अत्यधिक मछली पकड़ने से साँसत में हिल्सा मछुआरे
बंगाल के हावड़ा जिले के हिल्सा मछुआरे पकड़ी जाने वाली मछलियों की घटती मात्रा, मशीनीकृत ट्रॉलरों और गैर पारम्परिक मछुआरों के इस आकर्षक व्यवसाय में आने से हुई कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण संघर्ष कर रहे हैं।
बंगाल के हावड़ा जिले के हिल्सा मछुआरे पकड़ी जाने वाली मछलियों की घटती मात्रा, मशीनीकृत ट्रॉलरों और गैर पारम्परिक मछुआरों के इस आकर्षक व्यवसाय में आने से हुई कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण संघर्ष कर रहे हैं।
चौलिया गाँव के 32-वर्षीय उत्तम दास और उनके दो छोटे भाई, हिल्सा (Tenualosa ilisha) मछुआरे हैं। हावड़ा जिले के श्यामपुर II सीडी प्रशासनिक ब्लॉक में नकोल पंचायत में आने वाले उनके गांव में, तीन मोटर-चालित और 40 देशी नाव हैं, जो हिल्सा मछली पकड़ने के काम में लगी हुई हैं।
दास 12 साल की उम्र से रूपनारायण नदी में मछली पकड़ रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में, उन्होंने पकड़ी गई मछलियों की मात्रा में लगातार गिरावट देखी है। दास ने VillageSquare.in को बताया – “अब एक अच्छी हिल्सा मछली पकड़ना किसी लॉटरी जीतने जैसा है।”
उनका मछली पकड़ने का क्षेत्र पूर्व मेदिनीपुर जिले में कोलाघाट से लेकर उसी जिले के हल्दिया टाउनशिप तक फैला है। अपनी उच्च गुणवत्ता वाली हिल्सा मछली के लिए प्रसिद्ध रूपनारायण नदी में मछलियों की आबादी लगातार घट रही है, और नदी के मछुआरों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
हिल्सा ‘क्लुपेइडे’ परिवार से संबंधित है, जो प्रजनन के लिए मीठे पानी के आवासों की ओर पलायन करता है। बड़े होकर बच्चे वापिस खाड़ी और समुद्र में चले जाते हैं। अंडे से बच्चे निकलने के बाद लगभग पांच महीने तक, मछलियाँ हावड़ा से शुरू होकर मुर्शिदाबाद जिले के फरक्का बैराज तक नदी की धारा के विपरीत दिशा में तैरते हुए लगभग 523 कि.मी. के क्षेत्र में रहती हैं। मछली को प्रवास के लिए 20 से 30 मीटर गहरे मीठे पानी की जरूरत होती है।
हिल्सा मछुआरों को लगभग छह महीने का समय हिल्सा मछली पकड़ने के लिए मिलता है, जिसे पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में एक स्वादिष्ट व्यंजन माना जाता है। जुलाई के मध्य से सितंबर के मध्य तक बड़ी हिल्सा का मौसम होता है, जिसकी ऊंची कीमत मिलती है। सितंबर के मध्य से अक्टूबर के मध्य तक अंडे देने का मौसम होता है, और हिल्सा मछली पकड़ने पर प्रतिबंध रहता है।
जनवरी के मध्य से मार्च के मध्य, वे छोटे आकार की हिल्सा मछली पकड़ते हैं, जिसे ‘खोका इलिश’ कहा जाता है। हिल्सा मछली पकड़ने की एक आम यात्रा 10 से 20 दिनों की होती है। हिल्सा पकड़ने के चरम मौसम में, अधिकतम आठ लोगों की क्षमता वाली कोई भी दो-सिलेंडर मोटर चालित नाव या पांच लोगों की क्षमता वाली पारम्परिक देशी नाव, नदी में लगभग पाँच यात्राएँ कर सकती हैं।
पश्चिम बंगाल के ‘हिल्सा संरक्षण अनुसंधान केंद्र’ के मत्स्य पालन उप-निदेशक, सप्तर्षि बिस्वास ने VillageSquare.in को बताया – “हिल्सा की औसत उर्वरता 12 से 20 लाख है, इसलिए नदी में संरक्षण उपायों से पूर्ण विकसित मछली की अच्छी फसल पैदा होगी।”
‘रूपनारायण नद मत्स्यजीबी संघ’ के सदस्यों का कहना था कि 6 या 7 सिलेंडर वाले इंजन से चलने वाली उच्च शक्ति नावों से समुद्री हिल्सा मछुआरों द्वारा अंधाधुंध मछली पकड़ना मछली की आबादी में गिरावट का कारण था।
