शिक्षित तमिल युवा हाईटेक खेती से विकास को बढ़ावा देते हैं
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
अपनी जड़ों की ओर लौटते हुए, तमिलनाडु के शिक्षित युवाओं ने अपनी पैतृक भूमि का आधुनिकीकरण करके और इज़राइली कृषि तकनीक का उपयोग करके कृषि उत्पादन को कई गुना बढ़ा दिया है।
सुदीश के. (32) ने पूर्णकालिक किसान बनने के लिए, बेंगलुरु स्थित एक बहुराष्ट्रीय कंपनी की अपनी सॉफ्टवेयर की नौकरी छोड़ दी। उन्होंने अपने पिता कंधासामी के साथ कृष्णागिरी जिले के केलमंगलम प्रशासनिक ब्लॉक के एक छोटी आबादी वाले अपने गाँव, जकेरी में अपने पैतृक खेत पर शामिल हो गए। दो एकड़ में, वे इज़राइली तकनीक का उपयोग करके नियंत्रित परिस्थितियों में दो पॉली ग्रीनहाउस में गुलाब और गुलनार की खेती करते हैं।
साथ का खेत एक बहुराष्ट्रीय सॉफ्टवेयर कंपनी में महाप्रबंधक, श्रीनिवासन का है। वह अपने हाई-टेक गुलाब के खेतों की देखरेख के लिए सप्ताहांत में बेंगलुरु से गाड़ी चलाकर आते हैं। वह आगे चल कर पूर्णकालिक किसान बनने की योजना बना रहे हैं।
कृष्णागिरी जिले के चार प्रशासनिक ब्लॉकों, केलमंगलम, डेंकानिकोट्टई, शूलागिरि और होसुर में, पॉली ग्रीनहाउस और शेड नेट संरचनाएं बहुतायत हैं। हाई-टेक बागवानी में उछाल के संचालन करने वालों में युवा इंजीनियर, प्रबंधन पेशेवर, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र के कर्मचारी और इसी तरह के अन्य लोग शामिल हैं।
यह रुझान औसत भारतीय किसान के अस्तित्व की लड़ाई की, और बच्चे इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए उत्सुक नहीं हैं, की सोच को नकारती है। गैर-लाभकारी संगठन, ‘प्रथम’ द्वारा जारी ‘वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट-2017’ के अनुसार, किसानों के केवल 1.2% बच्चे किसान बनने की इच्छा रखते हैं।
कृष्णागिरि जिले में, खेती वाला बड़ा क्षेत्र वर्षा आधारित है। पिछले कुछ दशकों में, जिले की जलवायु और बागवानी फसलों के प्रमुख बाजार बेंगलुरु से निकटता के कारण, बागवानी की ओर बदलाव देखा गया है। रायकोट्टई से होसुर तक के ऊबड़खाबड़ शुष्क इलाके में कोई बारहमासी जल स्रोत नहीं है और यह अधिक जल उपयोग वाली फसलों के लिए अनुपयुक्त है।
केला, चीकू, आंवला और अमरूद जैसे फल; बैंगन, शिमला मिर्च और प्याज जैसी सब्जियाँ; हल्दी और काली मिर्च जैसे मसाले, और गुलाब, जरबेरा और गुलनार जैसी फूलों की फसलें 49,576 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में उगाई जाती हैं ।
क्षेत्र में हाई-टेक बागवानी की शुरुआत बेंगलुरु में आईटी बूम के साथ हुई है, जो पहली पीढ़ी के किसानों के अलावा छोटे और सीमांत किसानों के बेटों द्वारा आक्रामक रूप से अपनाने के कारण, पिछले पांच वर्षों में अभूतपूर्व तेजी देखी गई है।
अनामैया गौडू (33) अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ कर अपने पैतृक खेत को आधुनिक बनाने के लिए अपने पैतृक गांव चेट्टीपल्ली लौट आए। वह रंगीन शिमला मिर्च उगाते हैं।
बागवानी और वृक्षारोपण फसल निदेशालय के डेंकनीकोट्टई तालुक में सहायक निदेशक, गणेश ने VillageSquare.in को बताया – “तकनीकी और इनपुट सहयोग के साथ, पॉली ग्रीनहाउस, शेड नेट संरचनाओं और सूक्ष्म सिंचाई के लिए उदार अनुदान से हाई-टेक खेती के विकास को बढ़ावा मिला है।” हाई-टेक प्रणाली के हिस्से के रूप में, किसान सूक्ष्म सिंचाई के लिए वर्षा जल-संचयन संरचनाएं बनाते हैं।
