पोषण सखी या पोषण मित्र के रूप में प्रशिक्षित महिलाएं ग्रामीण महिलाओं, विशेषकर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को पौष्टिक भोजन खाने और एनीमिया और कम वजन वाले प्रसव पर काबू पाने के लिए सलाह और मदद करती हैं।
एक गर्भवती, 21-वर्षीय स्वप्न रानी ओडिशा के कोरापुट जिले की बडकरांगा पंचायत के अपने गाँव भूतानगर में मासिक मैत्री बैठक में शामिल होने के लिए झटपट अपना घरेलू काम निपटाया। मैत्री बैठक महिलाओं को उन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए स्थान प्रदान करती है, जो उनसे संबंधित हैं।
चर्चाओं में उनके व्यक्तिगत स्वास्थ्य, बच्चों के स्वास्थ्य, भोजन और पोषण से लेकर मासिक धर्म और स्वच्छता जैसे संवेदनशील मुद्दे शामिल हैं।
‘आशा’ कार्यकर्ता द्वारा कुपोषित पाए जाने पर, स्वप्नारानी को उम्मीद है कि मैत्री बैठक में ‘पोषण सखी’ उन्हें स्वास्थ्य और पोषण पर मार्गदर्शन करेगी, ताकि वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे।
प्रशिक्षित पोषण समर्थक युवा महिलाओं और किशोरियों को जानकारी देते हैं और उनके स्वास्थ्य और भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए पौष्टिक भोजन के सेवन के बारे में उनका मार्गदर्शन करते हैं।
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का सहयोग
स्वप्नरानी की शादी किशोरावस्था में ही हो गई थी। गर्भ निरोधकों के बारे में अनजान, जब वह गर्भवती हुई और फिर गर्भपात हुआ, तो डॉक्टर ने समझाया कि उनका गर्भ अभी बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं है।
उनके गर्भपात के फलस्वरूप, घर के काम का बोझ बढ़ गया और उन्हें स्वस्थ रखने के लिए देखभाल की कमी के कारण, उनका वजन कम हो गया और वह खून की कमी से पीड़ित हो गई। जब वह दो साल बाद गर्भवती हुई, तो ‘आशा’ ने उन्हें अपने भोजन, पोषण और स्वास्थ्य पर ध्यान देने की सलाह दी, ताकि वह कम वजन वाले बच्चे को जन्म दे।
स्वप्नरानी ने VillageSquare.in को बताया – “जब आशा ने मुझे बताया कि मैं एनीमिया से पीड़ित हूँ, तो मैं परेशान हो गई। लेकिन, उसने मुझे मैत्री बैठक में शामिल होने के लिए कहा और गर्भावस्था के दौरान स्थानीय रूप से उपलब्ध सब्जियां और फल खाकर पोषण में सुधार करने की सलाह लें, ताकि मैं एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दे सकूँ।”
भूतानगर की पोषण सखी, रुक्मिणी खोरा ने VillageSquare.in को बताया – “जब स्वप्नारानी मैत्री बैठक में शामिल होने आई, उसकी मध्य ऊपरी बांह की परिधि (MUAC), जो गर्भवती महिलाओं के लिए एक जरूरी माप है, 23 से.मी. से कम थी। हमने उसे भोजन और पोषक तत्वों के सेवन संबंधी सलाह दी और उसमें सुधार हुआ है।”
पोषण की कमी
नई वैश्विक पोषण रिपोर्ट- 2017 के निष्कर्षों में भारत को तालिका में सबसे नीचे रखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा भारत में है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रजनन आयु की सभी महिलाओं में से 51% को एनीमिया है।
जागरूकता की कमी, अशिक्षा और स्वयं से पहले परिवार को महत्व देने की प्रथा ऐसे कारक हैं, जो अक्सर महिलाओं को स्वयं उचित पोषण लेने में बाधक हैं, जिससे एनीमिया होता है।
कोरापुट जिले के कोरापुट सदर प्रशासनिक ब्लॉक और अंगुल जिले के पल्लाहड़ा ब्लॉक में 2016 में आयोजित एक आधारभूत अध्ययन से पता चला कि महिलाओं में पौष्टिक भोजन के सेवन के बारे में जागरूकता की कमी थी, जिसके फलस्वरूप महिलाओं में अल्पपोषण और जन्म के समय बच्चों का वजन कम था।
अध्ययन से पता चला कि स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में महिलाओं के लिए आवश्यक पोषण सेवाओं को लक्ष्य तक पहुँचाने में सुधार करने की क्षमता है, बशर्ते उन्हें हिंसा और शोषण के खिलाफ सक्षम, देखरेख और संरक्षित किया जाए।
OLM की ब्लॉक परियोजना प्रबंधक, स्नेहलता मिश्रा ने VillageSquare.in को बताया – “हमने सामुदायिक संसाधन व्यक्तियों को स्वयं सहायता समूहों के साथ मिलकर किशोरियों के क्लब बनाने, पोषण के प्रति संवेदनशील कृषि तकनीकों पर किसान उत्पादक समूहों के साथ काम करने और जोखिम वाली महिलाओं एवं नवविवाहिताओं को पोषण सम्बन्धी सहायता प्रदान करने के लिए, पोषण सखियों के रूप में प्रशिक्षित किया।”
