आदिवासी महिलाओं द्वारा संचालित एक पत्रिका कैसे जीवन को बेहतर बना सकती है
महिलाओं के लिए और महिलाओं द्वारा प्रकाशित एक तेलुगु पत्रिका, ‘महिला नवोदयम्’ अर्थात "नई सुबह", शुरुआती कठिनाइयों के बावजूद सामाजिक परिवर्तन और महिला सशक्तिकरण लाती है।
महिलाओं के लिए और महिलाओं द्वारा प्रकाशित एक तेलुगु पत्रिका, ‘महिला नवोदयम्’ अर्थात "नई सुबह", शुरुआती कठिनाइयों के बावजूद सामाजिक परिवर्तन और महिला सशक्तिकरण लाती है।
यह कल्पना करना मुश्किल है कि ऐसी महिलाओं का एक समूह, जिनके पास केवल प्रारंभिक शिक्षा है, एक पत्रिका निकालता है, जिसमें लेखन और संपादन से लेकर डिजाइनिंग और प्रिंटिंग तक शामिल हैं। लेकिन आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में हाशिये पर रहने वाली आदिवासी महिलाओं का एक समूह यही कर रहा है।
36-पृष्ठों की रंगीन मासिक पत्रिका, ‘महिला नवोदयम्’ में सरकारी योजनाओं और उन विषयों पर लेख प्रकाशित होते हैं, जिन्हें ग्रामीणों को जानना जरूरी है।
यह पत्रिका उन महिलाओं की दृढ़ता के बारे में ही नहीं है, जो अनेक बाधाओं के बावजूद पत्रिका प्रकाशित करती हैं। यह इस बारे में भी है कि किस प्रकार इसने पुरुषों और महिलाओं के दृष्टिकोण को बदल दिया है, तथा इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने उनके जीवन को बेहतर बना दिया है।
‘महिला नवोदयम्’ का उद्देश्य आंध्र प्रदेश की ग्रामीण, वंचित और अशिक्षित लड़कियों और महिलाओं के सशक्तिकरण है। और इसका प्रभाव स्पष्ट है।
उदाहरण के लिए, पहले यौन उत्पीड़न के मामले स्थानीय पंचायतें ही सुलझा लेती थी। अब ऐसे मामलों की सूचना पुलिस को दी जाती है और आधिकारिक तौर पर हल किया जाता है।
पत्रिका की टीम की एक वरिष्ठ सदस्य रत्नम्मा ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “हम लगातार महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में लिखते हैं।”
वह कहती हैं – “पहले महिलाएं इतनी अनजान थी कि 30-35 साल की महिलाओं में गर्भाशय निकालना आम बात थी। अब वे अनियमित मासिक धर्म, रक्तस्राव और सफेद स्राव जैसे स्त्री रोग संबंधी मुद्दों के लिए डॉक्टरों से परामर्श लेती हैं। इससे उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ है और स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ काफी हद तक कम हो गई हैं।”
उनके आसपास चल रही कहानियों ने महिलाओं को दहेज और बाल विवाह के खिलाफ लेख प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया। हालाँकि रूढ़िवादी पुरुषों का कड़ा विरोध हुआ, लेकिन उनके शब्दों ने परिणाम दिए।
संपादक, मल्लिका ने विलेज स्क्वेयर को बताया – “अब बच्चे छोटी उम्र में शादी करने से मना कर देते हैं। वे पढ़ाई करना और नौकरी प्राप्त करना पसंद करते हैं। हमारे काम से लड़कियों की शिक्षा में बहुत सुधार हुआ है।”
क्योंकि ‘महिला नवोदयम्’ में सभी सरकारी योजनाएँ छपती हैं, ग्रामीणों को गृह ऋण और शिक्षा ऋण के बारे में जानकारी मिलती है। उसमें उच्च शिक्षा की संभावनाओं, छात्रवृत्ति और करियर के अवसरों के बारे में नियमित रूप से लेख होते हैं।
वह हंसते हुए कहती हैं – “हर घर में एक एमबीए या इंजीनियरिंग की डिग्री रखने वाला व्यक्ति है। लेकिन पत्रिका में काम करने वाले हम सभी चौथी, पांचवीं और सातवीं कक्षा तक पढ़े हैं।”
पत्रिका में प्रकाशित जानकारी की बदौलत, बहुत सी महिलाएं अब ऋण का लाभ उठाती हैं और छोटी डेस्कटॉप प्रकाशन दुकानों से लेकर ऑटो चलाने तक, छोटे व्यवसाय या व्यापार चलाती हैं।
दूसरों को प्रेरित करने के लिए, पत्रिका प्रत्येक अंक में महिलाओं की सफलता की कहानियाँ प्रकाशित करती है।
हालाँकि शुरू में पत्रिका को महिला सशक्तिकरण को प्रस्तुत करने के लिए मुद्दों से सीधे टकराना पड़ता था।
वे स्थानीय समाचार एकत्र करते थे और स्थानीय शराब, रिश्वतखोरी, दहेज और बाल विवाह के बारे में लिखते थे। स्वाभाविक रूप से परिवार के सदस्यों का विरोध, सामाजिक लांछन और धमकियाँ मिली।