समुद्र-विज्ञानी अमलेश चौधरी ने VillageSquare.in को बताया – “समुद्र में 1,000 फुट के जाल वाले ट्रॉलर भी हैं, जो समुद्र की तलहटी को खंगालते हैं और न केवल हिल्सा, बल्कि छोटी मछलियों सहित अन्य मछलियों की भी भारी मात्रा में पकड़ते हैं। जलवायु के लिए यह अत्यंत विनाशकारी है।”
वर्ष 2010 में तटवर्ती समुद्र में भारी मात्रा में हिल्सा पकड़ी गई, जिसके बाद के वर्षों में समुद्री हिल्सा के लिए भीड़ बढ़ गई। इससे निचले जल क्षेत्रों में हिल्सा अंधाधुंध रूप से पकड़ी गई, जिससे ऊपरी जलधाराओं में भी पकड़ प्रभावित हुई। पिछले कुछ वर्षों में पकड़ी गई मछलियों के कुल आंकड़े अंतर्देशीय और समुद्री आंकड़ों के बीच बढ़ते अंतर को दर्शाते हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार ने 2013 में प्रतिबंध की घोषणा की। इसका मतलब था कि हिल्सा मछुआरों के लिए वैकल्पिक आजीविका की योजना बनाने की जरूरत, विशेष रूप से नदी क्षेत्र में रहने वाले मछुआरों के लिए। इन क्षेत्रों में मालदा, मुर्शिदाबाद, नादिया, बर्धमान, हुगली, हावड़ा, पूर्व मेदिनीपुर, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना जिले शामिल हैं।
प्रतिबंध के अन्य पहलुओं में 23 सें.मी. से कम लंबाई वाली मछलियों को पकड़ने, बेचने, परिवहन और रखने पर प्रतिबंध, 90 मि.मी. से कम आकार के जाल वाले ‘मोनोफिलामेंट गिल जाल’ के उपयोग पर प्रतिबंध, महाद्वीपीय शेल्फ के 12 समुद्री मील के भीतर ‘बॉटम ट्रॉलिंग’ पर प्रतिबंध शामिल है। इसके अलावा फरवरी से अप्रैल के बीच प्रवासी मार्ग पर ‘बैग नेट’, ‘स्कूप नेट’ और छोटे जालीदार गिल जाल इस्तेमाल करने और फरक्का बैराज के 5 वर्ग कि.मी. के भीतर मछली पकड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना शामिल है।
इसके अलावा, अंडे देने को बेहतर वातावरण प्रदान करने के लिए अंडे देने वाले क्षेत्रों को अभयारण्य घोषित किया गया है। बिस्वास कहते हैं – “मानवीय पहलू और इसमें शामिल आर्थिक मुद्दों के कारण, यह नियम धीरे-धीरे लागू होने चाहिए।”
पूर्ण आकार की हिल्सा मछली पकड़ने के सामान्य मौसम के दौरान, एक मोटर चालित या देशी नाव से लगभग 4 लाख रुपये मूल्य की मछलियाँ मिलती हैं। रूपनारायण में मछली पकड़ने वालों का कहना था कि अच्छे सीज़न के दौरान, यह 2 लाख रुपये तक बढ़ सकता है।
दास और उनके साथी मछुआरों को तटीय प्रतिबंध के बारे में पता है, लेकिन अंडे देने के समय के प्रतिबंध के बारे में नहीं, हालांकि वे अंडे देने के मौसम के बारे में जानते हैं। वे अंडे देने की अवधि में मछली पकड़ने की बात स्वीकार करते हैं। दास कहते हैं – “बड़े आकार की हिल्सा के अंडे देने के मौसम, आश्विन (सितम्बर-अक्टूबर) महीने के दौरान, हम ज्यादा मछली नहीं पकड़ते, क्योंकि मछली का आकार छोटा होता है।”
दास ने VillageSquare.in को बताया – “क्योंकि नदी के इस हिस्से में हिल्सा की बड़ी आबादी नहीं है, इसलिए पुलिस इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देती है। उनका ध्यान डायमंड हार्बर जैसे बड़े लैंडिंग केंद्रों पर है।”
फिर भी, अच्छी मात्रा में मछली पकड़ पाना कठिन हो सकता है। नुकसान को कम करने के लिए, नकोल और पंचायत के छह गांवों के ज्यादातर मछुआरे, मिल कर मछली पकड़ते हैं। उत्तम दास और उनके भाई अपने संसाधनों को इकठ्ठा कर, मिलकर मछली पकड़ते हैं और लाभ को बाँट लेते हैं।
मछली पकड़ने के मौसम के बाद, मछुआरे अपने खेतों में साल भर की अपनी खपत के लायक चावल उगाते हैं, दूसरों के चावल के खेतों में ठेके पर मजदूर के रूप में काम करते हैं या रूपनारायण की सीमा से लगे ईंट भट्टों में काम करते हैं।