इंडो-इजरायल एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट (IIAP) वेजिटेबल क्लस्टर और IIAP सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (CoE) के सत्येन्द्र यादव के अनुसार, हाई-टेक ग्रीन हाउस, प्राकृतिक रूप से हवादार पॉली हाउस, कीटरोधक नेट हाउस और वॉक-इन टनल के कारण उपज में काफी वृद्धि हुई है।
यादव ने VillageSquare.in को बताया – “यह संरचनाएं कीटनाशकों और अन्य सामग्री की खपत को कम करती हैं और फसल की अवधि 3 से 9 महीने तक बढ़ा देती हैं। खीरे की खुली खेती में प्रति हेक्टेयर 3.5 टन की उपज के मुकाबले, संरक्षित खेती के अंतर्गत उपज 45 टन है। खुली खेती में शिमला मिर्च की पैदावार 12 टन प्रति हेक्टेयर है, जबकि IIAP तकनीक के अंतर्गत यह 72 टन है।
IIAP का लक्ष्य फसल विविधता, उत्पादकता और संसाधन के उपयोग की दक्षता में वृद्धि करना है। IIAP के अंतर्गत शुरू किए गए CoE, इजरायली कृषि प्रौद्योगिकी, ज्ञान हस्तांतरण और प्रशिक्षण के लिए एक मंच प्रदान करते हैं, जो नर्सरी विकास, खेती के तरीकों, सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
प्राकृतिक परिस्थितियों में खुले में पैदा होने वाली फसलें तापमान, नमी, प्रकाश की तीव्रता और अन्य स्थितियों में अचानक बदलाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, जो गुणवत्ता और पैदावार को प्रभावित करती हैं। इज़राइली तकनीक उन्हें और प्रकाश संश्लेषण के लिए चार महत्वपूर्ण तत्वों को नियंत्रित करने में मदद करती है।
पॉली ग्रीन शीट पैराबैंगनी और इंफ्रारेड किरणों को फ़िल्टर करती है, जिससे 400 से 700 नैनो मीटर तक विकिरण होता है, जिसके अंतर्गत प्रकाश संश्लेषण होता है। सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि जड़ों को जरूरी पानी मिले, जिससे पानी का उपयोग 90% तक कम हो जाता है। रात में पौधों द्वारा उत्सर्जित कार्बन-डाई-ऑक्साइड को शेड के अंदर रोक लिया जाता है, जिससे स्टार्च उत्पादन बढ़ता है।
थल्ली के बागवानी प्रभारी अधिकारी, अरुमुगम एस ने VillageSquare.in को बताया – “यह पूरे मौसम में तापमान, नमी, प्रकाश की तीव्रता, वायु संचार, मिट्टी सामग्री, रोग नियंत्रण, सिंचाई, प्रजनन और अन्य कृषि संबंधी पद्धतियों में हेरफेर करके हासिल किया जाता है, भले ही बाहर की प्राकृतिक स्थिति कुछ भी हो। इसका मतलब है कि किसान सात गुना अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं।”
पॉली ग्रीन और शेड नेट बाड़ों की परिष्करण की मात्रा, पॉलीथीन शीट की चादर के साथ प्राकृतिक रूप से हवादार एक साधारण पॉली हाउस से लेकर, बेहद परिष्कृत, पूरी तरह से स्वचालित ड्रिप और फॉगर सिस्टम और प्रकाश संश्लेषक रूप से सक्रिय विकिरण (पीएआर) लाइटिंग तक, भिन्न होती है।
एक एकड़ में प्राकृतिक रूप से हवादार पॉली ग्रीन हाउस बनाने में लगभग 28 लाख रुपये की लागत आती है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत किसानों को एक एकड़ में पॉली ग्रीन और शेड नेट ढांचे के लिए 16.88 लाख रुपये की सब्सिडी मिलती है। ड्रिप सिंचाई प्रणाली पर भी भारी सब्सिडी दी जाती है।
नियंत्रित वातावरण में नर्सरी तैयार करने का काम भी जोर पकड़ रहा है। शेड नेट नर्सरी के लिए किसानों को प्रति एकड़ 14.2 लाख रुपये मिलते हैं। प्रधान मंत्री फ़सल बीमा योजना (PMFBY) के अंतर्गत ड्रिप सिंचाई सब्सिडी 1.13 लाख रुपये और जीएसटी प्रति हेक्टेयर मिलती है। अधिक लाभ के कारण बैंक भी ऋण देते हैं।