रत्नम्मा कहती हैं – “जब हमने शराब पर कहानियाँ और कविताएँ लिखी, तो शराब लॉबी गुस्से में थी। उन्होंने पत्रिका के प्रसार को रोकने की कोशिश की।”
जब हमने शराब के सेवन के दुष्प्रभावों के बारे में लिखा, तो विक्रेताओं ने पुरुषों को प्रभावित किया, जिन्होंने हमें घर में ही रहने के लिए कहा
लेकिन महिलाओं को जिला कलेक्टर का समर्थन प्राप्त था, क्योंकि पत्रिका सरकारी सहयोग से शुरू की गई थी।
मंजुला याद करती हैं – “जब हमने शराब पीने के बुरे प्रभावों के बारे में लिखा, तो विक्रेताओं ने पुरुषों को प्रभावित किया, जिन्होंने हमें घर में ही रहने और नवोदयम् की गतिविधियों से दूर रहने के लिए कहा। मेरे पति ने भी मेरे पंख कतरने की पूरी कोशिश की।”
लेकिन वे उन महिलाओं और बच्चों के लिए आवाज उठाने के लिए दृढ़संकल्प थी, जो पुरुषों की शराब पीने की आदत से प्रभावित थी।
पत्रिका की शुरुआत वर्ष 2001 में, विश्व बैंक के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के सहयोग से की गई थी। महिलाओं को न्यूज़लेटर चलाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। यह आसान नहीं था, क्योंकि ये महिलाएँ कभी अपने घर से बाहर नहीं निकली थी।
यह याद करते हुए कि वह कैसे शामिल हुई, मंजुला कहती हैं – “उन्होंने पूछा कि क्या मैं तिरूपति की यात्रा करना चाहूंगी। मैं कभी चित्तूर से बाहर नहीं गई थी। लेकिन मैं अलग-अलग स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं के एक समूह में शामिल हो गई और चली गई।”
तीन दिवसीय प्रशिक्षण के बाद, महिलाओं को अपने गाँव की नागरिक समस्या के बारे में एक छोटा लेख लिखना था। वह शुरुआत थी। 150 प्रशिक्षुओं में से केवल 12 ने पत्रिका के महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में काम करना शुरू किया। लेकिन 20 साल बाद, आठ पन्नों का न्यूज़ लेटर 36 पन्नों की पत्रिका बन गया है।
वे अलग-अलग भूमिकाएँ निभाते हैं और प्रोडक्शन पर काम करते हैं। कुछ कार्टून बनाती हैं, कुछ सदस्यता संभालती हैं, कहानियों को संपादित करती हैं और पेज डिज़ाइन करती हैं। वे कहानियाँ सरल भाषा में लिखती हैं, ताकि पाठक आसानी से समझ सकें।
टीम 60 गांवों तक पहुंचती है। रत्नम्मा ने कहा – “जब पुरुष हमारी आलोचना करते थे, हम और ज्यादा गांवों को कवर करने के लिए कड़ी मेहनत करती थी।”
अब नवोदयम के सदस्य पड़ोसी जिलों अन्नामय्या और तिरुपति में भी हैं। वे स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से अपनी सदस्यता बढ़ाते हैं।
हालांकि महिलाओं का काम प्रेरणादायक है और उनका सदस्य आधार अच्छा है, लेकिन उन्हें हर महीने पत्रिका प्रकाशित करने के लिए जरूरी 3 लाख रुपये जुटाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
नवोदयम पत्रकार वंचित महिलाएं हैं, जिनकी केवल बुनियादी शिक्षा है। लेकिन वे प्रत्येक अंक के साथ स्वयं को रिपोर्ट करने और समाचार संपादित करने, विज्ञापन प्राप्त करने, पत्रिका डिज़ाइन करने और प्रकाशित करने के लिए प्रेरित करती हैं।
और वे यह भी कोशिश करती हैं कि दूसरे राज्यों की अन्य महिलाएं भी ऐसा करें।
मल्लिका कहती हैं – “नवोदयम हमारे जीवन में व्यापक बदलाव लाता है। हमारे आचरण करने का तरीका बदल गया है। अब हम में आत्म-विश्वास है। हम दूसरे राज्यों का दौरा करती हैं, सम्मेलनों में भाग लेती हैं, सभाओं को संबोधित करती हैं, अपने अनुभव साझा करते हैं।”
महिलाएं अब अपने बैंक खाते संभालते हुए, पैसे कमाती और बचाती हैं। हालांकि कोविड ने उन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला, फिर भी टीम नवोदयम, एक नई सुबह की ओर आगे बढ़ रही हैं।
शीर्ष की मुख्य फोटो में महिलाओं को महिला नवोदयम पत्रिका की प्रिंट प्रतियां तैयार करते हुए दिखाया गया है (फोटो – नवोदयम के सौजन्य से)
चित्रा अजित केरल के कोझिकोड में स्थित एक पत्रकार हैं।
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