परिवार स्तर का मूल्यांकन
जागरूकता पैदा करने के लिए महिलाओं के समूह बनाने से पहले, पोषण सखियाँ गाँव के प्रत्येक परिवार का मूल्यांकन अध्ययन करती हैं।
एक पोषण सखी, पारबती खोरा ने दीवार पर लगे एक चार्ट की ओर इशारा करते हुए कहा – “मैत्री बैठक में , हम उनकी समस्याओं सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते हैं, जैसे, पीने के पानी की कमी, शौचालय की सुविधा और सार्वजनिक वितरण प्रणाली से राशन की कमी।”
वह कहती हैं – “चार्ट पर लाल और हरे स्टिकर, समस्याओं और उनके समाधान को दर्शाते हैं, जिससे महिलाओं को आत्मविश्वास प्राप्त करने में मदद मिलती है।” मिश्रा कहती हैं – “स्वाभिमान केंद्र में आने वाला कोई भी व्यक्ति, चार्ट से परिवारों की संख्या, जनसंख्या और परिवार के सभी सदस्यों के स्वास्थ्य की स्थिति एवं पोषण सेवन के बारे में जान सकता है।”
सभी के लिए पोषण
मैत्री बैठक में नियमित रूप से भाग लेने वाली एक मध्यम आयु वर्ग की महिला, रैला जानी का कहना था कि यदि परिवार एक स्वस्थ बच्चा चाहता है, तो गर्भवती महिला की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करना परिवार की जिम्मेदारी है। पद्मपुर पंचायत के चेरेंगागुड़ा गाँव की पोषण सखी, स्मिता जेना ने VillageSquare.i को बताया – “आम तौर पर हमें लगता है कि गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पोषण की जरूरत होती है। लेकिन पोषण सभी उम्र की महिलाओं के लिए जरूरी है और विशेष रूप से किशोर लड़कियों के लिए ज्यादा जरूरी है।”
वह किशोरियों को बैठक में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। वह कहती हैं – “यदि वे उचित भोजन और पोषक तत्वों के सेवन की जरूरत को समझते हैं, तो इसका आने वाली पीढ़ियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि एक स्वस्थ माँ एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देगी।” पोषण सखियाँ उन गर्भवती महिलाओं के घर जाती हैं, जो बैठकों में शामिल नहीं हो सकतीं।
महिलाओं को भोजन और पोषण के बारे में शिक्षित करना और उन्हें इसे आसानी से याद रखने में मदद करने के लिए, पोषण सखियाँ इसे राष्ट्रीय ध्वज के रंगों से जोड़ती हैं। जेना कहती हैं – “हमारे स्वाभिमान केंद्र में राष्ट्रीय ध्वज की एक तस्वीर है, जिसमें केसरिया रंग शरीर के विकास को, सफेद ऊर्जा को, हरा शारीरिक देखभाल को, अशोक चक्र का नीला रंग तेल को और भूरे रंग का बाँस पानी को दर्शाता है। ये सब सभी उम्र की महिलाओं के लिए जरूरी हैं।”
किचन गार्डन से पोषण
पोषण सखियाँ महिलाओं को अपने घर के पिछवाड़े में सब्जियाँ और फल उगाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। दो बच्चों की माँ, संध्या राउत, जिनका एक बगीचा है, ने कहा कि वे अब विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ खाती हैं।
स्वाभिमान परियोजना की समन्वयक, जसस्विनी पाधी ने VillageSquare.in को बताया – “हम उन्हें न्यूनतम लागत पर मिश्रित सब्जियों का पोषण उद्यान विकसित करने के लिए प्रशिक्षण करते हैं, और यदि जरूरी हो तो एक छोटा सा ऋण भी प्रदान करते हैं।”
इन क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध बाजरा, मक्का, साग और कंद पर खाद्य प्रदर्शन, महिलाओं को उनके नियमित भोजन में विविधता जोड़ने में मदद करते हैं।
सकारात्मक अभियान
कोरापुट सदर में, जहां स्वाभिमान कार्यक्रम संचालित किया गया है, 25 पोषण सखियों ने प्रशिक्षण ले लिया है। OLM, कोरापुट के जिला परियोजना प्रबंधक, सुष्मिता सामंतराय ने VillageSquare.in को बताया – “हमारी योजना इस वित्तीय वर्ष के अंत तक यह संख्या बढ़ाकर 50 करने की है और अगले साल हम इस कार्यक्रम को पूरे जिले में लागू करने की योजना बना रहे हैं।”
पद्मपुर पंचायत की सहायक नर्स दाई (ANM), तनुजा बेहेरा ने VillageSquare.in को बताया – “स्वास्थ्य शिक्षा और पोषण तक पहुंच से इन क्षेत्रों में कम वजन वाले और समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है।”
राखी घोष भुवनेश्वर स्थित पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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