एक एकड़ पॉली ग्रीनहाउस खेती से खुली खेती के प्रति वर्ष रु. 5 लाख की तुलना में रु. 25 लाख की वार्षिक आय होती है। गणेश कहते हैं – “ऋण एक साल में चुकाया जा सकता है और उसके बाद मिलने वाला लाभ किसान के लिए मुनाफा है।”
केलमंगलम प्रशासनिक ब्लॉक के चेट्टीपल्ली गांव के सुब्रमणि के. (32) को अपने पिता के निधन के बाद अपनी स्कूली शिक्षा छोड़ कर खेती करनी पड़ी। सुब्रमणि ने VillageSquare.in को बताया – “बारिश पर निर्भर हालात में तीन एकड़ में मूंगफली और रागी की खेती करके, मुझे जीवन यापन के लिए संघर्ष करना पड़ता था।” लेकिन उन्होंने एक-एक एकड़ भूमि पर दो पॉली ग्रीन बाड़ों में हरी और रंगीन शिमला मिर्च उगाकर इस चक्र को तोड़ दिया।
सुब्रमणि खेत के गेट पर 50 रुपये प्रति किलो के हिसाब से शिमला मिर्च बेचते हैं। बेंगलुरु से व्यापारी रोज उत्पाद खरीदते हैं, उन्हें पैक करते हैं और देश भर के विभिन्न बाजारों में भेजते हैं। एक एकड़ पॉली ग्रीनहाउस में बीज और मजदूरी पर रु. 8.50 के प्रति पौधा के खर्च से, 14,000 पौधे उगाए जा सकते हैं। रोपने के तीन महीने बाद, शिमला मिर्च की फसल साल में नौ महीने 60 टन प्रति एकड़ की दर से ली जाती है।
गुलाब के मामले में, एक एकड़ में 28,000 से 32,000 पौधे उगाए जा सकते हैं। रोपण की लागत 12 से 15 रुपये है। रोपण के छह महीने बाद, प्रत्येक पौधे से दो दिन में एक या दो फूल तोड़े जा सकते हैं। गुलाब के 20 फूलों के गुच्छे की बाजार कीमत 100 रुपये से 200 रुपये के बीच होती है।
श्रीनिवासन ने villageSquare.in को बताया – “शानदार नतीजे और लाभ आसानी से प्राप्त नहीं होते। प्राकृतिक रूप से हवादार बाड़ों में, बाहरी तापमान में वृद्धि होने पर पौधों को ठंडा रखने के लिए, उन्हें हाथ से धोना पड़ता है।”
गुलाब की प्रत्येक कली के आकार को नियंत्रित करने के लिए, सिंथेटिक जाली से ढंकना पड़ता है। धूप वाले दिनों में कटाई के लिए तैयार गुलाब के तनों को पहले ठंडा करना पड़ता है। मिट्टी और पानी का परीक्षण नियमित रूप से किया जाना चाहिए। सुदीश के अनुसार, व्यक्तिगत देखरेख के बिना कोई भी हाईटेक खेती में सफल नहीं हो सकता। श्रीनिवासन कहते हैं – ”हम नई तकनीकों और बाजार के हालात के बारे में जानकारी से खुद को अपडेट करते रहते हैं।”
संरक्षित खेती कीट-मुक्त वातावरण की गारंटी नहीं देती। इन संरचनाओं के अंदर की जलवायु थ्रिप्स, माइट्स और लीफ माइनर जैसे कीटों के लिए अनुकूल है। किसान कीटनाशक छिड़काव में काफी समय बिताते हैं। अरुमुगम कहते हैं – “जाल और इम्प्रोवाइज्ड डोर सिस्टम कीटों की घुसपैठ को कम करते हैं।”
सुब्रमणि अपने बचपन के दिनों को याद करते हैं, जब वे साल में मुश्किल से दो जोड़ी कपड़े खरीद पाते थे। वह घर की मरम्मत का खर्च नहीं उठा पाते थे। उन्होंने कहा – “आज मेरे पास दो मोटरसाइकिल और एक कार है और मैंने अपना घर फिर से बना लिया है।”
कृष्णागिरी जिले में लगभग 2,000 एकड़ भूमि पर हाई-टेक खेती की जा रही है। चेट्टीपल्ली में 200 पॉली ग्रीन हाउस हैं और नए बन रहे हैं।
सुदीश जैसे किसान फैब्रिकेटर और सलाहकार के रूप में काम करते हैं। किसान मूली, डबल बीन्स, फूलगोभी, पत्तागोभी और गाजर जैसी अन्य फसलों में विविधता ला रहे हैं। ग्रामीण पॉली ग्रीन और शेड नेट हाउस बनाने के लिए सूखी और पथरीली भूमि को समतल कर रहे हैं, क्योंकि आने वाली समृद्धि जोखिम उठाने लायक लगती है।
जॉर्ज राजशेखरन तमिलनाडु के सेलम स्थित एक पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
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