नकोल पंचायत के हेनरे गाँव के प्रह्लाद दास ने VillageSquare.in को बताया – “इनमें से आखिरी को शायद ही विकल्प कहा जाना चाहिए, क्योंकि ईंट भट्ठे 5 महीने के श्रम ठेके पर काम करते हैं और वे हमें नहीं रखना चाहते, क्योंकि हमारी मछली पकड़ने की गतिविधियां दो महीने के बाद फिर से शुरू होनी होती हैं। इससे हमारी समग्र आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।”
पकड़ संतोषजनक नहीं होने पर उत्तम दास और उनके भाई हुगली के मुहाने तक जाते हैं। उनके इंजन-पावर, नावों का आकार और साथ ही एक निर्धारित समय के अंदर पकड़ी गई मछलियों को उतारने की मजबूरी, उनके कार्य स्थान और समय को सीमित करती है, और इसलिए पकड़ी गई मछलियों की मात्रा भी सीमित होती है।
नदी के विस्तार में, प्रतिस्पर्धा बहुत ज्यादा है। क्योंकि हिल्सा नदी के एक विस्तृत क्षेत्र में पाई जाती है और किसी स्थान तक सीमित नहीं है, इसलिए बहुत से मछुआरे इसे पकड़ने में लगे हुए हैं।
अपनी आय की पूर्ति के लिए, मछुआरे मछली पकड़ने के मौसम में दूसरी मछलियाँ भी पकड़ते हैं। कोलाघाट क्षेत्र के मूल निवासी मछुआरे उत्तम और नकोल के अन्य मछुआरों को दूसरी तरह की मछली नहीं पकड़ने देते हैं।
चौधरी, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में हिल्सा मछली पकड़ने पर प्रतिबंध की अवधि में मछुआरे समुदायों के लिए स्थायी आजीविका रणनीतियों पर ‘विश्व वन्यजीव कोष – अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (WWF-IUCN) 2014 अध्ययन सलाहकार के रूप में काम किया, का कहना है कि मछली पकड़ने के स्थानों पर आजीविका पृष्ठभूमि वाले लोगों द्वारा कब्जा कर लिया गया है। वह कहते हैं – “नदियों में कारीगर मछुआरों की जगह किसानों ने ले ली है।”
मछली पकड़ने की जगह पर इतनी भीड़ होने और अनिश्चितताओं के कारण, मछली पकड़ने के जाल के आकार पर प्रतिबंध या छोटे आकार की हिल्सा को पकड़ने पर प्रतिबंध का पालन करना एक वास्तविक चुनौती बन जाता है। पश्चिम बंगाल के मत्स्य-पालन विभाग ने 2013-14 में आजीविका योजना शुरू की, जिसे लागू करने में कई कठिनाइयां हैं।
इसमें प्रभावित मछुआरों के लिए मछली बिक्री इकाइयां बनाने की परिकल्पना की गई थी। इसके लिए एक ईकाई में एक साइकिल, एक इंसुलेटेड फिश बॉक्स, एक फिश कटर, तराजू और मछली खरीदने के लिए 500-1000 रुपये की एकमुश्त आर्थिक मदद शामिल थी।
एक गैर-पार्टी मछुआरों के संघ, ‘दक्षिणबंगा मत्स्यजीबी फोरम’, जिसमें कई हिल्सा मछुआरे सदस्य हैं, के मिलन दास कहते हैं – “आजीविका योजना और इसका कार्यान्वयन गलत दिशा में है। यह योजना नदी में मछली पकड़ने वालों के लिए उपयुक्त नहीं है।”
इसके अलावा, हिल्सा मछुआरों की कुल संख्या का पता नहीं लगाया गया है। विभाग ने मछली पकड़ने और आजीविका के लिए हिल्सा पर निर्भर मछुआरों की संख्या के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए 30 डेटा-कलेक्टर अनुबंध पर नियुक्त किये हैं। लेकिन जानकारी अभी तक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है।
मछुआरों का आरोप है कि पंचायतों को दी गई ‘वेंडिंग यूनिट’ उन लोगों को वितरित कर दी गई, जो हिल्सा मछली पकड़ने में लगे ही नहीं हैं। मिलन दास कहते हैं – “असली मछुआरों की पहचान के लिए मछुआरों के संघों से परामर्श किया जाना चाहिए था और उसके बाद ही इकाइयों को वितरित किया जाना चाहिए था।”
मिलन दास ने VillageSquare.in को बताया – “इसलिए आज हताश मछुआरे प्रतिबंध के बावजूद मछली पकड़ने के लिए निकल रहे हैं और अधिकारियों द्वारा पकड़े जा रहे हैं। इस समय इस योजना का बहुत कम लाभ है।”
ध्रुब दास गुप्ता कोलकाता स्थित एक लेखक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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