लिंग आधारित हिंसा से निपटने के लिए, केरल का कुडुम्बश्री कार्यक्रम परिवर्तन, रोकथाम और सहयोग के तीन सिद्धांतों पर काम करता है, जिसके अंतर्गत समुदाय-आधारित केंद्र स्थापित करना और जरूरतमंद लोगों को परामर्श देना शामिल हैं।
जब मल्ली छोटी थी, तो उसके बड़े बड़े सपने थे। केरल के एक आदिवासी गाँव से आने वाली मल्ली अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, एक अच्छी नौकरी ढूंढ कर एक बेहतर भविष्य जीना चाहती थी।
जब उसकी शादी पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के उदुमलाईपेट्टई के एक व्यक्ति से हुई, तो उसके माता-पिता ने दूल्हे या उसकी पृष्ठभूमि के बारे में पूछताछ नहीं की, क्योंकि बहुत सी स्थानीय लड़कियाँ तमिलों से शादी करती थी।
लेकिन शादी के बाद उसे पता चला कि उसके पति को शराब की बुरी लत है। जब उसने उससे इस विषय पर बात की, तो उसने उसको शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। और मानसिक रूप से भी। वह अपनी सारी कमाई शराब की प्यास बुझाने में खर्च कर देता था।
मल्ली को घर से निकलने, पड़ोसियों से मिलने या काम पर जाने की इजाजत नहीं थी। उसे एकान्तवास में डाल दिया गया। यहां तक कि उसके ससुराल वाले भी चुप रहे। उसने सारी उम्मीद ख़त्म हो गई थी।
और जब वह गर्भवती हुई, तो उसकी सेहत का ध्यान रखने वाला कोई नहीं था। तमिल रीति-रिवाजों के अनुसार, मल्ली को बच्चे को जन्म देने के लिए उसके माता-पिता के घर भेज दिया गया। लेकिन उसके पति के परिवार से कोई भी नवजात बच्चे को देखने नहीं आया। यहाँ तक कि उसका पति भी उससे और बच्चे से मिलने नहीं आया।
उसकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी एक संघर्ष बन गई। मल्ली के बुज़ुर्ग माता-पिता उसकी भरण-पोषण करने में असमर्थ थे और उन्होंने केरल के राज्य गरीबी उन्मूलन मिशन, ‘कुडुम्बश्री’ के अंतर्गत एक जेंडर हेल्प-डेस्क, ‘स्नेहिता’ से संपर्क किया।
स्नेहिता और सामुदायिक परामर्शदाताओं के माध्यम से, मल्ली, जो अब 27 वर्ष की है, ग्राम पंचायत और समुदाय-आधारित संगठनों (सीबीओ) के सहयोग से, सामाजिक और आर्थिक रूप से अपने समुदाय में समेकित हो गई है।
अंतर-राज्यीय विवाह
एक पितृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था में बाल विवाह आम बात है। लड़कियों को एक बोझ समझा जाता है, क्योंकि ज्यादातर परिवार अपने बच्चों की शादी के लिए साहूकारों और अन्य स्रोतों से कर्ज लेते हैं और भारी कर्ज में डूब जाते हैं।
वे जिले, जिनकी सीमा पड़ोसी राज्यों से लगती हैं, वहां “मैसूर और तमिल विवाह” नामक एक घटना होती है। दूसरे राज्य का एक लड़का, केरल की एक लड़की से शादी करता है और उसे अपने राज्य में ले जाता है।
इन शादियों का आमतौर पर मानव तस्करी का एक छिपा हुआ एजेंडा होता है।
इन परिस्थितियों में, कुडुम्बश्री द्वारा विकसित संस्थागत ढाँचे की, इलाके में लैंगिक हिंसा, बाल श्रम, बाल विवाह और विभिन्न तरह की तस्करी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका है।
केरल की लैंगिक असमानता
केरल का विकास देश के बाकी हिस्सों की तुलना में, उच्च साक्षरता और जीवन प्रत्याशा दर, स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक बेहतर पहुँच और कम शिशु मृत्यु दर जैसे कई मजबूत सामाजिक संकेतक दिखाता है।
लेकिन महिलाओं के श्रम बाज़ार और संसदीय भागीदारी के संकेतक एक अलग तस्वीर पेश करते हैं।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ती हिंसा पर अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो और अन्य संस्थागत आंकड़े बताते हैं कि केरल के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर असमानता मौजूद है।
बहुत से अनुभव और अध्ययन बताते हैं कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ़ हिंसा में वृद्धि से उनकी आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी में कमी आती है। यह समानता, न्याय और विकास की प्राप्ति में एक बड़ी बाधा है, क्योंकि हिंसा महिलाओं की अपने अधिकारों और स्वतंत्रता का लाभ उठाने की क्षमता को बाधित करती है।
लेकिन सवाल यह है कि कैसे इन मुद्दों का समाधान किया जाए और तत्काल कार्रवाई की जाए?
