प्रकृति प्रेमियों के परिवार में पले-बढ़े पत्रकार और डॉक्यूमेंट्री-मेकर शुभ्रांशु सत्पथी को पर्यावरण में गिरावट हमेशा परेशान करती थी। अब स्व-प्रशिक्षित पर्यावरणविद एक प्राचीन जापानी तकनीक से ग्रामीण ओडिशा की हरियाली बढ़ाने के मिशन पर हैं।
यदि बंजर भूमि पर हरियाली के बीज बोने के लिए “बमबारी” को चरमपंथी अपराध करार दिया जाए, तो वह सर्वाधिक वांछित गुरिल्ला योद्धाओं की सूची में हो सकते हैं।
स्वतंत्र पत्रकार और स्व-प्रशिक्षित पर्यावरणविद शुभ्रांशु सत्पथी के नाम 100,000 से ज्यादा “बमबारी” हैं, जो 13 वर्षों में हासिल की गई उपलब्धि है।
ओडिशा के ढेंकनाल जिले के ओडिशा के ढेंकनाल जिले के सत्पथी ने 2009 में जलवायु परिवर्तन और उससे होने वाली तबाही के खिलाफ युद्ध में अपना क्रांतिकारी दखल शुरू किया। जब उन्होंने ग्रामीण इलाकों में वनस्पति से वंचित भूमि को हरियाली में बदलने की कसम खाते हुए हथियार उठाए थे, वह 21 साल के एक युवा सिपाही थे।
उनके शस्त्रागार का शक्तिशाली हथियार एक तात्कालिक उपकरण है – “बीज बम”।
बीज बमबारी की जड़ें क्या हैं?
बीज बमबारी जापानी मूल की है, जिसे ‘त्सुची डैंगो’ या “मिट्टी के पकौड़े” कहा जाता है, जो मूल रूप से खाद और मिट्टी में मिला कर बनाए बीजों के गोले होते हैं। इन गोलों को अंकुरित होने और उस स्थान को वनस्पति से ढकने के लिए बेतरतीब फेंक दिया जाता है।
मैं अपनी मोटरसाइकिल पर पौधे लगाने के लिए पौध ले जाता था। मैं ज्यादा सामान नहीं ले जा सकता था, इसलिए मैं अपने पिता के पास गया और उनसे पूछा कि क्या किया जाए
यह एक प्राचीन तरीका है, लेकिन इसका पुनर्जन्म तब हुआ, जब 1938 में जापानी प्राकृतिक खेती के प्रणेता और सूक्ष्म जीवविज्ञानी मसानोबु फुकोका द्वारा इसे प्रचारित किया। यह गुरिल्ला तकनीक अपने आकर्षक कहावत – “बीज बमबारी” के रूप में लोकप्रिय हो गई।
सत्पथी ने इसके बारे में पहले कभी नहीं सुना था, जब तक कि सेवानिवृत्त वन अधिकारी उनके पिता ने उन्हें इसके बारे में बताया।
सत्पथी ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “मुझे एक घटना याद है, जब मेरे पिता ने बीजों से उगने वाले पौधों के बारे में बताया था। मैं अपनी मोटरसाइकिल पर, पौधे लगाने के लिए ले जाता था। मैं ज्यादा सामान नहीं ले जा सकता था, इसलिए मैं अपने पिता के पास गया और उनसे पूछा कि क्या किया जाए।”
बचपन की इस “घटना” ने गहरा प्रभाव छोड़ा।
बीज बोना
सत्पति प्रकृति के बीच बड़े हुए, क्योंकि उनका परिवार वन्यजीव अभयारण्यों या पार्कों के करीब रहता था, जहां उनके पिता 1990 के दशक में नियुक्त थे।
एक बार अपने पिता के साथ यात्रा पर जाते समय उनकी कार बीच रास्ते में ख़राब हो गयी और उसे ठीक करने में समय लग गया। उन्हें भूख लगी थी और उनके पिता ने उन्हें एक अमरूद दिया। उन्होंने फल को कुतर डाला और बीज सहित टुकड़े बाहर फेंक दिये।
उनके पिता ने कहा था – “जहां तुमने बीज फेंके हैं, वहां एक दिन अमरूद का पेड़ उग आएगा।”
ये शब्द उन्हें याद रहे और वर्षों बाद, वे ग्रामीण ओडिशा के हरित आवरण को बढ़ाने के लिए “बीज बमबारी” का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने बीज के गोले बनाने के लिए अपने पिता के अनुभव और इंटरनेट से मिली जानकारी का इस्तेमाल किया, जिनमें ज्यादातर सड़कों के किनारे पेड़ों पर लगने वाले जामुन के फल थे।
क्योंकि गीले बीज की दबाव पड़ने से टूटने की प्रवृत्ति होती है, ज्यादातर बीजों को खाद और मिट्टी के साथ मिलाने से पहले धूप में सुखाया जाता है और फिर लपेट कर एक गेंद बनाई जाती है।
बच्चे क्यों अच्छे बीज-बमवर्षक होते हैं?
