पोषण संबंधी फायदों और जलवायु प्रतिरोधी गुणों से भरपूर, रागी (बाजरे की किस्म, फिंगर मिलेट) एक जीवन बदलने वाली फसल हो सकती है, खासकर जब बाजरा के आटे की छोटी चक्की, प्रोसेसिंग को आसान बना रही हों।
ओडिशा में कोरापुट के आरापाई गाँव से एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य, 59-वर्षीय शशि माछा कहती हैं – “हम मक्का उगाने की बजाय बाजरा उगाने के बारे में सोच रहे हैं।”
क्यों?
शशि जैसे किसान बाजरे के गुणों को समझने लगे हैं। यह न केवल “जलवायु प्रतिरोधी” है, जो सूखाग्रस्त ओडिशा के लिए बहुत बड़ी बात है, बल्कि इसकी असाधारण उत्पादकता ज्यादा पैदावार लाती है।
उन्होंने कहा – “हमने 0.25 एकड़ खेत में मक्का उगाया और 15 किलोग्राम मक्का प्राप्त करने के लिए 15,000 रुपये खर्च किए। इसकी तुलना में, हम 1.5 एकड़ जमीन से 10-12 क्विंटल रागी की उम्मीद कर रहे हैं।”
बाजरे की छोटे बीज वाली घास की यह प्रजाति दुनिया भर में अर्ध-शुष्क और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाने वाला एक अनाज है, जिसे न्यूनतम सामग्री की जरूरत होती है। इसका उपयोग इंसानों के भोजन और पशु चारे, दोनों के रूप में किया जाता है।
यह न केवल जलवायु-प्रतिरोधी है, बल्कि काटने के बाद इसे लंबे समय तक संग्रहीत भी किया जा सकता है, जो इसे अकाल-संभावित क्षेत्रों के लिए आदर्श बनाता है। अपनी प्रभावशाली रूपरेखा को देखते हुए, बाजरा भारत में खाद्य और पोषण संबंधी असुरक्षा को दूर करने में सक्षम है।
बाजरा – एक पौष्टिक अजूबा
भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान के अनुसार, बाजरा पोषण संबंधी फायदों से भरपूर है। इसका सेवन स्तन कैंसर, रक्तचाप, मधुमेह, अस्थमा, हृदय रोग और कब्ज की रोकथाम से जुड़ा है।
चक्की से प्रोसेस किए बाजरे का आटा, हाथ से कूटने की तुलना में ज्यादा स्वच्छ होता है।
यह मानव शरीर को डिटॉक्सीफाई भी करता है और कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद कर सकता है।
बाजरे को पोषक अनाज के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसमें मानव शरीर की कार्यप्रणाली के लिए जरूरी ज्यादातर पोषक तत्व होते हैं। वे ग्लूटेन-मुक्त होते हैं और चावल से ज्यादा पौष्टिक होते हैं।
बाजरे को बढ़ावा देने के लिए सरकारी हस्तक्षेप
बाजरे के महत्व को समझते हुए ओडिशा सरकार ने 2017-18 में ओडिशा बाजरा मिशन की शुरुआत की, ताकि खेतों और थालियों में ज़्यादा से ज़्यादा बाजरा लाया जा सके। इसने रागी को विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों से जोड़ा, जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और बाल विकास कार्यक्रम।
इस मिशन के अंतर्गत किसानों को उन्नत कृषि पद्धतियों के लिए आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है, तथा किसानों को इसकी ज्यादा खेती करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
इसके अलावा, भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को प्रस्ताव दिया कि 2023 को “अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (IYM)” के रूप में मनाया जाए।
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा – “भारत दुनिया भर में IYM-2023 समारोहों का नेतृत्व करेगा और बाजरे की खेती और खपत को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाएगा।”
बाजरे की खेती को आसान कैसे बनाएं?