महिला विरोधी हिंसा रोकने के लिए विभिन्न तरीके
पड़ोस सहायता समूह और समुदाय-आधारित व्यवस्था के रूप में, महिला समूह उन समस्याओं से निपटने में प्रभावी हैं, जिनका सामना मल्ली जैसी महिलाओं को करना पड़ता है। लेकिन बदलाव की यह प्रक्रिया धीमी है।
43 लाख महिलाओं के नेटवर्क के साथ, केरल के राज्य गरीबी उन्मूलन मिशन, कुडुम्बश्री ने अपनी यात्रा में विभिन्न मॉडल बनाए हैं। इन मॉडलों को अन्य राज्यों और यहां तक कि अन्य देशों द्वारा भी अपनाया गया है।
इनमें पंचायत राज संस्थाओं (PRI-CBO convergence मॉडल) के साथ मिलकर काम करना, विभिन्न सूक्ष्म उद्यमों का गठन और सहयोग करना तथा अट्टापडी में शुरू किया गया आदिवासी विकास मॉडल ने सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया है।
तीन-स्तंभीय कुडुम्बश्री पद्धति
कुडुम्बश्री द्वारा विकसित जेंडर विकास मॉडल एक सामुदायिक संसाधन आधारित व्यवस्था है। यह परिवर्तन, रोकथाम और सहायता की अवधारणाओं पर काम करता है।
यह मॉडल तीन-स्तरीय कुडुम्बश्री सामुदायिक व्यवस्था पर आधारित है। यह लिंग संसाधन व्यक्तियों के नेतृत्व में, लैंगिक स्व-शिक्षण कार्यक्रम की एक सतत प्रक्रिया है।
स्नेहिता जेंडर संसाधन केंद्र (GRCs) तीन स्तरों पर काम करते हैं – वार्ड, पंचायत और जिला।
हमें एक समुदाय-आधारित महिला केंद्र की जरूरत है, जहां हम किसी भी समय जा सकें
GRC स्थानीय पंचायत के साथ मिलकर काम करते हैं और आपस में सहयोग प्रदान करते हैं। GRC में पंचायत स्तर पर काम करने वाले सामुदायिक परामर्शदाता और वार्ड स्तर पर काम करने वाले सतर्कता समूह शामिल हैं।
स्नेहिता के बढ़ते केंद्र
2013 में तीन जिलों में शुरू हुई स्नेहिता अब 14 जिलों तक फ़ैल चुकी है।
2014 में 70 से बढ़कर GRC की संख्या 800 हो गई है। क्लस्टर स्तर के स्वयं सहायता समूह (SHG) संघों में, ‘जेंडर कॉर्नर’ GRC के स्वायत्त केंद्रों के रूप में कार्य करते हैं।
पंचायत, केरल का स्थानीय स्वशासन विभाग और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) सहयोग प्रदान करते हैं और इस समुदाय-आधारित महिलाओं की सामूहिक कार्रवाई की स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
NRLM के अंतर्गत भारत के 25 राज्यों से प्रतिनिधि, लैंगिक हिंसा से मुकाबला करने और हिंसा के भुग्तभोगियों की सहायता के लिए कुडुम्बश्री के माध्यम से बनाए गए इस अभिनव मॉडल के बारे में सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा बने।
स्वयं सहायता समूह सदस्य, लेखा ने 2012 में लैंगिक हिंसा के बारे में बात करते हुए कहा था – “वैसे तो विभिन्न सरकारी एजेंसियां हैं। लेकिन कोई भी सेवा समुदाय तक नहीं पहुंचती है। हमें एक समुदाय-आधारित महिला केंद्र की जरूरत है, जहां हम किसी भी समय जा सकें।
जरूरत की इस आवाज ने केरल में सामुदायिक व्यवस्था को जन्म दिया है, जो लैंगिक हिंसा से निपटता है, जिसके फलस्वरूप कई राज्यों में GRC को दोहराया गया है।
शीर्ष फोटो में एक महिला को घर में अपना सिर पकड़े चुपचाप रोते हुए दिखाया गया है (फोटो – ‘See_more, शटरस्टॉक’ के सौजन्य से)
सोया थॉमस, ‘इनिशिएटिव फॉर व्हाट वर्क्स टू एडवांस वीमेन एंड गर्ल्स इन द इकोनॉमी’, नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन और ‘Industree Foundation’ के लिए लैंगिक समेकन और पाठ्यक्रम विकास के लिए सलाहकार हैं। उन्होंने विभिन्न जमीनी स्तर के कार्यक्रम विकसित और कार्यान्वित किए हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया है।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?