“बीज बमबारी” आसान, प्रभावी, तेज और सस्ती है। लेकिन काम बढ़ाने के लिए, सत्पथी को संसाधनों की जरूरत है।
जब वह इस विचार से संघर्ष कर रहा था कि कोई भी अपने हाथ गोबर और मिट्टी में गंदा नहीं करेगा, तो कहीं से उत्तर प्रकट हुआ: बच्चे।
34-वर्षीय सत्पथी कहते हैं – “बच्चे। जो गांवों में रहते हैं। वे कीचड़ और पानी में खेलते हैं, पेड़ों पर चढ़ते हैं और फल तोड़ते हैं। बीज के गोले बनाने में थोड़ी सी मदद, और हम तैयार हैं।”
सत्पथी ने सरकारी स्कूलों में कार्यशालाएँ शुरू कीं, जिसमें बच्चों को पेड़ों के महत्व और बीज की गेंदों से उन्हें उगाने के बारे में जानकारी दी जाती है।
अब उनकी निगरानी में कई “छोटे क्रांतिकारी” हैं और उनका धर्मयुद्ध शहरी केंद्रों में भी फैल रहा है।
बीज बमबारी में समय सबसे महत्वपूर्ण
हालाँकि “बीज बमबारी” की प्रभावशीलता पर सवाल उठाया गया है, सत्पथी को तकनीक पर पूरा भरोसा है।
उनके विकास पर नज़र रखना कठिन है। मैं आमतौर पर इसका आंकलन तब करता हूँ, जब बंजर भूमि का एक बड़ा हिस्सा हरा-भरा हो जाता है। गांवों में उत्साहित बच्चे नजर रखते हैं।
लेकिन है यह महत्वपूर्ण है कि बीज बमबारी का काम मानसून से ठीक पहले पूरा किया जाए।
वह कहते हैं – “हम बीज की गेंदों को जंगल में फैला देते हैं। उनके विकास पर नज़र रखना कठिन है। मैं आमतौर पर इसका आंकलन तब करता हूँ, जब बंजर भूमि का एक बड़ा हिस्सा हरा-भरा हो जाता है। गांवों में उत्साहित बच्चे इस पर नज़र रखते हैं।”
राजस्थान में इसी तरह के पुनः वनीकरण की हवाई पद्धति से सीखते हुए, सत्पथी ने ड्रोन से “बीज बमबारी” की भी कोशिश की है। लेकिन ड्रोन में पैसा खर्च होता है।
नाशपाती के पेड़ में तीतर
सत्पथी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता भी हैं, जो पर्यावरण पर फिल्में बनाते हैं, जिनमें से कुछ दादा साहेब फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किया गया था।
वह चाहते हैं कि बच्चे अपने परिवेश के बारे में और अधिक जानें। प्रकृति के बारे में।
उन्होंने कहा – “छोटे बच्चे पर्यावरण और इसकी चिंताओं से बहुत दूर हैं। मैं प्रकृति के बीच बड़ा हुआ हूँ और इसलिए मुझे पता है। बच्चों को प्रकृति से जोड़ने के लिए नवीन तकनीकों के साथ पर्यावरण अध्ययन शुरू करना महत्वपूर्ण है। बच्चे सबसे अच्छे परिवर्तनकारी हो सकते हैं।”
गर्मी के महीनों में, वह ग्रामीणों को पक्षियों के लिए मिट्टी के पानी के बर्तन देते हैं। वह अपनी माँ को ऐसा करते हुए देखकर बड़े हुए और चाहते हैं कि अन्य लोग भी ऐसा करें।
उन्होंने सलाह दी – “शुष्क मौसम में पक्षियों की मृत्यु का एक सामान्य कारण निर्जलीकरण है। स्टील और प्लास्टिक के बर्तन गर्म हो जाते हैं, इसलिए मिट्टी के बर्तनों को प्राथमिकता दी जाती है।”
इस वर्ष के जलवायु शिखर सम्मेलन से पहले, संयुक्त राष्ट्र प्रमुख के अशुभ शब्दों, “एक्सेलरेटर पर रखे जलवायु नरक की ओर जाने वाले राजमार्ग पर हमारे पैर” की दुनिया में, भले ही सत्पथी जैसे एकल-योद्धा समग्र आंकड़ों की गिनती में नजर न आएं।
लेकिन इतिहास बताता है कि ऐसे व्यक्तिगत प्रयास अक्सर मानसिकता बदल देते हैं और यहां तक कि पहाड़ भी हिला देते हैं।
शीर्ष की मुख्य फोटो में एक पत्रकार शुभ्रांशु सत्पथी को दिखाया गया है, जिन्होंने 2009 से अब तक एक लाख से ज्यादा बीजों की गेंदें वितरित की हैं (छायाकार – ताज़ीन क़ुरैशी)
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