्वाद मिलता है, जो केवल ताजा लेमनग्रास ही दे सकता है।
“शुरू में मैं लेमनग्रास खरीदता था। फिर मैंने इसे उगाना शुरू किया। मैंने एक नर्सरी से 10,000 रुपये में लेमनग्रास की 2,000 पौध खरीदीं और उन्हें आधे एकड़ में लगाया।”
एक फसल की कटाई दो से तीन साल तक की जा सकती है और एक अलग जगह उसके नए पौधे लगाने पड़ते हैं। यह कम लागत वाली फसल है, जिसमें केवल गोबर खाद और नियमित पानी की जरूरत होती है।
सुगंधित, जड़ी-बूटी वाली चाय ने स्थानीय लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित कर लिया है।
एक पारखी, कमरगांव गाँव के सरपंच 60-वर्षीय तुकराम कटोरे, नियमित ग्राहक हैं।
कटोरे कहते हैं – “जैसे ही आप चाय की चुस्की लेते हैं, तो आपको चमकीले फूलों और ठंडक देने वाली पुदीने की कोमल पत्तियों का स्वाद मिलता है, जो केवल ताजा लेमनग्रास ही दे सकता है।”
कटोरे की ‘कप्पा’ से केमिस्ट्री उतनी ही अच्छी है, जितनी अच्छी इससे मिलने वाली ऊर्जा है और जितनी अच्छी ऊर्जा उन्हें उस राजनीतिक गपशप से प्राप्त होती है, जो वह दुकान पर पूरे जोश से करते हैं।
वैज्ञानिक शोध से पता चलता है कि लंबा, डंठल वाला पौधा, लेमनग्रास, जो थाई व्यंजनों में एक आवश्यक घटक है, अपने एंटीऑक्सीडेंट और सूजन-रोधी गुणों के कारण तनाव को कम करने और मूड को बेहतर बनाने के लिए जाना जाता है।
विज्ञान और लोक चिकित्सा विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि यह जड़ी रोगाणुरोधी रसायनों और कैंसर और हृदय रोग का खतरा कम करने वाले तत्वों से भरपूर है और पाचन में एवं वजन कम करने में मदद कर सकती है।
ठोकळ की दुकान पर रोज लगभग 800 कप बेच जाती है और थोड़े ठंडे मौसम में तो इससे भी ज्यादा।
ठोकळ, कहते हैं – “सर्दी के महीनों में, हम रोज लगभग 1,000 कप बेचते हैं।” उनकी दुकान सुबह 3 बजे खुलती है, दोपहर में कुछ घंटों के लिए बंद होती है, और देर रात तक चलती है।
दुकान में प्रतिदिन 12 किलोग्राम लेमनग्रास और 85 लीटर दूध का उपयोग होता है, जो परिवार की पांच गायों से ताजा और कुछ स्थानीय किसानों से प्राप्त किया जाता है।
ठोकळ के 60-वर्षीय चाचा भाऊसाहेब कहते हैं – “हम बस अपने खेत तक चल कर जाते हैं और ताजी कटी हुई लेमनग्रास ले आते हैं।”
चाय की पत्ती, दूध, लेमनग्रास, चीनी, अदरक, और एक गरमागरम पेपर कप में इन सभी का सही मिश्रण ग्राहकों को हर दिन दुकान पर लाता रहता है।
एक और टिकाऊ कारण है।
ठोकळ बेहद मेहनती हैं। वह सुबह ठीक तीन बजे दुकान पर होते हैं और रात 9 बजे के आसपास ही निकलते हैं। दोपहर बाद, जब दुकान से छुट्टी होती है, तो आप उन्हें खेत में काम करते हुए पा सकते हैं।
ठोकळ की दुकान पर चाय की कीमत चार साल में नहीं बदली है। क्योंकि ईंधन और सामग्री महंगी हो गई है, बढ़ी कीमतों के दबाव को ध्यान में रखते हुए कप का आकार थोड़ा कम हो गया है।
ठोकळ कहते हैं – “मेरी दुकान लोकप्रिय हो गई है, लेकिन मैं कीमत नहीं बढ़ा सकता। मैं रोज लगभग 3,000 रुपये कमा कर खुश हूँ।”
एक और बात है, जो सतत है।
अरुण भुजबल, जो अर्थशास्त्र के स्नातकोत्तर हैं, एक डेयरी फार्म के मालिक हैं और दुकान पर दूध बेचते हैं कहते हैं – “ठोकळ बेहद मेहनती है। वह सुबह ठीक तीन बजे दुकान पर होते हैं और रात 9 बजे के आसपास ही निकलते हैं। दोपहर के बाद, जब दुकान से छुट्टी होती है, तो आप उन्हें खेत में काम करते हुए पा सकते हैं।”
शीर्ष पर फोटो में चाय प्रेमियों के बीच एक नए स्वाद, लेमनग्रास का एक खेत दिखाया गया है (फोटो – ‘लर्टविट ससिप्रयजुन’ से साभार)
हिरेन कुमार बोस ठाणे, महाराष्ट्र स्थित एक पत्रकार हैं। वह एक सप्ताहांत किसान के रूप में भी काम करते हैं।
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