पकाए जाने से पहले, बाजरे को कटाई के बाद की व्यापक प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसे करने के पारम्परिक तरीकों में काफी मेहनत की जरूरत होती है।
यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं कि कोरापुट में महिला किसान कभी कभी बाजरा उगाने से कतराती हैं। इसकी बजाय इसकी चक्की में प्रोसेसिंग के लिए कुछ किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। इसके फलस्वरूप, इससे खर्च और समय बढ़ जाता है, जिससे बाजरे के उत्पादन और खपत में गिरावट आती है।
इन ग्रामीण क्षेत्रों में ‘एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन’ (MSSRF), ओडिशा सरकार के सहयोग से ‘फार्मिंग सिस्टम फॉर नुट्रिशन’ (FSN) परियोजना के अंतर्गत बाजरा उत्पादन और खपत को पुनर्जीवित करने के लिए कई हस्तक्षेप लागू कर रहा है।
इसका उद्देश्य ग्रामीण एवं जनजातीय निवासियों, विशेषकर छोटे एवं सीमांत कृषक समुदायों की आजीविका को बढ़ाना तथा खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में सुधार करना है।
रागी की पैदावार में सुधार के लिए, किसानों को बेहतर कृषि पद्धतियों और इसके पोषण मूल्यों पर प्रशिक्षित किया जाता है। इस हस्तक्षेप का लक्ष्य कम लागत और सामग्री से किसानों के लिए बंपर उत्पादन प्राप्त करना है।
मिनी-बाजरा आटा मीलों द्वारा राहत
लेकिन सिर्फ उत्पादन बढ़ाने से इसकी प्रोसेसिंग की मेहनत कम नहीं हो सकती और न ही अधिक लोगों को इसे खाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
इस चुनौती से निपटने के लिए, कोरापुट में गाँव स्तर पर 12 मिनी-बाजरा आटा मिलें लगाई गई हैं। रखरखाव और प्रबंधन के लिए प्रोसेसिंग इकाइयों को महिला स्वयं सहायता समूहों को आवंटित किया गया है।
अब स्वयं सहायता समूह की महिलाएँ बिना कठोर मेहनत के और न्यूनतम लागत पर, नियमित रूप से बाजरा, विशेष रूप से रागी को प्रोसेस करने में सक्षम हैं, जिससे महिलाओं को अपने काम के लिए उपयुक्त आय प्राप्त करने में मदद मिल रही है।
मिनी-मिलों ने बाजरे के स्वाद में भी सुधार किया है, जिससे खपत में भी वृद्धि हुई है।
आरापाई गाँव की ‘माँ संतोषी एसएचजी’ की अध्यक्ष, 40-वर्षीय मांगुली खारा कहती हैं – “चक्की में प्रसंस्कृत बाजरे की बनावट बहुत नरम होती है, जो इसके स्वाद को बढ़ा देती है। चक्की में संसाधित रागी का आटा, हाथ से कूटे आटे की तुलना में ज्यादा साफ़ होता है। यह पारम्परिक प्रक्रिया की तुलना में इससे ज्यादा आटा प्राप्त होता है। पहले जिस काम में घंटों लगते थे, अब मिल की बदौलत उसमें कुछ मिनट लगते हैं।”
आय बढ़ी, मेहनत कम हुई
आरापाई गाँव की माँ संतोषी महिला एसएचजी, जिसमें 11 सदस्य हैं, ने कभी भी बैंकों से कोई ऋण नहीं लिया है। सदस्य नियमित रूप से 100 रुपये महीना शुल्क जमा करते हैं।
इसके अलावा, बाजरा चक्की से होने वाली आय रखरखाव की लागत को कम करने के बाद, सदस्यों को चार प्रतिशत की ब्याज दर पर ऋण देने में सक्षम बनाती है।
MSSRF एसएचजी को एक मिनी बाजरा आटा चक्की प्रदान कर रही है। प्रबंधन के हिस्से के रूप में, समूह का प्रत्येक सदस्य एक महीने के लिए मिल का कार्यभार संभालेगा।
शीर्ष पर मुख्य छवि में एक खेत में उगा बाजरा दिखाया गया है (फोटो – मधेगौडु से साभार)
तृप्ति खुरा एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन में विकास सहायक (पोषण) हैं।
‘फरी’ कश्मीर की धुंए में पकी मछली है, जिसे ठंड के महीनों में सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। जब ताजा भोजन मिलना मुश्किल होता था, तब यह जीवित रहने के लिए प्रयोग होने वाला एक व्यंजन होता था। लेकिन आज यह एक कश्मीरी आरामदायक भोजन और खाने के शौकीनों के लिए एक स्वादिष्ट व्यंजन बन गया है।
हम में ज्यादातर ने आंध्र प्रदेश के अराकू, कर्नाटक के कूर्ग और केरल के वायनाड की स्वादिष्ट कॉफी बीन्स के बारे में सुना है, लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में पैदा होने वाली खुशबूदार कॉफी के बारे में जानते हैं?